लड़की मरै घड़ी भर का दु:ख, जिये तो जनम भर का
बुंदेलखंड की धरती पर धड़ल्ले से हो रही भ्रूण की लिंग जाँच
नासिरूद्दीन हैदर खाँ
मौलिक रूप से जेंडर जिहाद पर प्रकाशितबांदा/चित्रकूट। खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी- बुंदेलों के मुँह से स्त्री वीरता की हमने यही कहानी सुनी थी। लेकिन अब बुंदेलखंड में यह धुन ज्यादा सुनाई दे रही है-‘‘लड़की मरै घड़ी भर का दु:ख, लड़की जिये तो जनम भर का दु:ख।’’ लड़की यानी बेटियों के बारे में इस माटी के लोगों का यही नजरिया है। लखनऊ से 216 किलोमीटर दूर। पठार, जंगल और मौसम समेत हर चीज की ‘अति’ वाले इलाके में बिटिया के साथ भी अति है। हर जगह की तरह यहाँ भी बिटिया अनचाही हैं लेकिन ज्यादा खुले रूप में।
खुला इतना कि आप बांदा में हो या कर्वी में, जरा सी होशियारी बरतिये और आठ सौ से दो हजार के बीच में पता कीजिए कि गर्भ में पल रही संतान कौन सा लिंग लेकर आने वाली हैं। फिर उसी से उसके अस्तित्व का फैसला हो जएगा। बुंदेलखंड की प्यासी और बंजर पड़ी जमीन की मानिंद यहाँ की आबादी भी स्त्री जाति से धीरे-धीरे बंजर हो रही है। अतिश्योक्ति नहीं है। आँकड़े भी इसकी तस्दीक कर रहे हैं।
पीपीएनडीटी अधिनियम के मुताबिक भ्रूण का लिंग जाँचना न सिर्फ अवैध है बल्कि इसके लिए सजाएँ भी हैं। लिंग जाँचने का सबसे सुगम साधन अल्ट्रासाउंड मशीनें हैं। सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद चेते स्वास्थ्य विभाग प्रशासन ने अल्ट्रासाउंड क्लीनिक का पंजीकरण तो करा लिया लेकिन बांदा और कर्वी के ज्यादातर केन्द्रों पर थोड़ा सम्हलकर, थोड़ा बचकर लिंग जाँच आसानी से हो रही है। फर्क इतना पड़ा है कि अब कानून की आड़ लेकर दाम जरूर बढ़ गए हैं। पहले जो काम 300-350 रुपए में हो जाता था, अब लिंग जाँचने के लिए आठ सौ से दो हजार रुपए तक लिए जा रहे हैं। यही नहीं डॉक्टर जाँच करवाने वालों को हिदायत भी देता है, ‘‘लिख कर नहीं देंगे। किसी से कहना नहीं, तुम्हें जेल हो जाएगी।’’ हाँ, अगर थोड़ी जान पहचान हुई तो दाम में कुछ कमी हो सकती है।
मैंने कई अल्ट्रासाउंड सेंटरों पर खुद और दोस्तों की मदद से नकली ग्राहक बनकर इसकी जनकारी ली। बांदा के एक केन्द्र पर डॉक्टर ने तो पहले मना किया लेकिन नर्स से बात करने पर 700 रुपए में जाँच की बात तय हो गई। एक केन्द्र पर तो पूछते ही रिसेप्शन पर बैठे व्यक्ति ने कहा, ‘‘हजार रुपए लगेंगे लेकिन लिखकर कुछ नहीं देंगे।’’ शहर के एक क्लिनिक पर अल्ट्रासाउंड कराने वाली महिलाओं को एक साथ एक जगह बैठाकर रखा गया था। जिन्हें देखने और फिर बात करने बाद पता चला कि वे सभी गर्भवती हैं और…। बांदा में एक और खास बात देखने को मिली। यहाँ अल्ट्रासाउंड और स्त्री रोग/ प्रसूति विशेषज्ञ साथ-साथ एक छत के नीचे मिले। एक मशहूर डॉक्टर ने तो पहले मना किया फिर अल्ट्रासाउंड करने वाले साहब ने हाँ कर दी। इसी तरह एक डॉक्टर साहिबा के आदमी ने बताया, ‘‘बता देंगे लड़का है या लड़की… अगर एबार्शन भी हमारे यहाँ कराया तो छूट मिल सकती है।’’ इस शहर में एक-दो डॉक्टर की ख्याति सिर्फ एबार्शन करने की वजह से है।
