इस बात में कोई संदेह नहीं है कि निमोनिया टीकाकरण और उपचार को सरकारी अस्पतालों में मुहैया करवाना चाहिए क्योंकि निमोनिया ५ साल से कम आयु के बच्चों के लिए मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है, जबकि इससे पूर्णतय:बचाव और उपचार दोनों ही मुमकिन हैं. हालत यह है कि निज़ी और सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था दोनों में ही अक्सर गुणात्मक दृष्टि से उत्तम टीकाकरण और उपचार उपलब्ध नहीं है. हालाँकि निमोनिया टीकाकरण निज़ी स्वास्थ्य व्यवस्था में अक्सर मिल जाता है परन्तु कुछ अपवाद छोड़, अनेक निज़ी चिकित्सक विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा बताये गए उपचार की तुलना में निमोनिया की अलग-अलग उपचार विधि अपनाते हैं.
सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था में निमोनिया टीकाकरण उपलब्ध नहीं है, जबकि गरीब घर के बच्चों को ही निमोनिया होने का अधिक खतरा रहता है, और इस बात की सबसे कम सम्भावना भी कि वे निज़ी अस्पताल में जा कर महंगा निमोनिया टीका लगवा पाएंगे. निज़ी स्वास्थ्य व्यवस्था में कुछ जगह सर्वोत्तम निमोनिया टीकाकरण और उपचार सेवा उपलब्ध है, परन्तु यह इतनी महंगी है कि आम लोगों की पहुँच के बाहर ही है. गौर तलब बात यह है कि निमोनिया कुपोषण, अस्वच्छता, भीड़-भाड़, परोक्ष धूम्रपान, चूल्हे के धुएं, आदि से पनपता है जिसकी सम्भावना आर्थिक रूप से कमज़ोर घरों में अधिक होती है.
सरकारी स्वास्थ्य प्रणाली में कुछ जगह तो बहुत ही कुशल स्वास्थ्यकर्मी और निमोनिया उपचार सेवाएँ उपलब्ध हैं, परन्तु निमोनिया टीकाकरण नहीं. निमोनिया ग्रसित बच्चों के अभिभावकों से बात करने से पता चला कि केवल बड़े सरकारी अस्पताल में ही निमोनिया उपचार मिलना न्याय संगत नहीं है.
गोरखपुर के सरकारी अस्पताल की एक स्वास्थ्यकर्मी ने कहा कि अक्सर जब तक बच्चे यहाँ पहुँचते हैं तब तक निमोनिया विकराल रूप धारण कर चुका होता है. जब निमोनिया के आरंभिक लक्षण आते हैं तो लोग स्वयं ही इलाज करते हैं, आसपास दिखाते हैं और जब स्थिति सुधरती नहीं है तब ही जिला अस्पताल ले कर आते हैं.
गोरखपुर की एक बस्ती में रहने वाली इन्द्रावती का कहना है कि जब उनके नाती को निमोनिया हुआ था तब वे उसे अस्पताल तब ही लेकर गयीं जब आसपास के चिकित्सकों के इलाज से स्थिति नहीं सुधरी. जिला अस्पताल, जो उनके घर से १५ किलोमीटर दूर है, वहाँ जाने में समय और पैसा दोनों लगता हैं, उस दिन की मजदूरी भी नहीं मिलती है, मजदूरी से छुट्टी लेनी पड़ती है, और यदि बच्चा अस्पताल में भर्ती कर लिया जाए तो रहना पड़ता है. इसका यह मतलब नहीं है कि लोग अस्पताल जाएँ नहीं, परन्तु ये सारी सेवाएँ पास के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर क्यों नहीं उपलब्ध हैं?
इन्द्रावती का कहना सही है. यदि गुणात्मक दृष्टि से बढ़िया स्वास्थ्य सेवाएँ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर उपलब्ध होंगी तो निमोनिया का उपचार शीघ्र हो सकेगा, और मृत्यु दर में भी वांछनीय सुधार होगा. निमोनिया टीकाकरण को राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम में भी शामिल करना होगा वर्ना जिन बच्चों को निमोनिया का सबसे अधिक खतरा है वही इस टीके से वंचित रह जाते रहेंगे.
भारत सरकार के योजना आयोग को अपनी आगामी १२वीं पञ्च वर्षीय योजना (२०१२-२०१७) में निमोनिया टीकाकरण को भी शामिल करना चाहिए.
जीतेन्द्र द्विवेदी - सी.एन.एस.