बच्चे में निमोनिया का सबसे बड़ा कारण संक्रमण है। निमोनिया के कई प्रकार के कीटाणु होते हैं जिनमें बैक्टेरिया और कई प्रकार के वाइरस भी शामिल हैं | निमोनिया का इलाज इन्ही के ऊपर निर्भर करता है | निमोनिया का संक्रमण जिस प्रकार का होता उसी प्रकार का एंटीबायोटिक्स देकर इसका इलाज किया जाता है, ताकि इसका असर मरीज पर जल्दी हो सके |
डा. अभिषेक वर्मा, जो डा. राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय, लखनऊ में बाल रोग विशेषज्ञ हैं, के अनुसार ‘‘निमोनिया से बचाव के लिए घर में जिनको खांसी आती हो, जिनको वाइरस का संक्रमण हो, धुएं का वातावरण हो या फिर सर्दी के मौसम में बच्चों को ज्यादा बचाने की जरूरत पड़ती है। अगर माँ या घर के किसी और सदस्य को खांसी आ रही है तो उनके हाथों मे बच्चे को न दें। तभी बच्चे का बचाव हो सकता है। बाकी टीके भी लगवायें। उपचार के लिए डब्ल्यूएचओ मानक के सेप्ट्रान, एमपीसिलीन और एन्टामाइसीन जैसी दवाइयां इस्तेमाल की जाती हैं | लेकिन कभी-कभी तो अस्पताल में और भी बहुत सारी दवाईयां उपलब्ध रहती हैं जिनसे हम उपचार करते हैं। जैसे जब बच्चा सांस लेने में दिक्कत करता है तो आक्सीजन भी दी जाती है। उपचार का सही तरीका अस्पताल के स्तर पर निर्भर करता है। अगर एक अच्छे स्तर का अस्पताल है--चाहे वह सरकारी हो या गैर सरकारी, उसमें कोई खास अन्तर नहीं होता है। हमारा अस्पताल सरकारी है | लेकिन यहां की सुविधा किसी भी गैर सरकारी अस्पताल से कम नहीं है। यहाँ की कार्य प्रणाली भी बेहतर है। यहाँ पर निमोनिया के इलाज के लिए हर तरह की सुविधाएं उपलब्ध है। हमारे यहाँ आक्सीजन आनलाइन है और मोबीलाइजर्स भी वार्ड में रहते हैं। हर तरह की निगरानी की सुविधा इस अस्पताल में है। इस अस्पताल में डब्ल्यूएचओ ने जो दवाईयां निर्धारित कर रखी हैं वे यहां पर और लगभग सभी सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध हैं। चाहे वो शहर का अस्पताल हो या फिर देहात का।’’
इसी अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. आर. एस. दूबे ने बताया कि ‘‘सरकार इस पर काफी ध्यान दे रही है। सरकार बहुत सारी योजनाएं चला रही है। ‘जननी सुरक्षा योजना’ का उद्देश्य ही यही है कि माँ और बच्चे की सुरक्षा का ध्यान रखा जाये। हमारे अस्पताल में निमोनिया का डब्ल्यूएचओ मानक के द्वारा ही इलाज हो रहा है।’’
एक गैर सरकारी क्लीनिक की निदेशक एवं स्त्री रोग विशेषज्ञा डा. रमा शंखधर निमोनिया के इलाज के बारे में बताती हैं कि ‘‘हमारी क्लीनिक में जो भी बच्चा आता है, और हमें निमोनिया की शंका होती है तो हम यही राय देते है कि बच्चे को चिकित्सक के पास जल्दी लायें, जिससे अच्छे एन्टीबायोटिक देकर रोग को जल्दी नियंत्रित किया जा सके, और बच्चा निमोनिया की गम्भीर अवस्था में न पहुँच पाए।’’
डा. रमा शंखधर ने यह भी बताया कि ‘‘सरकारी अस्पतालों में दवा उपलब्ध नहीं रहती है | जो दवा उनके पास उपलब्ध होती है वही वो मरीज को देते हैं। बाजार में रोज नई-नई दवाएं आ रही हैं | इसलिये यहाँ यह सोचना नहीं पड़ता है कि हमारे पास क्या है। हमें जो अच्छा लगता है हम वही देते हैं जिससे बच्चा जल्दी ठीक हो सके। जो डब्ल्यूएचओ के मानक बनाये जाते है वो सम्मेलनों के द्वारा हम सभी चिकित्सकों तक पहुँचाने की कोशिश की जाती है। और हम लोग उसको पढ़ और समझकर फिर उसका पालन करते हैं।’’
निमोनिया अक्सर पांच साल से कम आयु के बच्चों को अधिक होता है। यदि आप बच्चे की देखभाल में कुछ बातों का ध्यान रखेंगें तो हो सकता है आपका बच्चा निमोनिया से बच जाए। नवजात शिशु को हमेशा गर्म कपड़े जैसे टोपी, मोजा आदि पहनाकर रखें। बच्चे को खांसी, जुकाम बुखार आदि होने पर तुरंत चिकित्सक को दिखाएं। अगर बच्चा मां का दूध नही पी रहा है तो उसे घर पर कुछ और देने के बजाय चिकित्सक को दिखाएं। यदि चिकित्सक अस्पताल में भर्ती करके इलाज कराने को कहे तो लापरवाही न करें, और उसका इलाज शीघ्र कराएं। घर में साफ सफाई का विशेष ध्यान रखें। घर के कोने आदि को साफ रखें और वहां झाड़ू, पोछा आदि ठीक प्रकार से लगाएं, जिससे बच्चे को किसी प्रकार का संक्रमण न हो |
नदीम सलमानी - सी.एन.एस.
