बाज़ार में निमोनिया से बचाव के लिए टीका उपलब्ध तो जरूर है, लेकिन बहुत से लोगों को इसके बारे में जानकारी नहीं है. यहाँ तक कि कुछ चिकित्सक भी अनजान हैं. एक अध्ययन के अनुसार जिन बच्चों में निमोनिया से बचाव का टीकाकरण नहीं होता है, उनमें निमोनिया से मरने का खतरा ४० गुना अधिक रहता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी निमोनिया से बचाव के लिए कई प्रकार के टीके सुझाये हैं, पर यह एक बहुत बड़ी विडम्बना है कि जनमानस में इसके बारे में जानकारी का अभाव है.
सम्पूर्ण विश्व में प्रतिवर्ष, पांच वर्ष से कम उम्र के करीब १८ लाखबच्चे निमोनिया के कारण मरते हैं, और यदि यह वर्तमान दर जारी रही तो २०१० से २०१५ के बीच १३२ लाख अधिक मौतें होंगी. अतः यह बहुत आवश्यक है कि लोगों में निमोनिया के टीकाकरण के बारे में जागरूकता बढ़ायी जाए जिससे कि प्रत्येक माता-पिता अपने बच्चे को समय से निमोनिया से बचाव के टीके लगवा सकें. एक अध्ययन के अनुसार निमोनिया से बचाव के लिए ‘हीमोफीलस इनफ्लुंजी टाइप बी’ (‘हीब’) टीके के व्यापक प्रयोग से करीब चार लाख जानें बचायी जा सकती हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बच्चों को निमोनिया से बचाने के लिए दो प्रकार के टीकों के प्रयोग को बताया है. पहला टीका हीमोफीलस इनफ्लुंजी टाइप बी (हीब) और दूसरा निमोकोकल कंजुगेट वैक्सीन (पीसीवी १३) के नाम से जाना जाता है. हीब टीका व्यापक रूप से लगभग १३६ देशों में उपलब्ध है, जबकि पीसीवी १३ टीका भारत सहित मात्र ३१ देशों में ही उपलब्ध है. हीब टीका, बच्चों को निमोनिया से बचाने का प्रभावकारी टीका है, परन्तु विकासशील देशों में अभी काफी मात्रा में बच्चे इसके टीकाकरण से वंचित हैं. एक शोध के अनुसार २००३ में, विकासशील देशों के ४२% टीकाकरण की तुलना में विकसित देशों में ९२% बच्चों ने हीब टीका प्राप्त किया था.
बहराइच जिला अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. के के वर्मा का कहना है कि "बाजार में निमोनिया का टीका उपलब्ध तो ज़रूर है पर वह बहुत महँगा है इसलिए सभी को लग पाना संभव नहीं हो पाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी निमोनिया से बचाव के लिए इनफ्लूएंज़ा टीका को सुझाया है. जो छः महीने से कम उम्र के बच्चों को दो डोज़ एक-एक महीने के अंतराल पर लगती है."
निमोनिया के टीका के बारे में लोगों में जानकारी का अभाव है जिसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि बहराइच जिला अस्पताल में दिखाने आयी, निमोनिया से पीड़ित ढाई साल के बच्चे की माता का कहना है कि "हमारे बच्चे को टीका तो लगा था पर हमें यह नहीं मालूम कि किस चीज का टीका लगा था". निमोनिया के टीका के बारे में अज्ञानता आम जनता में ही नहीं बल्कि कुछ चिकित्सकों में भी देखी जा सकती है, जिसका अनुमान हम इस बात से भी लगा सकते हैं कि बहराइच जिला अस्पताल के स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. पी. के मिश्र का कहना है कि "हमारे यहाँ तो डी.पी.टी का टीका लगता है. निमोनिया के लिए कोई और टीका नहीं लगता है. हमें इसके बारे में जानकारी नहीं है".
एक ओर जहाँ निमोनिया सम्पूर्ण विश्व में होने वाली शिशु मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है और आम जनमानस में निमोनिया के बारे में साक्षरता का अभाव है, वहीं दूसरी ओर यह बड़े दुर्भाग्य कि बात है कि निमोनिया भारत सरकार द्वारा चलाये जाने वाले स्वास्थ्य कार्यक्रमों का भाग नहीं है. अतः सरकार को निमोनिया के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय स्तर का कार्यक्रम चलाना नित्यांत आवश्यक है. डॉ. के के वर्मा का मानना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन को भी अपनी गाइड लाइन बदलनी चाहिए और नये और सस्ते टीके को अपनाना चाहिए जो निशुल्क वितरित किये जा सकें.
