स्वयं सेवक चाहिए: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एतिहासिक फ़ैसला सुनाया

स्वयं सेवक चाहिए: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एतिहासिक फ़ैसला सुनाया


प्यारे मित्रों,

ओम्कारेश्वर डाम से विस्थापित लोगों के लिए नर्मदा बचाओ आन्दोलन के अथक प्रयासों से आशावादी समाचार है! कृपया कर के नीचे दी हुई प्रेस विज्ञप्ति देखिये.

मार्च महीने के पहले तीन हफ्तों के लिए नर्मदा बचाओ आन्दोलन को अतिशीघ्र स्वयं सेवक चाहिए जो पानी में डूबी जमीन से संबंधित और विस्थापित लोगों के मुद्दों से जुड़े हुए आंकडे इकाठे कर सके, क्योकि ये आकडे हाई कोर्ट में जमा होने हैं.

जो लोग भाग लेने में इच्छुक हों, कृपया कर के नर्मदा बचाओ आन्दोलन के खंडवा कार्यालय में सम्पर्क करें! (पता नीचे दिया हुआ है)

शुक्रिया

राहुल पाण्डेय

ईमेल: rahulanjula@gmail.com

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नर्मदा बचाओ आन्दोलन
२, सी नगर, माता चौक, खंडवा, मध्य प्रदेश
फ़ोन: ०९४२५३९४६०६, ०९४२५९२८००७
ईमेल : न्बखान्द्वा@जीमेल.कॉम
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प्रेस विज्ञप्ति
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मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एतिहासिक फ़ैसला सुनाया

ओम्कारेश्वर डाम से विस्थापित लोगों को सीधे जमीन पर कानूनन कब्जा मिले

यदि SEZ या Special Economic Zone या विशेष आर्थिक ज़ोन के लिए जमीन दी जा सकती है, तो डाम से विस्थापित लोगों को भी जमीन दी जा सकती है

हर किसान को, वैद-अवैद रूप से रह रहे लोगों को, और किसान के व्यसक पुत्र को भी खेती के योग्य जमीन दी जाए एवं न्यूनतम जमीन एकड़ हो और खेती योग्य हो, जो की भारत सरकार की पुनर-स्थापन निति के अनुसार है, ये ऐतिहासिक आदेश दिया है मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने. हाई कोर्ट ने ये स्पष्ट निर्देश दिया है की किसान के व्यसक पुत्र को भी अलग खेती योग्य जमीन दी जाए भले ही वो अकेले का दावेदार हो.

हाई कोर्ट की बेंच ने ये भी निर्देश दिया की वर्त्तमान का जल-स्तर जो की 189 मीटर है वो तब तक बढाया नही जा सकता जब तक हर विस्थापित व्यक्ति को जमीन पर कब्जा नही मिल जाता.

हाई कोर्ट ने ये भी आदेश दिया की मध्य प्रदेश सरकार, नर्मदा बचाओ अन्दोलोँ को रुपया १०,००० दे जो इस केस आदि में खर्चों के प्रति है.

नर्मदा घाटी में बनने वाले बड़े डैमों में से एक ओम्कारेश्वर दम है. ३० गावं और लगभग ८००० लोग इस डाम से प्रभावित हुए हैं. NHDC (Narmada Hydro-Development Corporation) द्वारा इस डाम का निर्माण हो रहा है, जो की मध्य प्रदेश सरकार और केंद्रीय सरकार की संयुक्त कम्पनी है.

हालांकि सरकार की पुनर्स्थापन योजना है की विस्थापित लोगों को जमीन के लिए जमीन दी जाए और कम से कम ५ एकड़ खेती योग्य जमीन दी जाए, एक भी विस्थापित व्यक्ति को जमीन नही मिल पायी है.

इसके बावजूद भी २८ मार्च २००७ को प्रदेश सरकार ने जलाशय की भराई शुरू कर दी थी जिससे की हजारों लोगों के डूबने की सम्भावना बढ़ गई थी. ये सरकार की ही पुनर्स्थापन निति के विरुद्ध था, नर्मदा बचाओ आन्दोलन ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में अपील ३० मार्च २००७ को इसी बुनियाद पर दाखिल की थी. नर्मदा बचाओ आन्दोलन के प्रयास की वजह से कोर्ट ने स्टे भराई पर दिया था. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने १८९ मीटर तक की भरे की अनुमति दे दी और हाई कोर्ट को निर्देश दिया कि उचित फ़ैसला करे.

हाई कोर्ट का मानना है की विस्थापित लोगों का मूल अधिकार है की विस्थापन के बाद वो ज्यादा बेहतर ढंग से पुनर्स्थापित हों.

नर्मदा बचाओ आन्दोलन के पहले और दूसरे केस में आए सुप्रीम कोर्ट के आदेश और N D Jayal Tehri डाम के केस के निर्णय को आधार बनाकर हाई कोर्ट ने कहा की भारतीय संविधान के article २१ के तहत ये विस्थापित हुए लोगों का मूल अधिकार है की विस्थापना के बाद वो बेहतर ढंग से पुनर्स्थापित हों. हाई कोर्ट ने ये भी कहा कि विस्थापित हुए लोगों को बेहतर ढंग से पुनर्स्थापन करने के लिए उनको बेहतर खेती योग्य जमीन मिले, रोज़गार मिले या अन्य योजनाओं का लाभ मिले जो उनको पहले नही नसीब था.

कोर्ट ने ये भी कहा की "यदि सरकार ने जमीन का आश्वासन दिया था, और जमीन नही दी है, तो ये कोर्ट की ड्यूटी है की वो लोगों के अधिकारों को उनको दिलाये".

प्रदेश सरकार ने २००२ में पुनर्स्थापना निति में बदलाव लाने की कोशिश की थी की पुनर्स्थापना 'जितना सम्भव हो उतना हो'. परन्तु हाई कोर्ट ने सीधा आदेश दिया कि 'जितना सम्भव हो उतना हो' कह देने से सरकार अपनी मूल जिम्मेदारी को नज़रंदाज़ नही कर सकती जो विस्थापित हुए लोगों के प्रति बनती है, और उनको जमीन देने के आश्वासन पर खरे उतरे.

हाई कोर्ट ने ये भी कहा की यदि Special Economic Zone (SEZ) ke लिए जमीन उपलब्ध है तो विस्थापित हुए लोगों को जमीन देने के लिए भी जमीन उपलब्ध है.

हाई कोर्ट के मुताबित यदि मध्य प्रदेश में जमीन है ही नही तब प्रदेश सरकार को जमीन देने के लिए मजबूर नही किया जा सकता. परन्तु हाई कोर्ट की जांच के मुताबिक प्रदेश में हजारों अकड जमीन है जो मध्य प्रदेश सरकार ने SEZ को और निजी उद्योगों को उपलब्ध करायी है. परन्तु प्रदेश सरकार ने कोई प्रयास नही किया है की निजी जमीन हासिल कर के विस्थापित हुए लोगों को उनका हक मिले. इसीलिए प्रदेश सरकार को सरकारी और निजी जमीन हासिल कर के विस्थापित हुए लोगों को निति के मुताबिक देनी चाहिए.

जिन विस्थापित हुए लोगों ने सरकार से मुआवजा ले लिया है वो भी जमीन के हक़दार हैं. हालांकि ऐसे लोगों को जमीन मिलने पर ५०% का मुआवजा २० किश्तों में वापस करना होगा.


