स्तनपान से निमोनिया से बचाव मुमकिन

5 वर्ष की आयु से कम बच्चों के लिये विश्व भर में निमोनिया नामक रोग प्राण घातक हो सकता  है। प्रतिवर्ष लगभग 1.6 लाख बच्चों की मृत्यु इस रोग से होती है। यह आंकड़ा विश्वभर में होने वाली शिशु-मृत्यु का लगभग १/५  भाग है। अन्य घातक श्वास संबंधी संक्रमण के समान निमोनिया संसार के उन बच्चों को, जो गरीब व कुपोषित, अल्पपोषित है, अपना घातक शिकार बनाता है। विकसित देशों की अपेक्षा विकासशील देशों के बच्चे 10 गुना अधिक संख्या में इस रोग के शिकार होते हैं। गरीब देशों में निमोनिया रोग 100,000 बच्चों में से 7,320 बच्चों के लिये प्राण लेवा पाया गया है। दक्षिणी एशिया एवं सब-सहारा अफ्रीका क्षेत्र में 21 प्रतिशत बच्चों की मृत्यु निमोनिया से होती है। 'घातक श्वसन संबंधी संक्रमण 2010 एटलस' के अनुसार पोषक तत्वों की कमी के कारण विश्व भर में 44 प्रतिशत बाल - मृत्यु निमोनिया से होती है।

भारत में बाल्यावस्था निमोनिया का रोग बहुत अधिक संख्या में पाया जाता है। शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता के लिये एक बार बीमारी होने पर उसके दुष्प्रभाव को कम करने के लिये उचित पौष्टिक आहार बच्चों के लिये अति आवश्यक है। सभी डॉक्टर इस बात से सहमत हैं कि कुपोषण बच्चों की रोगों से लड़ने की क्षमताओं को कम करता है, जिसके कारण बच्चे अनेक रोगों, जिनमें से निमोनिया भी एक है, के शिकार बन जाते हैं।

यद्यपि अल्पपोषण का एक कारण निर्धनता भी है, परन्तु प्राय:  सस्ता परन्तु पोषक भोज्य पदार्थों के विषय की अनभिज्ञता ही गरीब परिवारों को अपने बच्चों को उचित आहार मिलने से वंचित रखता है। यह बात विशेषकर सत्य है कि शहरों में रहने वाले परिवारों के बच्चों का दैनिक भोजन 'प्रोसेस्ड' एवं 'फास्ट फूड' ही होता जाता है। शहर की झोपड़पट्टी में रहने वाले लोग भी साधारण एवं  पौष्टिक खाना जैसे की दाल-रोटी के बजाय चिकनाई एवं चर्बीयुक्त खाना अधिक पसंद करते हैं।

लखनऊ के प्रसिद्ध अस्पताल संजय गाँधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के गैस्ट्रोएन्टरालजी विभाग के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष डॉ. गौड़दास चौधरी भी इस बात से सहमत हैं कि अल्पपोषित बच्चे आसानी से निमोनिया रोग से पीड़ित हो जाते हैं। डॉ. चौधरी बच्चों के स्वास्थ्य के बहुत बड़े समर्थक हैं। उनका कहना है कि, "निमोनिया जैसी अनेक बीमारियों का एक महत्वपूर्ण कारण है अव्यवस्थित जीवन शैली। गरीब परिवारों के भूक से पीड़ित बच्चे एवं धनी परिवारों के स्थूल काय बच्चें--दोनों ही कुपोषित होते है। अत: उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। अत: इस बात को सुनिश्चित करना अति आवश्यक है कि बच्चों का शरीर भार आदर्श  भार होना चाहिये, तथा उन्हें खेलों में पर्याप्त रूचि रखनी चाहिये। उन्हें शारीरिक व्यायाम पर्याप्त मात्रा में करना चाहियें ताकि उनके फेफड़े, और सम्पूर्ण शरीर स्वस्थ रहें। जिससे वे निमोनिया तथा अन्य श्वास संबंधी रोगों से न पीड़ित हों।’’

