सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत आवेदन पत्र देने का मेरा पहला अनुभव

इसमें कोई संदेह नहीं है कि सूचना का अधिकार अधिनियम २००५, भारत सरकार द्वारा बनाया गया एक सशक्त कानून हैं, जहाँ एक ओर यह कानून हर भारतीय नागरिक को, किसी भी सरकारी संस्था से प्रत्यक्ष रूप से सूचना प्राप्त करने का अधिकार देता है वहीँ दूसरी ओर यह कानून सरकारी अधिकारिओं को जवाबदेही के लिए भी मजबूर करता है. यही कारण है कि सूचना का अधिकार कानून का नाम आते ही सरकारी अधिकारियों  के हाथ-पांव फूलने लगते हैं.

"अधिकार और दायित्व" शिविर में  सूचना का अधिकार अधिनियम २००५ के बारे में जानकारी प्राप्त करने के बाद यह पहला अवसर था, जब मैनें स्वतः स्वास्थ्य विभाग लखनऊ में, सूचना का अधिकार अधिनियम २००५ के तहत आवेदन पत्र देकर, शहर में तम्बाकू नियंत्रण कानून की स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाही .

किसी भी नियम-कानून से बेख़ौफ़, आर. टी. आई. आवेदन पत्र जमा करने के लिए, मैं स्वास्थ्य विभाग कैसरबाग़ लखनऊ जा पहुंचा. मुझे गेट पर ही रोक लिया गया, क्योंकि मेरे पास गेट पास नहीं था. मैनें बड़े  ही विनम्र भाव से गेट मैन से पूछा कि क्या आप मुझे बता सकते हैं कि गेट पास कैसे बनता है, उसने जवाब दिया कि गेट पास बनवाने के लिए मुझे, जिस डिपार्टमेंट में जाना है वहां से एक पास स्लिप मंगवानी पड़ेगी और उस पास स्लिप को देखकर ही मुझे पास काउंटर से गेट पास दिया जायेगा.

मैनें पास काउंटर पर जाकर पूंछा कि तम्बाकू नियंत्रण के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए हमें किस  डिपार्टमेंट से पास स्लिप मंगवानी पड़ेगी? उसने जवाब देते हुए कहा कि आप हमें डिपार्टमेंट का नाम बता दें तो हम आपको नंबर देंगे जिस पर फोन से बात करके आप पास स्लिप मंगवा सकते है. पर हमने जब उसे बताया कि हमें यह नहीं मालूम कि तम्बाकू नियंत्रण के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए हमें किस डिपार्टमेंट में बात करनी चाहिए तो उसने मुझे एक नंबर ०५२२-२६१३९२३ दिया, जिस पर बात करके पास स्लिप मांगने को कहा.

जब मैने इस नम्बर पर फोन किया तो मुझे बताया गया कि मै जिस विषय में जानकारी चाहता हूँ वह "निदेशक चिकित्सा उपचार" के कार्य क्षेत्र में हैं, उसके लिए मुझे ०५२२-२६२९१०६ पर बात करनी पड़ेगी. अतः मैंने दूसरे नम्बर पर फोन किया और अपने आगमन का कारण बताते हुए पास स्लिप देने का आग्रह किया. जिसपर जवाब मिला कि जन सूचना अधिकारी अभी ऑफिस में नहीं हैं  अतः आप एक घंटे के बाद इसी नंबर पर फोन करके जानकारी प्राप्त कर लीजियेगा.

जब मैंने उनसे दोबारा पास स्लिप के लिए आग्रह किया और  बताया कि मैं  जन सूचना अधिकारी से मिलना  चाहता हूँ और यह जानना चाहता हूँ कि एक आम नागरिक के लिए आर. टी. आई. लगाने का सहज तरीका क्या है? तब उसने मुझे कहा कि आप पास स्लिप के लिए इंतजार करें. और एक घंटे से ज्यादा समय बीत गया और कोई पास स्लिप नहीं आया और जितनी बार मैं फोन करता मेरे कॉल को फैक्स टोन दे दिया जाता. अतः मैंने गेट पास सहायक के पास जाकर बोला कि आप बात करके मुझे बता दें कि हमें गेट पास दिया जायेगा या नहीं? और इस प्रकार उस सहायक ने डिपार्टमेंट में बात किया और कहा कि मैं अभी थोड़ी देर रुकूं.

