निमोनिया निचली श्वसन नली के संक्रमण का एक गम्भीर रोग है, जो फेफड़ों को प्रभावित करता है। बच्चों की मृत्यु का यह एक प्रमुख कारण है तथा विश्व भर के 20 प्रतिशत शिशुओं की मृत्यु के लिये जिम्मेदार है। निमोनिया के कारण होने वाली मृत्यु कम करने का सर्वोत्तम उपाय समय से दी गयी प्रभावी चिकित्सा है। निमोनिया से पीड़ित बच्चों का रोग प्रतिकारक दवाओं, जिन्हें साधारणत: चमत्कारी औषधि के नाम से जाना जाता है, से त्वरित इलाज करने पर मृत्यु की सम्भावना काफी कम की जा सकती है। विश्व स्तर पर प्राक्कलन आंकड़े बताते है कि निमोनिया से ग्रसित बच्चों को यदि रोग प्रतिकारक(Antibiotic) चिकित्सा उपलब्ध हो पाती तो प्रतिवर्ष लगभग 600,000 जीवन बचाये जा सकते हैं। निमोनिया से होने वाली मृत्यु को कम करने के लिये यदि विश्व स्तर पर रोकथाम एवं चिकित्सा दोनों किया जाता तो यह संख्या दुगनी से भी अधिक अर्थात लगभग 13 लाख होती।
यह बीमारी, जिसमें एक अथवा दोनों फेफड़ों में पस तथा द्रव एल्विओली (Alveoli) भर जाता है, को सुनिश्चित करने के लिये सीने (छाती) का एक्स-रे तथा प्रयोगशाला में जाँच की जाती है। यह बीमारी ऑक्सीजन ग्रहण करने (साँस लेने) की क्रिया को प्रभावित करती है, जिससे साँस लेना कठिन हो जाता है। लेकिन संसाधनों के अभाव के कारण सम्भावित निमोनिया के मामलों को उनके क्लीनिकल लक्षणों जैसे तेज या कठिनता से साँस लेना, खाँसी, बुखार आदि द्वारा पहचाना जाता है। नवजात शिशु स्तनपान करने में अक्षम हो सकते हैं तथा बेहोशी, हाइपोथर्मिया व दौरे का अनुभव कर सकते हैं। इसलिये बच्चों में निमोनिया के लक्षण पहचानने तथा उचित चिकित्सा सुविधा देने में देखभाल करने वालों का आवश्यक योगदान होता हैं।
निमोनिया के कम गम्भीर मरीजों का इलाज उचित रोग प्रतिकारक दवाओं द्वारा किया जा सकता हैं। गम्भीर निमोनिया के मामलों को अविलम्ब इंजेक्शन द्वारा एन्टीबायोटिक्स तथा, यदि आवश्यक हो तो, ऑक्सीजन दिए जाने के लिये चिकित्सालय भेज देना चाहिए।
निमोनिया से पीड़ित पाँच वर्ष तक के बच्चों में मृत्यु दर कम करने हेतु तीन आवश्यक स्तर हैं:
1. निमोनिया से पीड़ित बच्चों को पहचानना
2. चिकित्सालय-स्वास्थ्य केन्द्र-मातृ व बाल स्वास्थ्य केन्द्र में उचित चिकित्सा-सुविधा प्राप्त करना,
3. चिकित्सक द्वारा बताया गया उपचार प्राप्त करना।
प्रगतिशील देशो में लगभग 20 प्रतिशत देखभाल करने वाले ही बीमारी के लक्षण पहचानते हैं, तथा उनमें से केवल 54 प्रतिशत बच्चों को चिकित्सा उपलब्ध करवा पाते हैं।
गरीब बच्चों की तुलना में शहर व शिक्षित परिवारों के बच्चों को उचित चिकित्सा-सुविधा अधिक मिल पाती है तथा आर्थिक विषमताओं से जूझते हुए 68 देशों में लगभग 33 प्रतिशत निमोनिया से पीड़ित बच्चे एन्टीबायोटिक का लाभ पाते हैं।
निमोनिया / सेपसिस के लक्षण वाले दो माह तक के शिशुओं में अन्य शिशुओं की अपेक्षा गम्भीर बीमारी तथा मृत्यु की सम्भावना का अधिक खतरा रहता है। अत: ऐसे शिशुओं को अविलम्ब चिकित्सा हेतु किसी अस्पताल में भेज देना चाहिये। स्थानीय उपलब्ध चिकित्सा की निपुणता के आधार पर चिकित्सा का तरीका चुना जाना चाहिए। कुछ क्षेत्रों में किन्ही विशेष एन्टीबायोटिक के लिए प्रतिरोधक क्षमता का स्तर अधिक हो सकता है जिससे निमोनिया के बचाव के लिये वे औषिधियाँ कम प्रभावी हो सकती है। अन्य स्थानों में अधिक खतरे वाले वर्ग, जैसे कुपोषित या एच.आई.वी. सक्रंमित बच्चे अधिक संख्या में हो सकते हैं, जिसके अनुसार ही उनकी चिकित्सा-प्रणाली का चुनाव किया जाना चाहिए।
बालरोग तथा नवजात शिशु विशेषज्ञ एवं परामर्शदाता डॉ. एस.के. सेहता स्पष्ट करते हैं, ‘‘भारत सरकार और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू एच ओ) ने निमोनिया की पहचान हेतु सरल तरीके की संस्तुति की है, जिससे गाँवों में भी, जहाँ चिकित्सक की उपलब्धता नहीं हैं, एक अनपढ़ भी बीमारी की पहचान कर सके। डब्ल्यू एच ओ द्वारा मूलरूप से तीन प्रकार के निमोनिया को सूचीबद्ध किया गया है-
