“निमोनिया से बचाव के लिए उनके बैक्टीरिया के हिसाब से बाजार में टीके उपलब्ध हैं। सरकारी अस्पतालों में अभी इनकी उपलब्धता नही है। ये टीके विश्व स्वास्थ्य संगठन मानक के अनुरूप ही तैयार किये गए हैं।’’ यह कहना है डा. राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय के शिशु रोग विशेषज्ञ डा. अभिषेक वर्मा का।
निमोनिया फेफड़ों में असाधारण तरीके से सूजन आने के कारण होता है। इसमें फेफड़ों में पानी भर जाता है। आमतौर पर निमोनिया होने के कई कारण हो सकते हैं जैसे बैक्टिरिया, वाइरस, फफूंद या फिर फेफड़ों में चोट आदि लगना । वैसे तो यह बीमारी हर आयु वर्ग के लोगों को हो सकती है, लेकिन यह सबसे अधिक पांच साल तक के बच्चों में पायी जाती है।
बच्चों में निमोनिया बदलते मौसम के कारण भी हो सकती है, खास कर सर्दी के मौसम में। तो यदि बच्चे को पहले से ही टीका लगवा दिया जाए, तो काफी सीमा तक निमोनिया होने का खतरा समाप्त हो सकता है। बाजार में उपलब्ध यह टीका लगवाने पर बच्चे को खतरा भी नही रहता है। क्योंकि यह टीका विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्युएचओ) के मानक के अनुरूप ही तैयार किया गया है।
डा. अभिषेक वर्मा के अनुसार ‘‘निमोनिया के टीके अलग-अलग बैक्टीरिया के हिसाब से बनाए गये हैं। हीमोफलेक्सिन, फलूएंजा बी निमोनिया के लिए और वायरस के लिए भी बहुत सारे टीके विकसित किये गये है, जैसे रेसपाइरेट सेन्सनल वाइरस के लिये भी टीका है, और पैराइन्फलूएंजा, इन्फ़्लुएन्ज़ा, इन सबके लिए टीके हैं। ये बैक्टीरिया और वायरस कहीं न कहीं से सांस की नली को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार निमोनिया के टीके तो बहुत हैं, और डब्ल्यूएचओ ने हर टीके के लिए मानक भी बनाया है। मानक के अनुरूप ही टीके बनाये जाते हैं, और इसके बाद बाज़ार में आते है। इनका मानक, मरीज़ की आयु के हिसाब से होता है, और उसी प्रकार से लगाये भी जाते हैं।’’
डा. वर्मा ने यह भी बताया कि ‘‘ इन टीकों की सरकारी अस्पताल में उपलब्धता नहीं है। यह बाहर से लेकर ही लगवाया जाता है। हमारे यहाँ डीपीटी, पोलियो, बीसीजी, हैपेटाइटिस बी आदि कुल सात प्रकार के टीके लगते हैं। इसमें निमोनिया का टीका शामिल नही है। इसके अतिरिक्त अगर आपको कोई टीका लगवाना है तो आपको अपने निजी स्तर पर बाजार से खरीद कर लगवाना होगा।’’
इन्दिरा नगर में रमा क्लीनिक की निदेशक एंव स्त्री रोग विशेषज्ञा डा. रमा शंखधर ने बताया कि ‘‘निमोनिया के टीके के लिये डब्ल्यूएचओ ने एक मानक निर्धारित किया है, और निमोनिया के लिये टीका आता भी है । जोकि ‘हीब’ नाम से आता है। यह टीका बच्चे के जन्म के 6 हफ्ते के बाद से लगता है। और 1-1 महीने के अन्तराल पर तीन खुराक में लगाया जाता है और यह बच्चों को निमोनिया से बचाता है। लेकिन यह 100 प्रतिशत सुरक्षित उपाय नहीं है। अगर संक्रमण हो गया तो बच्चे को निमोनिया हो सकता है। लेकिन उतना ज्यादा नहीं होगा, कुछ कम होगा जो कि अच्छे एन्टीबायोटिक्स से जल्दी ठीक किया जा सकता है।’’