थोड़ी देर बाद एक सच्चन जिनका नाम श्री जे. एस पाण्डे था बाहर आकर मुझसे मिले और मेरे हाथ में एक बुक लेट दे दी और कहा कि आप को जो जानकारी प्राप्त करनी है वह सभी जानकारी इस बुक लेट में दी गई है, और पास स्लिप देने से इंकार कर दिया यह कहते हुए कि अधिकारी अभी ऑफिस में नहीं है.

जिसपर मैंने कहा कि यदि अधिकारी नहीं हैं तो आप यह आर. टी. आई. स्वीकार कर लें, इस पर वह आवेदन को न स्वीकारने कि बात कहते हुए कहा कि आप सारी जानकारी इस  बुक लेट से प्राप्त कर सकतें है और यदि आप आर. टी. आई आवेदन लगाते हैं तो आप को केवल उन्हीं बातों कि जानकारी दी जाएगी जिसका ज़िक्र आपने आवेदन पत्र में किया है. और  आर. टी. आई. आवेदन जमा करने के लिए आपको कैश काउंटर पर जा कर कैश जमा करना पड़ेगा. इस पर हमने कहा की बिना पास के  हम अन्दर कैश काउंटर तक जायेंगे कैसे और क्या आप यह लिखित दे सकते है कि आप इस आवेदन को ऐसे नहीं स्वीकारेंगे?

हमारे इस सवाल पर श्री जे. एस पाण्डे जी यह कहते हुए वहां से चले गए कि आप आपने काम पर ध्यान नहीं दे रहें है बल्कि सवाल और जवाब में उलझ रहें है और यहाँ पर यही तरीका है, आर. टी. आई. आवेदन जमा करने का. इसके बाद भी मैं पुनः पास काउंटर पर गया  वहां पर बैठे सहायक श्री वी. के. गुप्ता जी से पूंछा कि क्या आप मुझे कैश काउंटर तक जाने का पास दे सकते है?

इस पर उंन्होने कहा कि जबतक अन्दर से पास स्लिप नहीं आता तब तक आप को अन्दर जाने का गेट पास नहीं मिल सकता. अंततः मैं निराश मन से वापस लौट रहा था कि मुझे ०५२२-२६२९१०६ से फ़ोन आया कि आपका पास स्लिप नीचे भेज रहा हूँ यदि आप गए न हो तो. मैनें कहा कि आप पास स्लिप भेजें मैं वापस आ रहा हूँ. और इस प्रकार मुझे पास स्लिप प्राप्त हुआ और मैं निदेशक चिकित्सा और उपचार विभाग में गया जहाँ पर श्री एस. के. गुप्ता जी ने, जो वहां पर बाबू हैं, मेरा आवेदन पत्र स्वीकार किया .

इस पूरे घटनाक्रम से हमें यह अनुभव हो गया कि आर. टी. आई. के निरूपण में सरकारी आला-अफसर हर मुश्किलें पैदा करने कि कोशिश करते हैं  क्योंकि सरकारी तंत्र में यही एक ऐसा शस्त्र है जो जवाबदेही के लिए मजबूर कर सकता है. एक आर. टी. आई. आवेदन जमा कराने के लिए मुझे स्वास्थ्य भवन के तीन चक्कर लगाने पड़े. पहले चक्कर में समय की समस्या थी क्योकि वहां पर लोगों से मिलने का समय सुबह, १० बजे से १२ बजे तक और शाम ४ बजे से ५ बजे तक का ही है. दूसरे चक्कर में छुट्टी थी. तीसरे चक्कर में कुछ घंटो के परिश्रम के बाद मुझे एक आर. टी. आई. आवेदन जमा कराने में सफलता प्राप्त हुई.


राहुल द्विवेदी