यही हाल चित्रकूट/कर्वी में देखने को मिली। लिंग चाँच कहाँ होगी, यह पता आपको कई पान दुकान वाले, मेडिकल स्टोर वाले और नीम-हकीम बता सकते हैं। चाहे वो बांदा कचहरी के पास का कोई मेडिकल स्टोर हो या फिर अतर्रा में दवा या पान बेचने वाला। कोई नीम-हकीम हुआ तो वह आपको सेंटर तक भी पहुँचा सकता है। उसका कमीशन जो तय है।
हालाँकि इस जाँच की पैठ देखनी है तो लोगों के बीच बैठें। हमने कुछ गाँवों का जायजा लिया। लोगों से बात की। जरा सा घुमा फिराकर पूछने पर गाँव वाले खुद ही बताने लगते हैं। शहर वालों की तरह ये मुखौटा पहन कर जो नहीं जीते। तिंदवारी थाना क्षेत्र के एक गाँव की पुष्पा एक डॉक्टर का नाम लेकर बताती है, ‘‘मशीन से जाँच करके बता देते हैं।’’ उर्मिला मशीन के चमत्कार से बहुत खुश है- ‘‘चार महीने का पेट था। दो हजार देकर जाँच कराया। डॉक्टर ने देखने के बाद बताया, मिठाई खिलाओ।’’ हालाँकि हमें सूरत में काम करने वाले श्याम और उनकी पत्नी रामप्रीत परेशान हाल मिलीं। इनकी पहले से तीन बेब्टियाँ हैं। बताने लगीं, ‘‘दो बार जाँच कराकर बच्चा गिराया।’’ विडम्बना देखिए, जाँच तो अत्याधुनिक मशीन से काफी पैसा देकर कराया लेकिन गर्भपात बबुआइन (गाँव में जचगी कराने वाली महिला) से। नतीजा, रामप्रीत की बच्चादानी खिसक गई। वह काफी तकलीफ में रही। रामप्रीत अपने पति के पुत्र जिद से परेशान है। अब वह फिर पेट से है। कर्वी के एक गाँव की नूरजहाँ ने भी पहले गर्भ का लिंग पता किया। जब पता चला कि कन्या भ्रूण है तो गर्भपात करा दिया। बांदा शहर से करीब चालीस किलोमीटर दूर एक कस्बे में या फिर कर्वी शहर से थोड़ी हटकर किसी गाँव के नजदीक सुनसान इलाके में अल्ट्रासाउंड सेंटर देखकर थोड़ा ताज्जुब भी होता है। आखिर यहाँ क्यों? आसपास के इलाके में बात करने पर इसकी वजह पता चल जती है। कर्वी के मनोहर बताते हैं, ‘‘तीन बेटियाँ थीं। यहीं चेक कराया था। फिर…।’’ तो श्याम का कहना था, ‘‘पैदा करके मारना ज्यादा पाप है। पेट में तो पूरा जन नहीं रहता है। यही उपाय अच्छा है। डॉक्टर साहब बता देते हैं, फिर काम हो जता है।’’ तिंदवारी, अतर्रा, बबेरू, बांदा, नरैनी हो या फिर कर्वी और चित्रकूट। यही नहीं बांदा का अमरागाँव, जसपुरा हो या बसील या फिर बगरेही, रैपुरा, कुठलिआही या पाठा क्षेत्र के मानिकपुर तक लोग ‘मशीन’ की ख्याति जानते हैं। लोग खुद ही बताते हैं कि झाँसी, कानपुर और पड़ोस के सतना में भी ऐसी जाँच आसानी से हो जाती है। जाँच कराने वालों में छोटे किसान, बड़े किसान, पढ़े-लिखे नौकरीपेशा भी हैं। मुसलमानों में भी इस मशीन की करामाती चाह तेजी से बढ़ रही है। पहले राजपूत बेटियों के मामले में बदनाम थे अब इसमें ब्राह्मण, कुर्मी, यादव, दलित सब शामिल हो गए हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि दलित-मुसलमान या कमजोर आर्थिक या माली हालत वालों की पहले से दो-तीन बेटियाँ भी हैं।
मौलिक रूप से जेंडर जिहाद पर प्रकाशित