मौत का नाम सुनते ही ह्रदय में एक अजीब सा कम्पन होता है, जिससे रोंगटे भी खड़े हो जाते हैं. एक थे पोपटलाल जी जो, धूम्रपान तो छोड़िए, इलायची आदि का भी सेवन नहीं करते थे, उनकी मृत्यु हुई कैंसर की वजह से- कारण का धुआं ! अब आप सोंच रहे होंगे कि सिगरेट का सेवन तो वह करते नहीं थे फिर सिगरेट का धुआं कहाँ से आया? वो इसलिए कि प्रतिदिन पोपटलाल अपने पड़ोसी नरसिंह जी के घर शतरंज खेलने जाया करते थे, और कम से कम २ घंटे इस खेल का आनन्द उठाया करते थे. इस दो घंटे की अवधि में नरसिंह कम से कम १० सिगरेटों का कश लगाकर बड़े ही सुख का अनुभव करते थे. पर सिगरेट का धुआं पोपटलाल जी के शरीर में भी जाता था. परिणाम यह हुआ कि ३ साल बाद नरसिंह थोड़े अस्वस्थ हुए परन्तु पोपटलाल जी ४ महीने कैंसर को झेलने के बाद अब यमराज के यहाँ शतरंज खेल रहे हैं.
अगर गहनता से आप पोपटलाल जी के बारे में सोचिये तो परिणाम यह निकलकर सामने आएगा कि यदि हम धूम्रपान नहीं भी कर रहें हैं, परन्तु धूम्रपान कर रहे लोगों के संपर्क में है, तो हमें भी अनेको रोगों का सामना करना पड़ सकता है. क्योंकि सिगरेट के धुएं के सारे विषैले कीटाणु हमारे शरीर में बड़ी ही आसानी से प्रवेश कर लेते हैं.
प्रो रमाकांत जी ने बताया कि अकारण मृत्यु का अधिकांश श्रेय कैंसर या धूम्रपान से हो रही अन्य बीमारियों को जाता है. उन्होंने हमें कई कैंसर ग्रस्त रोगियों के फोटोग्राफ भी दिखाए जिसमे मुख्यतः गले, जीभ, गाल, यहाँ तक हाथों और पैरों का भी कैंसर पाया गया. अंत में उन्होंने बताया कि रोगी को बचाने के लिए अधिकतर कैंसर से ग्रसित अंग को शरीर से अलग करना पड़ता है.
यह कोई लेख नहीं है. बस मैं आपसे यही विनम्रता से निवेदन करता हूँ कि ३१ मई को होने वाले "विश्व तम्बाकू निषेध दिवस" पर यदि हम लोग यह दृढ़ निश्चय कर लें कि कम से कम २ लोगों को तम्बाकू से होने वाले घातक परिणामों के बारे में न सिर्फ बताएँगे बल्कि तम्बाकू सेवन न करने में उनका भरपूर सहयोग करेंगे तो काफी हद तक हम अपने आस पड़ोस के माहौल को स्वच्छ कर सकते हैं.
(प्रस्तुत लेखक सी.एन.एस. द्वारा आयोजित छः दिवशीय "अधिकार व दायित्व " शिविर में प्रशिक्षित एक प्रशिक्षार्थी सच्चिदानंद पाण्डेय द्वारा लिखा गया हैं)