किसान के व्यसक लड़के को जमीन

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हाई कोर्ट ने स्पष्ट कहा की किसानों के व्यसक लड़के भी जमीन के पूरे दावेदार हैं, और उनको भी न्यूनतम ५ एकड़ की खेती योग्य जमीन मिलनी चाहिए.

जब तक ओम्कारेश्वर डाम से विस्थापित हुए लोगों के पुनर्स्थापना का कार्य नही खत्म हो जाता, तब तक डाम में पानी का स्तर १८९ मीटर जो वर्त्तमान में है, उससे नही बढ़ना चाहिए, कोर्ट ने कहा.

कोर्ट ने कहा की विस्थापित हुए लोगों की अन्य शिकायतें या मुद्दों के लिए Grievance Redressal Authority (GRA) में ३१ मार्च २००८ तक दर्ज करायी जाए और GRA १४ जून २००८ तक उनका निवारण करें और कोर्ट को सूचित करे.

हाई कोर्ट ने ये आदेश दिया की GRA १४ जून तक रपट दाखिल करे, एवं अन्य २५ गावं के बारे में १७ जून को कोर्ट में सुनवाई होगी.

इस केस की सुनवाई कई दिनों तक चली थी. मध्य प्रदेश सरकार का प्रतिनिधित्व अद्वोकाते जनरल श्री र.न. संघ ने किया था, NHDC का प्रतिनिधित्व सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील श्री रवि शंकर प्रसाद ने किया था, एवं सुश्री चित्तारूपा पालित ने नर्मदा बचाओ आन्दोलन की ओर से बहस की थी.

अलोक अगरवाल, नरेन बिरला, राधेस्यम तिरोले, सरपंच सुक्वा, गोगाल्गओं , भाग्वान्भई, गजराज संघ, राधाबाई

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नर्मदा बचाओ आन्दोलन

२, सी नगर, माता चौक,

खंडवा, मध्य प्रदेश.

फ़ोन एवं फैक्स: ०७३३ - २२२८४१८/२२७००१४

ईमेल: nobigdam@bsnl.in

बजट के लिए इच्छा सूची: हाशिये पर लोगों के हितों की संग्रक्षा करें, अगले पे कमीशन में किसानों, मजदूरों और कारीगरों के हितों को ध्यान दे

बजट के लिए इच्छा सूची: हाशिये पर लोगों के हितों की संग्रक्षा करें, अगले पे कमीशन में किसानों, मजदूरों औरकारीगरों के हितों को ध्यान दें

संदीप पाण्डेय

(ये लेख मौलिक रूप से अरुणोदय प्रकाश द्वारा अंग्रेज़ी में लिखा गया है, जो यहाँ पढ़ा जा सकता है: http://www.livemint.com/2008/02/27141514/Budget-Wishlist--Safeguard-in.html . इसका अनुवाद करने का प्रयास किया गया है. त्रुटियों के लिए छमा करें)

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अधिकांश जनता जो ‘असल’ भारत में रहती है उसके मुद्दों को केन्द्र में रख कर ही आर्थिक एंड सामाजिक नीतियाँ बनाई जानी चाहिए, ऐसा हमारा मानना है – संदीप पाण्डेय

चांद सुझाव:

- अगले पे कमीशन में किसानों, मजदूरों और कारीगरों को शामिल किया जाए

- ये सुनिश्चित किया जाए की सबको रोज़गार मिले और गुणात्मक दृष्टि से उच्च-स्वास्थ्य सेवा का लाभ भी प्राप्त हो

- ठीक से जांच करने के बाद गरीबों का उधार या लोन माफ़ किया जाना चाहिए और उनके उत्पादनों को, विशेषकर की अर्थ-व्यवस्था के मूल उत्पादनों को पर्याप्त दाम मिलना चाहिए.

- सबको सामाजिक सुरक्षा का लाभ मिलना चाहिए, न की सिर्फ़ चांद लोगों को

- मानव के वजूद के लिए जो काम जितना आवश्यक है, उस हिसाब से उसका दाम तय होना चाहिए. उदाहरण के तौर पर किसानों को सबसे अधिक दाम मिलना चाहिए. इसी तरह किसानों के उत्पादनों को भी अधिक मूल्य मिलना चाहिए क्योकि उनके उत्पादन मनुष्य के वजूद के लिए अति-आवश्यक हैं.

- ऐसी निति बनाई जानी चाहिए की किसानों को जमीन पर अधिकार मिल सके एंड ग्रामीण छेत्रों में गरीब लोगों को सहायता मिले जिससे की कृषि-केंद्रीय अर्थ-व्यवस्था का विकास हो

- स्थायी उर्जा के संसाधन के लिए ‘फोस्सिल’ उर्जा के स्रोत एवं परमाणु उर्जा के स्रोत से हट कर वकाल्पिक उर्जा के संसाधनों को अपनाया जाए

- सैन्य बजट को घटाया जाए, परमाणु शास्त्रों को खत्म किया जाए

- चुनाव में प्रतिभागियों के प्रचार के लिए आर्थिक सहायता का प्रावधान हो जिससे की राजनितिक पार्टियाँ भ्रष्टाचार, काले धन और कमीशन से प्राप्त पैसे पर चुनाव लड़ने के लिए न विवश रहे

- एक राजनितिक निर्णय से सर्विस या बुसिनेस में नौकरी करने वालों की कमाई में और मूल आवश्यकताओं को पुरा करने में लगे मजदूर वर्ग की कमाई में जो जबरदस्त अन्तर है उसको कम किया जाए

- National Rural Employment Guarantee Scheme (NREGS) राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना को सरकार पर कानूनन बाध्य होना चाहिए की जो देड़ी रकम इस योजना में देने की गुअरंती दी जा रही है, वो साल के अंत में अपनेआप लोगों के अकाउंट में भेज दी जाए. अन्य नौकरियों की तरह ये देड़ी रकम का डर भी साल के अंत में बढाया जाना चाहिए.


यदि में फाइनेंस मिनिस्टर होता: (संदीप पाण्डेय)

में लोगों की कमाई में बराबरी लाने का प्रयास करूँगा, सबको उच्च-गुणात्मक रूप से स्वास्थ्य सेवा प्राप्त हो ऐसा प्रयास करूँगा, वैकल्पिक उर्जा के स्रोत को बढावा दूंगा, बड़े उद्योग की तुलना में लघु स्तर पर उद्योग को बढावा दूँगा, और निजी वहां के बजाये जन-परिवहन व्यवस्था को सशक्त करूँगा.

भारत को महात्मा गाँधी की बात मान लेनी चाहिए थी और ग्राम स्वराज्य के आदर्श को अपनाना चाहिए था. हमारी विकास की निति गड़बड़ है और गरीब और अमीर में अन्तर को और अधिक बढ़ा रही है.

अमीरों के लिए तकनीकी और गुणात्मक दृष्टि से बढ़िया उत्पादन कम मूल्य में उपलब्ध हो और गरीबों के लिए मचिनों पर प्रतिबन्ध लगाया जाए जिससे की रोज़गार गुअरंती योजना का लाभ उनको मिल सके. ये शहरी और ग्रामीण छेत्रों में सो अन्तर है, उसमे भी देखने को मिलता है.

