स्वयं सेवक चाहिए: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एतिहासिक फ़ैसला सुनाया      
प्यारे मित्रों,
     ओम्कारेश्वर डाम से विस्थापित लोगों के लिए नर्मदा बचाओ आन्दोलन के अथक प्रयासों से आशावादी समाचार है! कृपया कर के नीचे दी हुई प्रेस विज्ञप्ति देखिये.
     मार्च महीने के पहले तीन हफ्तों के लिए नर्मदा बचाओ आन्दोलन को अतिशीघ्र स्वयं सेवक चाहिए जो पानी में डूबी जमीन से संबंधित और विस्थापित लोगों के मुद्दों से जुड़े हुए आंकडे इकाठे कर सके, क्योकि ये आकडे हाई कोर्ट में जमा होने हैं.
     जो लोग भाग लेने में इच्छुक हों, कृपया कर के नर्मदा बचाओ आन्दोलन के खंडवा कार्यालय में सम्पर्क करें! (पता नीचे दिया हुआ है)
     शुक्रिया
  राहुल पाण्डेय
  ईमेल: rahulanjula@gmail.com  
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नर्मदा बचाओ आन्दोलन
२, सी नगर, माता चौक, खंडवा, मध्य प्रदेश
फ़ोन: ०९४२५३९४६०६, ०९४२५९२८००७
ईमेल : न्बखान्द्वा@जीमेल.कॉम
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           प्रेस विज्ञप्ति 
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मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एतिहासिक फ़ैसला सुनाया
     ओम्कारेश्वर डाम से विस्थापित लोगों को सीधे जमीन पर कानूनन कब्जा मिले
           यदि SEZ या Special Economic Zone या विशेष आर्थिक ज़ोन के लिए जमीन दी जा सकती है, तो डाम से विस्थापित लोगों को भी जमीन दी जा सकती है  
हर किसान को, 
वैद-
अवैद रूप से रह रहे लोगों को, 
और किसान के व्यसक पुत्र को भी खेती के योग्य जमीन दी जाए एवं न्यूनतम जमीन ५ एकड़ हो और खेती योग्य हो, 
जो की भारत सरकार की पुनर-
स्थापन निति के अनुसार है, 
ये ऐतिहासिक आदेश दिया है मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने. 
हाई कोर्ट ने ये स्पष्ट निर्देश दिया है की किसान के व्यसक पुत्र को भी अलग खेती योग्य जमीन दी जाए भले ही वो अकेले का दावेदार न हो.
    हाई कोर्ट की बेंच ने ये भी निर्देश दिया की वर्त्तमान का जल-स्तर जो की 189 मीटर है वो तब तक बढाया नही जा सकता जब तक हर विस्थापित व्यक्ति को जमीन पर कब्जा नही मिल जाता.
     हाई कोर्ट ने ये भी आदेश दिया की मध्य प्रदेश सरकार, नर्मदा बचाओ अन्दोलोँ को रुपया १०,००० दे जो इस केस आदि में खर्चों के प्रति है.
     नर्मदा घाटी में बनने वाले बड़े डैमों में से एक ओम्कारेश्वर दम है. ३० गावं और लगभग ८००० लोग इस डाम से प्रभावित हुए हैं. NHDC (Narmada Hydro-Development Corporation) द्वारा इस डाम का निर्माण हो रहा है, जो की मध्य प्रदेश सरकार और केंद्रीय सरकार की संयुक्त कम्पनी है. 
     हालांकि सरकार की पुनर्स्थापन योजना है की विस्थापित लोगों को जमीन के लिए जमीन दी जाए और कम से कम ५ एकड़ खेती योग्य जमीन दी जाए, एक भी विस्थापित व्यक्ति को जमीन नही मिल पायी है.
     इसके बावजूद भी २८ मार्च २००७ को प्रदेश सरकार ने जलाशय की भराई शुरू कर दी थी जिससे की हजारों लोगों के डूबने की सम्भावना बढ़ गई थी. ये सरकार की ही पुनर्स्थापन निति के विरुद्ध था, नर्मदा बचाओ आन्दोलन ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में अपील ३० मार्च २००७ को इसी बुनियाद पर दाखिल की थी. नर्मदा बचाओ आन्दोलन के प्रयास की वजह से कोर्ट ने स्टे  भराई पर दिया था. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने १८९ मीटर तक की भरे की अनुमति दे दी और हाई कोर्ट को निर्देश दिया कि उचित फ़ैसला करे.
     हाई कोर्ट का मानना है की विस्थापित लोगों का मूल अधिकार है की विस्थापन के बाद वो ज्यादा बेहतर ढंग से पुनर्स्थापित हों. 