1. निमोनिया ना होना,
2. साधारण निमोनिया जिसका इलाज सेपट्रान है तथा
3. गम्भीर निमोनिया:- इस मामले में भारत सरकार द्वारा अनुमोदित किया गया है कि यदि व्यक्ति जानकार है तो मरीज को एम्पीसिलीन जेन्टामाइसिन दिया जाना चाहिये तथा मरीज को विशेषज्ञ के पास भेजना चाहिये।’’
लखनऊ के बाल-रोग तथा बाल-ह्रदय रोग विशेषज्ञ, डॉ. एस.एन. रस्तोगी का मत है- ‘‘ बीमारी का इलाज, कारक तत्व, जो जीवाणु हो सकता है अथवा जीवाणु नहीं भी हो सकता हैं, पर निर्भर करता है। इस प्रकार चिकित्सा में भिन्नता हो जाती है। भारत में सर्वाधिक होने वाला निमोनिया टयूबरकूलर (tubercular) निमोनिया है। निमोनिया की चिकित्सा के लिये स्ट्रैप्टोमाइसिन दिया जा सकता है।’’
डॉ. एस. के. सेहता, जिन्होंने कई वर्षों तक विख्यात चिकित्सालयों व लखनऊ एवं दिल्ली के गैर-सरकारी अस्पतालों में कार्य किया है, कहते हैं, ‘‘सरकारी चिकित्सालयों में भारत सरकार की सिफारिशों का पालन हो रहा है। भारत सरकार तथा डब्ल्यू एच ओ ने जनसाधारण पर अधिक ध्यान दिया है। इसलिये सेपट्रोन निमोनिया के इलाज के लिए काफी अच्छी तथा सस्ती औषधि है तथा ग्रामीण क्षेत्रों में भारत सरकार द्वारा संस्तुत है। जो भी हो, प्राइवेट सेक्टर में व्यक्तिगत रूझान अधिक आवश्यक होता है और हम सेपट्रान के लिये उच्च प्रतिरोध देख रहे हैं। इसलिये हम तेज रोग प्रतिकारक दवा का चुनाव करते हैं।’’
सलाहकार प्रसूति विशेषज्ञ तथा स्त्री-रोग विशेषज्ञ, डॉ. नीलम सिंह, जो ‘वात्सल्य रीसोर्स सेन्टर आन हेल्थ’ की मुख्य कार्यदायी भी हैं, के अनुसार कई प्रदेशों में बच्चों में गम्भीर “वसन-नली के संक्रमण की चिकित्सा व्यापक बाल संरक्षण कार्यक्रम का अंग है। फिर भी निमोनिया के बचाव के लिये आवश्यक जागरूकता का अभाव है। अभी भी इस मामले काफी अनभिज्ञता है तथा जागरूकता हेतु विशेष कार्यक्रमों के प्रयोजन की आवश्यकता है। अतिसार के बाद बच्चों में निमोनिया सबसे घातक बीमारी है। सरकारी और गैर-सरकारी चिकित्सालयों में होने वाले इलाज के मध्य भिन्नता के लिये समय, सलाह, चिकित्सा, इलाज में होने वाला व्यय तथा अन्य कारण जिम्मेदार हैं। इस क्षेत्र में सरकार द्वारा काफी तरक्की की गयी है और अब ये इलाज सरकारी अस्पतालों में भी उपलब्ध हैं। फिर भी सार्वजनिक चिकित्सा व्यवस्था में मरीजों की अधिकता, विशेषज्ञों का अभाव, संसाधनों की कमी तथा दवाओं का उपलब्ध न होना आदि अनेक कारण हैं, जिस पर विचार होना चाहिये।’’
छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय के बाल-रोग विभाग में स्वास्थ्य-लाभ कर रहे 3 वर्ष के अथर्व, जिससे मैं अक्टूबर 2011 के प्रथम सप्ताह में मिली थी, की कहानी बच्चों में निमोनिया के उचित उपचार न मिलने के कारण होने वाले घातक परिणाम का ज्वलन्त उदाहरण है। निमोनिया के पहले ही लक्षण में अथर्व के अभिभावकों ने तुरन्त प्राइवेट सेक्टर में चिकित्सा प्राप्त करवायी, लेकिन अथर्व की दशा बिगड़ने पर वे एक नर्सिंग होम से दूसरे में दौड़ते रहे। उन्हें लगा कि चिकित्सक उनसे वित्तीय लाभ पाने में अधिक उत्सुक थे। अन्त में वे उसे छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय, जो एक सरकारी चिकित्सालय हैं, में चार अगस्त को लाये। अन्तत: बाजार में उपलब्ध नवीनतम रोग प्रतिकारक औषधि बच्चे को दी गयी और उसकी हालत काफी सुधर गयी।
भारत में हम लोग सरकारी स्वास्थ्य प्रणाली को किस प्रकार कम कर आंकते हैं, इस तथ्य का यह एक उदाहरण है। संसाधनों की कमियों के बावजूद भी सरकारी स्वास्थ्य-तंत्र गम्भीर बीमारी के मरीजों को सर्वोत्तम उपचार देने में सक्षम है।
बच्चों में निमोनिया के बचाव व उपचार को बढ़ावा देने के उद्देश से 2009 में ‘द ग्लोबल एक्शन प्लान फॉर द प्रीवेन्सन एण्ड कन्ट्रोल ऑफ़ निमोनिया’ (GAPP) की स्थापना की गयी। आइये, हम सब मिलकार प्रत्येक बीमार बच्चे की सही देखभाल तथा निमोनिया के उपचार की प्रतिबद्धता हेतु संकल्प करें।
सौम्या अरोरा - सी.एन.एस.
(अनुवाद: सुश्री माया जोशी, लखनऊ)