पृथ्वी दिवस पर विकास के मॉडल पर पुनर्विचार ज़रूरी
न केवल आधुनिक जीवनशैली, जिसमें प्राकृतिक संसाधनों का अनियंत्रित दोहन हो रहा है, की वजह से पर्यावरण असंतुलित होता है, बल्कि हमारे देश में नीतियाँ भी पर्यावरण के व्यापक संगरक्षण हेतु अनुकूल नहीं हैं.
"प्राकृतिक संसाधनों का उद्योगीकरण न तो लोगों के हित में है और न ही पर्यावरण के. उद्योगों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के अनियंत्रित दोहन से आदिवासी और गरीब लोग सबसे अधिक कुप्रभावित होते हैं, और उनके रोज़गार जो प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित होते हैं, वोह भी छिन जाते हैं. स्थानीय लोगों के प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार को छिनने से न केवल समाज में व्याप्त असमानताएं गहराती हैं, बल्कि पर्यावरण को अप्रतिकार्य नुकसान पहुँचता है" कहना है लखनऊ से लोक सभा प्रत्याशी एस.आर.दारापुरी का जो सेवा निवृत्त पुलिस महानिरीक्षक रहे हैं और लोक राजनीति मंच के प्रदेश समन्वयक भी हैं.
"हम लोगों को अपना जीने का तौर-तरीका बदलना होगा जिससे कि पर्यावरण को अप्रतिकार्य नुकसान न पहुंचे और उद्योगों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का दोहन रुक सके" कहना है गुरुदयाल सिंह शीतल का, जो प्राकृतिक मानव केंद्रित आन्दोलन से जुड़े हुए हैं.
"उदाहरण के तौर पर कोका कोला पेप्सी जैसी कंपनियां भूजल का अनियंत्रित दोहन करती आ रही हैं. भूजल पर स्थानीय लोगों का अधिकार है, न कि पानी के निजीकरण का धंधा करने वाली कंपनियों का" कहना है अरविन्द मूर्ति का जो जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय से जुड़े हुए हैं.
"विडंबना यह है कि यह जताने के लिए कि कोका कोला पर्यावरण के लिए कितनी सजग है, आज पृथ्वी दिवस पर ही वो अमरीका में अपनी शेयर धारकों की बैठक कर रही है. यदि कोका कोला सही मायने में पर्यावरण के प्रति सजग है तो पहले पानी का अनियंत्रित दोहन बंद करे" कहना है अरविन्द मूर्ति का.
"हमारी जीवन शैली ऐसी होनी चाहिए जिससे कि ऐसा कूड़ा न उत्पन्न हो जो प्राकृतिक तरीके से सड़नशील नहीं है" कहना है प्रभा चतुर्वेदी का जो एक्स्नोरा संस्था की अध्यक्ष हैं. "प्राकृतिक तरीके से सड़नशील कूड़े को हम लोगों को जमीन के नीचे दबा देना चाहिए जिससे कि खाद बन सके", कहती हैं प्रभा जी जो पेपर मिल कालोनी में पर्यावरण संगरक्षण का सराहनीय और प्रेरणाजनक कार्य कर रही हैं.