संदीप पाण्डेय, वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता हैं और रामों मग्सय्सय पुरुस्कार २००२ से सम्मानित भी. ये लेख हिंदुस्तान तिमेस के अरुणोदय प्रकाश ने अंग्रेज़ी में मूल रूप से लिखा है, जो यह पढ़ा जा सकता है: http://www.livemint.com/2008/02/27141514/Budget-Wishlist--Safeguard-in.html . इसका अनुवाद करने का प्रयास किया गया है. त्रुटियों के लिए छमा करें)

किसान आत्महत्या की दर 36गढ में सबसे अधिक: पर आंकडे झूठे हैं !

किसान आत्महत्या की दर 36गढ में सबसे अधिक: पर आंकडे झूठे हैं !

शुभ्रांशु चौधरी

आज शर्मा जी और वर्मा जी की कहानी से शुरु करता हूं । शर्मा जी और वर्मा जी की कहानी है तो काल्पनिक पर दोनों के साथ बहुत बुरा हुआ ।


एकदिन शर्मा जी के जवान बेटे ने आत्महत्या कर ली । उस पर खूब बवाल मचा कि आखिर एक जवान लडके ने खुदकुशी क्यों की । पत्रकारों ने इस पर खूब लिखा । प्रधानमंत्री भी शर्मा जी को मुआवज़ा देने आए । इंक्वायरी कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार शर्मा जी के बेटे की खुदकुशी के पीछे उसके को-एड स्कूल में पढना ही कारण था । को-एड स्कूल यानि जहां लडके और लडकियां साथ पढते हैं । जांच रिपोर्ट में बताया गया कि लगता है किसी बात पर शर्मा जी के बेटे को लडकियों ने चिढाया था और उसका युवा मन उसे सह नहीं सका ।

इस बात पर संसद में काफी बहस हुई कि आगे से ऐसे युवाओं की खुदकुशी को कैसे रोका जाए । पर को-एड स्कूलों को एकाएक बंद भी तो नहीं किया जा सकता ।

इसके कुछ साल बाद एकदिन अचानक शर्मा जी के मित्र वर्मा जी के बेटे ने भी खुदकुशी कर ली ।

काफी दुखद दृश्य था । लोग सांत्वना देने पहुंचे थे पर वर्मा जी लगातार कह रहे थे मैंने शर्मा जी के बेटे की खुदकुशी के बाद की सारी रिपोर्टें ध्यान से पढी हैं । मेरा बेटा को-एड स्कूल में तो पढता ही नहीं था तो वह कैसे खुदकुशी कर सकता है, ये डोक्टर झूठ बोल रहा है !

बेटे की लाश सामने पडी है पर वर्मा जी मौत की रपट लिखवाने को तैयार नहीं थे । इसलिए प्रधानमंत्री भी इस बार मुआवज़ा देने नहीं आए ।

शर्मा जी विदर्भ में रहते हैं और वर्मा जी छत्तीसगढ में । मुझे मालूम है आपको कुछ समझ नहीं आ रहा है । पर आज छत्तीसगढ में स्थितियाँ कुछ वर्मा जी जैसी है ।

आज से दो हफ्ते पहले 8 फरवरी को मैंने इसी कॉलम में लिखा था कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो में उपलब्ध आंकडों के अनुसार छत्तीसगढ में हर साल लगभग 1400 खातेदार किसान खुदकुशी करते हैं यानि प्रतिदिन 4 किसान ।

यदि यह पता करने की कोशिश की जाए कि ऐसे कितने किसान आत्महत्या करते हैं जिनके नाम पर कोई खाता नहीं है तो इस बारे में कोई आंकडा उपलब्ध नहीं है ।

छत्तीसगढ में प्रतिक्रिया कुछ वर्मा जी जैसे हुई ।

कहा गया विदर्भ और आंध्र में किसान कैश क्रॉप बोते हैं, कर्ज़ लेते हैं इसलिए आत्महत्या करते हैं पर छत्तीसगढ में किसान धान बोते हैं जिसमें मेहनत तो लगती है पर अधिक कर्ज़ लेने की ज़रूरत नहीं होती, इसलिए ये आंकडे झूठे हैं ।

अब यह अलग बात है कि कृषि मंत्री शरद पवार ने संसद में यह माना है कि किसान आत्महत्या के राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो के आंकडे सही हैं । ( 30 नवंबर 2007 तारांकित प्रश्न क्रमांक 238, राम जेठमलानी को कृषि मंत्री का जवाब)

इन सरकारी आंकडों में कहीं यह नहीं कहा गया है कि इन किसानों ने किसानी से जुडे कारणों से आत्महत्या की है और न ही किसी ने ऐसा दावा भी किया है ।

कुछ लोगों ने कहा हम अंधे हैं क्या? रोज़ चार किसान आत्महत्या करेंगे और हमें पता भी नहीं चलेगा ? मैं सिर्फ इतना कह रहा हूँ कि इन आंकडों की जांच होनी चाहिए ।

7 सालों से ये आंकडे राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो में पडे हैं किसी छत्तीसगढिया ने इन पर झांकने की ज़रूरत महसूस नहीं की । पर मैंने खोजना शुरु किया है क्या छत्तीसगढ में आत्महत्या के बारे में पहले भी कोई अध्ययन हुआ है ?

मुझे 1943 के वैरियर एल्विन की पुस्तक माडिया मर्डर एंड सुइसाइड के बारे में तो पता था जिसमें उन्होंने बस्तर के आदिवासियों में आत्महत्या का अध्ययन किया था और पाया था कि माडिया आदिवासियों में मुरिया की तुलना में अधिक आत्महत्या पाई जाती है और यह सवाल पूछा था कि ऐसा क्यों है ?

उसके बाद मुझे 2003 में लंदन स्कूल ऑफ इक़ोनॉमिक्स के प्रोफेसर जोनाथन पैरी के भिलाई क्षेत्र में आत्महत्या के एक अध्ययन के बारे में पता चला । मैंने प्रोफेसर पैरी से सम्पर्क किया तो उन्होंने बताया कुछ साल पहले अपने अध्ययन के सिलसिले में मैं जब भिलाई में था तो मैंने पाया कि भिलाई की उन बस्तियों में जहां मैं अपना शोध कर रहा था आत्महत्याओं की संख्या सामान्य से अत्यंत अधिक थी । वे आत्महत्याएं इतनी ज़्यादा थी कि मैंने इस विषय पर भिलाई के अस्पतालों और पुलिस थानों से आंकडे इकट्ठा करना शुरु किया यद्यपि यह मेरे अध्ययन का विषय नहीं था

प्रोफेसर पैरी ने आगे कहा यह वही समय है जब आंध्र से किसान आत्महत्याओं की खबरें आनी शुरु हुई थी । मुझे हमेशा लगा कि यह कहना कि ये आत्महत्याएं सिर्फ कर्ज़ के कारण हो रही थीं बहुत ही चल्ताऊ किस्म के अध्ययन का परिणाम था । पर मेरे भिलाई के अनुभव के बाद आप आज जो आंकडा बता रहे हैं उससे मुझे कोई अचरज नहीं हो रहा

इस बीच कनाडा में पीएचडी कर रहे मेरे मित्र युवराज गजपाल ने राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो के आंकडों का थोडा और अध्ययन किया और पाया कि 2006 में छत्तीसगढ की हर एक लाख की आबादी में 7.11 किसानों ने आत्महत्या की । उसके बाद का आंकडा महाराष्ट्र 4.59 और आंध्रप्रदेश 3.42 और कर्नाटक का 3.25 का है । उसने पूछा महाराष्ट्र, आंध्र और कर्नाटक की आत्महत्याओं के बारे में तो खूब लिखा गया पर छत्तीसगढ के बारे में कभी कुछ पढने को क्यों नहीं मिला?

