निमोनिया जैसी बीमारी से हर वर्ष लाखों बच्चे काल ग्रसित होते हैं जबकि इनको उपलब्ध टीकों द्वारा रोका जा सकता है। निमोनिया 5 वर्ष तक की आयु के बच्चों की मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है, जिसके कारण लगभग 16 लाख बच्चों की प्रतिवर्ष मृत्यु हो जाती है। यद्यपि निमोनिया 5 वर्ष से कम आयु के २० प्रतिशत बच्चों की मृत्यु का कारण है, पर दुर्भाग्य से पूरे विश्व में स्वास्थ्य के कुल खर्च का मात्र 5 प्रतिशत ही निमोनिया के लिये व्यय किया जाता है।दो प्रमुख घातक प्रकार के निमोनिया -- 'स्ट्रैप्टोकोकस निमोनी और हीमोफीलस इन्फ्लूएंजी टाइप बी '-- की रोकथाम के लिये टीके उपलब्ध हैं, तथा कई देशों में उपयोग में लाये जा रहे हैं, लेकिन तृतीय विश्व के भारत जैसे देश में (जो कि पूरे विश्व के बचपन में होने वाला निमोनिया के 40 प्रतिशत मामले के लिये जिम्मेदार हैं), उपर्यक्त टीकों का उपयोग बहुत कम हो रहा है। यदि ये टीके (वैक्सीन) उन्नतशील देशों में उपलब्ध हों और उपयोग में लाए जाएं तो एक अनुमान के अनुसार 5 वर्ष से कम आयु केलगभग 10 लाख बच्चों की जान प्रत्येक वर्ष बचाई जा सकती है।
टीकाकरण बच्चों को निमोनिया से बचाता है, जो दुर्बलता पैदा करने वाली बीमारी है जिसके चलते श्वास सम्बन्धी अनेक जटिल रोग तथा घातक परिणाम हो सकते हैं। सभी बच्चों को इससे बचने का अधिकार है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का नवजात शिशुओं का टीकाकरण कार्यक्रम शिशुओं की प्रथम 6 माह तक की अवधि तक हिब तथा निमोकोकल कन्जुगेट वैक्सीन (पी सी वी) की तीन खुराक दिये जाने की सिफारिश करता है। इस समय पीसीवी कुछ ही देशों में उपलब्ध है जबकि हिब द्वारा टीकाकरण अनेक देशों के टीकाकरण कार्यक्रम का हिस्सा है।
निमोकोकल वैक्सीनस एक्सीलेरेट डेवलपमेंट एण्ड इंट्रोडक्शन प्लान, अनेक देशों दाताओं, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और उद्द्योगों की मिली जुली साझेदारी द्वारा अल्प आय वर्ग के देशों में निमोकोकल टीकाकरण को बढ़ावा देने के लिए ‘‘ग्लोबल एलांस फार वैक्सीन एण्ड इमूनाइजेशन (जीएवीआई)’’ द्वारा आर्थिक सहायता प्राप्त एक परियोजना है। इसको अभी कार्यान्वित किये जाने पर 2030 तक अनुमानित 54 लाख बच्चों के निधन को रोका जा सकता है।
हीमोफिलस इन्फ्लूंजी टाइप बी वैक्सीन खतरनाक निमोनिया के बचाव के लिये खोजी गई एक मिश्रित वैक्सीन है। यूनाइटेड स्टेट्स में 1980 से 1990 तक हिब वैक्सीन का नियमित इस्तेमाल किये जाने से, आक्रमक हिब बीमारी के मामलों की संख्या 40-100 प्रति 1,00,000 बच्चों से घटकर 1.3 प्रति 1,00,000 बच्चों तक हो गई। जीएवीआई द्वारा विकासशील देशों के लिए हिब टीके का कम दामों में दिये जाने का प्रस्ताव है। सीडीसी तथा डब्ल्यूएचओ द्वारा 6 सप्ताह की आयु से प्रारम्भ करते हुए, सभी शिशुओं का पोलिसचाराइड प्रोटीन कन्जूगेट द्वारा टीकाकरण करने की सिफारिश की गयी है।
डा. एस. के. सेहता, बाल रोग व नवजात रोग विशेषज्ञ उम्मीद करते हैं कि ‘‘यद्यपि ये टीके अभी काफी महंगे हैं, लेकिन भारत सरकार डब्ल्यूएचओ के साथ मिलकर हमारे जैसे विकासशील देशों में हिब वैक्सीन को उपलब्ध करवाने का प्रयास कर रही है। जो भी हो आम लोगों में इसकी उपलब्धता बहुत कम है। दूसरे टीके जैसे खसरा वैक्सीन, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिशों का एक अंग है, भी काफी आवश्यक है क्योंकि खसरा, निमोनिया होने की सम्भावना को बढ़ाती है।"
इसी प्रकार, बाल रोग व स्त्री रोग विशेषज्ञ, डा. नीलम सिंह जो "वात्सल्य रिसोर्स सेंटर आन हेल्थ" की मुख्य कार्यकत्री भी हैं, का मत है, ‘‘तपेदिक (क्षय रोग) को रोकने के लिये प्रयोग में लायी जाने वाला बीसीजी टीका भी बहुत आवश्यक है। क्षय रोग के कारण बच्चों में बहुत से श्वसन सम्बंधी रोग और संक्रमण होते हैं। दूसरा टीका, डिपथीरिया और टिटनेस के लिये डीपीटी है, जिसमें प्रथम दो संक्रमण ऊपरी श्वसन नली से सम्बन्धित है। तीसरा नौ माह पर दिये जाने वाला, खसरा रोग का टीका भी आवश्यक है। यद्यपि यह टीका सीधे तौर पर निमोनिया को नही रोकता है किन्तु परोक्ष रूप से बचाव होता है। क्योंकि खसरा से पीडित बच्चा निमोनिया का संक्रमण पाने के नजदीक होता है। इसलिए पैदा होने से 12 वर्ष तक इस टीकाकरण कार्यक्रम का पालन करना चाहिये। हिब वैक्सीन का प्रयोग अभी हाल ही से प्रारम्भ किया गया है। यह हमारे देश में उपलब्ध है, परन्तु महंगी होने के कारण, शहर के लोग ही इसे ले सकते हैं और अपने बच्चों का टीकाकरण करवा सकते हैं।"