डा. राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डा. आर. एस. दूबे सरकारी अस्पतालों में निमोनिया के टीके की उपलब्धता के बारे में बतातें हैं कि ‘‘निमोनिया के टीके के लिए डब्ल्यूएचओ के द्वारा एक मानक है जिसे हम ध्यान में रखकर ही इसका प्रयोग करते है। सरकारी अस्पतालों में इसकी उपलब्धता कम है। लेकिन यह टीके बाहर से भी मिल जाते हैं।"
आमतौर पर निमोनिया से ग्रसित बच्चे को खांसी, जुकाम, बुखार, सांस लेने में दिक्कत, पसलियों का चलना और खांसी में कफ आना आदि लक्षण होते हैं। इन्ही लक्षणों को ध्यान में रखकर निमोनिया का इलाज किया जाता है। निमोनिया के इलाज में एंटीबायोटिक्स दवाओं का प्रयोग किया जाता है।
पांच साल तक के बच्चों में निमोनिया का अधिक होने का एक कारण सरकारी अस्पतालों में टीके का उपलब्ध न होना भी है। यही वजह है कि सरकारी अस्पतालों में जन्म लेने वाली तुलसी, यास्मीन, ज्योति और फरीद टीके के अभाव में निमोनिया जैसी बीमारी से जूझ रहें हैं | इनके माता पिता को यह भी नही पता है कि निमोनिया के लिये बाजार में टीका भी उपलब्ध है।
वैसे तो निमोनिया का इलाज संभव है लेकिन यदि बच्चों का शुरू में ही टीकाकरण करा दिया जाये तो निमोनिया जैसी बीमारी से बच्चों को बचाया जा सकता है, और इन टीकों की उपलब्धता यदि सरकारी, अर्धसरकारी और गैर सरकारी सभी प्रकार के अस्पतालों में कर दी जाय, तो भारत में प्रत्येक दिन सैकड़ों बच्चों को निमोनिया की वजह से अपनी जान न गँवानी पड़े। और यदि टीका लगने के बाद निमोनिया होता भी है तो शरीर की अवरोधक क्षमता इतनी होगी कि चिकित्सकों द्वारा एंटीबायोटिक्स देने पर बच्चा जल्दी ठीक हो जाएगा।
नदीम सलमानी - सी.एन.एस.
(लेखक, ऑनलाइन पोर्टल सी.एन.एस. www.citizen-news.org के लिये लिखते हैं)
निमोनिया फेफड़ों में असाधारण तरीके से सूजन आने के कारण होता है। इसमें फेफड़ों में पानी भर जाता है। आमतौर पर निमोनिया होने के कई कारण हो सकते हैं जैसे बैक्टिरिया, वाइरस, फफूंद या फिर फेफड़ों में चोट आदि लगना । वैसे तो यह बीमारी हर आयु वर्ग के लोगों को हो सकती है, लेकिन यह सबसे अधिक पांच साल तक के बच्चों में पायी जाती है।
बच्चों में निमोनिया बदलते मौसम के कारण भी हो सकती है, खास कर सर्दी के मौसम में। तो यदि बच्चे को पहले से ही टीका लगवा दिया जाए, तो काफी सीमा तक निमोनिया होने का खतरा समाप्त हो सकता है। बाजार में उपलब्ध यह टीका लगवाने पर बच्चे को खतरा भी नही रहता है। क्योंकि यह टीका विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्युएचओ) के मानक के अनुरूप ही तैयार किया गया है।
डा. अभिषेक वर्मा के अनुसार ‘‘निमोनिया के टीके अलग-अलग बैक्टीरिया के हिसाब से बनाए गये हैं। हीमोफलेक्सिन, फलूएंजा बी निमोनिया के लिए और वायरस के लिए भी बहुत सारे टीके विकसित किये गये है, जैसे रेसपाइरेट सेन्सनल वाइरस के लिये भी टीका है, और पैराइन्फलूएंजा, इन्फ़्लुएन्ज़ा, इन सबके लिए टीके हैं। ये बैक्टीरिया और वायरस कहीं न कहीं से सांस की नली को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार निमोनिया के टीके तो बहुत हैं, और डब्ल्यूएचओ ने हर टीके के लिए मानक भी बनाया है। मानक के अनुरूप ही टीके बनाये जाते हैं, और इसके बाद बाज़ार में आते है। इनका मानक, मरीज़ की आयु के हिसाब से होता है, और उसी प्रकार से लगाये भी जाते हैं।’’
