"बच्चों को जन्म से 6 माह तक केवल मां का ही दूध पिलाएं क्योंकि यह उनके शरीर को निमोनिया, दस्त, और दिमागी बुखार आदि जैसी बीमारियों से बचाने का कार्य करता है।" यह कहना है राजधानी लखनऊ के चिकित्सकों का। डॉ. राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. अभिषेक वर्मा के अनुसार "माँ के दूध में बहुत सारे ऐसे तत्व होते हैं जिन्हें हम एन्टीबाडीज़ कहते हैं | ये एन्टीबाडीज़ निमोनिया ही नहीं, वरन और बहुत सारी बीमारियों से बच्चों को बचाते हैं। इसलिए जन्म के शुरू के 6 महीने में माँ का दूध देना अति आवश्यक है।"
डॉ. अभिषेक वर्मा ने बताया कि "जब भी कोई गर्भवती स्त्री हमारे अस्पताल में आती है तो उनको प्रसवपूर्व जांच के समय से ही इस बात के लिए तैयार किया जाता है कि वह बच्चे को अपना ही दूध पिलायें, और हमारे यहां जब भी कोई बच्चा पैदा होता है तो आवश्यक रूप से उनको यह बताते है कि माँ का दूध ही सबसे अच्छा होता है | आप अपना ही दूध 6 महीने तक बच्चे को पिलाएं | बच्चे की संवृद्धि के लिए 6 महीने तक माँ का दूध पर्याप्त होता है। उसके ऊपर बीमारी का कोई असर नहीं पड़ता है। ऐसी स्थिति में अधिकांश माँऐं बच्चे को अपना दूध पिलाना पसन्द करती हैं, और जो ऐसा नहीं करती हैं उनके बच्चों में संक्रमण जैसे निमोनिया, दस्त, पोषण की कमी और बहुत सारी समस्याएं ज्यादा आती हैं।" डॉ. वर्मा ने यह भी बताया कि "बोतल के दूध को हम मना करते हैं | अगर कुछ अनुपूरक देना है तो घर का ही देते हैं और दूध मां का ही देते हैं। बोतल के दूध में वो पोषक तत्व नहीं होते हैं जो माँ के दूध में पाये जाते हैं| इसलिए हमारी कोशिश यही रहती है कि मां बच्चे को अपना दूध ही पिलाए।"
एक निजी क्लीनिक की निदेशक एवं स्त्री रोग विशेषज्ञा डॉ. रमा शंखधर के अनुसार "शुरू में बच्चे में प्रतिरोधक क्षमता इतनी नहीं होती है कि वह बीमारियों से लड़ सके। इसलिए जब भी उसे कोई संक्रमण हो जाता है तो वह अपने को उससे नही बचा पाता है | लेकिन जब वह स्तनपान करता है तो माँ के दूध में इतने एंटीबाडीज़ होते हैं जो बीमारियों से लड़ने में बच्चे की सहायता करते हैं, और निमोनिया, टीबी, जुकाम, दिमागी बुखार, दस्त आदि बहुत सारी बीमारियों से बच्चे को बचाते हैं। हम सभी महिलाओं को यह राय देते है कि कम से कम 6 महीने तक बच्चों को तो जरूर स्तनपान कराएँ।"
डॉ. रमा शंखधर आगे बताती हैं कि "कुछ माँओं में दवा देने के बावजूद दूध नहीं आता है | लेकिन उनको हम सुझाव देते है कि जब तक दूध आ रहा है आप बच्चे को दूध पिलाती रहिये और बाकि अनुपूरक भी दें जिससे वह भूखा न रहे। अगर माँ का दूध पर्याप्त मात्रा में हो रहा है तो बच्चे को अलग से कुछ भी देने की जरूरत नहीं है। यदि दूध पर्याप्त मात्रा में नहीं है तो बोतल का दूध दे सकती हैं। जब बच्चा तीन महीने का हो जाए तो उसे दाल का पानी भी छानकर दे सकते हैं।"