     नर्मदा बचाओ आन्दोलन के पहले और दूसरे केस में आए सुप्रीम कोर्ट के आदेश और N D Jayal Tehri डाम के केस के निर्णय को आधार बनाकर हाई कोर्ट ने कहा की भारतीय संविधान के article २१ के तहत ये विस्थापित हुए लोगों का मूल अधिकार है की विस्थापना के बाद वो बेहतर ढंग से पुनर्स्थापित हों. हाई कोर्ट ने ये भी कहा कि विस्थापित हुए लोगों को बेहतर ढंग से पुनर्स्थापन करने के लिए उनको बेहतर खेती योग्य जमीन मिले, रोज़गार मिले या अन्य योजनाओं का लाभ मिले जो उनको पहले नही नसीब था.
     कोर्ट ने ये भी कहा की "यदि सरकार ने जमीन का आश्वासन दिया था, और जमीन नही दी है, तो ये कोर्ट की ड्यूटी है की वो लोगों के अधिकारों को उनको दिलाये".
     प्रदेश सरकार ने २००२ में पुनर्स्थापना निति में बदलाव लाने की कोशिश की थी की पुनर्स्थापना 'जितना सम्भव हो उतना हो'. परन्तु हाई कोर्ट ने सीधा आदेश दिया  कि 'जितना सम्भव हो उतना हो' कह देने से सरकार अपनी मूल जिम्मेदारी को नज़रंदाज़ नही कर सकती जो विस्थापित हुए लोगों के प्रति बनती है, और उनको जमीन देने के आश्वासन पर खरे उतरे. 
     हाई कोर्ट ने ये भी कहा की यदि Special Economic Zone (SEZ) ke लिए जमीन उपलब्ध है तो विस्थापित हुए लोगों को जमीन देने के लिए भी जमीन उपलब्ध है.
     हाई कोर्ट के मुताबित यदि मध्य प्रदेश में जमीन है ही नही तब प्रदेश सरकार को जमीन देने के लिए मजबूर नही किया जा सकता. परन्तु हाई कोर्ट की जांच के मुताबिक प्रदेश में हजारों अकड जमीन है जो मध्य प्रदेश सरकार ने SEZ को और निजी उद्योगों को उपलब्ध करायी है. परन्तु प्रदेश सरकार ने कोई प्रयास नही किया है की निजी जमीन हासिल कर के विस्थापित हुए लोगों को उनका हक मिले. इसीलिए प्रदेश सरकार को सरकारी और निजी जमीन हासिल कर के विस्थापित हुए लोगों को निति के मुताबिक देनी चाहिए.
     जिन विस्थापित हुए लोगों ने सरकार से मुआवजा ले लिया है वो भी जमीन के हक़दार हैं. हालांकि ऐसे लोगों को जमीन मिलने पर ५०% का मुआवजा २० किश्तों में वापस करना होगा.
     
किसान के व्यसक लड़के को जमीन
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     हाई कोर्ट ने स्पष्ट कहा की किसानों के व्यसक लड़के भी जमीन के पूरे दावेदार हैं, और उनको भी न्यूनतम ५ एकड़ की खेती योग्य जमीन मिलनी चाहिए.
     जब तक ओम्कारेश्वर डाम से विस्थापित हुए लोगों के पुनर्स्थापना का कार्य नही खत्म हो जाता, तब तक डाम में पानी का स्तर १८९ मीटर जो वर्त्तमान में है, उससे नही बढ़ना चाहिए, कोर्ट ने कहा. 
     कोर्ट ने कहा की विस्थापित हुए लोगों की अन्य शिकायतें या मुद्दों के लिए Grievance Redressal Authority (GRA) में ३१ मार्च २००८ तक दर्ज करायी जाए और GRA १४ जून २००८ तक उनका निवारण करें और कोर्ट को सूचित करे.
     हाई कोर्ट ने ये आदेश दिया की GRA १४ जून तक  रपट दाखिल करे, एवं अन्य २५ गावं के बारे में १७ जून को कोर्ट में सुनवाई होगी.
     इस केस की सुनवाई कई दिनों तक चली थी. मध्य प्रदेश सरकार का प्रतिनिधित्व अद्वोकाते जनरल श्री र.न. संघ ने किया था, NHDC का प्रतिनिधित्व सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील श्री रवि शंकर प्रसाद ने किया था, एवं सुश्री चित्तारूपा पालित ने नर्मदा बचाओ आन्दोलन की ओर से बहस की थी. 
   
                    अलोक अगरवाल,  नरेन बिरला, राधेस्यम तिरोले, सरपंच सुक्वा, गोगाल्गओं , भाग्वान्भई, गजराज संघ, राधाबाई
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  नर्मदा  बचाओ  आन्दोलन
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