किसान विद्यालय:किसानों को पढ़ाने का नायाब तरीका

किसान विद्यालय:किसानों को पढ़ाने का नायाब तरीका

किसान विद्यालय किसानों को पढ़ाने का नायाब तरीका है। जो किसानो को उनके अनुभवों को बाँटने का एक अच्छा अवसर प्रदान करता है। दुनिया का पहला किसान विद्यालय वर्ष १९८९ में इंडोनेशिया के जावा दीप में खोला गया था। यह विद्यालय धान की फसल बोने वाले उन किसानों के बीच खोला गया था जो लम्बे समय से रसायनों का प्रयोग कीटनाशकों के रूप में कर रहे थे।

किसान विद्यालय की परिकल्पना के पीछे मूल बात यह थी कि किसान जो प्रतिदिन खेती के प्रयोग में लगे रहतें हैं उनके ही अनुभवों के माध्यम से उनसे जैविक कृषि, कृषि पारिस्थितिकी, कृषि आर्थिकी और कृषि पर्यावरण की बात की जा सके। इस तरह कृषि में रोज किये जा रहे उनके प्रयोग और व्यावहारिक ज्ञान का समग्र रूप से लाभ उठाया जा सके।

उत्तर प्रदेश में सन २००० में कृषि विविधिकरण परियोजना को प्रयोग के तौर पर अपनाया गया। जिसे प्रचलित रूप में डास्प परियोजना के नाम से जाना जाता है। इसके तहत प्रदेश में किसान स्कूलों का गठन किया गया। इन स्कूलों की विशेषता यह थी की इनकी अपनी एक सुगठित नियमावली थी। इसके पीछे उनकी सोच विद्यालय को सुचारू रूप से चलाना था। ताकि विद्यालय से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति को उसके कर्तव्य का बोध हो सके। इस सम्बन्ध में गोरखपुर इनवायर्नमेंट एक्शन ग्रुप के अध्यक्ष डाक्टर शिराज ० ए० वजीह का कहना है कि ' गोरखपुर इनवायर्नमेंट एक्शन ग्रुप लम्बे समय से पूर्वी उत्तर प्रदेश की कृषि और उसकी चुनौतियों को लेकर कार्य कर रहा है जो पिछले पॉँच सालों से गोरखपुर के दो ब्लाकों में कुल १२ स्कुल चला रही है।'

सभी किसान स्कूल किसानों की खेती में आने वाली समस्याओं पर चर्चा करने और उनके समाधान पाने के लिए एक कारगर मंच साबित हुए हैं। यह स्कूल अपने स्वरुप में बेहद अनौपचारिक हैं। तीन से चार गांवों के बीच किसी सार्वजनिक स्थल पर चलने वाले इन स्कूलों का कोई भी किसान बिना कोई पैसा दिए सदस्य बन सकता है। इन स्कूलों की बैठक माह में एक बार होती है। किसानों की समस्या को जानने के लिए पीले रंग का एक समस्या कार्ड होता है जिसे स्कूल के १५ दिन पहले गांवों में वितरित कर दिया जाता है। स्कूल के दिन समस्या कार्डों द्वारा चुनी गई और वर्गीकृत की गई समस्याओं पर चर्चा की जाती है।

इन समस्याओं का समाधान किसानों के आपसी अनुभवों से निकालने की कोशिश की जाती है। प्रत्येक स्कूल के दिन समस्याओं के समाधान के लिए उस विषय के जानकार भी रहते हैं। इन स्कूलों की एक महत्वपूर्ण बात यह भी है की स्कूल से जुड़े लोग साल भर की कार्ययोजना ख़ुद एक साथ बैठ कर बनाते हैं। जिसमें कृषि सम्बन्धी माहवार चर्चा के विषय और कार्य निर्धारित किये जाते हैं। सभी किसान स्कूल किसानों की खेती में आने वाली समस्याओं पर चर्चा करने और उनके समाधान पाने के लिए एक कारगर मंच साबित हुए हैं।

मास्टर ट्रेनर किसान स्कूलों की एक मजबूत कड़ी है। किसान स्कूलों में आने वाली समस्याओं के चुनाव और निराकरण में इनकी प्रमुख भूमिका है। महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में किसान स्कूलों का महत्वपूर्ण योगदान यह है की इन स्कूलों नें महिलाओं को तकनीकि रूप से मजबूत तथा सबल बनाने का काम किया है।

किसान स्कूलों से जुड़ने के पश्चात् महिलाओं को न केवल बाहर की दुनिया में कदम रखने का साहस दिया है बल्कि उन्हें कृषि तकनिकी के विषय में भी जानकार बनाने का काम भी किया है। कुछ महिलाएं कृषि तकनिकी की इतने सफल जानकार के रूप में सामने आई हैं की उन्हें समय-समय पर गैर व् कम रासायनिक खेती के सम्बन्ध में प्रशिक्षण देने के लिए अन्य संस्थाओं द्वारा निमंत्रण दिया जाता है। इस तरह हम देखते हैं की किसान विद्यालय किसानो के लिए एक प्रभावी माध्यम हो सकते हैं उनके खेती सम्बन्धी उचित ज्ञान के लिए।

अमित द्विवेदी
लेखक सिटिज़न न्यूज़ सर्विस से जुड़े हैं