युवराज ने आगे लिखा छत्तीसगढ में खातेदार किसानों की संख्या प्रदेश की आबादी का 17% है पर कुल आत्महत्या में खातेदार किसानों की आत्महत्या का प्रतिशत 33% है अर्थात किसी और पेशे की तुलना में छत्तीसगढ में किसान दो गुना आत्महत्या करते हैं । ऐसा क्यों है ?

मुझे लगा इन आंकडों को मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ डेवेलपमेंट स्टडीज़ के प्रोफेसर के नागराज़ को दिखा लेना चाहिए जो इस विषय पर वर्षों से अध्ययन कर रहे हैं। प्रोफेसर नागराज़ ने कहा मुझे 2003 के बाद के आंकडे कुछ दिन पहले ही मिले हैं मेरा विश्लेषण भी कुछ हफ्ते तक पूरा हो जाएगा पर आपके ये आंकडे मुझे ठीक ही दिख रहे हैं ।

मैंने पूछा प्रोफेसर नागराज छत्तीसगढ में लोग कह रहे हैं कि यहां तो धान की खेती होती है कैश क्रॉप नहीं तो यहां किसान आत्महत्या कैसे कर सकते हैं ? आप तमिलनाडु के तंजावुर जिले में जाइए वहां भी सिर्फ धान की ही खेती होती है पर वहां काफी किसान आत्महत्या कर रहे हैं । उसके विपरीत पूरे तमिलनाडु में कैश क़्रोप बहुत होता है पर यहां किसानों की आत्महत्या नगण्य है वह इसलिये कि यहां सडक काफी अच्छी है और फसल बरबाद होने के बाद किसान और काम तलाश सकते हैं । अर्थात हर जगह की कहानी अलग अलग है

मैंने पूछा छत्तीसगढ की तरह बिहार और उत्तरप्रदेश में भी तो धान की खेती होती है पर वहां के किसान आत्महत्या क्यों नहीं करते ? देखिए छत्तीसगढ का अध्ययन करने की ज़रूरत है पर आप छत्तीसगढ या मध्यप्रदेश की तुलना गंगा-जमुना के तटीय क्षेत्रों से नहीं कर सकते और किसान सिर्फ कर्ज़ के कारण आत्महत्या नहीं करता, कर्ज़ एक बहुत बडा कारण ज़रूर हो सकता है । अगर आप 1991 के बाद के भारत को देखें तो आम आदमी के लिए राज्य की मदद धीरे धीरे कम ही होती गई है चाहे वह स्वास्थ्य हो या शिक्षा या सिंचाई । आत्महत्या इन सब कारणों का मिलाजुला असर होता है

अंत में मैंने हिंदू अखबार के पी साईनाथ को फोन किया जो इस विषय पर राष्ट्रीय स्तर पर काफी दिनों से लिख रहे हैं । मैंने कहा छत्तीसगढ में पत्रकार इन आंकडों की खिल्ली उडा रहे हैं । श्री साइनाथ ने कहा यह तो ऐसा हुआ कि यदि चुनाव परिणाम हमारी इच्छानुरूप नहीं आए तो चुनाव गलत है । आप मेरे नाम से लिखिए कि यदि लोग कह रहे हैं कि उन्होंने अध्ययन करके यह पाया है कि छत्तीसगढ में साल में एक ही किसान आत्महत्या करता है तब छत्तीसगढ तो धरती पर स्वर्ग है । मैं अब यूरोप और अमेरिका के किसानों को सलाह दूंगा कि वे छत्तीसगढ शिफ्ट हो जाएं क्योंकि यूरोप और अमेरिका में भी इससे अधिक किसान आत्महत्या करते हैं !

लगता है छत्तीसगढ के पत्रकार कुछ कुछ वर्मा जी की तरह व्यवहार कर रहे हैं जिस वर्मा जी की कहानी से मैंने लिखना शुरु किया था । पर क्या छत्तीसगढ के राजनेता इस विषय की सुध लेंगे ? विधानसभा का सत्र इन दिनों चल रहा है क्या कोई इस विषय को वहां उठाएगा ?

ईमेल shu@cgnet.in

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Originally published on CGNet, to read click here


36गढ आत्महत्या के आंकडे झूठे? रोज़ करते हैं चार किसान खुदकुशी

36गढ आत्महत्या के आंकडे झूठे? रोज़ करते हैं चार किसान खुदकुशी

शुभ्रांशु चौधरी

मुझ जैसे शहरी लोगों को किसान और किसानी की समझ कम होती है । पर यदि आप किसी प्रदेश के बारे में सपना देखना चाहें तो उस काम को कैसे नज़रअंदाज़ किया जा सकता है जिस पर प्रदेश की 80% से अधिक जनता की रोज़ी रोटी निर्भर है ?

इसलिये छत्तीसगढ नेट की हर वार्षिक बैठक में हम पहला सत्र कृषि पर रखते हैं । इस बार हमने सोचा कि क्यों न विदर्भ से कुछ किसानों को बुलाया जाए और उनसे यह सीखा जाए कि छत्तीसगढ विदर्भ से क्या सीख सकता है।

हमें लगा छत्तीसगढ विदर्भ से लगा हुआ है जहां किसान हज़ारों की तादाद में आत्महत्या कर रहे हैं तो विदर्भ के किसानों से यह सीखा जाए कि हम वह क्या न करें जो गलती उन्होंने की है । किसी और की गलती से सीखना बुद्धिमानी ही है ।

हम लोगों ने विदर्भ आंदोलन के किशोर तिवारी और किसान नेता विजय जवांदिया से सम्पर्क किया । आपको पता होगा ये लोग विदर्भ में हो रही किसान आत्महत्याओं पर नज़र रखते हैं और रोज़ मुझ जैसे पत्रकारों को ई मेल करते हैं । विदर्भ की किसान आत्महत्याओं को दुनिया के सामने लाने में पत्रकार पी साईनाथ के अलावा इनका भी काफी योगदान रहा है ।

मैंने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ डेवेलपमेंट स्टडीज़ के प्रोफेसर पी राधाकृष्णन से भी सम्पर्क किया । प्रोफेसर राधाकृष्णन छत्तीसगढ नेट के सदस्य हैं और उन्होंने किसान आत्महत्या पर काफी अध्ययन किया है ।

प्रोफेसर राधाकृष्णन ने मेरा परिचय प्रोफेसर के नागराज से कराया । प्रोफेसर नागराज ने बताया यह बात तो सही है कि महाराष्ट्र किसान आत्महत्या के मामले में सबसे आगे है इसलिए आप विदर्भ के लोगों को बुलाइये । पर उससे भी अधिक ज़रूरी है कि आपको छत्तीसगढ में भी इस विषय पर अध्ययन करना चाहिए । छत्तीसगढ में भारी मात्रा में किसान आत्महत्याएं हो रही हैं

दिसम्बर का आखिरी सप्ताह था । प्रोफेसर नागराज वार्षिक अवकाश में जाने की जल्दी में थे और मुझे उनकी बात पर कोई विश्वास नहीं हुआ । मुझे याद था कि मेरे एक मित्र ने इस विषय पर अध्ययन किया था और उस अध्ययन के अनुसार प्रदेश बनने के बाद से 2006 तक छत्तीसगढ में 5 या 6 किसानों ने ही आत्महत्या की है यानि हर साल एक आत्महत्या ।

