निमोनिया जैसे जानलेवा रोग से बच्चों को बचाने के लिये हमारी सरकार से पास कोई खास रणनीति नहीं है। सरकारी द्वारा बच्चों के लिए निःशुल्क टीकाकरण प्रणाली में निमोनिया शामिल ही नहीं है जबकि 5 साल से कम आयु के बच्चों में मौत का सबसे बड़ा कारण निमोनिया है।
सरकारी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर सस्ते टीकों या निमोनिया के उपचार की अनुपलब्धता प्रमुख है। हर वर्ष लाखों बच्चे इस बीमारी से अपनी जान गवाँ देते हैं पर हमारी सरकार आज भी हाथ पर हाथ रखे बैठी है। सामान्य जन तक आज भी ये सुविधा नहीं पहुंची है। वर्ष 2008 में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में निमोनिया से होने वाली मृत्यु 371605 थी जो कि 5 वर्ष से कम सभी तरह के मृत्यु की २०.३% थी।
यश अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञा डा० ऋतु गर्ग बताती हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा दो ही प्रकार के टीके उपलब्ध हैं। एक तो इनफ़्लुएनजा वेकसीन दूसरा नीमोकोकल वेकसीन जिसे 10-12 साल तक के बच्चे को हर साल लगाना पड़ता है, जिससे काफी हद तक निमोनिया के हमले से बचा जा सकता है। परन्तु यह थोड़ा मंहगा है। गरीब व्यक्ति इसको बिल्कुल नहीं लगवा सकता। मध्यमवर्गीय लोग अपने अन्य खर्चों को कम करके लगवा सकते हैं। सरकारी अस्पतालों में यह टीका उपलब्ध नहीं है। डा0 गर्ग का यह मानना है कि इसे सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध होना चाहिए जिससे गरीब लोग, जो निमोनिया से ग्रसित हैं, इसका लाभ उठा सकें।
‘होप मदर एण्ड चाइल्ड केयर सेन्टर’ की स्त्री रोग विशेषज्ञ डा0 निधि जौहरी का कहना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बच्चों के लिए तो टीके उपलब्ध कराये हैं पर व्यस्कों के लिए नहीं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की योजना है कि बच्चों को बोतल से दूध न पिलाकर स्तनपान कराया जाये और पोषण तथा स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया जाये, जिससे शिशुओं में निमोनिया से होने वाली मृत्यु पर काबू पाया जा सके। डा. निधि जौहरी कहती हैं कि सरकारी अस्पतालों में निमोनिया से बचाव का टीकाकरण स्वास्थ्य प्रोग्राम का हिस्सा नहीं है। भारत सरकार ने इसको अपने प्रोग्राम में नहीं जोड़ा है।
वात्सल्य क्लीनिक के बाल रोग विशेषज्ञ डा. संतोष राय टीके के बारे में कहते हैं कि बाजार में यह टीका दो नाम से आता है। एक दो साल से छोटे बच्चों को लगाया जाता है वह प्रेगनार नाम से आता है पर वह बहुत मंहगा होता है जो सामान्य लोगों की पहुँच से दूर है। दूसार टीका नीमोवेक्स 23 नाम से आता है जो ज्यादा मंहगा नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जो मानक दिये हैं उनके अनुसार कुछ लोग जो इसको खरीद सकते हैं वे टीका लगवा सकते हैं। पहला डेढ़ महीने, दूसरा ढ़ाई महीने, तीसरा साढ़े तीन महीने और 18 महीने पर इसका बूस्टर डोज। पर यह सब टीके सरकारी टीकाकरण स्वास्थ्य प्रोग्राम का भाग नहीं हैं।
