… तो जिमाने के लिए कन्या कहाँ से आएँगी
(Declining sex ratio)
नासिरूद्दीन
(यह रचना मौलिक रूप से जेंडर-जिहाद पर प्रकाशित हुई है, जिसको पढ़ने के लिए यहाँ पर क्लिक कीजिये)
ज़रा सोचिए अगर नवरात्र के मौके पर ‘जिमाने’ के लिए चलती-फिरती ‘कन्या’ की जगह मूर्तियों का सहारा लेना पड़े! अगर बेटियों को पैदा न होने देने का सिलसिला यूँ ही चलता रहा तो हो सकता है कि आने वाले दिन ऐसे ही हों। नवरात्र के मौके पर ‘जिमाने’ के लिए ‘कन्याओं’ का ऐसी ही विकल्प तलाशना होगा। ऐसे संकेत न सिर्फ उत्तर प्रदेश में मिल रहे हैं बल्कि देश के कई और राज्यों में तो हालत बहुत ही खराब है। जी हाँ, अपने पुण्य के लिए बेटियों को हम पूजना चाहेंगे और वो हमें मिलेंगी नहीं।
यह किसी की दिमागी कल्पना नहीं है। प्रकृति के नियम के मुताबिक आबादी में स्त्री-पुरुष लगभग बराबर की संख्या में होने चाहिए। कम से कम स्त्री जाति तो कम नहीं ही होनी चाहिए। लेकिन सचाई क्या है? सन् 2001 में स्त्री और पुरुषों की गिनती से यह पता चला कि उत्तर प्रदेश की कुल आबादी से करीब 90 लाख औरतें कम हैं। इनमें हिन्दू पुरुषों की तुलना में अकेले 75 लाख तो हिन्दू औरतें गायब हैं। यानी जिन बेटियों को होना चाहिए था, वे नहीं हैं।
जिन्हें जिमाया जाता है, अब उन कन्याओं की तादाद का जायजा लें। प्रदेश में छह साल से कम उम्र के शिशुओं में लड़कों के मुकाबले लगभग 14 लाख लड़कियाँ कम हैं। यानी गायब हैं। ये बेटियाँ तो विशुद्घ रूप से पैदा नहीं होने दी गयीं या पैदा होने के बाद जिंदगी की उमंग से इन्हें मरहूम कर दिया गया। इन 14 लाख में अकेले हिन्दू समुदाय में लगभग पौने बारह लाख बेटियाँ, बेटों के मुकाबले कम हैं।
किसी समाज में स्त्री-पुरुष के हिसाब को देखने का एक तरीका है लिंग अनुपात (sex ratio)। यानी एक हजार मर्दों की तुलना में कितनी औरतें हैं। कायदे से हजार में हजार ही होनी चाहिए। उत्तर प्रदेश के हिन्दुओं का लिंग अनुपात 894 है (यानी प्रति हजार हिन्दू मर्दों पर 106 औरतें कम)। छह साल की कम उम्र की शिशुओं में यही संख्या 911 है (यानी प्रति हजार बच्चों पर 89 हिन्दू बच्चियाँ कम)। हालात की गम्भीरता का अंदाजा इसी एक आँकड़े से लगाया जा सकता है।
अगर पूरी हिन्दू आबादी को देखें तो अकेले उत्तर प्रदेश में 51 ऐसे जिले हैं, जहाँ कुल लिंग अनुपात डेढ़ सौ अंकों तक कम है। …और उत्तर प्रदेश में 70 में 27 जिले ऐसे हैं जहाँ प्रति हजार हिन्दू लड़कों पर लड़कियाँ (शिशु लिंग अनुपात) सौ से 180 की संख्या तक कम हैं। बेटों की चाह में हिन्दू बेटियों के खिलाफ खड़े होने वालों में वे जिले शामिल हैं, जिन्हें हम विकसित और धन-धान्य से भरपूर जिले मानते हैं। जैसे इस मामले में पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सहारनपुर (शिशु लिंग अनुपात-834), मुजफ्फरनगर (820), मेरठ (830), बागपत (820), गाजियाबाद (834), गौतम बुद्घ नगर (847), बुलंदशहर (855), अलीगढ़ (877), मथुरा (839), कानपुर नगर (863) और लखनऊ (909) आगे हैं। बेटियों को भ्रूण में ही खत्म करने का काम (sex selective abortion/ Female foeticide) सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे और पैसे वाले कर रहे हैं। इसमें अब धर्म और जातियों का भी भेद नहीं रहा।
इसीलिए अगर यही हाल रहा तो कहाँ से मिलेंगी नौ कन्या, नौ देवी स्वरूपा पूजने के लिए और जिमाने के लिए। …जमीन पर इसका असर दिख रहा है। नहीं मिल रही हैं कन्याएँ। खासकर लखनऊ जैसे बड़े शहरों और संभ्रांत कॉलोनियों में। लोगों से बात करने पर पता चलता है कि पहले अष्टमी को ही कन्या जिमाया जाता था। अब षष्ठी और सप्तमी को भी कन्या जिमाया जा रहा है। क्यों? क्योंकि अब नौ बेटियाँ बड़ी मुश्किल से मिल रही हैं। और एक ही बेटी को कई घरों में ‘जीमना’ होता है। इसलिए एक दिन में कितना जीमेंगी, तो अलग-अलग घरों में कई दिनों में जीमती हैं। यही नहीं, अब नौ की संख्या पर भी जोर नहीं है, सात मिल जाए, पाँच मिल जाएँ- उतने से ही काम चलाया जा रहा है। आने वाले दिनों में क्या तीन और एक की नौबत आ जाएगी?
नवरात्र के मौके पर खासतौर पर देवी के रूपों की आराधना की जाती है। पर उसके बाद साल भर क्या हम अपनी स्त्री जाति की सुध लेते हैं। हमें जीवित ‘देवियों’ की थोड़ी सुध लेनी चाहिए। वरना हम सिर्फ पाठ ही करते रहेंगे …या देवी… नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।’ और बेटियाँ जिंदगी के लिए जद्दोजेहद करती रहेंगी।
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