जी हाँ, अपनी मित्र मंडली में इसी नाम से जानी जाती हैं, डी -२/४, पेपर मिल कालोनी की निवासिनी, श्रीमती प्रभा चतुर्वेदी। सामाजिक कार्यों के प्रति समर्पित प्रभा जी ने, सन१९९३ में, अपने पति श्री रमाकांत चतुर्वेदी एवं कुछ
इस प्रकार, सन १९९६ में, प्रभा जी के संरक्षण में, ‘एक्स्नोरा क्लब, लखनऊ’ का जन्म हुआ। इस नाम का अर्थ है कि एक्सीलेंट, नोवेल, राडिकल’ विचार समाज को बदल सकते हैं। प्रभा जी का मानना है कि प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है अपव्यय – फिर चाहे वो धन का अपव्यय हो, अथवा हमारी प्राकृतिक सम्पदा का, अथवा हमारे विचारों/शब्दों का। अपव्यय से बचने की दिशा में कूड़े का समुचित प्रबंधन, वर्त्तमान समय की मांग है।
जहाँ तक कूड़े का प्रश्न है, इसे कम किया जाना चाहिए, इसका पुनर्प्रयोग करना चाहिए एवं इसका पुनर्चक्रण होना चाहिए। यह कूड़ा कचरा (जो हम ही उत्पन्न करते हैं) हमारी नदियों/ जल स्त्रोतों को प्रदूषित कर रहा है, हमारी वायु को विषैला बना रहा है और हमारे आस पास के परिवेश को दूषित कर रहा है।
हाँ, यह सच है कि हमारी सरकार हमें सामान्य जन सुविधाएं देने में असफल रही है। परन्तु आम नागरिक भी तो हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। केवल अपनी मानसिकता और कार्य शैली में थोड़ा सा परिवर्तन करके, हम जन साधारण भी बहुत कुछ कर सकते हैं। अत: हमें प्रभा जी से प्रेरणा लेते हुए तुंरत ही प्रयत्नशील हो जाना चाहिए।
घर का कूड़ा फेंकने के बजाय हमें उसको पुन:प्रयोग के लायक बनाना चाहिए। बस थोड़ी सी इच्छा शक्ति रखते हुए, हमें घर के कूड़े को दो भागों में बांटना होगा ----- जैविक (अर्थात सड़ने वाला) एवं अजैव ( न सड़ने वाला)।
रसोई घर का कूड़ा, हमारे सर के टूटे हुए बाल, पेड़ पौधों की सूखी पत्ती/फूल, पूजा में इस्तेमाल हुई धूप बत्ती, अगर बत्ती की राख इत्यादि। इन सभी अपशिष्टों को अपनी फुलवारी में मिट्टी के नीचे दबा दें, या किसी पेड़ की जड़ के आसपास की मिटटी में गाड़ दें, या एक लकड़ी के क्रेट में जूट की तह के ऊपर बिखरा कर ढँक दें। कुछ समय बाद, यह कूड़ा बढ़िया नाईट्रोजन उक्त खाद में परिवर्तित हो जायेगा और हमारी भूमि को उपजाऊ बनाने में सहायक होगा।
अजैव अथवा परिवर्तनीय कूड़ा कहलाते हैं पौलीथीन बैग, प्लास्टिक की बोतलें, गुटखा और पान मसाला के खाली पैकेट, लोहा/अलमुनियम का सामान, कांच का टूटा सामान, कप प्लेट इत्यादि। इन सभी को एक झोले में डाल कर सीधे कूड़ा बीनने वाले कबाड़ी बच्चों को दे देना चाहिए। इस प्रकार जहाँ एक और उन्हें गंदे कूड़े में विचरण करके प्लास्टिक बीनने से कुछ हद तक छुटकारा मिलेगा, वहीं सडकों पर पडी हुई गन्दगी में भी कमी आयेगी।
प्रभाजी के अनुसार, दुर्भाग्य की बात तो यह है कि हम अपने गंदे परिवेश के बारे में शिकायत तो करते रहते हैं, पर उसे स्वच्छ रखने का स्वयं कोई प्रयत्न नही करते। इस उत्तम कार्य की पहल, आपकी कालोनी / हाऊसिंग सोसाइटी में रहने वाली गृहणियों/ अवकाश प्राप्त बुजुर्गों के संरक्षण में, बच्चों की सहायता से की जा सकती है।
जब हम अपने पर्यावरण को साफ़ एवं कूड़ा रहित बना पायेंगें, तभी हम राजनैतिक प्रदूषण दूर करने में सफल होंगें। हमें अपने बीच के विषाक्त तत्वों को चुनाव में, वोट न देकर, उखाड़ फेंकना होगा। तथा ऐसे ईमानदार व्यक्तियों का चुनाव करना होगा जो समाज के पिछडे वर्ग की आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील हों।
शोभा शुक्ला संपादक, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस (सी.एन.एस)