तम्बाकू एक ऐसा मीठा ज़हर है जिसके बारे में यह सिद्ध हो चुका है कि तम्बाकू खाने वाले हर दो व्यक्तियों में से एक की मृत्यु का कारण तम्बाकू ही है | फिर भी लोग इसका प्रयोग करने से हिचकते नहीं हैं, बल्कि सिगरेट पीने और गुटखा खाने में अपनी शान समझते हैं | आजकल के कुछ युवा तो इसे फैशन मानते हैं, उन्हें लगता है कि सिगरेट पीने से वे अधिक स्मार्ट दिखते हैं, लड़कियां उनकी तरफ अधिक आकर्षित होती हैं, लेकिन यह केवल उनकी ग़लतफ़हमी है और कुछ नहीं |
भारत सरकार का तम्बाकू से सम्बंधित एक बहुत ही प्रभावशाली कानून है, "सिगरेट एंव अन्य तम्बाकू उत्पाद अधिनियम २००३" , इसके बाद २००८ में धूम्रपान निषेध कानून बना | लेकिन ये सारे नियम कानून तम्बाकू पदार्थ बनाने वाली कंपनियों और तम्बाकू बेचने वाले दुकान दारों के सामने बौने साबित होते हैं | "सिगरेट एंव अन्य तम्बाकू उत्पाद अधिनियम २००३" के सेक्शन ६(अ) में यह लिखा है कि सिगरेट या तम्बाकू की कोई भी दुकान शैक्षिक संस्थान के १०० गज के दायरे में नहीं होनी चाहिए | लेकिन जब हम इस पर विचार करते हैं, कि क्या यह नियम पूरे देश में प्रभावी है?, तो कदाचित हम सभी के दिमाग में एक ऐसी दुकान ज़रूर आ जायेगी जो इस नियम का खुला उल्लंघन कर रही होगी | इसी प्रकार १८ वर्ष से कम उम्र के बच्चों का तम्बाकू पदार्थ खरीदना व बेचना दोनों ही गैर कानूनी हैं | पर क्या वास्तव में ऐसा होता है |
तम्बाकू के इसी कानून को ध्यान में रखते हुए लखनऊ के कुछ युवाओं ने लखनऊ शहर का सर्वे कर उन स्थानों की तस्वीर खींची जहाँ शैक्षिक संस्थानों के गेट के पास ही तम्बाकू की दूकान मौजूद थी, तथा अनेक स्थानों पर अवयस्क बच्चे बिना किसी रोकटोक के या तो तम्बाकू/सिगरेट बेच रहे थे, या खरीद कर सिगरेट के कश लगा रहे थे | ३१ मई २०११ को विश्व तम्बाकू दिवस पर हिंदुस्तान टाईम्स द्वारा आयोजित एक गोष्ठी में इन युवाओं ने अपनी रिपोर्ट प्रशासन के सामने प्रस्तुत की, तो प्रशासन ने उन्हें बताया कि यदि कोई भी पुलिस कर्मी ड्यूटी के दौरान धूम्रपान करते हुए पाया जाता है तो उसके खिलाफ सख्त कार्यवाही होगी, साथ ही आश्वासन दिलाया कि एक हफ्ते के अन्दर ये सारी अवैध रूप से चल रही दुकानें हटा दी जाएँगी | लेकिन जब २० दिनों के बाद युवाओं ने फिर से शहर का निरिक्षण किया तो पाया कि एक भी दुकान नहीं हटी है | तो फिर से युवाओं ने हिंदुस्तान टाईम्स को बताया, तब हिंदुस्तान टाईम्स ने १८ जून को फोटो के साथ खबर छापी तो आनन् फानन में प्रशासन के द्वारा एक-दो दुकानें हटाई गई | कानून परिपालन की यह कमी सिर्फ लखनऊ के प्रशासन की नहीं है बल्कि एक दो राज्यों को छोड़कर पूरे देश में यही हाल तम्बाकू के नियमों का है |
लेकिन कुछ राज्यों में जैसे गोवा या फिर जम्मू कश्मीर के कुछ शहरों (बुदगम, श्रीनगर) में इन नियमों का सख्ती से पालन भी हो रहा है और उसका फायदा भी दिखाई दे रहा है | अभी हाल ही में ही (इंडो एशियन न्यूज़ के अनुसार) केरल के मुख्यमंत्री ओमन चंडी ने तम्बाकू के खिलाफ एक कदम उठाया है | उन्होंने तम्बाकू के सारे उत्पाद की बिक्री बंद कराने को लेकर प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है | जिसमें उन्होंने न केवल शैक्षिक संस्थानों बल्कि पूरे देश में तम्बाकू की बिक्री और इसके प्रयोग