विजय जवांदिया और किशोर तिवारी दोनों किसी कारणवश ड्रीम छत्तीसगढ बैठक में नहीं आ सके और उस बैठक में खेती से जुडे विभिन्न मुद्दों पर तो चर्चा तो हुई पर छत्तीसगढ विदर्भ से क्या सीख सकता है इस विषय पर चर्चा नहीं हो सकी ।

पिछले हफ्ते अखबारों में एक खबर छपी । उसमें लिखा था कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय के राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो की सन 2006 की वार्षिक रिपोर्ट में लिखा है किसानों द्वारा आत्महत्या के मामले में महाराष्ट्र अब भी सबसे आगे है पर मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ का सम्मिलित आंकडा दूसरे नम्बर पर आता है । मैं चौंका ।

उस रिपोर्ट में आगे लिखा था सन 2006 में ( 2007 की रिपोर्ट अगले साल आएगी) देश में कुल 17,060 किसानों ने आत्महत्या की जिसमें सर्वाधिक 4453 महाराष्ट्र में हुए । उसके बाद सबसे अधिक किसान आत्महत्याएं मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ में हुए जहां के लिये यह आंकडा 2858 का है ।

इसके बाद आंध्रप्रदेश और कर्नाटक का स्थान आता है जहां 2006 में क्रमश: 2607 और 1720 किसानों ने आत्महत्याएं की हैं । उस रिपोर्ट के अनुसार आंध्र में यह आंकडा पिछले साल की तुलना में थोडा ऊपर गया है और कर्नाटक में यह आंकडा घटा है ।

मुझे आश्चर्य हुआ कि जैसा कि मुझे मालूम है कि छत्तीसगढ में पिछले 6-7 सालों में किसान आत्महत्या नहीं हुई तब मप्र का आंकडा तो बहुत ऊंचा होगा फिर किसान आत्महत्या से प्रभावित राज्य के रूप में मप्र की गिनती क्यों नहीं होती ?

दूसरा प्रश्न मेरे मन में यह था कि छत्तीसगढ प्रदेश को बने 7 साल हो गए अब भी छत्तीसगढ का आंकडा मप्र से जोडकर क्यों दिया जा रहा है ? और यदि छग में कोई किसान आत्महत्या नहीं होती तो छग को बदनाम करने की क्या ज़रूरत है ?

उसके बाद मैंने एक वेबसाइट पर सुष्मिता मालवीय का भोपाल से एक लेख पढा । सुष्मिता ने भी मप्र और छग का सम्मिलित आंकडा ही दिया । छत्तीसगढ के कृषि विभाग के अधिकारी को इस रिपोर्ट में यह कहकर उद्धृत किया गया है हमारे पास छत्तीसगढ में किसी भी किसान आत्महत्या का कोई रिकॉर्ड नहीं है । हमारे पास यह अध्ययन नहीं पहुंचा है पर यह आंकडे बिल्कुल बेबुनियाद हैं

मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था । मैंने छत्तीसगढ के सम्पादक सुनील कुमार जी से सम्पर्क किया । उन्होंने बताया पूरा छत्तीसगढ दंतेवाडा नहीं है कि यहां हज़ारो की तादाद में किसान आत्महत्या करेंगे और कोई इस बारे में कुछ नहीं लिखेगा !

पर मुझे आश्चर्य होता रहा कि प्रधानमंत्री ने पिछले साल आत्महत्या कर रहे किसानों के लिए 17,000 करोड का पैकेज जारी किया और यदि मध्यप्रदेश में किसान आत्महत्या का आंकडा आंध्र, कर्नाटक और केरल से अधिक है तो फिर प्रधानमंत्री ने मध्यप्रदेश के किसानों के लिए राहत पैकेज क्यों नहीं दिया ?

मैंने मध्यप्रदेश में कई पत्रकारों को फोन किया । उन्होंने बताया किसान आत्महत्या की खबरें छपीं तो थी पर सरकार ने कहा ये आंकडे गलत हैं फिर मामला ठण्डा हो गया ।

मैंने हिंदू के ग्रामीण मामलों के संपादक पी साईनाथ को फोन किया । श्री साइनाथ ने कहा मैं किसान आत्महत्या विषय पर सन 2000 से लिख रहा हूं । पहले सब मेरी खिल्ली उडाते थे । 2004 में चन्द्रबाबू नायडू की हार के बाद ही आंध्र में लोगों ने मुझे गंभीरता से लेना शुरु किया । पर 2004 में विदर्भ के लोग भी मुझसे कहते थे ये आंध्र में हो रहा होगा विदर्भ में ऐसा कुछ नहीं होता । पर सरकारी आंकडे ही बताते हैं कि 90 के दशक से ही विदर्भ में आंध्र से दुगुनी किसान आत्महत्याएं हो रही हैं

जब मैंने कहा कि छत्तीसगढ के पत्रकार इन आंकडों को झूठा बता रहे हैं । श्री साईनाथ ने कहा छत्तीसगढ का कौन सा अखबार किसान की खबरें छापता है ? किसी अखबार में कृषि के लिए एक भी रिपोर्टर है ? अब मैं क्या क्या करूं, कहां कहां जाउं? मैं अकेला आदमी हूं और पिछले कई सालों से विदर्भ से नहीं निकल पाया हूं । देखता हूं अब अप्रैल के बाद छत्तीसगढ और मध्यप्रदेश जाने की कोशिश करूंगा, इस विषय पर अध्ययन और लिखने की ज़रूरत है

अब के. नागराज भी अपने अवकाश से वापस आ गए थे । मेरे पहले प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ के आंकडे एक साथ नहीं हैं पर मेरा अध्ययन 1997 से है जब छत्तीसगढ बना नहीं था इसलिए मैं अपनी सुविधा के लिए मध्यप्रदेश के साथ छत्तीसगढ के आंकडे जोड देता हूं । सारे पत्रकार मुझे ही कोट करते रहते हैं जहां से मैं आंकडे लेता हूं वहां नहीं जाते । पर आपका यह सोचना गलत है कि सारी किसान आत्महत्याएं मध्यप्रदेश में हो रही है पिछले कई सालों में छत्तीसगढ में किसान आत्महत्याएं मध्यप्रदेश से भी अधिक हुई हैं । 2006 के आंकडे के अनुसार मध्यप्रदेश में 1375 किसानों ने आत्महत्या की तो छत्तीसगढ के लिए यह आंकडा 1483 का है

श्री नागराज ने कहा छत्तीसगढ के आंकडों को देखकर पहले मैं भी हैरान था । मुझे लगता था कि उत्तरप्रदेश और बिहार की तरह छत्तीसगढ से भी किसान पलायन करते हैं तो वहां किसान आत्महत्याएं कम होंगी । और यदि आप कह रहे हैं कि यह आंकडे गलत हैं तो फिर तो सारे प्रदेशों के आंकडे झूठे होंगे क्योंकि प्रत्येक प्रदेश के लिए आंकडों का स्रोत एक ही है । जहां तक मेरी समझ है ये आंकडे दर असल सच्चाई से कम हैं । उदाहरण के तौर पर यदि किसी किसान ने आत्महत्या की पर उसके नाम पर कोई खेत नहीं है तो उस आत्महत्या को किसान की आत्महत्या के रूप में दर्ज़ नहीं किया जाता । किसानों की आत्महत्या का वास्तविक आंकडा तो इससे भी कहीं अधिक होगा

सन 2001 से छत्तीसगढ में हुई किसान आत्महत्या के आंकडों के लिए मैंने राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो से सम्पर्क किया तो उन्होंने मुझे आंकडे दे दिए ( बाक्स देखें) और वहां के अधिकारियों ने मुझसे कहा यदि आपको हमारे आंकडों पर विश्वास नहीं है तो अपने प्रदेश की पुलिस से पूछिए । सारे आंकडे हमें राज्यों की पुलिस ही देती है

पी साईनाथ कहते हैं छत्तीसगढ और मध्यप्रदेश की किसान आत्महत्याओं पर इस खामोशी के लिए न सिर्फ वहां के पत्रकार बल्कि एक्टिविस्ट भी दोषी है

दोनों प्रदेशों के लिए यह चुनाव का साल है । क्या चुनाव के इस साल में यह खामोशी टूटेगी?

