घरों के अन्दर होने वाले वायु प्रदूषण से बच्चों को निमोनिया जैसी बीमारी हो सकती है. भोजन पकाने के लिए जलाया गया ईंधन और घर के सदस्यों द्वारा किये गए धूम्रपान के धुएं में मौजूद हानिकारक तत्व, अप्रत्यक्ष रूप से बच्चे के शरीर में जाने के कारण नवजात शिशु को निमोनिया का कहर झेलना पड़ सकता है | क्योंकि निमोनिया का सम्बन्ध फेफड़ों से होता है, इसलिए जब बच्चा प्रदूषण वाले वातावरण में साँस लेता है तो इस वायु में मौजूद हानिकारक तत्वों का प्रभाव उसके फेफड़ों पर पड़ता है और बच्चा निमोनिया जैसी बीमारी का शिकार हो जाता है।
डा. राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय के शिशु रोग विशेषज्ञ डा. अभिषेक वर्मा के अनुसार, ‘‘गाँव में लकड़ी या उपले से भोजन पकाया जाता है, क्योंकि वहां शहरों की तरह गैस की उपलब्धता नही है | साथ ही साथ घर में जो साफ सफाई की जाती है उससे धूल उड़ती है, और घरों में जानवर भी पाले जाते हैं। इन सभी कारणों से घर का वातावरण प्रदूषित होता है। इनसे बच्चों को साँस लेने में दिक्कत आ सकती है तथा उन्हें निमोनिया और अन्य श्वास की बीमारियाँ हो सकती है। अगर हम घर का वातावरण स्वस्थ रखें तो बच्चे को इन बीमारियों से बचाया जा सकता है।’’
डा. वर्मा ने यह भी बताया कि ‘‘सिगरेट और बीड़ी के सेवन का असर निमोनिया पर तो इतना अधिक नहीं है, लेकिन और दूसरी बीमारियों, जैसे अस्थमा आदि, का खतरा रहता है। प्रदूषण को कम करने के लिए भोजन पकाने के लिए लकड़ी या उपले का प्रयोग कम किया जा सकता है। शहरों में फर्श पर पोछा लगाने से भी धूल को कम किया जा सकता है। और यदि घर में पालतू जानवर हैं तो उन्हें घर के बाहर ही रखें तो ज्यादा अच्छा और बेहतर है। इस बात का ध्यान रखें कि बच्चों को उनसे दूर रखा जाय, और बच्चों को जानवरों के साथ खेलने न दिया जाय. घरों में पोछे, मच्छरदानी आदि का प्रयोग करें तो इससे बच्चों को निमोनिया जैसी बीमारी से बचाया जा सकता है।’’
इन्दिरा नगर की स्त्री रोग विशेषज्ञा डा. रमा शंखधर के अनुसार ‘‘जिन घरों में लकड़ी या कंडों के चूल्हे जलते हैं या फिर लोग बीड़ी सिगरेट का सेवन करते हैं तो ये घर के वातावरण को प्रदूषित कर देते हैं, और जब बच्चे उस वातावरण में सांस लेते हैं तो यह धुआँ फेफड़ों में जाकर अन्दर जमा हो जाता है जिससे बच्चों को कम आक्सीजन मिलती है, और बच्चों के शरीर में बीमारियों से लड़ने की क्षमता धीरे-धीरे कम होने लगती है। इसलिए जब घर में झाड़ू पोछा हो रहा हो तो बच्चों को वहाँ से हटा दें और पानी में फिनाइयल या नीम की पत्ती डालकर पोछा लगाएं।’’
डा. राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. आर. एस. दूबे ने घर के अन्दर धूम्रपान के बारे में बताया कि “धूम्रपान का असर निश्चित रूप से बच्चों पर पड़ता है. जब छोटे कमरे में धूम्रपान किया जाएगा तो बच्चा इसको साँस लेने के दौरान अपने अन्दर अवशोषित करेगा जिसके कारण उसके ऊपर इसका असर पड़ेगा।’’
इन्हीं सब कारणों के चलते, एक मलिन बस्ती में रहने वाली रेखा की बच्ची तुलसी निमोनिया की शिकार हो गयी है. रेखा यह बात जानती तक नही है कि लकड़ी के चूल्हे से निकलने वाला धुंआ ही उसकी बच्ची के निमोनिया होने का कारण है। वह अपनी बच्ची को गोद में लेकर बड़े आराम से खाना बनाती है, और उसका पति भी बच्चों के साथ बैठकर बीड़ी का सेवन करता है, जिसका कुप्रभाव उसकी मासूम बच्ची को झेलना पड़ रहा है। दवा लाने पर भी कोई असर नही होता है। क्योंकि इन लोगों को यह पता ही नही है कि कमी कहाँ है। इन्हें किसी चिकित्सक ने इस बारे में बताया ही नहीं |
अक्सर निमोनिया को एक आम बीमारी की तरह समझा जाता है। लेकिन यह अब आम बीमारी नही रही, क्योंकि पांच साल तक के बच्चों की मौतें निमोनिया के कारण हर साल बढ़ती जा रही हैं। इसलिए निमोनिया को आम बीमारी समझकर इसे अनदेखा न करें। अपने बच्चे को निमोनिया और दूसरी साँस की बीमारियों से बचाने के लिये घरों के अन्दर होने वाले प्रदूषण को रोकें और अगर घर में खाना मिट्टी के चूल्हे पर बनाती हैं तो अपने बच्चों को उसके धुएं से दूर रखें, और जिस स्थान पर बच्चे हों वहां धूम्रपान का सेवन तो बिल्कुल न करें। तभी आपका बच्चा स्वस्थ रह पायेगा।
नदीम सलमानी - सी.एन.एस.