डा. वर्मा ने यह भी बताया कि ‘‘ इन टीकों की सरकारी अस्पताल में उपलब्धता नहीं है। यह बाहर से लेकर ही लगवाया जाता है। हमारे यहाँ डीपीटी, पोलियो, बीसीजी, हैपेटाइटिस बी आदि कुल सात प्रकार के टीके लगते हैं। इसमें निमोनिया का टीका शामिल नही है। इसके अतिरिक्त अगर आपको कोई टीका लगवाना है तो आपको अपने निजी स्तर पर बाजार से खरीद कर लगवाना होगा।’’
इन्दिरा नगर में रमा क्लीनिक की निदेशक एंव स्त्री रोग विशेषज्ञा डा. रमा शंखधर ने बताया कि ‘‘निमोनिया के टीके के लिये डब्ल्यूएचओ ने एक मानक निर्धारित किया है, और निमोनिया के लिये टीका आता भी है । जोकि ‘हीब’ नाम से आता है। यह टीका बच्चे के जन्म के 6 हफ्ते के बाद से लगता है। और 1-1 महीने के अन्तराल पर तीन खुराक में लगाया जाता है और यह बच्चों को निमोनिया से बचाता है। लेकिन यह 100 प्रतिशत सुरक्षित उपाय नहीं है। अगर संक्रमण हो गया तो बच्चे को निमोनिया हो सकता है। लेकिन उतना ज्यादा नहीं होगा, कुछ कम होगा जो कि अच्छे एन्टीबायोटिक्स से जल्दी ठीक किया जा सकता है।’’
डा. राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डा. आर. एस. दूबे सरकारी अस्पतालों में निमोनिया के टीके की उपलब्धता के बारे में बतातें हैं कि ‘‘निमोनिया के टीके के लिए डब्ल्यूएचओ के द्वारा एक मानक है जिसे हम ध्यान में रखकर ही इसका प्रयोग करते है। सरकारी अस्पतालों में इसकी उपलब्धता कम है। लेकिन यह टीके बाहर से भी मिल जाते हैं।"
आमतौर पर निमोनिया से ग्रसित बच्चे को खांसी, जुकाम, बुखार, सांस लेने में दिक्कत, पसलियों का चलना और खांसी में कफ आना आदि लक्षण होते हैं। इन्ही लक्षणों को ध्यान में रखकर निमोनिया का इलाज किया जाता है। निमोनिया के इलाज में एंटीबायोटिक्स दवाओं का प्रयोग किया जाता है।
पांच साल तक के बच्चों में निमोनिया का अधिक होने का एक कारण सरकारी अस्पतालों में टीके का उपलब्ध न होना भी है। यही वजह है कि सरकारी अस्पतालों में जन्म लेने वाली तुलसी, यास्मीन, ज्योति और फरीद टीके के अभाव में निमोनिया जैसी बीमारी से जूझ रहें हैं | इनके माता पिता को यह भी नही पता है कि निमोनिया के लिये बाजार में टीका भी उपलब्ध है।
वैसे तो निमोनिया का इलाज संभव है लेकिन यदि बच्चों का शुरू में ही टीकाकरण करा दिया जाये तो निमोनिया जैसी बीमारी से बच्चों को बचाया जा सकता है, और इन टीकों की उपलब्धता यदि सरकारी, अर्धसरकारी और गैर सरकारी सभी प्रकार के अस्पतालों में कर दी जाय, तो भारत में प्रत्येक दिन सैकड़ों बच्चों को निमोनिया की वजह से अपनी जान न गँवानी पड़े। और यदि टीका लगने के बाद निमोनिया होता भी है तो शरीर की अवरोधक क्षमता इतनी होगी कि चिकित्सकों द्वारा एंटीबायोटिक्स देने पर बच्चा जल्दी ठीक हो जाएगा।
नदीम सलमानी - सी.एन.एस.
(लेखक, ऑनलाइन पोर्टल सी.एन.एस. www.citizen-news.org के लिये लिखते हैं)