पर पाबन्दी लगाने की अपील की है | साथ ही उन्होंने अपने पत्र में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तम्बाकू के विज्ञापनों पर रोक लगाने का भी जिक्र किया है | लेकिन क्या उन्होंने अपने राज्य में तम्बाकू के नियमों को सुचारू रूप से लागू किया है? जिस प्रकार गोवा सरकार ने अपने यहाँ तम्बाकू को पूर्णरूप से प्रतिबंधित कर रखा है, अगर उसी प्रकार से सभी राज्य के मुख्यमंत्री केवल अपने राज्य में तम्बाकू का जो कानून बना है, सिर्फ उसे पूर्णरूप से लागू कर दें तो तम्बाकू उत्पादों की बिक्री बंद कराने की ज़रुरत ही नहीं पड़ेगी | और देश के सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को इसके लिए पहल करनी चाहिए|
नदीम सलमानी
भारत सरकार का तम्बाकू से सम्बंधित एक बहुत ही प्रभावशाली कानून है, "सिगरेट एंव अन्य तम्बाकू उत्पाद अधिनियम २००३" , इसके बाद २००८ में धूम्रपान निषेध कानून बना | लेकिन ये सारे नियम कानून तम्बाकू पदार्थ बनाने वाली कंपनियों और तम्बाकू बेचने वाले दुकान दारों के सामने बौने साबित होते हैं | "सिगरेट एंव अन्य तम्बाकू उत्पाद अधिनियम २००३" के सेक्शन ६(अ) में यह लिखा है कि सिगरेट या तम्बाकू की कोई भी दुकान शैक्षिक संस्थान के १०० गज के दायरे में नहीं होनी चाहिए | लेकिन जब हम इस पर विचार करते हैं, कि क्या यह नियम पूरे देश में प्रभावी है?, तो कदाचित हम सभी के दिमाग में एक ऐसी दुकान ज़रूर आ जायेगी जो इस नियम का खुला उल्लंघन कर रही होगी | इसी प्रकार १८ वर्ष से कम उम्र के बच्चों का तम्बाकू पदार्थ खरीदना व बेचना दोनों ही गैर कानूनी हैं | पर क्या वास्तव में ऐसा होता है |
तम्बाकू के इसी कानून को ध्यान में रखते हुए लखनऊ के कुछ युवाओं ने लखनऊ शहर का सर्वे कर उन स्थानों की तस्वीर खींची जहाँ शैक्षिक संस्थानों के गेट के पास ही तम्बाकू की दूकान मौजूद थी, तथा अनेक स्थानों पर अवयस्क बच्चे बिना किसी रोकटोक के या तो तम्बाकू/सिगरेट बेच रहे थे, या खरीद कर सिगरेट के कश लगा रहे थे | ३१ मई २०११ को विश्व तम्बाकू दिवस पर हिंदुस्तान टाईम्स द्वारा आयोजित एक गोष्ठी में इन युवाओं ने अपनी रिपोर्ट प्रशासन के सामने प्रस्तुत की, तो प्रशासन ने उन्हें बताया कि यदि कोई भी पुलिस कर्मी ड्यूटी के दौरान धूम्रपान करते हुए पाया जाता है तो उसके खिलाफ सख्त कार्यवाही होगी, साथ ही आश्वासन दिलाया कि एक हफ्ते के अन्दर ये सारी अवैध रूप से चल रही दुकानें हटा दी जाएँगी | लेकिन जब २० दिनों के बाद युवाओं ने फिर से शहर का निरिक्षण किया तो पाया कि एक भी दुकान नहीं हटी है | तो फिर से युवाओं ने हिंदुस्तान टाईम्स को बताया, तब हिंदुस्तान टाईम्स ने १८ जून को फोटो के साथ खबर छापी तो आनन् फानन में प्रशासन के द्वारा एक-दो दुकानें हटाई गई | कानून परिपालन की यह कमी सिर्फ लखनऊ के प्रशासन की नहीं है बल्कि एक दो राज्यों को छोड़कर पूरे देश में यही हाल तम्बाकू के नियमों का है |