(लेखक, ऑनलाइन पोर्टल सी.एन.एस. www.citizen-news.org के लिये लिखते हैं)
डा. राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय के शिशु रोग विशेषज्ञ डा. अभिषेक वर्मा के अनुसार, ‘‘गाँव में लकड़ी या उपले से भोजन पकाया जाता है, क्योंकि वहां शहरों की तरह गैस की उपलब्धता नही है | साथ ही साथ घर में जो साफ सफाई की जाती है उससे धूल उड़ती है, और घरों में जानवर भी पाले जाते हैं। इन सभी कारणों से घर का वातावरण प्रदूषित होता है। इनसे बच्चों को साँस लेने में दिक्कत आ सकती है तथा उन्हें निमोनिया और अन्य श्वास की बीमारियाँ हो सकती है। अगर हम घर का वातावरण स्वस्थ रखें तो बच्चे को इन बीमारियों से बचाया जा सकता है।’’
डा. वर्मा ने यह भी बताया कि ‘‘सिगरेट और बीड़ी के सेवन का असर निमोनिया पर तो इतना अधिक नहीं है, लेकिन और दूसरी बीमारियों, जैसे अस्थमा आदि, का खतरा रहता है। प्रदूषण को कम करने के लिए भोजन पकाने के लिए लकड़ी या उपले का प्रयोग कम किया जा सकता है। शहरों में फर्श पर पोछा लगाने से भी धूल को कम किया जा सकता है। और यदि घर में पालतू जानवर हैं तो उन्हें घर के बाहर ही रखें तो ज्यादा अच्छा और बेहतर है। इस बात का ध्यान रखें कि बच्चों को उनसे दूर रखा जाय, और बच्चों को जानवरों के साथ खेलने न दिया जाय. घरों में पोछे, मच्छरदानी आदि का प्रयोग करें तो इससे बच्चों को निमोनिया जैसी बीमारी से बचाया जा सकता है।’’
इन्दिरा नगर की स्त्री रोग विशेषज्ञा डा. रमा शंखधर के अनुसार ‘‘जिन घरों में लकड़ी या कंडों के चूल्हे जलते हैं या फिर लोग बीड़ी सिगरेट का सेवन करते हैं तो ये घर के वातावरण को प्रदूषित कर देते हैं, और जब बच्चे उस वातावरण में सांस लेते हैं तो यह धुआँ फेफड़ों में जाकर अन्दर जमा हो जाता है जिससे बच्चों को कम आक्सीजन मिलती है, और बच्चों के शरीर में बीमारियों से लड़ने की क्षमता धीरे-धीरे कम होने लगती है। इसलिए जब घर में झाड़ू पोछा हो रहा हो तो बच्चों को वहाँ से हटा दें और पानी में फिनाइयल या नीम की पत्ती डालकर पोछा लगाएं।’’
डा. राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. आर. एस. दूबे ने घर के अन्दर धूम्रपान के बारे में बताया कि “धूम्रपान का असर निश्चित रूप से बच्चों पर पड़ता है. जब छोटे कमरे में धूम्रपान किया जाएगा तो बच्चा इसको साँस लेने के दौरान अपने अन्दर अवशोषित करेगा जिसके कारण उसके ऊपर इसका असर पड़ेगा।’’
इन्हीं सब कारणों के चलते, एक मलिन बस्ती में रहने वाली रेखा की बच्ची तुलसी निमोनिया की शिकार हो गयी है. रेखा यह बात जानती तक नही है कि लकड़ी के चूल्हे से निकलने वाला धुंआ ही उसकी बच्ची के निमोनिया होने का कारण है। वह अपनी बच्ची को गोद में लेकर बड़े आराम से खाना बनाती है, और उसका पति भी बच्चों के साथ बैठकर बीड़ी का सेवन करता है, जिसका कुप्रभाव उसकी मासूम बच्ची को झेलना पड़ रहा है। दवा लाने पर भी कोई असर नही होता है। क्योंकि इन लोगों को यह पता ही नही है कि कमी कहाँ है। इन्हें किसी चिकित्सक ने इस बारे में बताया ही नहीं |
अक्सर निमोनिया को एक आम बीमारी की तरह समझा जाता है। लेकिन यह अब आम बीमारी नही रही, क्योंकि पांच साल तक के बच्चों की मौतें निमोनिया के कारण हर साल बढ़ती जा रही हैं। इसलिए निमोनिया को आम बीमारी समझकर इसे अनदेखा न करें। अपने बच्चे को निमोनिया और दूसरी साँस की बीमारियों से बचाने के लिये घरों के अन्दर होने वाले प्रदूषण को रोकें और अगर घर में खाना मिट्टी के चूल्हे पर बनाती हैं तो अपने बच्चों को उसके धुएं से दूर रखें, और जिस स्थान पर बच्चे हों वहां धूम्रपान का सेवन तो बिल्कुल न करें। तभी आपका बच्चा स्वस्थ रह पायेगा।
नदीम सलमानी - सी.एन.एस.
(लेखक, ऑनलाइन पोर्टल सी.एन.एस. www.citizen-news.org के लिये लिखते हैं)