उक्त वर्णित टीके साधारण रोगों की तीव्र पकड़ द्वारा होने वाले घातक निमोनिया को रोकते हैं। हालांकि बच्चे का टीकाकरण निमोनिया से शत प्रतिशत बचाव नही करता है। अभिभावकों और देखभाल करने वालों को इस वास्तविकता को जानना आवश्यक है। टीकाकरण पूर्णरूपेण सफल नही होता है। अच्छे पोषण के साथ उचित स्वास्थ्य भी निमोनिया के बचाव कार्यक्रम का एक आवश्यक अंग है। इस संदर्भ में, बाल रोग एवं बाल हृदय रोग विशेषज्ञ डा. एस.एन. रस्तोगी जिनका लखनऊ में अपना दवाखाना है, भी बताते हैं, ‘‘ स्ट्रैप्टोकोकस निमोनी या हीमोफिलस इन्फ्लूएन्जी अथवा माइकोप्लाज्मा जैसे अनेकों रोग कारकों द्वारा निमोनिया हो सकता है। अभिभावक सोचते हैं कि यदि उन्होंने एक बार बच्चे का टीकाकरण करवा दिया है तो वह कभी भी निमोनिया से प्रभावित नही होगा/होगी। परन्तु निमोनिया सेकेंडरी इन्फेक्शन द्वारा भी हो सकता है। ’’
लोगों में जागरूकता के अभाव तथा इन जीवन रक्षक टीकों के उच्च मूल्य के कारण, भारत में अनेकों बच्चे इसका लाभ नही उठा पाते हैं। अक्टूबर, 2011 के प्रथम सप्ताह में ‘छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय के बाल रोग विभाग के आई.सी.यू. में अपने जीवन से लड़ने वाले, तीन वर्ष के बच्चे अथर्व से मिलकर मैने देखा कि वह उनमें से एक बच्चा है जो हिब वैक्सीन का लाभ नही उठा सका था। उसकी मां श्रीमती रेनू बाला शर्मा ने बताया, "हमने सुना था कि निमोनिया बच्चों में होने वाली साधारण बीमारी है और बच्चे कभी-कभी इससे संक्रमित हो जाते हैं, लेकिन हमने यह कभी नही सोचा था कि यह इतनी गम्भीर होगी। हमने बच्चे का प्रत्येक रोग के प्रति टीकाकरण करवाया था। टीकाकरण सम्बन्धी कार्ड के हिसाब से सारे टीके लगवाये। हमें यह नहीं मालूम था कि इसमें निमोनिया का टीका नहीं था। यदि हमें ज्ञात होता इसका भी टीकाकरण करवा लेते। धन, बच्चे से अधिक मूल्यवान नही है। इसके उपचार हेतु हमने लाखों रूपये व्यय कर दिये है। हम एक नर्सिंगहोम से दूसरे में भागते रहे, जब तक इस चिकित्सालय में नही पहुंचे। अब हमें इसके ठीक होने की कुछ उम्मीद है।’’
भारत और कुछ अन्य विकासशील देशों में अभी भी निमोनिया का टीका, सरकारी टीकाकरण कार्यक्रम का हिस्सा नही है। वास्तव में इन्हीं देशों में निमोनिया होने की सम्भावना भी सबसे अधिक है। भारतीय समाज की सुशिक्षित माताएं ही सुनिश्चित करती है कि प्रत्येक घातक बीमारी के प्रति उनके बच्चे का टीकाकरण किया गया है। लखनऊ के प्राइवेट सिटी हास्पिटल में एक अक्टूबर को अपने दूसरे बच्चे को जन्म देने वाली, श्रीमती अल्पना सिंह कहती हैं कि ‘‘मैने सुना है कि निमोनिया सबसे खतरनाक बीमारियों में से एक है। मैं टीके का नाम नही बता सकती, लेकिन मेरे डाक्टर ने मुझे इसके बारे में बताया और मैने अपने पहले बच्चे को, जो अब तीन वर्ष का है, यह टीका लगवाया। किन्तु यह टीका सरकार द्वारा प्रस्तावित टीकाकरण की सूची में नहीं दर्शाया गया है।’’
टीकाकरण क्यों आवश्यक है, संस्तुत टीकाकरण कार्यक्रम तथा बच्चों को टीका कहाँ लगवाया जा सकता है, इस सम्बन्ध में अभिभावकों तथा देखरेख करने वालों को जागरूक करने के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन सक्रिय भूमिका निभाता है। निमोनिया के टीकों के विकास के लिए अन्वेषण व विकास के प्रयासों की अतिआवश्यकता है। अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रयासों और वित्तीय सहायता से विकासशील देशों में यह टीके उचित मूल्यों पर अविलम्ब उपलब्ध करवाने चाहिये।
सौम्या अरोरा - सी.एन.एस.
(अनुवाद: सुश्री माया जोशी, लखनऊ)