शुभ्रांशु चौधरी

shu@cgnet.in

(originally posted here)

शहद से मिला है गुजरात को आर्थिक लाभ

शहद से मिला है गुजरात को आर्थिक लाभ

गुजरात के वलसाड जिले के दिन्बारी गावं में एक रेशम-सूट का पेड़ है जिसपर ढेर सारी मधुमखियों का छत्ता है. इन छत्तों से १०० किलो से अधिक शहद प्रति वर्ष निकलता है, और यही कारन है की ग्राम पंचायत आर्थिक रूप से मजबूत होती जा रही है.

"शुरू के चांद सालों तक शहद व्यर्थ होता था, फिर लोगों ने सोचा की इस शहद को बेचा जाए और आज रुपया ५०,००० से अधिक का शहद हर साल बिकता है" कहना है मगन सोमा अवतार का जो दिन्बरी गावं के निवासी हैं.

ग्राम पंचायत ने इस पैसे से बर्तन, कुर्सी-मेज, भोपू या लौद-स्पीकर, इत्यादी खरीदा है जो लोगों को किराये पर दिया जाता है और ये सब पैसा गावं के विकास में लगता है.

"अब हम लोग इस पैसे को पानी के प्रोजेक्ट्स में पाँच प्रतिशत की भागीदारी के रूप में निवेश करेंगे" कहना है मंगू पथ्रोर का जो कप्रदा ग्राम पंचायत के सदस्य हैं.

एक पेड़ जो मधुमाखी के छत्तों से भरा हुआ है उसने जन-जातियों को एक मीठी क्रांति लाने का रास्ता दिखाया है.

साथी सिरिश अगरवाल, ने ये ख़बर हम से बातिन है, जिसके लिए हम उनके शुक्रगुजार हैं

तम्बाकू कंपनियाँ, तस्करी और तम्बाकू महामारी

तम्बाकू कंपनियाँ, तस्करी और तम्बाकू महामारी


तम्बाकू नियांतरण के लिए विश्व-व्यापी ट्रीटी (FCTC, Framework Convention on Tobacco Control) के तम्बाकू के अवैध व्यापर पर प्रोटोकॉल तैयार हो रहा है, जिसपर पिछले हफ्ते विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जिनेवा में विचार-विमर्श आयोजित हुआ.

अनेकों देशों ने सख्त भूमिका ली की तम्बाकू कंपनियों पर सख्त निगरानी रखी जाए और यदि वो तम्बाकू के अवैद व्यापर करती पकड़ी जाएया तस्करों के साथ मिलीभगत पकड़ में आए टू उनपर सख्त करवाई हो, तम्बाकू उद्योग पर आर्थिक हर्जाना लागू हो, और सरकार के साथउद्योग के गद्बंधन पर भी रोक लगाई जाए. परन्तु जापान सरकार ने इस चर्चा में ये भूमिका नही ली. जापान सरकार जापानी तम्बाकू कंपनीकी सबसे बड़ी भागीदार है, और इसलिए अपने तम्बाकू व्यापर को अधिक महत्व देते हुए और जन-स्वास्थ्य और जन-हित को तिलांजलि देते हुए जापान सरकार ने पूरी कोशिश की की ये प्रोटोकॉल कमजोर बने और तम्बाकू कंपनियों के हित सुरक्षित रहें.

जापान सरकार को इसीलिए Network for Accountability of Tobacco Transnationals (NATT) द्वारा मर्ल्बोरो अवार्ड दिया गया. नट, यानिकी तम्बाकू उद्योग की जवाबदेह ठहराने के लिए नेत्वोर्क, ने प्रेस विज्ञप्ति में इसकी जमके निंदा भी की.

जापान सरकार का कहना था की तम्बाकू का अवैद व्यापर राष्ट्रीय स्तर पर रोका जा सकता है और विश्व व्यापी प्रोटोकॉल की आवश्यकता नहीहै क्योकि विश्व-स्तर पर पहले से ही व्यापर ट्रीटी हैं.

अन्तर-राष्ट्रीय तम्बाकू ट्रीटी को लागू करने में तम्बाकू उद्योग का हस्त्छेप एक बड़ी चुनौती प्रस्तुत करता हैकहना है कथ्य मुल्वेय का जो कार्पोरेट अच्कोउन्ताबिलिटी इंटरनेशनल या उद्योगों को जिम्मेदार ठहराने के लिए अन्तर-राष्ट्रीय संगठन से जुड़ी हुई हैं.

जापान तोबक्को कंपनी जिसकी सबसे बड़ी भागीदार है जापान सरकार, की बनाई हुए तम्बाकू उत्पादन अफ्रीका के मार्केट में अवैद रूप से बिकते हैकहना है अकिंबोदे ओलुवाफेमी का जो निगेरिया में सामाजिक कार्यकर्ता हैं.

अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करे:

ब्र्याँ हिर्स्च,

कार्पोरेट अच्कोउन्ताबिलिटी इंटरनेशनल,

+४१ ७६ ५४७ ३४७६

या Contact: Bryan Hirsch, Corporate Accountability International, +41 76 547 3476

चलो पार्लियामेन्ट: दलित आर्थिक अधिकार आन्दोलन

चलो पार्लियामेन्ट: दलित आर्थिक अधिकार आन्दोलन


दलित आर्थिक अधिकार आंदोलन
धरना २७-२८ फरवरी २००८
जन रैली २९ फरवरी २००८

जंतर मंतर
नई दिल्ली

चलो पार्लियामेन्ट


प्रिये साथी,

जिस प्रक्रिया से बजट बनाया जाता है और जिस तरीके से नीतियाँ और योजनाये बनायीं जा रही हैं, उसमे आम लोगों की भागीदारी नही है.
खासकर की हाशिये पर सीमित लोग जैसे की SC, ST या महिलाएं या minorities सम्भावता एक सोची समझी शंयंत्र के तहत इस आर्थिक विकास की प्रक्रिया से बाहर रखे जाते हैं.

जो बजट २९ फरवरी २००८ को संसद में पेश होगा, वो आम लोगों का बजट नही है. इसलिए हम लोग उसका बहिष्कार करते हैं.

२७ और २८ फरवरी को जंतर मंतर पर धरने में जो २९ फरवरी को एक महा जन रैली का रूप लेगा, उसमें आप सब सदर अमंतरित हैं. SCs/STs बजट हिस्सेदारी आन्दोलन के बैनर में ये अभियान सक्रिय रहेगा.

