उपरोक्त शब्द सुनकर आप काफी हैरान होंगे कि १८ साल तक की उम्र नाजुक क्यों होती है?
तो आइये मैं आपको इस बारे में अवगत कराता हूँ कि आखिर १८ साल तक की उम्र नाजुक क्यों होती है. हालांकि अभी तक मुझको भी इस सन्दर्भ में कुछ भी मालूम नहीं था, लेकिन दिनांक २७/०५/२०११ को सी ब्लाक इंदिरा नगर में चल रहे "अधिकार व उत्तरदायित्व शिविर" में तम्बाकू और उससे होने वाली हानियों पर माननीय बाबी रमाकांत जी ने अपने ज्ञान के भण्डार को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ हमें भेंट किया जिससे हमें कई बातों की जानकारी मिली.
यह तो सर्व विदित ही है कि १८ साल से कम उम्र के बच्चों की सोचने की क्षमता कम होती है. वे जिस माहौल में रहते हैं उसी माहौल के हिसाब से वे पलते बढ़ते हैं. अगर माहौल अच्छा हो और वहां रहने वाले लोग अच्छे हों तो बच्चा भी अच्छा होगा, और अगर माहौल खराब हो तो बच्चा भी उसी माहौल में पड़कर बिगड़ जाता है. अक्सर बुरी संगत में पड़कर वह धूम्रपान व तम्बाकू का सेवन करने लगता है. यहाँ पर मुझे एक पंक्ति याद आ रही है "संगति से ही गुण होत है संगति से गुण जाय, हिय तराजू तौली के तब मुख बाहर आय". तात्पर्य यह है कि बच्चा जैसी संगति करेगा उसके आधार पर ही उसके अन्दर गुण होंगे. अक्सर यह भी देखा जाता है कि बच्चे भावनाओं में बहक कर धूम्रपान करने लगते हैं-- जैसे कि चार लड़के एक कालेज में एक साथ पढ़ते थे जिनमे एक नशीले पदार्थ का सेवन करता था, तो बाकी तीनों भी उसके संगति में आकर नशीले पदार्थों का सेवन करने लगे. लेकिन उनको ये नहीं मालूम था कि इससे नुकसान होगा. धीरे-धीरे वे बीमार होने लगे. नशीले पदार्थों व तम्बाकू का सेवन करते रहने से उनके अन्दर टी.बी., दमा, कैंसर जैसे घातक रोगों ने जन्म ले लिया. अक्सर युवा वर्ग किसी फिल्म में अपने मनपसंद अभिनेता को धूम्रपान करते देख कर बहक जाते हैं और वे भी धूम्रपान करने लगते हैं, जिसका अंजाम बाद में उन्हें पता चलता है.
कुछ बच्चे सड़कों पर तम्बाकू कि दूकान लगाए रहते हैं जिनकी उम्र १८ साल से कम होती है. कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं जो ये समझते हैं कि तम्बाकू खाना शान की बात है, और स्वयं को आधुनिक कहलाने की होड़ में वे भी सिगरेट, तम्बाकू, गुटखा आदि का सेवन करने लगते हैं. उन्हें यह नहीं पता होता है कि इसका सेवन करने से हमारी मौत भी हो सकती है. इस संदर्भ में मैंने एक पंक्ति बनायी है जिसे मैं प्रस्तुत करना चाहूँगा "नशा नाश की जड़ है भाई, इसका फल अतिशय दुखदाई".
भारत सरकार ने २००३ से एक बहुत ही अच्छा कानून लागू किया है जिसके तहत १८ साल या उससे कम उम्र के बच्चे न तो तम्बाकू खरीद सकते हैं और न ही बेच सकते हैं. इस क़ानून का सख्ती से पालन होना चाहिए, तथा युवा वर्ग में इस बात की जागरूकता होनी चाहिए कि तम्बाकू रहित जीवन ही स्वस्थ जीवन है.
(प्रस्तुत लेखक सी.एन.एस. द्वारा आयोजित छः दिवशीय "अधिकार व दायित्व " शिविर में प्रशिक्षित एक प्रशिक्षार्थी सर्वेश कुमार शुक्ला द्वारा लिखा गया हैं)