आतंकवाद एवं साम्प्रदायिकता की राजनीति
हमारा मानना है कि यदि देश में बाबरी मस्जिद का ध्वंस न होता तथा १९९८ का परमाणु परीक्षण न होता तो आज देश के सामने आतंकवाद इतनी बड़ी समस्या के रूप में मुंह बाए न खड़ी होती. पहली बम विस्फोट की घटनाएँ १९९३ में बाबरी मस्जिद के गिरने के बाद मुंबई में हुईं. परमाणु परीक्षण के बाद भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व वाली सरकार की नीतियाँ अमरीका परस्त हो गयीं तथा २००१ में अमरीका के आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्ध में शामिल होने के बाद देश में पहली 'आतंकवादी' कही जाने वाली दुर्घटना संसद पर हमले के रूप में हुई. इसके बाद तो जैसे आतंकवादी घटनाओं की बाढ़ जैसी आ गई और पिछले नवम्बर में तो आतंकवादियों ने मुंबई जैसे हमले का दुस्साहस किया.
देश में सांप्रदायिक राजनीति की वजह से नफरत-हिंसा बढ़ी है तथा देश की संप्रभुता को भी खतरा खड़ा हो गया है. सांप्रदायिक राजनीति ही आतंकवादी घटनाओं के लिए जिम्मेदार है. इसमें जितने दोषी पाकिस्तान समर्थित कट्टरपंथी इस्लामी संगठन हैं उतना ही दोष राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एवं अन्य हिन्दुत्ववादी संगठनों का है.
अब तो देश के लिए तालिबान का खतरा भी सीधे-सीधे है जो धीरे-धीरे पाकिस्तान को निगल रहा है. किसी देश में कट्टरपंथी तत्वों को छूट देने का परिणाम क्या हो सकता है इसका सबक हमको पाकिस्तान से सीखना चाहिए.
हमारा मानना है कि जब तक पाकिस्तानी निर्वाचित सरकार इतनी मजबूत नहीं होती कि वोह अपनी सेना, खुफिया संस्था एवं आतंकवादी तत्वों पर काबू नहीं पाती तब तक सीमापार से आतंकवाद का खतरा बना रहेगा.
इस देश में हिन्दुत्ववादी संगठनों को राजनीति में भाग लेने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए. जो भी संगठन ऐसी संकीर्ण विचारधारा को मानता हो जो किसी दूसरे समुदाय से नफरत के आधार पर खड़ी हो, उसकी लोकतंत्र में कोई जगह नहीं होनी चाहिए. हम कांग्रेस पार्टी द्वारा जगदीश टाईलर तथा सज्जन कुमार का टिकेट काटने का स्वागत करते हैं और भारतीय जनता पार्टी से भी इसी प्रकार की कार्यवाही की आशा करते हैं.
असगर अली इंजीनियर, एस.आर दारापुरी, डॉ संदीप पाण्डेय
लोक राजनीति मंच