डॉ. राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. आर. एस. दूबे भी स्तनपान का समर्थन करते हैं। उनके अनुसार "जब माँ बच्चों को स्तनपान नही कराती है, और दूध चम्मच आदि से देती है तो दूध उसकी साँस की नली में जाने का खतरा रहता है। पर यदि उसका सर उठाकर स्तनपान कराया जाए तो इसकी सम्भावना निश्चित रूप से कम होगी। बच्चों को 6 से 12 माह तक स्तनपान करायें। इससे बाहरी खतरनाक तत्व बच्चे के शरीर के अन्दर नहीं जाएंगे। इसीलिए जो बच्चा हमारे अस्पताल में पैदा होता है तो उसकी माता को हम मार्गदर्शित करते है, और स्तनपान के लिये बताते है।"
वहीँ इसी अस्पताल में जन्म लेने वाली इस्माईलगंज झोपड़पट्टी की एक निमोनिया से पीड़ित बच्ची तुलसी की मां रेखा ने बताया कि बच्ची के जन्म के समय चिकित्सकों ने स्तनपान के लिए कुछ नही बताया | फिर भी मां ने बच्ची को 6 महीने तक अपना दूध पिलाया | इसके बावजूद बच्ची को निमोनिया हो गया। इसी बस्ती में रहने वाली निमोनिया से पीड़ित ज्योति, यास्मीन और फरीद की मांओं ने भी अपने बच्चों को 6 महीने तक केवल अपना ही दूध पिलाने की बात कही।
अपने शिशु को जन्म से 6 माह तक केवल स्तनपान ही कराएं | क्योंकि यह आसानी से बच्चे के पेट में पच जाता है। जिससे बच्चे का पेट खराब होने का खतरा नहीं रहता है। मां के दूध में सारे आवश्यक तत्व मौजूद होने के कारण बच्चे को बाहर से कुछ भी लेने की आवश्यकता नही होती है। मां के दूध में मौजूद तत्व ही उसे बीमारियों से लड़ने की शक्ति प्रदान करते हैं। इसलिए बच्चों के लिये पहले 6 माह तक स्तनपान बहुत ही जरूरी है, क्योंकि यह बच्चों को निमोनिया जैसी बीमारियों से लड़ने में सहायता करता है। इसलिए प्रत्येक मां को चाहिये कि वह अपने नवजात शिशु को 6 माह तक केवल स्तनपान ही कराएं, और निमोनिया जैसी बीमारियों से बच्चों को दूर रखें । साथ ही चिकित्सकों को चाहिए कि वे स्तनपान के बारे में महिलाओं को बताएं और उन्हें बच्चों को 6 माह तक केवल स्तनपान ही कराने की सलाह दें जिससे निमोनिया जैसी बीमारियों पर काबू पाया जा सके ।
नदीम सलमानी - सी.एन.एस.
(लेखक, ऑनलाइन पोर्टल सी.एन.एस. www.citizen-news.org के लिये लिखते हैं)
डॉ. अभिषेक वर्मा ने बताया कि "जब भी कोई गर्भवती स्त्री हमारे अस्पताल में आती है तो उनको प्रसवपूर्व जांच के समय से ही इस बात के लिए तैयार किया जाता है कि वह बच्चे को अपना ही दूध पिलायें, और हमारे यहां जब भी कोई बच्चा पैदा होता है तो आवश्यक रूप से उनको यह बताते है कि माँ का दूध ही सबसे अच्छा होता है | आप अपना ही दूध 6 महीने तक बच्चे को पिलाएं | बच्चे की संवृद्धि के लिए 6 महीने तक माँ का दूध पर्याप्त होता है। उसके ऊपर बीमारी का कोई असर नहीं पड़ता है। ऐसी स्थिति में अधिकांश माँऐं बच्चे को अपना दूध पिलाना पसन्द करती हैं, और जो ऐसा नहीं करती हैं उनके बच्चों में संक्रमण जैसे निमोनिया, दस्त, पोषण की कमी और बहुत सारी समस्याएं ज्यादा आती हैं।" डॉ. वर्मा ने यह भी बताया कि "बोतल के दूध को हम मना करते हैं | अगर कुछ अनुपूरक देना है तो घर का ही देते हैं और दूध मां का ही देते हैं। बोतल के दूध में वो पोषक तत्व नहीं होते हैं जो माँ के दूध में पाये जाते हैं| इसलिए हमारी कोशिश यही रहती है कि मां बच्चे को अपना दूध ही पिलाए।"