नेलसन अस्पताल के बाल-रोग विशेषज्ञ डॉ. दिनेश पांडे ने बताया कि कुछ वर्षों पहले गरीब परिवारों की अपेक्षा सम्पन्न परिवारों के बच्चों को निमोनिया रोग कम होता था। परन्तु प्रोटीन तत्व संबंधी कुपोषित आहार,  अत्यधिक भीड़-भाड़, घर के भीतर व बाहर का दूषित वातावरण एवं जीवन शैली में अनेकों परिवर्तन के कारण समाज के उच्च वर्गीय परिवारों में भी इस रोग का प्रभाव देखा जाता है, तथा निमोनिया एवं अतिसार रोगों से पीड़ित बच्चों की संख्या बढ़ रही है। उन्होंने दु:ख प्रकट करते हुये कहा कि फास्ट-फूड (जो कदापि पौष्टिक नहीं होता है) की बढ़ती हुई लोकप्रियता के कारण, बच्चें कुपोषित रहते हैं तथा उनकी रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है। अत: निमोनिया रोग केवल निर्धन परिवारों तक ही सीमित नहीं रह गया है। यद्यपि विकासशील देशों, जैसे भारत, में निमोनिया का रोग अल्प आय वाले परिवारों में अधिक पाया जाता है।

डॉ. दिनेश पांडे के विचार से "अच्छा पौष्टिक आहार मंहगा नहीं होता है। कुछ गाँवों में बच्चों को अच्छा पौष्टिक भोजन जैसे नदी से निकाली गयी ताजी मछली एवं शुद्ध गाय या भैंस का दूध आसानी से प्राप्त हो जाता है। गाँवों के बच्चों को हरी सब्जियाँ एवं दाल सस्ते व आसानी से मिल जाते हैं। शहरों में रहने वाले परिवार आहार पर बहुत अधिक धन व्यय करते हैं किन्तु वे आहार की पौष्टिकता को अधिक महत्व नहीं देते हैं। मैं इस बात को अधिक महत्व देता हूँ कि आहार की पौष्टिकता, मात्रा एवं गुण के अनुसार संतुलित होनी चाहिये। आहार बच्चों की आवश्यकता अनुसार होना चाहिये। व्यवसायिक आधार पर प्राप्त भोज्य पदार्थ जैसे ‘फास्ट फूड’ जिनका लुभावने विज्ञापनों के ज़रिये से अत्याधिक प्रचार किया जाता है, नहीं खाने चाहिये।  घर का सादा बना हुआ आहार ही बच्चों के लिये लाभदायक होता है।"

नेलसन अस्पताल के निदेशक डॉ. अजय मिश्रा इस बात पर विशेष जोर देते हैं कि सर्वसाधारण जनता को इस बात के लिये शिक्षित करना आवश्यक है कि अच्छा आहार निमोनिया एवं अन्य बीमारियों से बच्चों की रक्षा करता है। उनके विचार से, "माँ-बाप को अपने बच्चों की कैलोरी की आवश्यकताएँ जाननी चाहिये। उन्हें अपने बच्चों के लिये एक संतुलित भोजन सुरक्षित करना चाहिये जिसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, लौह व कैल्शियम उचित मात्रा में पाये जाते हैं। मैं रेशेदार भोज्य पदार्थ को-- जैसे हरी सब्जियाँ, दालें, साधारण रोटी या चपाती जो सस्ती व स्वास्थ्य के लिये गुणकारी है -- बच्चों को दिये जाने का आग्रह करूंगा। माँ-बाप को चाहिये कि वे अपने बच्चों को ‘फास्ट-फूड’ जैसे पीजा, बर्गरस, पेस्ट्रीज और कोल्ड-ड्रिंक्स लेने के लिये उत्साहित न करें क्योंकि ये सब पदार्थ बहुत हानिकारक होते हैं तथा कभी कभी ही लिये जाने चाहिये। मैं फलों को अधिक महत्व दूँगा, उनके रसों को नहीं, क्योंकि फलों  में रेशों के साथ-साथ खनिज तत्व भी पाये जाते हैं।"