(लेखक, ऑनलाइन पोर्टल सी.एन.एस. www.citizen-news.org के लिये लिखते हैं)
डा. अभिषेक वर्मा, जो डा. राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय, लखनऊ में बाल रोग विशेषज्ञ हैं, के अनुसार ‘‘निमोनिया से बचाव के लिए घर में जिनको खांसी आती हो, जिनको वाइरस का संक्रमण हो, धुएं का वातावरण हो या फिर सर्दी के मौसम में बच्चों को ज्यादा बचाने की जरूरत पड़ती है। अगर माँ या घर के किसी और सदस्य को खांसी आ रही है तो उनके हाथों मे बच्चे को न दें। तभी बच्चे का बचाव हो सकता है। बाकी टीके भी लगवायें। उपचार के लिए डब्ल्यूएचओ मानक के सेप्ट्रान, एमपीसिलीन और एन्टामाइसीन जैसी दवाइयां इस्तेमाल की जाती हैं | लेकिन कभी-कभी तो अस्पताल में और भी बहुत सारी दवाईयां उपलब्ध रहती हैं जिनसे हम उपचार करते हैं। जैसे जब बच्चा सांस लेने में दिक्कत करता है तो आक्सीजन भी दी जाती है। उपचार का सही तरीका अस्पताल के स्तर पर निर्भर करता है। अगर एक अच्छे स्तर का अस्पताल है--चाहे वह सरकारी हो या गैर सरकारी, उसमें कोई खास अन्तर नहीं होता है। हमारा अस्पताल सरकारी है | लेकिन यहां की सुविधा किसी भी गैर सरकारी अस्पताल से कम नहीं है। यहाँ की कार्य प्रणाली भी बेहतर है। यहाँ पर निमोनिया के इलाज के लिए हर तरह की सुविधाएं उपलब्ध है। हमारे यहाँ आक्सीजन आनलाइन है और मोबीलाइजर्स भी वार्ड में रहते हैं। हर तरह की निगरानी की सुविधा इस अस्पताल में है। इस अस्पताल में डब्ल्यूएचओ ने जो दवाईयां निर्धारित कर रखी हैं वे यहां पर और लगभग सभी सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध हैं। चाहे वो शहर का अस्पताल हो या फिर देहात का।’’
इसी अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. आर. एस. दूबे ने बताया कि ‘‘सरकार इस पर काफी ध्यान दे रही है। सरकार बहुत सारी योजनाएं चला रही है। ‘जननी सुरक्षा योजना’ का उद्देश्य ही यही है कि माँ और बच्चे की सुरक्षा का ध्यान रखा जाये। हमारे अस्पताल में निमोनिया का डब्ल्यूएचओ मानक के द्वारा ही इलाज हो रहा है।’’
एक गैर सरकारी क्लीनिक की निदेशक एवं स्त्री रोग विशेषज्ञा डा. रमा शंखधर निमोनिया के इलाज के बारे में बताती हैं कि ‘‘हमारी क्लीनिक में जो भी बच्चा आता है, और हमें निमोनिया की शंका होती है तो हम यही राय देते है कि बच्चे को चिकित्सक के पास जल्दी लायें, जिससे अच्छे एन्टीबायोटिक देकर रोग को जल्दी नियंत्रित किया जा सके, और बच्चा निमोनिया की गम्भीर अवस्था में न पहुँच पाए।’’
डा. रमा शंखधर ने यह भी बताया कि ‘‘सरकारी अस्पतालों में दवा उपलब्ध नहीं रहती है | जो दवा उनके पास उपलब्ध होती है वही वो मरीज को देते हैं। बाजार में रोज नई-नई दवाएं आ रही हैं | इसलिये यहाँ यह सोचना नहीं पड़ता है कि हमारे पास क्या है। हमें जो अच्छा लगता है हम वही देते हैं जिससे बच्चा जल्दी ठीक हो सके। जो डब्ल्यूएचओ के मानक बनाये जाते है वो सम्मेलनों के द्वारा हम सभी चिकित्सकों तक पहुँचाने की कोशिश की जाती है। और हम लोग उसको पढ़ और समझकर फिर उसका पालन करते हैं।’’
निमोनिया अक्सर पांच साल से कम आयु के बच्चों को अधिक होता है। यदि आप बच्चे की देखभाल में कुछ बातों का ध्यान रखेंगें तो हो सकता है आपका बच्चा निमोनिया से बच जाए। नवजात शिशु को हमेशा गर्म कपड़े जैसे टोपी, मोजा आदि पहनाकर रखें। बच्चे को खांसी, जुकाम बुखार आदि होने पर तुरंत चिकित्सक को दिखाएं। अगर बच्चा मां का दूध नही पी रहा है तो उसे घर पर कुछ और देने के बजाय चिकित्सक को दिखाएं। यदि चिकित्सक अस्पताल में भर्ती करके इलाज कराने को कहे तो लापरवाही न करें, और उसका इलाज शीघ्र कराएं। घर में साफ सफाई का विशेष ध्यान रखें। घर के कोने आदि को साफ रखें और वहां झाड़ू, पोछा आदि ठीक प्रकार से लगाएं, जिससे बच्चे को किसी प्रकार का संक्रमण न हो |
नदीम सलमानी - सी.एन.एस.
(लेखक, ऑनलाइन पोर्टल सी.एन.एस. www.citizen-news.org के लिये लिखते हैं)