वाहनों से निकलने वाले धुएं से फेफड़ों को होने वाले नुकसान के बारे में सभी जानते हैं, लेकिन यह धुआँ गर्भ में पल रहे भ्रूण के विकास में भी बाधक होता है। इसी प्रकार घर के अन्दर के प्रदूषण से भी बच्चों में अनेक जानलेवा बीमारियाँ होती हैं, जो कि भोजन बनाने वाली अंगीठी, मिट्टी तेल के स्टोव, कंडा या फिर माता पिता के सिगरेट, बीड़ी, हुक्का आदि के सेवन से होती है। जिसमें वो बच्चा परोक्ष-अपरोक्ष रूप से धुएं को अपने अन्दर सॉस के साथ लेता है। इन सब की वजह से बच्चों में अनेक बीमारियाँ घर कर जाती हैं जिनमें से निमोनिया प्रमुख है।
यश अस्पताल की प्रख्यात स्त्री-रोग विशेषज्ञा डॉ. ऋतु गर्ग कहती हैं कि, "घर के अन्दर रसोई के धुएं, वातावरण में मौसम बदलने के कारण फैल जाते हैं, जिसे बच्चा अपने सॉस के साथ लेता है। सोते समय बच्चे के ऊपर हल्का कपड़ा डाल कर इससे बचाया जा सकता है। किन्तु जो सबसे चिन्ता की बात है वह है माता या पिता का सिगरेट या बीड़ी सेवन करना। परोक्ष धूम्रपान का बच्चे की सेहत पर १००% असर पड़ता है क्योंकि सिगरेट बीड़ी का धुंआ हल्का होता है और आसानी से बच्चों के फेफडे़ में सांस के साथ चला जाता है, जो निमोनिया का सबसे बड़ा वाहक है।"
इसका सबसे बड़ा उदाहरण हमें तब देखने को मिला जब एक शिक्षित माता पिता मुनिन्द्र नाथ और प्रभा आनन्द ने हमें बताया कि उनके बच्चे को निमोनिया हुआ था पर उसके बाद भी उन्होने सिगरेट से होने वाले प्रदूषण के बारे में ज्यादा ध्यान नहीं दिया, जबकि इनका बच्चा एक ‘प्री-मैच्योर’ बच्चा था।
‘होप मदर एण्ड चाइल्ड केयर सेन्टर’ की डा. निधि जौहरी का मानना है कि घर के आस पास होने वाले निर्माण से धूल के कण बच्चे की सांस के साथ सांस नली से होते हुए सीधे फेफड़ों में चले जाते हैं जो पहले दमा (अस्थमा) फिर बाद में निमोनिया में बदल जाता है। घर के अन्दर माता, पिता का बीड़ी या सिगरेट के सेवन को भी वे ४०% तक निमोनिया का कारण मानती हैं।
इसी ‘होप मदर एण्ड चाइल्ड केयर सेन्टर’ के बाल रोग विशेषज्ञ डा. अजय कुमार कहते हैं कि वायु प्रदूषण हर तरह से खतरनाक है, खास तौर पर सांस की बीमारी में, जिसके सबसे बड़े शिकार बच्चे होते हैं जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। इसका सीधा असर बच्चों के फेफड़ों पर पड़ता है। फेफड़ों की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और फेफडे़ सामान्य कीटाणुओं को भी अपनी ओर आमंत्रित कर लेते हैं। एक तरह से रोग से लड़ने की जो ढ़ाल है वो कमजोर हो जाती है। जिससे निमोनिया के कीटाणु आसानी से प्रवेश कर जाते हैं और निमोनिया रोग फैला देते हैं।
बच्चों में निमोनिया का एक प्रमुख कारण हैं घर के अन्दर जलने वाले चूल्हे। वायु प्रदूषण से बच्चों के फेफडे़ में सीधा असर होता है जिससे बच्चों को बचाया जा सकता है, अगर अंगीठी, चूल्हों को घर से बाहर जलाया जाए तो। सिगरेट से होने वाले प्रदूषण के विषय में डा. अजय कुमार कहते हैं कि माता पिता द्वारा सिगरेट से जो धुंआ फैलता है वह बच्चों के फेफडे़ पर सीधा असर करता है। अगर माँ बाप सिगरेट पीना नहीं छोड़़ सकते हैं तो कम से कम घर के बाहर पिएं और इसकी सजा अपने बच्चों को न दें।
ऐसा ही वात्सल्य क्लीनिक के बाल रोग विशेषज्ञ डा. संतोष राय का कहना है कि बीड़ी, सिगरेट से बच्चों में एलर्जी हो जाती है, जिससे उनकी रोग से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है। इसमें फेफड़ों की एलर्जी प्रमुख है। घर के अन्दर के प्रदूषण के संदर्भ में डा. संतोष राय कहते हैं कि घर के अन्दर जलने वाले मच्छर-निरोधक ‘कॉयल’ या बत्ती भी वायु प्रदूषण का प्रमुख कारण हैं। सिगरेट भी बच्चों में फेफडे़ के रोग का एक मुख्य कारण है।
वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं घर में जलने वाली अंगीठी, चूल्हे, आदि, जो फेफड़ों में कई प्रकार के विकार पैदा करते हैं जिससे निमोनिया होने की आशंका रहती है। इनसे बचा जा सकता है अगर खाना घर से बाहर बनाया जाए या सौर्य ऊर्जा का इस्तमाल किया जाए।
इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए समाज में प्रदूषण को कम करने का संदेश जाना चाहिए और हम सबको इसे अपनी जिम्मेदारी समझना चाहिए।
नीरज मैनाली - सी0एन0एस0
(लेखक, ऑनलाइन पोर्टल सी.एन.एस. www.citizen-news.org के लिये लिखते हैं)
यश अस्पताल की प्रख्यात स्त्री-रोग विशेषज्ञा डॉ. ऋतु गर्ग कहती हैं कि, "घर के अन्दर रसोई के धुएं, वातावरण में मौसम बदलने के कारण फैल जाते हैं, जिसे बच्चा अपने सॉस के साथ लेता है। सोते समय बच्चे के ऊपर हल्का कपड़ा डाल कर इससे बचाया जा सकता है। किन्तु जो सबसे चिन्ता की बात है वह है माता या पिता का सिगरेट या बीड़ी सेवन करना। परोक्ष धूम्रपान का बच्चे की सेहत पर १००% असर पड़ता है क्योंकि सिगरेट बीड़ी का धुंआ हल्का होता है और आसानी से बच्चों के फेफडे़ में सांस के साथ चला जाता है, जो निमोनिया का सबसे बड़ा वाहक है।"
इसका सबसे बड़ा उदाहरण हमें तब देखने को मिला जब एक शिक्षित माता पिता मुनिन्द्र नाथ और प्रभा आनन्द ने हमें बताया कि उनके बच्चे को निमोनिया हुआ था पर उसके बाद भी उन्होने सिगरेट से होने वाले प्रदूषण के बारे में ज्यादा ध्यान नहीं दिया, जबकि इनका बच्चा एक ‘प्री-मैच्योर’ बच्चा था।
‘होप मदर एण्ड चाइल्ड केयर सेन्टर’ की डा. निधि जौहरी का मानना है कि घर के आस पास होने वाले निर्माण से धूल के कण बच्चे की सांस के साथ सांस नली से होते हुए सीधे फेफड़ों में चले जाते हैं जो पहले दमा (अस्थमा) फिर बाद में निमोनिया में बदल जाता है। घर के अन्दर माता, पिता का बीड़ी या सिगरेट के सेवन को भी वे ४०% तक निमोनिया का कारण मानती हैं।
इसी ‘होप मदर एण्ड चाइल्ड केयर सेन्टर’ के बाल रोग विशेषज्ञ डा. अजय कुमार कहते हैं कि वायु प्रदूषण हर तरह से खतरनाक है, खास तौर पर सांस की बीमारी में, जिसके सबसे बड़े शिकार बच्चे होते हैं जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। इसका सीधा असर बच्चों के फेफड़ों पर पड़ता है। फेफड़ों की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और फेफडे़ सामान्य कीटाणुओं को भी अपनी ओर आमंत्रित कर लेते हैं। एक तरह से रोग से लड़ने की जो ढ़ाल है वो कमजोर हो जाती है। जिससे निमोनिया के कीटाणु आसानी से प्रवेश कर जाते हैं और निमोनिया रोग फैला देते हैं।
बच्चों में निमोनिया का एक प्रमुख कारण हैं घर के अन्दर जलने वाले चूल्हे। वायु प्रदूषण से बच्चों के फेफडे़ में सीधा असर होता है जिससे बच्चों को बचाया जा सकता है, अगर अंगीठी, चूल्हों को घर से बाहर जलाया जाए तो। सिगरेट से होने वाले प्रदूषण के विषय में डा. अजय कुमार कहते हैं कि माता पिता द्वारा सिगरेट से जो धुंआ फैलता है वह बच्चों के फेफडे़ पर सीधा असर करता है। अगर माँ बाप सिगरेट पीना नहीं छोड़़ सकते हैं तो कम से कम घर के बाहर पिएं और इसकी सजा अपने बच्चों को न दें।
ऐसा ही वात्सल्य क्लीनिक के बाल रोग विशेषज्ञ डा. संतोष राय का कहना है कि बीड़ी, सिगरेट से बच्चों में एलर्जी हो जाती है, जिससे उनकी रोग से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है। इसमें फेफड़ों की एलर्जी प्रमुख है। घर के अन्दर के प्रदूषण के संदर्भ में डा. संतोष राय कहते हैं कि घर के अन्दर जलने वाले मच्छर-निरोधक ‘कॉयल’ या बत्ती भी वायु प्रदूषण का प्रमुख कारण हैं। सिगरेट भी बच्चों में फेफडे़ के रोग का एक मुख्य कारण है।
वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं घर में जलने वाली अंगीठी, चूल्हे, आदि, जो फेफड़ों में कई प्रकार के विकार पैदा करते हैं जिससे निमोनिया होने की आशंका रहती है। इनसे बचा जा सकता है अगर खाना घर से बाहर बनाया जाए या सौर्य ऊर्जा का इस्तमाल किया जाए।
इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए समाज में प्रदूषण को कम करने का संदेश जाना चाहिए और हम सबको इसे अपनी जिम्मेदारी समझना चाहिए।
नीरज मैनाली - सी0एन0एस0
(लेखक, ऑनलाइन पोर्टल सी.एन.एस. www.citizen-news.org के लिये लिखते हैं)