युवाओं ने किया लखनऊ में तम्बाकू कानून के परिपालन पर रिपोर्ट कार्ड जारी

[हिंदी रपट कार्ड] [English Report Cardयह रपट कार्ड 'अधिकार एवं दायित्व प्रशिक्षण शिविर' के प्रतिभागी युवाओं ने बनाया है: सचिदानंद पाण्डेय, जतिन अरोरा, सर्वेश कुमार शुक्ला, दिलीप शर्मा, नदीम सलमानी, आनंद पाठक, रितेश आर्य और राहुल द्विवेदी. इसके सलाहकार मंडल में थे प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त, डॉ संदीप पाण्डेय, शोभा शुक्ला एवं बाबी रमाकांत.

सिगरेट एवं अन्य तम्बाकू उत्पाद अधिनियम, २००३, के ५ नियमों के परिपालन को आँका:
१) किसी भी शैक्षिक संस्थान के १०० गज के भीतर तम्बाकू विक्रय पर प्रतिबन्ध
२) सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान प्रतिबंधित
३) १८ साल से कम उम्र के बच्चे एवं युवा न तो तम्बाकू खरीद सकते हैं और न ही बेच
४) तम्बाकू उत्पादनों पर चित्रमय चेतावनी
५) प्लास्टिक के पाउच में गुटखा बेचने पर प्रतिबन्ध

कुछ सुझाव: 
१. चूँकि अधिकाँश तम्बाकू सेवन १८ साल से पहले आरंभ होता है, यह अतिआवश्यक है कि १८ साल से कम उम्र के बच्चे और युवाओं को तम्बाकू न तो बेचनी चाहिए और न ही खरीदनी. दूसरा सवाल यह है कि शिक्षा अधिकार अधिनियम के युग में १८ साल से कम उम्र के बच्चे और युवा क्यों तम्बाकू बेचने पर विवश हैं? वें शिक्षा क्यों नहीं प्राप्त कर पा रहे हैं? बहुत कम तम्बाकू दुकानों पर यह बोर्ड लगा है कि १८ साल से कम उम्र के बच्चे और युवाओं का तम्बाकू खरीदना प्रतिबंधित है.

२. किसी भी शैक्षिक संस्थान के १०० गज के भीतर तम्बाकू विक्रय प्रतिबंधित है - इसको सख्ती से परिपालित करना चाहिए.

३. जो विदेशी सिगरेट लखनऊ में बिक रही है, जैसे कि गुदंग गरम (इंडोनेसिया), मार्लबोरो (अमरीका) आदि उनपर कोई भी चित्रमय चेतावनी क्यों नहीं है? यदि वो कानूनन रूप से आयात की गयी हैं तो उनको भारतीय कानून का अनुपालन करना चाहिए और यदि वो कानूनन रूप से आयात नहीं की गयी हैं तो न केवल भारत के लोगों के स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ रहा है बल्कि भारत के राजस्व का भी नुक्सान हो रहा है. क्या यह तम्बाकू तस्करी है? यदि है तो इसके खिलाफ सख्त कारवाई होनी चाहिए

४. पर्यावरण संगरक्षण के लिये प्लास्टिक पैकट में किसी भी तम्बाकू उत्पाद को बेचने पर प्रतिबन्ध लगना चाहिए जिनमें बिना तम्बाकू का पान मसाला, स्वीट सुपारी आदि भी शामिल हों

५. सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान सख्ती से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए - और उपयुक्त बोर्ड लगे हों (बहुत कम निजी परिसरों में ऐसे बोर्ड लगे हैं जो कानूनन अनिवार्य है). एक प्रकाशित समाचार के अनुसार, लखनऊ में २०११ में अबतक सिर्फ रुपया ६००० हर्जाना इकठ्ठा हुआ है - यानि कि सिर्फ ३० लोगों को सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करते हुए पकड़ा गया है! इस कानून को सख्ती से लागू किया जाए क्योंकि बिना सक्रियता और प्रभावकारी तरीके से कानून को लागू किये लखनऊ प्रशासन की घोषणा कि इस साल के अंत तक लखनऊ "धूम्रपान रहित" हो जायेगा, खोखला दावा लगता है.

सी.एन.एस.