स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को तम्बाकू नियंत्रण में शामिल किया जाना चाहिए
स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को, विशेषकर कि नौजवान और नवयुवती डॉक्टर और नर्सों को, तम्बाकू नियंत्रण कार्यक्रमों को सशक्त करने के लिए प्रेरित करना चाहिए. छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय की तम्बाकू नशा उन्मूलन क्लीनिक द्वारा आयोजित 'सुरक्षित शनिवार' संगोष्ठी में यही केंद्रीय विचार था.
शनिवार को अक्सर लोगों की जीवनशैली ऐसी हो जाती है कि वोह अक्सर खतरा उठाते हैं और स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह हो जाते हैं. इसीलिए शल्य-चिकित्सा विभाग के सर्जनों ने यह पहल ली है कि लोगों को जागरूक किया जाए जिससे कि शनिवार और हर दिन सबके लिए सुरक्षित हो.
वर्त्तमान स्वास्थ्य सेवाओं में तम्बाकू नशा उन्मूलन को शामिल करना चाहिए, कहना है प्रोफ़ेसर डॉ रमा कान्त का, जो छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय के सर्जरी विभाग के अध्यक्ष हैं और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा पुरुस्कृत भी (२००५). उनका मानना है कि बिना किसी भी अतिरिक्त बजट के मौजूदा स्वास्थ्य व्यवस्था में ही तम्बाकू नियंत्रण सेवाएँ प्रभावकारी ढंग से प्रदान करी जा सकती हैं यदि उनका प्रबंधन बेहतर हो जाए एवं भरपूर उपयोग किया जाए.
शोध के अनुसार तम्बाकू जनित कुप्रभावों एवं तम्बाकू नशा उन्मूलन से सम्बंधित जानकारी यदि स्वास्थ्य कार्यकर्ता लोगों को अपनी संछिप्त सलाह में प्रदान करें तो नशा उन्मूलन में काफ़ी मदद होगी. यह तरीका उत्तर प्रदेश के कुछ भाग में अपनाया जा चुका है और बढ़िया नतीजे सामने आए थे, कहना है प्रोफ़ेसर डॉ रमा कान्त का. प्रभावकारी तम्बाकू नियंत्रण के लिए उनका कहना है कि यह बहुत आवश्यक है कि ग्रामीण छेत्रों के प्राईमरी एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, शहरों में स्थापित जिला अस्पतालों से तालमेल बना कर रखें.
स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को आवश्यक जानकारी का होना अतिआवश्यक है. पर्याप्त प्रशिक्षण से, डॉक्टर, नर्स एवं अन्य स्वास्थ्य व्यवस्था में लगे लोग तम्बाकू नियंत्रण को प्रभावकारी बना सकते हैं. 'समय नहीं है' यह अक्सर सुनने में आता है परन्तु यदि चिकित्सक सिर्फ़ यह पूछ ले कि 'क्या आप तम्बाकू लेते हैं?' तो इसी से तम्बाकू नशा उन्मूलन के प्रति सराहनीय नतीजा निकलता है, कहना है डॉ विनोद जैन का जो सर्जरी विभाग में सहायक प्रोफ़ेसर हैं और लखनऊ में इंडियन मेडिकल असोसिएशन के उपाध्यक्ष भी. एक शोध के अनुसार जब चिकित्सकों ने अपने रोगियों को, रोग से सम्बंधित सलाह के साथ-साथ तम्बाकू जनित सलाह भी दी, तो रोगी अधिक संतुष्ट थे. रोगियों को यह स्वाभाविक तरीके से लगेगा कि डॉक्टर उनका ख्याल करता है. यदि चिकित्सक सिर्फ़ १ मिनट रोगी पर अतिरिक्त व्यय करे तो ११ प्रतिशत रोगी तम्बाकू सेवन शुरू ही नहीं करेंगे और यदि ३ मिनट रोगी पर अधिक दे तो १७.५ प्रतिशत रोगी तम्बाकू सेवन से विमुख ही रहेंगे.
"तम्बाकू से प्रति वर्ष ५४ लाख लोग मरते हैं. मृत्यु के आठ में से 6 सबसे बड़े कारणों के लिए तम्बाकू सेवन खतरा बढ़ा देता है" कहना है अलेहैन्द्रा एलिसन बर्नी का, जो वेलेस्ली कॉलेज से भारत में शोध के लिए आई हुई हैं. अनुमान है कि तम्बाकू जनित मृत्यु दर २०३० तक अस्सी लाख हो जाएगा और ८० प्रतिशत मृत्यु विकासशील देशों में ही हो रही होंगी. यदि तम्बाकू नियंत्रण प्रभावकारी ढंग से नहीं किया गया तो इस शताब्दी के अंत तक १ अरब लोग तम्बाकू जनित कारणों से ही मृत्यु को प्राप्त होंगे, कहना है अलेहैन्द्रा का.
स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को विश्व तम्बाकू निषेध दिवस २००९ के बारे में भी जानकारी दी गई, जो ३१ मई २००९ को है. इस साल विश्व तम्बाकू निषेध दिवस २००९ का केंद्रीय विचार है - तम्बाकू पर फोटो वाली चेतावनियाँ. तम्बाकू उत्पादनों पर फोटो वाली चेतावनी लगाना सबसे प्रभावकारी तम्बाकू नियंत्रण तरीकों में से एक है. विश्व स्वास्थ्य संगठन उन फोटो वाली चेतावनियों को खासकर पारित करता है जिसमें शब्द एवं प्रभावकारी फोटो दोनों हों क्योंकि लोगों को तम्बाकू नशा उन्मूलन के लिए यह प्रेरित करती हैं. तम्बाकू उत्पादनों पर ऐसी फोटो वाली चेतावनी एक दर्ज़न से भी अधिक देशों में लगती हैं.
छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने अब अभियान तेज़ किया है जिससे कि सरकार तम्बाकू उत्पादनों पर फोटो वाली चेतावनी को लागू कर सके. भारत सरकार ने तम्बाकू उत्पादनों पर फोटो वाली चेतावनी लागू करने के लिए ३० मई २००९ तारिख तय कर रखी है, जिसमें यह फोटो तम्बाकू उत्पादनों के पाकेट का ५० प्रतिशत हिस्सा लेंगी.