गर्भाशय जीवन की प्रारम्भिक अवस्था से, वाल्यवस्था तक दिए गए अपर्याप्त पौष्टिक आहार, शिशुओं की सदा के लिये अपर्याप्त रोग निरोधक क्षमता एवं भयानक श्वसन संबंधी संक्रमण जैसे निमोनिया से संबंधित है। माता से प्राय: पाये जाने वाले पौष्टिक आहार की अनुचित मात्रा बाद में बच्चों की निमोनिया का एक बड़ा कारण होता हैं, क्योंकि यह जन्म के समय शिशु के अल्प भार के कारण होता है। स्तनपान की गुणवत्ता को कम समझने के कारण शिशु में कुपोषण एवं विटामिन की कमी की आशंका बढ़ जाती है।

डॉ. अमिता पाण्डे, जो छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय के प्रसूति एवं स्त्री-रोग विभाग में  सहायक प्रोफेसर हैं, कहती है कि, "यद्यपि निमोनिया रोग धनी एवं गरीब सभी बच्चों को होता है पर अध्ययन  करने से पता चला है कि कुपोषित बच्चों को निमोनिया अधिक होता है। जो संक्रमण पौष्टिक आहार पाने वाले  बच्चों में केवल श्वसननली के ऊपरी भाग को संक्रमित करके समाप्त हो जाता है, वही संक्रमण कुपोषित बच्चों में अत्यन्त दुर्बलता प्रदान करने वाले निमोनिया रोग का कारण बन जाता है। मैं यह भी कहना चाहूँगी कि सम्पन्न परिवारों के बच्चे, जिन्हें पर्याप्त मात्रा में भोजन मिलता है, भी कुपोषित होते हैं। इसके कई कारण हैं-उन्हें स्तनपान नहीं कराया गया होता है, उन्हें ऊपर का दूध दिया जाता है जिसमें पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन नहीं पाये जाते है, या ऊपर के दूध में पानी मिलाकर पिलाया जाता है। माताओं में यह गलत धारणा होती है कि पानी मिला दूध आसानी से पच जाता है। जैसे जैसे बच्चा बढ़ता है उसे दूध के अतिरिक्त और भी भोज्य पदार्थ जैसे चाकलेट फ्राईज, वरगर, पीजा, इत्यादि दिये जाने लगते है, जो उचित नहीं है । जब बच्चा बड़ा होने लगता है तो उसे माँ के दूध के साथ साथ प्रोटीन युक्त आहार जिसमें फल आदि सम्मिलित हैं, उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता  बढ़ाने के लिये दिए जाने चाहिए।"

उचित स्वास्थ्य एवं पौष्टिक आहार निमोनिया रोग को कम करने में सहायक होते हैं। 'अक्यूट रिसपेरेटरी इन्फेक्शन एटलस २०१०' के अनुसार इस रोग की सही रोकथाम के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय सम्मिलित रूप से प्रतिबद्ध हैं। निमोनिया तथा अन्य बीमारियों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन 6 महीनों तक शिशु को केवल स्तनपान कराने को महत्व देता है, तथा 2 वर्ष तक स्तनपान एवं अन्य पौष्टिक आहार देने पर जोर देता है। इसके बाद बच्चे को अन्य पौष्टिक एवं स्वस्थ आहार देना चाहिये। गत कुछ वर्षों में भोज्य पदार्थों की बढ़ती हुयी कीमतों के कारण कुपोषणता की आशंकाए और बढ़ गयी हैं। हालाँकि हमारी सरकारें कुपोषण को सामुदायिक स्तर पर रोकने के लिये वचनबद्ध हैं, फिर भी इस लेख को लिखते समय ‘भोज्य पदार्थों’ की कीमतों में 9.13 प्रतिशत वृद्धि हुयी है।


शोभा शुक्ला - सी.एन.एस.
(अनुवाद: श्रीमती विमला मिश्र, लखनऊ)