बच्चों में निमोनिया जनती है अस्वच्छता और परोक्ष धूम्रपान

घर के भीतर विशेष तौर पर साफ़-सफाई रखनी चाहिए और अंगीठी या धूम्रपान के धुएं से अपने बच्चों को बचाना चाहिए. शोध के अनुसार इस धुएं से न केवल बच्चों के स्वास्थ्य पर अवांछनीय कुप्रभाव पड़ता है बल्कि उनमें निमोनिया होने का खतरा बढ़ भी जाता है.

गोरखपुर के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ के.एन. द्विवेदी का कहना है कि: "निमोनिया नियंत्रण के लिए स्वच्छता तो बहुत आवश्यक है। अपने देश में परम्परा है बच्चों को काजल लगाने की, तेल मालिश करने की. इन सब चीजों से बच्चो को बचाना चाहिए। बच्चा स्वस्थ तभी रहेगा जब वह स्वच्छ रहेगा। दोनों एक दूसरे के पर्यायवाची हैं।"

गोरखपुर की एक बस्ती में रहने वाले प्रदीप श्रीवास्तव बताते हैं कि: "जिस झोपड़-पट्टी में मैं रहता हूँ वहाँ ७-१० साल की उम्र से ही बच्चे धूम्रपान कर रहे हैं. बच्चे को परोक्ष रूप से धूम्रपान से बचाना मुश्किल है क्योंकि घर इतने छोटे होते हैं और आस पास भी लोग परोक्ष धूम्रपान के नुक्सान से अनभिज्ञ हैं. मुझे भी आज ही यह जानकारी हुई कि धुएं से बच्चे को निमोनिया हो सकता है."

नवजात शिशुओं की दो और माताओं से पूछने पर पता चला कि उन्हें भी परोक्ष धूम्रपान के खतरों के बारे में नहीं पता था. यह भी नहीं पता था कि परोक्ष धूम्रपान से बच्चों को निमोनिया हो सकता है. इनमें से एक माता तो स्वयं सुरती तम्बाकू खाती हैं. श्रीवास्तव साहब कहते हैं कि अधिकाँश लोग बीड़ी पीते हैं, या सुरती तम्बाकू  खाते हैं. सिगरेट पीने वालों की संख्या कम है.

गोरखपुर की एक बस्ती में रहने वाली इन्द्रावती बताती हैं कि उनके नाती को निमोनिया हुआ था. उन्होंने बताया कि: "हमारे नाती को निमोनिया हुआ था। बच्चे के गले में परेशानी थी, श्वास फूल रही थी, पेट में भी दर्द था, बुखार भी था। चिकित्सकों ने बताया कि निमोनिया ठण्ड के वजह से हुई थी. इस बच्चे को मां का दूध 5-6 महीने तक पिलाया गया था और अब उसे गाय का दूध पिला रहे हैं. घर में कोई बीड़ी या सिगरेट तो नहीं पीता है, पर खाना लकड़ी जला कर ही बनता है. तम्बाकू 'सुरती' खाई जाती है."

विशेषज्ञों के अनुसार लकड़ी आदि जला कर चूल्हे पर खाना बनाने से जो धुआं निकलता है उससे बच्चों को बचाना चाहिए. सिगरेट बीडी के धुएं से भी सभी को बचना चाहिए क्योंकि इससे स्वास्थ्य पर अनेक कुप्रभाव पड़ते हैं जिनमें से निमोनिया एक है. तम्बाकू सेवन तो हर रूप में खतरनाक और जान लेवा नशा है.

भारत में १० करोड़ से भी अधिक बीड़ी का सेवन करने वाले लोग हैं. जितने लोग बीड़ी पीने की वजह से तम्बाकू-जनित मृत्यु को प्राप्त होते हैं, उतने अन्य सभी प्रकार के तम्बाकू उत्पादों द्वारा जनित बीमारियों से भी नही मरते. विश्व स्वास्थ्य संगठन अंतर्राष्ट्रीय पुरुस्कार विजेता प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने बताया कि ये तथ्य बीड़ी मोनोग्राफ नामक रपट में सामने आए हैं जो स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने जारी की थी.

"तम्बाकू हर रूप में घातक है. वर्तमान में बीड़ी पीने की दर कई प्रदेशों में अधिक है, जैसे  मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड और सिक्किम में १०.६ - १४.२ प्रतिशत, अरुणाचल प्रदेश, असाम, बिहार, चंडीगढ़ और मेघालय में ४.६ - ९.२ प्रतिशत, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, त्रिपुरा, उड़ीसा, उत्तराखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश में १.1 - २.९ प्रतिशत, और गोवा, तमिल नाडू, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, कर्नाटक, गुजरात, हिमाचल प्रदेश और पंजाब में यह दर १० प्रतिशत है. भारत में मिजोरम में बीड़ी सेवन की दर सबसे अधिक है और पंजाब में सबसे कम." बताया प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने.

"बीड़ी में तम्बाकू की मात्रा सिगरेट की तुलना में कम होती है पर निकोटीन, टार और अन्य हानिकारक पदार्थों की मात्रा काफी अधिक होती है. इनमें से कई ऐसे पदार्थ हैं जिनसे कैंसर होने की सम्भावना बढ़ जाती है" कहा प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने जो अखिल भारतीय शल्य-चिकित्सकों (सर्जनों) के संघ के नव-निर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.

बीड़ी पीने से स्वास्थ्य पर जान-लेवा कु-प्रभावों में मुख के कैंसर, खाने की नली के कैंसर आदि प्रमुख हैं, जो तम्बाकू-जनित कैंसर के कुल अनुपात का ७५ प्रतिशत हैं! इस रपट में यह भी प्रमाणित हुआ है कि बीड़ी पीने और तपेदिक या टीबी के मध्य सीधा सम्बन्ध है.

बच्चों को विशेषकर तम्बाकू के धुएं से और चूल्हे से निकलने वाले धुएं से बचाना चाहिए, और जहाँ तक मुमकिन हो उन्हें स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण में ही रखना चाहिए.

जीतेन्द्र द्विवेदी - सी.एन.एस.