‘होप मदर एण्ड चाइल्ड केयर सेन्टर’ के बाल रोग विशेषज्ञ डा. अजय कुमार भी बाजार में उपलब्ध दो टीकों का जिक्र करते हैं - पहला, सामान्य बच्चों के लिए जो निमोनिया से ग्रसित नही हैं और जो बहुत महंगा है जिसे निमोकोकल वैकसिन कहते हैं। निमोनिया के टीके अत्यधिक मंहगे होने की वजह से आम लोगों की पहुंच से दूर हैं जो बच्चे के जीवन के पहले दो साल में चार बार लगते हैं जिसकी अनुमानित लागत 15,500/- के आस पास आती है। आगे डा. अजय कुमार कहते हैं कि सरकारी अस्पतालों मे यह टीका उपलब्ध नही है, और यह सरकार की किसी भी स्कीम में नहीं है। मगर यह टीका उनकी क्लीनिक पर उपलब्ध है।
डा0 अजय कुमार निमोनिया जैसे रोग को किसी विशेष वर्ग में न बांटकर कहते हैं कि यह किसी भी अमीर या गरीब वर्ग में हो सकता है। अगर बच्चा कुपोषण का शिकार है तो उच्च या निम्न वर्ग का फर्क नहीं पड़ता जानकारी का अभाव बच्चे में कुपोषण को बढ़ाता है। कुपोषण होने से कई और बीमारी हो जाती हैं जिससे निमोनिया या किसी और बीमारी का खतरा बढ़ जाता है।
भारत जैसे देश में यह एक जटिल समस्या है, खासतौर पर गरीब लोगों में जो स्वच्छता का विशेष ध्यान नहीं रखते। जिसके कारण और भी बीमारी इनके साथ हो जाती हैं, या और बीमारी के साथ निमोनिया हो जाता है। शिक्षा का अभाव एक प्रमुख कारण है। खास कर देहातों मे जहां माता-पिता इस रोग के प्रति ज्यादा जागरूक नहीं हैं। शिक्षा, स्वच्छता, और स्वास्थ्य के विषय में अगर सरकार समय-समय पर जागरूकता कार्यक्रम चलाये तो इस जानलेवा बीमारी से होने वाली मृत्यु दर को बहुत हद तक कम किया जा सकता है।
नीरज मैनाली - सी0एन0एस0
(लेखक, ऑनलाइन पोर्टल सी.एन.एस. www.citizen-news.org के लिये लिखते हैं)
सरकारी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर सस्ते टीकों या निमोनिया के उपचार की अनुपलब्धता प्रमुख है। हर वर्ष लाखों बच्चे इस बीमारी से अपनी जान गवाँ देते हैं पर हमारी सरकार आज भी हाथ पर हाथ रखे बैठी है। सामान्य जन तक आज भी ये सुविधा नहीं पहुंची है। वर्ष 2008 में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में निमोनिया से होने वाली मृत्यु 371605 थी जो कि 5 वर्ष से कम सभी तरह के मृत्यु की २०.३% थी।
यश अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञा डा० ऋतु गर्ग बताती हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा दो ही प्रकार के टीके उपलब्ध हैं। एक तो इनफ़्लुएनजा वेकसीन दूसरा नीमोकोकल वेकसीन जिसे 10-12 साल तक के बच्चे को हर साल लगाना पड़ता है, जिससे काफी हद तक निमोनिया के हमले से बचा जा सकता है। परन्तु यह थोड़ा मंहगा है। गरीब व्यक्ति इसको बिल्कुल नहीं लगवा सकता। मध्यमवर्गीय लोग अपने अन्य खर्चों को कम करके लगवा सकते हैं। सरकारी अस्पतालों में यह टीका उपलब्ध नहीं है। डा0 गर्ग का यह मानना है कि इसे सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध होना चाहिए जिससे गरीब लोग, जो निमोनिया से ग्रसित हैं, इसका लाभ उठा सकें।