राहुल कुमार द्विवेदी - सी.एन.एस.
(लेखक, ऑनलाइन पोर्टल सी.एन.एस. www.citizen-news.org के लिये लिखते हैं)
सम्पूर्ण विश्व में प्रतिवर्ष, पांच वर्ष से कम उम्र के करीब १८ लाखबच्चे निमोनिया के कारण मरते हैं, और यदि यह वर्तमान दर जारी रही तो २०१० से २०१५ के बीच १३२ लाख अधिक मौतें होंगी. अतः यह बहुत आवश्यक है कि लोगों में निमोनिया के टीकाकरण के बारे में जागरूकता बढ़ायी जाए जिससे कि प्रत्येक माता-पिता अपने बच्चे को समय से निमोनिया से बचाव के टीके लगवा सकें. एक अध्ययन के अनुसार निमोनिया से बचाव के लिए ‘हीमोफीलस इनफ्लुंजी टाइप बी’ (‘हीब’) टीके के व्यापक प्रयोग से करीब चार लाख जानें बचायी जा सकती हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बच्चों को निमोनिया से बचाने के लिए दो प्रकार के टीकों के प्रयोग को बताया है. पहला टीका हीमोफीलस इनफ्लुंजी टाइप बी (हीब) और दूसरा निमोकोकल कंजुगेट वैक्सीन (पीसीवी १३) के नाम से जाना जाता है. हीब टीका व्यापक रूप से लगभग १३६ देशों में उपलब्ध है, जबकि पीसीवी १३ टीका भारत सहित मात्र ३१ देशों में ही उपलब्ध है. हीब टीका, बच्चों को निमोनिया से बचाने का प्रभावकारी टीका है, परन्तु विकासशील देशों में अभी काफी मात्रा में बच्चे इसके टीकाकरण से वंचित हैं. एक शोध के अनुसार २००३ में, विकासशील देशों के ४२% टीकाकरण की तुलना में विकसित देशों में ९२% बच्चों ने हीब टीका प्राप्त किया था.
बहराइच जिला अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. के के वर्मा का कहना है कि "बाजार में निमोनिया का टीका उपलब्ध तो ज़रूर है पर वह बहुत महँगा है इसलिए सभी को लग पाना संभव नहीं हो पाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी निमोनिया से बचाव के लिए इनफ्लूएंज़ा टीका को सुझाया है. जो छः महीने से कम उम्र के बच्चों को दो डोज़ एक-एक महीने के अंतराल पर लगती है."
निमोनिया के टीका के बारे में लोगों में जानकारी का अभाव है जिसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि बहराइच जिला अस्पताल में दिखाने आयी, निमोनिया से पीड़ित ढाई साल के बच्चे की माता का कहना है कि "हमारे बच्चे को टीका तो लगा था पर हमें यह नहीं मालूम कि किस चीज का टीका लगा था". निमोनिया के टीका के बारे में अज्ञानता आम जनता में ही नहीं बल्कि कुछ चिकित्सकों में भी देखी जा सकती है, जिसका अनुमान हम इस बात से भी लगा सकते हैं कि बहराइच जिला अस्पताल के स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. पी. के मिश्र का कहना है कि "हमारे यहाँ तो डी.पी.टी का टीका लगता है. निमोनिया के लिए कोई और टीका नहीं लगता है. हमें इसके बारे में जानकारी नहीं है".
एक ओर जहाँ निमोनिया सम्पूर्ण विश्व में होने वाली शिशु मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है और आम जनमानस में निमोनिया के बारे में साक्षरता का अभाव है, वहीं दूसरी ओर यह बड़े दुर्भाग्य कि बात है कि निमोनिया भारत सरकार द्वारा चलाये जाने वाले स्वास्थ्य कार्यक्रमों का भाग नहीं है. अतः सरकार को निमोनिया के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय स्तर का कार्यक्रम चलाना नित्यांत आवश्यक है. डॉ. के के वर्मा का मानना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन को भी अपनी गाइड लाइन बदलनी चाहिए और नये और सस्ते टीके को अपनाना चाहिए जो निशुल्क वितरित किये जा सकें.
राहुल कुमार द्विवेदी - सी.एन.एस.
(लेखक, ऑनलाइन पोर्टल सी.एन.एस. www.citizen-news.org के लिये लिखते हैं)