एक निजी क्लीनिक की निदेशक एवं स्त्री रोग विशेषज्ञा डॉ. रमा शंखधर के अनुसार "शुरू में बच्चे में प्रतिरोधक क्षमता इतनी नहीं होती है कि वह बीमारियों से लड़ सके। इसलिए जब भी उसे कोई संक्रमण हो जाता है तो वह अपने को उससे नही बचा पाता है | लेकिन जब वह स्तनपान करता है तो माँ के दूध में इतने एंटीबाडीज़ होते हैं जो बीमारियों से लड़ने में बच्चे की सहायता करते हैं, और निमोनिया, टीबी, जुकाम, दिमागी बुखार, दस्त आदि बहुत सारी बीमारियों से बच्चे को बचाते हैं। हम सभी महिलाओं को यह राय देते है कि कम से कम 6 महीने तक बच्चों को तो जरूर स्तनपान कराएँ।"
डॉ. रमा शंखधर आगे बताती हैं कि "कुछ माँओं में दवा देने के बावजूद दूध नहीं आता है | लेकिन उनको हम सुझाव देते है कि जब तक दूध आ रहा है आप बच्चे को दूध पिलाती रहिये और बाकि अनुपूरक भी दें जिससे वह भूखा न रहे। अगर माँ का दूध पर्याप्त मात्रा में हो रहा है तो बच्चे को अलग से कुछ भी देने की जरूरत नहीं है। यदि दूध पर्याप्त मात्रा में नहीं है तो बोतल का दूध दे सकती हैं। जब बच्चा तीन महीने का हो जाए तो उसे दाल का पानी भी छानकर दे सकते हैं।"
डॉ. राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. आर. एस. दूबे भी स्तनपान का समर्थन करते हैं। उनके अनुसार "जब माँ बच्चों को स्तनपान नही कराती है, और दूध चम्मच आदि से देती है तो दूध उसकी साँस की नली में जाने का खतरा रहता है। पर यदि उसका सर उठाकर स्तनपान कराया जाए तो इसकी सम्भावना निश्चित रूप से कम होगी। बच्चों को 6 से 12 माह तक स्तनपान करायें। इससे बाहरी खतरनाक तत्व बच्चे के शरीर के अन्दर नहीं जाएंगे। इसीलिए जो बच्चा हमारे अस्पताल में पैदा होता है तो उसकी माता को हम मार्गदर्शित करते है, और स्तनपान के लिये बताते है।"
वहीँ इसी अस्पताल में जन्म लेने वाली इस्माईलगंज झोपड़पट्टी की एक निमोनिया से पीड़ित बच्ची तुलसी की मां रेखा ने बताया कि बच्ची के जन्म के समय चिकित्सकों ने स्तनपान के लिए कुछ नही बताया | फिर भी मां ने बच्ची को 6 महीने तक अपना दूध पिलाया | इसके बावजूद बच्ची को निमोनिया हो गया। इसी बस्ती में रहने वाली निमोनिया से पीड़ित ज्योति, यास्मीन और फरीद की मांओं ने भी अपने बच्चों को 6 महीने तक केवल अपना ही दूध पिलाने की बात कही।
अपने शिशु को जन्म से 6 माह तक केवल स्तनपान ही कराएं | क्योंकि यह आसानी से बच्चे के पेट में पच जाता है। जिससे बच्चे का पेट खराब होने का खतरा नहीं रहता है। मां के दूध में सारे आवश्यक तत्व मौजूद होने के कारण बच्चे को बाहर से कुछ भी लेने की आवश्यकता नही होती है। मां के दूध में मौजूद तत्व ही उसे बीमारियों से लड़ने की शक्ति प्रदान करते हैं। इसलिए बच्चों के लिये पहले 6 माह तक स्तनपान बहुत ही जरूरी है, क्योंकि यह बच्चों को निमोनिया जैसी बीमारियों से लड़ने में सहायता करता है। इसलिए प्रत्येक मां को चाहिये कि वह अपने नवजात शिशु को 6 माह तक केवल स्तनपान ही कराएं, और निमोनिया जैसी बीमारियों से बच्चों को दूर रखें । साथ ही चिकित्सकों को चाहिए कि वे स्तनपान के बारे में महिलाओं को बताएं और उन्हें बच्चों को 6 माह तक केवल स्तनपान ही कराने की सलाह दें जिससे निमोनिया जैसी बीमारियों पर काबू पाया जा सके ।
नदीम सलमानी - सी.एन.एस.
(लेखक, ऑनलाइन पोर्टल सी.एन.एस. www.citizen-news.org के लिये लिखते हैं)