संसाधनों का बंटवारा ही राजनीति है: अरुंधती धुरु

संसाधनों का बंटवारा ही राजनीति है: अरुंधती धुरु

[अरुंधती धुरु जी ने जो संबोधन जन सभा में दिया था, उसको सुनने के लिए यहाँ पर क्लिक कीजिये]

नर्मदा बचाओ आन्दोलन की वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता और भोजन के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट के आयुक्त की सलाहाकार अरुंधती धुरु, जो उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में आयोजित एक जन सभा को संबोधित कर रहीं थीं, ने कहा कि: "राजनीति आख़िर में संसाधनों के बंटवारे का खेल है, और कौन यह निर्णय लेता है कि कैसे संसाधनों का बंटवारा हो, ही राजनीति है"

लखनऊ लोक सभा चुनाव २००९ से पहले एक्सनोरा नामक संस्था की अध्यक्षा श्रीमती प्रभा चतुर्वेदी ने अन्य सामाजिक संगठनों के साथ मिल कर एक जन सभा का आयोजन किया था।

"बिहार में कई साल पहले महिला मुद्दों के ऊपर एक रैली हुई थी जहाँ पर एक छोटे बच्चे से हम लोगों ने जब यह पूछा कि इंदिरा गाँधी कौन है, तो उसने कहा कि 'इतना मालूम है कि वो आलू के भाव ऊपर नीचे करती है', और आलू का महत्व हम सब की ज़िन्दगी से है, राजनीति से है, इस उदाहरण से यह बात समझने की है" यह कहना है अरुंधती धुरु का.

"पॉलिटिकल साइंस [राजनीतिक विज्ञान] में राजनीति की परिभाषा है कि politics is the allocation of resources (संसाधनों का बंटवारा ही राजनीति है)" अरुंधती धुरु ने कहा।

उनके मंच पर आने के पहले लखनऊ लोक सभा चुनाव में उतरे एक युवा उम्मीदवार ने और अन्य लोगों ने कई बार यह कहा था कि एक साफ़ सुथरे राजनैतिक विकल्प की आवश्यकता है। राजनीति में बढ़ते हुए अपराधीकरण और भ्रष्टाचार से त्रस्त सभी वक्ताओं का ऐसा ही मानना था। इसी लिए कुछ वक्ताओं ने यह भी अनेकों बार कहा कि मुख्य
राजनैतिक दलों से उनका कुछ लेना देना नहीं है क्योंकि वो सब भ्रष्टाचार और अपराध से लिपे पुते हैं।

अरुंधती धुरु ने इस बात पर चोट करते हुए कहा कि यह सराहनीय बात है कि हम सब लोग एक आदर्श
राजनैतिक विकल्प खड़ा करना चाहते हैं परन्तु "पॉलिटिक्स [राजनीति] को इतना भी डी-पॉलिटिकल [गैर-राजनीतिकरण] मत कीजिये"।

अरुन्धती धुरु का कहना है कि "यह जो मुख्य
राजनैतिक पार्टियाँ हैं उनको बाजु में रख कर एक नए राजनैतिक विकल्प बनाने का संघर्ष नहीं किया जा सकता है। यदि हम मुख्य राजनैतिक दलों को नज़रंदाज़ कर के एकाकी कार्य करेंगे तो यह हमारी राजनैतिक समझ की कमी होगी, ऐसा मैं मानती हूँ।"

उन्होंने भोजन के अधिकार के कार्यकर्ताओं का उदाहरण दिया कि कैसे लोगों ने सभी मुख्य
राजनैतिक दलों के साथ वार्तालाप करके मुख्यत: सभी राजनैतिक दलों के चुनाव घोषणापत्रों में भोजन के अधिकार से जुड़े हुए मुद्दों को शामिल करवाया है।

"सुप्रीम कोर्ट में
भोजन के अधिकार के आयुक्त की मैं सलाहकार हूँ. हम लोगों के अथक प्रयासों के कारण ही कांग्रेस, जे.डी.यू, दोनों कम्युनिस्ट पार्टियाँ, भारतीय जनता पार्टी (बी.जे.पी), और अन्य पार्टियों के घोषणापत्रों में भोजन के अधिकार से जुड़े हुए मुद्दें आए हैं (जी.एम् फ़ूड वगैरह), यह लोक मंच का ही नतीजा है जिसको हम लोगों ने अरुणा रॉय, योगेन्द्र यादव, जौन ड्रेज, आदि के साथ मिल कर आयोजित किया था, और जिसमें सभी राजनैतिक दलों के लोग आए थे" अरुंधती धुरु ने कहा.

जन सभा के आरंभ से ही शत प्रतिशत मतदान पर जोर रहा था। इस पर भी अरुंधती धुरु ने वास्तविकता का दर्शन कराया क्योंकि एक ओर तो जैसे-जैसे साफ़-सुथरे चुनाव कराने के लिए जोर बढ़ रहा है (जो सही है) परन्तु उसके साथ ही जो मतदाता पहचान पत्र आदि की नीति आ गई है उससे वो सब लोग इस प्रक्रिया से बेदखल हो रहे हैं जिनके पास अपना कोई भी मान्य पहचान पत्र नहीं है।

"सिर्फ़ शत प्रतिशत मतदान की ही बात नहीं होनी चाहिए. जो अब नियमों का कड़ाई से पालन किया जा रहा है जैसे कि मान्य परिचय या पहचान पत्र का होना ही अस्तित्व की पहचान है और उससे ही अधिकार जोड़े जा रहे हैं, उससे यह खतरा भी बढ़ रहा है कि कहीं हाशिये पर रह रहे लोग इस व्यवस्था से और भी अधिक बेदखल न हो जाएँ. क्योंकि इन लोगों के पास मतदाता पहचान पत्र नहीं है, अन्य मान्य पहचान पत्र नहीं हैं तो क्या वो इन्सान जिन्दा ही नहीं है?" कहना है अरुंधती धुरु का.

जन सभा में आतंकवाद को लेकर भी चर्चा हुई थी और सुरक्षा व्यवस्था को और अधिक कड़ी करने पर जोर बन रहा था। इस पर भी अरुंधती धुरु ने सटीक बात कही कि: "सुरक्षा पुलिस या फौजों से नहीं आती, बल्कि मेरे लिए सुरक्षा एक आतंरिक भावना है जो मेरे साथ समाज में रहने वाले मेरे साथी, मेरे परिवार, मेरे आस-पास में रहने वाले लोग ही देते हैं।"

"यदि हम फौजों और पुलिस से सुरक्षा मांगेंगे तो जिनके लिए हम खड़े है उनको हम कहाँ से सुरक्षा प्रदान करेंगे" पूछना था अरुंधती धुरु का।

उन्होंने जीवन संदेश देते हुए कहा कि "सुरक्षा अपने आप पर विश्वास से, आदमी-इंसानों के साथ संबंधों से और मानवीयता से आती है, सुरक्षा बन्दूक और हथियार से नहीं आती है।"

- बाबी रमाकांत, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस (सी.एन.एस)