दोनों फ़िल्में समाज में व्याप्त महिला असमानता और एड्स/एच.आई.वी. के बीच सम्बन्ध को दर्शाती हैं.
पारिवारिक हिंसा एवं महिला असमानता के चलते अनेको महिलाओं को एड्स/एच.आई.वी. जैसे विषम रोगों की त्रासदी को झेलना पड़ता है.
'डायमंड्स' (हीरे) एड्स के साथ जीवित चार ऎसी महिलाओं की गाथा है, जिन्होंने अभूतपूर्व साहस का परिचय देते हुए, तथा विषम परिस्थितिओं का सामना करते हुए इस बीमारी से जूझ कर अन्य रोगी महिलाओं के जीवन में आशा का संचार किया तथा उन्हें विश्वास एवं लगन के साथ जीने की प्रेरणा दी. फिलिपीन्स की नेरी, मलेशिया की किरण, वियतनाम की हुयेन और कम्बोडिया की फरोजीन उन लाखों महिलाओं की आस्था स्तंभ हैं जो एड्स की जटिलताओं से जूझने के साथ साथ मानसिक प्रतारणा का सामना करते हुए, समाज में हीरे के समान दृढ़ एवं ओजस्वी उदहारण प्रस्तुत करती हैं. उनका जीवन महिला सशक्तिकरण की एक नवीन मिसाल है.
'इन विमेंस हैंड्स' एड्स ग्रसित दुनिया में रहने वाली उन महिलाओं की आपबीती है जो रूढ़ीवादी एवं पुरुष प्रधान समाज में व्याप्त महिला उत्पीड़न के कारण स्वयं को इस रोग से सुरक्षित रख पाने में असमर्थ हैं. असुरक्षित शारीरिक संबंधों से जनित एड्स का शिकार पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं अधिक होती हैं. परन्तु अपने पुरुष साथी की सहमति के बगैर कोई भी सुरक्षा पद्यति अपनाने के अधिकार से वे आज भी वंचित हैं. फिल्म में इस प्रकार के एड्स निरोधी सुरक्षात्मक तरीकों की खोज पर बल दिया गया है, जिनका उपयोग महिलाओं के नियंत्रण में हो न कि उनके पुरुष सहभागी के. इस प्रकार का एक संभावित सुरक्षा कवच है 'माइक्रोबिसाइड' (विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार माइक्रोबिसाइड ऐसे यौगिक पदार्थ हैं जिनका क्रीम/जेल के रूप में प्रयोग करके एच.आई.वी. समेत अनेक यौन संक्रमित रोगों से बचा जा सकता है. माइक्रोबिसाइड' पर शोध कार्य जारी है).
माइक्रोबिसाइड' का सुरक्षा कवच वास्तव में महिलाओं को एड्स से बचाने में राम बाण सिद्ध हो सकता है. भारत समेत विश्व में लाखों महिलाएं ऐसी हैं जिन्हें अपने मातृत्व एवं प्रजनन स्वास्थ्य पर कोई अधिकार नहीं है. वर्तमान एड्स निरोधक उपायों का उपयोग पुरुष के नियंत्रण में ही हैं. सुरक्षित यौन सम्बन्ध के लिए पुरुष की सहमति आज भी आवश्यक है. अत: महिला नियंत्रित एड्स निरोधी साधनों की नितांत आवश्यकता है.
वैश्विक स्तर पर महिलाओं में एड्स की बीमारी बढ़ रही है. २००९ में विश्व भर के ३३३ लाख एड्स से पीड़ित व्यक्तियों में १६६ लाख (५०%) संख्या महिलाओं की थी. भारत में भी कुछ इसी प्रकार की स्थिति है. हमारे देश के २३ लाख एड्स पीड़ित व्यक्तियों में ३९% महिलाएं एवं ३.५% बच्चे हैं. हालांकि अभी कुछ दिन पहले यू.एन.एड्स द्वारा जारी करी गयी एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में २००६-१० की अवधि में एड्स के नए संक्रमणों में ५६% गिरावट आयी है. यह एक आशाजनक लक्षण है. परन्तु स्थिति फिर भी गंभीर है. विशेषकर महिलाओं के लिए. अत: विश्व समाज के लिए यह आवश्यक उत्तरदायित्व है कि वह महिला सम्बन्धी सामाजिक विषमताओं को दूर करने के लिए एकजुट हो कर कार्य करे, ताकि सभी को एच.आई.वी. संबधी उचित निवारण, उपचार, और संरक्षण साधन प्राप्त हो सकें तथा अनंत: हम इस जटिल रोग से हमेश के लिए छुटकारा पा सकें.
शोभा शुक्ल - सी.एन.एस.