लेकिन कुछ राज्यों में जैसे गोवा या फिर जम्मू कश्मीर के कुछ शहरों (बुदगम, श्रीनगर) में इन नियमों का सख्ती से पालन भी हो रहा है और उसका फायदा भी दिखाई दे रहा है | अभी हाल ही में ही (इंडो एशियन न्यूज़ के अनुसार) केरल के मुख्यमंत्री ओमन चंडी ने तम्बाकू के खिलाफ एक कदम उठाया है | उन्होंने तम्बाकू के सारे उत्पाद की बिक्री बंद कराने को लेकर प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है | जिसमें उन्होंने न केवल शैक्षिक संस्थानों बल्कि पूरे देश में तम्बाकू की बिक्री और इसके प्रयोग पर पाबन्दी लगाने की अपील की है | साथ ही उन्होंने अपने पत्र में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तम्बाकू के विज्ञापनों पर रोक लगाने का भी जिक्र किया है | लेकिन क्या उन्होंने अपने राज्य में तम्बाकू के नियमों को सुचारू रूप से लागू किया है? जिस प्रकार गोवा सरकार ने अपने यहाँ तम्बाकू को पूर्णरूप से प्रतिबंधित कर रखा है, अगर उसी प्रकार से सभी राज्य के मुख्यमंत्री केवल अपने राज्य में तम्बाकू का जो कानून बना है, सिर्फ उसे पूर्णरूप से लागू कर दें तो तम्बाकू उत्पादों की बिक्री बंद कराने की ज़रुरत ही नहीं पड़ेगी | और देश के सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को इसके लिए पहल करनी चाहिए|
किसी ने सच कहा है कि अगर किसी जाति को बर्बाद करना है तो उसकी युवा पीढ़ी को बर्बाद करो, और तम्बाकू पदार्थ बनाने वाली कम्पनियाँ यही कर रही हैं | हमेशा उनके निशाने पर युवा वर्ग ही रहता है, इसलिए तम्बाकू को रोकने के लिए शैक्षिक संस्थानों में जागरूकता फ़ैलाने से बेहतर विकल्प कोई हो ही नहीं सकता | क्यूंकि जब बच्चा किशोरावस्था में होता है, उस समय उसका आकर्षण प्रत्येक अनजान वस्तु की तरफ होता है, खासकर उन वस्तुओं की तरफ जो नुकसानदायक होती हैं | वो हर उस चीज़ के बारे में जानना चाहता है जिससे वो अनजान है | इसलिए इस समय उसे तम्बाकू जैसे खतरे से अधिक सावधान करने की ज़रुरत होती है | लेकिन जब वह किशोरावस्था से निकल कर एक बालिग अवस्था में आ जाता है, तब तक अगर उसे ये लत लग चुकी है तो इससे पीछा छुड़ाना काफी मुश्किल हो जाता है | इसलिए स्कूल/कालेज में शिक्षकों और घर पर अभिभावकों को भी चाहिए कि यदि वे धूम्रपान करते है तो इसे छोड़ दें और बच्चों के सामने तो कदापि न करें | क्यूंकि इससे दो खतरें हो सकते हैं एक तो बच्चा गलत आदत पकड़ सकता है, दूसरे वो अपरोक्ष धूम्रपान का भी शिकार हो सकता है, जोकि काफी खतरनाक साबित हो सकता है |
अभी हाल ही में (दैनिक भास्कर के अनुसार) कश्मीर विश्विद्यालय के निरीक्षण के दौरान एक प्रोफ़ेसर को विश्वविद्यालय के भीतर धूम्रपान करते पाया गया, हालाँकि उन्होंने ने इसके एवज में जुर्माना भी भरा लेकिन क्या यह सही है कि जिस गुरु की बात को विद्यार्थी पहली ही बार में सही मान लेता है, वही जब धूम्रपान जैसी हरकत उनके सामने करेगा तो इसका क्या असर होगा बच्चों पर | इन्ही जैसी आदतों पर रोक लगाने के लिए (यूएनआई के अनुसार) मुंबई नगर निगम (बी एम सी) ने यह नियम लागू किया है कि कोई भी शिक्षक स्कूल या कालेज के अन्दर या बाहर १०० गज के दायरे में तम्बाकू खरीदते या उसका सेवन करते पाया गया, तो उसे तुरंत निलंबित कर दिया जायेगा |
इस तरह के नियमों को केवल मुंबई में ही नहीं बल्कि पूरे देश में लागू करना चाहिए, ताकि युवा पीढ़ी को भटकने से बचाया जा सके और नियमों का पालन न केवल प्रशासन बल्कि हिंदुस्तान के प्रत्येक नागरिक को करना चाहिए, जब हर नागरिक इन्हें मानने लगेगा तो प्रशासन को कुछ भी याद दिलाने की ज़रुरत ही नहीं पड़ेगी |
नदीम सलमानी