‘होप मदर एण्ड चाइल्ड केयर सेन्टर’ की स्त्री रोग विशेषज्ञ डा0 निधि जौहरी का कहना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बच्चों के लिए तो टीके उपलब्ध कराये हैं पर व्यस्कों के लिए नहीं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की योजना है कि बच्चों को बोतल से दूध न पिलाकर स्तनपान कराया जाये और पोषण तथा स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया जाये, जिससे शिशुओं में निमोनिया से होने वाली मृत्यु पर काबू पाया जा सके। डा. निधि जौहरी कहती हैं कि सरकारी अस्पतालों में निमोनिया से बचाव का टीकाकरण स्वास्थ्य प्रोग्राम का हिस्सा नहीं है। भारत सरकार ने इसको अपने प्रोग्राम में नहीं जोड़ा है।
वात्सल्य क्लीनिक के बाल रोग विशेषज्ञ डा. संतोष राय टीके के बारे में कहते हैं कि बाजार में यह टीका दो नाम से आता है। एक दो साल से छोटे बच्चों को लगाया जाता है वह प्रेगनार नाम से आता है पर वह बहुत मंहगा होता है जो सामान्य लोगों की पहुँच से दूर है। दूसार टीका नीमोवेक्स 23 नाम से आता है जो ज्यादा मंहगा नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जो मानक दिये हैं उनके अनुसार कुछ लोग जो इसको खरीद सकते हैं वे टीका लगवा सकते हैं। पहला डेढ़ महीने, दूसरा ढ़ाई महीने, तीसरा साढ़े तीन महीने और 18 महीने पर इसका बूस्टर डोज। पर यह सब टीके सरकारी टीकाकरण स्वास्थ्य प्रोग्राम का भाग नहीं हैं।
‘होप मदर एण्ड चाइल्ड केयर सेन्टर’ के बाल रोग विशेषज्ञ डा. अजय कुमार भी बाजार में उपलब्ध दो टीकों का जिक्र करते हैं - पहला, सामान्य बच्चों के लिए जो निमोनिया से ग्रसित नही हैं और जो बहुत महंगा है जिसे निमोकोकल वैकसिन कहते हैं। निमोनिया के टीके अत्यधिक मंहगे होने की वजह से आम लोगों की पहुंच से दूर हैं जो बच्चे के जीवन के पहले दो साल में चार बार लगते हैं जिसकी अनुमानित लागत 15,500/- के आस पास आती है। आगे डा. अजय कुमार कहते हैं कि सरकारी अस्पतालों मे यह टीका उपलब्ध नही है, और यह सरकार की किसी भी स्कीम में नहीं है। मगर यह टीका उनकी क्लीनिक पर उपलब्ध है।
डा0 अजय कुमार निमोनिया जैसे रोग को किसी विशेष वर्ग में न बांटकर कहते हैं कि यह किसी भी अमीर या गरीब वर्ग में हो सकता है। अगर बच्चा कुपोषण का शिकार है तो उच्च या निम्न वर्ग का फर्क नहीं पड़ता जानकारी का अभाव बच्चे में कुपोषण को बढ़ाता है। कुपोषण होने से कई और बीमारी हो जाती हैं जिससे निमोनिया या किसी और बीमारी का खतरा बढ़ जाता है।
भारत जैसे देश में यह एक जटिल समस्या है, खासतौर पर गरीब लोगों में जो स्वच्छता का विशेष ध्यान नहीं रखते। जिसके कारण और भी बीमारी इनके साथ हो जाती हैं, या और बीमारी के साथ निमोनिया हो जाता है। शिक्षा का अभाव एक प्रमुख कारण है। खास कर देहातों मे जहां माता-पिता इस रोग के प्रति ज्यादा जागरूक नहीं हैं। शिक्षा, स्वच्छता, और स्वास्थ्य के विषय में अगर सरकार समय-समय पर जागरूकता कार्यक्रम चलाये तो इस जानलेवा बीमारी से होने वाली मृत्यु दर को बहुत हद तक कम किया जा सकता है।
नीरज मैनाली - सी0एन0एस0
(लेखक, ऑनलाइन पोर्टल सी.एन.एस. www.citizen-news.org के लिये लिखते हैं)