SC/ST के लोगों को नये आर्थिक विकास और वातावरण में अनेको चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

Scheduled Caste Sub Plan को लागू न करने के लिए सरकार के इस शोषण युक्त रविये के विरोध में ये रैली आयोजित की जा रही है.

पिछले साल Scheduled Caste sub plan में रुपया २०,२८० करोर काम था. इस साल सम्भावना है की रुपया ४५,००० करोर काम होगा SC sub plan में.

हमारी मांग है की भारत के कोम्प्त्रोलर और औदिटर जनरल (CAG) जांच करें और उपयुक्त करवाई हो.

आपके सहयोग से अभियान सशक्त होगा,

आशुतोष
९९५८८९०१७१,
ashutoshkumarvishal@gmail.com

जय भीम

पॉल दिवाकर,
राष्ट्रीय संयोजक

तनवीर काजी
राष्ट्रीय सचिव
tanveer@ncdhr.org, tankazi@gmail.com

National Campaign On Dalit Human Rights (NCDHR)
वेबसाइट:- www.dalits.org

अपील: उत्तर प्रदेश में चल रहे दो जन-आन्दोलनों के लिए सहयोग चाहिए

अपील: उत्तर प्रदेश में चल रहे दो जन-आन्दोलनों के लिए सहयोग चाहिए

डॉ संदीप पाण्डेय

जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (National Alliance of People’s Movements, NAPM)

और आशा परिवार

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प्रिये मित्रों,

उत्तर प्रदेश में चल रहे दो धर्नाओं के लिए सहयोग राशी की जरुरत है:

१) भदोही में, सामाजिक कार्यकर्ता वी के रे अपनी बेटी रचना रे की वापसी के लिए और दलित महिला संतोषी को न्याय दिलाने हेतु धरना पर हैं. इस दलित महिला संतोषी के यौन शोषण करने के लिए जिम्मेदार और वी के रे की बेटी के अपहरण के लिए भी जिम्मेदार मने जाने वाला कालीन निर्यात उद्योगपति घुलम रसूल १६ फरवरी को गिरफ्तार हो गया था. उसने संतोषी के यौन शोषण का इल्जाम टू मान लिया है पर रचना रे के अपहरण की जिम्मेदारी नही ले रहा है. भदोही में धरना चालू है

२) पिछले लगभग २५० दिनों से कुशीनगर में ‘मैत्रेय प्रोजेक्ट’ के विरोध में किसान क्रमिक अनशन पर हैं. मैत्र्ये प्रोजेक्ट के तहत ५५० फीट के गौतम बुड्ढा की मूरत लगाने का प्रस्ताव है जिससे ६६० एकरे पर खेती कर रहे किसान विस्थापित हो जायेंगे. तौरिस्म या पर्यटन खेती का कोई विकल्प नही है, ऐसा हमारा मानना है.

जो लोग इन आन्दोलनों के लिए सहयोग राशी देना चाहे, वो कृपा कर के, ‘आशा’ के नाम चैक भेज सकते है:

आशा,
द्वारा वल्लभाचार्य पाण्डेय,
गावं भंदः कलां, पोस्ट कैथी,
बनारस -२२१११६. उत्तर प्रदेश.
फ़ोन: (+९१) (०५४२) २६१८२०१, २६१८३०१, २६१८४०१, मोबाइल: (+९१) ९४१५२५६८४८
ईमेल:
ashakashi@gmail.com

शुक्रिया


संदीप
आशा परिवार और
जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (
National Alliance of People’s Movements, NAPM)

ईमेल: ashaashram@yahoo.com

रचना राय को वापस लाओ, संतोषी को न्याय दिलाओ संघर्ष अभियान

रचना राय को वापस लाओ, संतोषी को न्याय दिलाओ संघर्ष अभियान

(ये हिन्दी अनुवाद है, और मौलिक अपील अंग्रेज़ी में है जो यहाँ पर पढी जा सकती है)

आशा रेडियो पर इस ख़बर को सुनने के लिए यहाँ क्लिक्क कीजिये

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भदोही का कालीन निर्यात उद्योगपति और संतोषी का यौनिक शोषण करने वाला और सामाजिक कार्यकर्ता वी के राय की पुत्री रचना राय के अपहरण के लिए जिम्मेदार घुलाम रसूल शनिवार १६ फरवरी २००८ को ९:३० बजे रात में गिरफ्तार हो गया.

घुलाम रसूल ने अपने उद्योग की करमचारी संतोषी के साथ यौनिक शोषण तो कुबूल लिया है पर रचना राय के अपहरण की जिम्मेदारी वो नही ले रहा है.

रचना राय की अपहरणकर्ताओं से रिहायी की मांग करते हुए और संतोषी को न्याये मिले इसकी भी मांग करते हुए ७ फरवरी से धरना कायम है.

१३ फरवरी से लाख नौ में अनेको सामाजिक संगठनों ने जबरदस्त प्रदर्शन किया है और उत्तर प्रदेश सरकार पर दबाव बन रहा है की शीघ्र ही रचना राय अपहरणकर्ताओं से छूट कर वापस घर आए और संतोषी को न्याये मिले.

ये महत्त्वपूर्ण जानकारी है की लाख नौ में जो प्रदर्शन हुआ उसमे रिक्शा मजदूर यूनियन की केंद्रीय भूमिका रही है.

१७ फरवरी को अम्बेडकर महासभा में एक बैठक भी आयोजित की गई है और रचना राय को वापस लाओ, संतोषी को न्याय दिलाओ संघर्ष अभियान को अधिक सक्रिए और प्रभावकारी कैसे बनाया जाए, इस पर चर्चा भी होगी.

घुलाम रसूल की गिरफ्तारी नि:संदेह ही उत्तर प्रदेश सरकार एवं स्थानिये प्रशासन पर बढ़ते हुए सामाजिक दबाव का नतीजा है.

अदियोग

Radio Asha: Audio capsules in hindi/ urdu on people’s movements

Radio Asha: Audio capsules in hindi/ urdu on people’s movements

Episode 1

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To listen, click here


Radio Asha is dedicated to give a voice to the most unheard in development discourses. The episode 1 (10 minutes) of Radio Asha brings to you the following three issues in hindi/ urdu languages:

1) The sad demise of social activist and Gandhian Baba Amte

2) The kidnapping of the daughter of social activists in Bhadohi

3) The Global Tobacco Epidemic 2008 report of World Health Organization


Tune in to Radio Asha, listen while walking, cooking, gardening… to download on your computer/ mobile phone/ MP3 players/ iPods, click here or go to:http://www.archive.org/download/RadioAsha14February2008/RadioAsha1.mp3

Thanks

Radio Asha

प्रेस वार्ता: निठारी हत्याकांड और सूचना का अधिकार

प्रेस वार्ता: निठारी हत्याकांड और सूचना का अधिकार

मुख्य वक्ता:

सूचना के अधिकार पर कार्यरत लोकेश बत्रा, कोम्मोदोरे (अवकाश प्राप्त)

स्थान: अथिति कक्ष, सूचना आयुक्त, ६थ् थल, इंदिरा भवन, लखनु

तिथि: १४ फरवरी २००८, ब्रहास्पत्वार

समय: ३ बजे दोपहर

नॉएडा में निठारी हत्याकांड के बारे में कोम्मोदोरे (अवकाश प्राप्त) लोकेश बत्रा जो एक अरसे से सूचना के अधिकार पर कार्यरत रहे हैं, लाखनौ में उत्तर प्रदेश के सूचना आयुक्त से मिलेंगे एंड एक प्रेस वार्ता भी संबोधित करेंगे.

लोकेश बत्रा को निठारी हत्याकांड के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए सूचना के अधिकार का इस्तिमाल करने से काफ़ी निराशा ही मिली है.

आप सबका इस प्रेस वार्ता में स्वागत है.

धन्यवाद


संदीप पाण्डेय

National Alliance of People's Movements (NAPM)

जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय

और

आशा परिवार

फ़ोन: २३४७३६५, ९८८९३४६३०६ (अखिलेश सक्सेना)

ईमेल: ashaashram@yahoo.com

विश्व स्वास्थ्य संगठन के MPOWER और उद्योग को जवाबदेह ठहराने से तम्बाकू महामारी को रोका जा सकता है

विश्व स्वास्थ्य संगठन के MPOWER और उद्योग को जवाबदेह ठहराने से तम्बाकू महामारी को रोका जा सकता है

विश्व स्वास्थ्य संगठन की नई रिपोर्ट 'The Global Tobacco Epidemic Report (2008)' या विश्व तम्बाकूमहामारी रिपोर्ट २००८ से ये बात सिद्ध है कि तम्बाकू महामारी और अधिक विकराल रूप धारण कर रही हैइस रिपोर्ट में ऐसे तम्बाकू नियंत्रण के कार्यक्रमों का जोड़ प्रस्तावित किया गया है जो तम्बाकू नियंत्रण के प्रभाव के लिए प्रमाणित हैं और इनको MPOWER या ऍमपॉवर का नाम दिया गया है

परन्तु तम्बाकू नियंत्रण और अन्य बीमारियों की रोक्धाम में अन्तर है - तम्बाकू महामारी के पीछे है एक बहुत शक्तिशाली तम्बाकू उद्योग जो बेहद चतुराई के साथ तम्बाकू के बाज़ार को केवल बचा रहा है बल्कि तेज़ी से बढ़ा भी रहा हैविश्व स्वास्थ्य संगठन के ऍमपॉवर में कहीं भी तम्बाकू कंपनियों को जिम्मेदार ठहराने की और जवाबदेह ठहराने की बात स्पष्ट नही की गई हैयदि तम्बाकू कंपनियों पर निगरानी रखी जाए तब सम्भव है कि ऍमपॉवर में प्रस्तावित हर तम्बाकू नियंत्रण के लिए प्रभावकारी कार्यक्रम की सार्थकता बढ़ जायेगी

इस रिपोर्ट में ऐसे कार्यक्रमों को चिन्हित किया गया है जो प्रभावकारी तम्बाकू नियांतरण के लिए प्रमाणित हो चुके हैं, और आर्थिक और व्यावहारिक रुप से भी देशों में लागू किये जा सकते हैं.

इन ६ कार्यक्रमों के पैकेज को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ऍमपॉवर का नाम दिया है.

MPOWER या ऍमपॉवर

M: Monitor, यानी कि तम्बाकू के सेवन को और तम्बाकू नियांतरण के कार्यक्रमों के और तम्बाकू नशा चुदवाने के कार्यक्रमों के प्रभाव को मोनिटर या आंकलन किया जाना चाहिऐ

P: Protect, यानी कि परोक्ष धूम्रपान से सब लोगों को बचाया जा सके, और जो कानून या नीतियाँ देश के स्तर बार बनायीं जानी चाहिऐ, वो बनायीं जाये जिससे कार्यस्थल पर और सार्वजनिक स्थानों पर तम्बाकू के सेवन पर प्रतिबंध लग सके और अन्य लोग परोक्ष धूम्रपान से बच सके

O: Offer, यानी कि हर तम्बाकू का सेवन करने वाले को तम्बाकू नशा चुदवाने के लिए उपयुक्त सहायता प्रदान की जानी चाहिऐ

W: Warn, यानी कि हर व्यक्ति को खबरदार करना चाहिऐ कि तम्बाकू कितनी घटक है और जन लेवा बीमारियों की जनक भी. इसके लिए कई कार्यक्रम प्रभावकारी सिद्ध हुए हैं जैसे कि तम्बाकू उत्पादनों पर फोटो वाली चेतावनी, या गुणात्मक दृष्टि से मीडिया काम्पैग्न आदि

E: Enact, यानी कि न केवल सर्वंगीन तम्बाकू नियांतरण के लिए प्रभावकारी नीतियाँ बने, जिससे कि तम्बाकू के विज्ञापन रुकें, तम्बाकू कंपनियों द्वारा प्रयोजन रूक सके, भ्रामक शब्दों का इस्तेमाल रूक सके जैसे कि "light" या "mild" या "tar", बल्कि इन नीतियों को लागोऊ भी किया जाना चाहिऐ

R: Raise the price of tobacco products by increasing tobacco taxes, यानी कि तम्बाकू उत्पादनों पर त्स बढाया जाये जिससे कि उनकी कीमत भी बढ़ जाये और सरकारों को अधिक त्स मिले. ये प्रमाणित हो चूका है कि त्स बढ़ाने से बच्चों और युवाओं में तम्बाकू सेवन कम शुरू होता है और पहुच से बाहर भी हो जाता है.

"जन-स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए और राजनितिक नेताओं के लिए भी तम्बाकू महामारी को रोकना/ पलटना सबसे उच्च-स्तारिये प्राथमिकता होनी चाहिए" कहना है विश्व स्वास्थ्य संगठन के महा निदेशक डॉ मार्गरेट चान का

बिना तम्बाकू कंपनियों को जवाबदेह ठहराए और उनपर निगरानी रखने से ऍमपॉवर में प्रस्तावित तम्बाकू नियंत्रण के कार्यक्रमों का प्रभाव कुंठित रहेगा
तम्बाकू कंपनियों ने दुनिया भर में केवल अपने तम्बाकू उत्पादनों को जबरदस्त तरीके से भ्रामक प्रचारित भी किया है बल्कि हर सम्भव प्रयास किया है कि जन-हिताशी नीतियों का पालन हो और ऐसी नीतियों को कम्जूर करने का और उनको लागू करने में विलम्ब करने में तम्बाकू कम्पनियाँ सक्रिए रही हैं.

१५० से अधिक देशों ने विश्व व्यापी पहली जन-स्वास्थ्य और तम्बाकू कंपनियों को जिम्मेदार ठहरानी वाली त्रेअटी (Framework Convention on Tobacco Control, FCTC) को पारित किया हैये इस बात का प्रमाण है कि विश्व के १५० से अधिक प्रभावकारी तम्बाकू नियंत्रण चाहते हैंविश्व स्वास्थ्य संगठन के ऍमपॉवर में प्रस्तावित तम्बाकू नियंत्रण के प्रभावकारी कार्यक्रम इन देशों को जन-स्वास्थ्य की दिशा में आगे बढ़ने का मार्ग सुझाते हैं
तम्बाकू उद्योग पर दुरुस्त निगरानी रखने से और उनको यथा-सम्भव जवाबदेह ठहराने से ऍमपॉवर में प्रस्तावित तम्बाकू नियंत्रण के प्रभावकारी कार्यक्रमों का प्रभाव अधिक बढेगा और तम्बाकू महामारी को रोकने या पलटने की सम्भावना भी तीव्र हो जायेगी