[English] वैज्ञानिक शोध से यह तो प्रमाणित था कि मधुमेह होने से टीबी-रोग होने का ख़तरा 2-3 गुना बढ़ता है और मधुमेह नियंत्रण भी जटिल हो जाता है, पर "लेटेंट" (latent) टीबी और मधुमेह के बीच सम्बंध पर आबादी-आधारित शोध अभी तक नहीं हुआ था। 11-14 अक्टूबर 2017 को हुए अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में, लेटेंट-टीबी और मधुमेह सम्बंधित सर्वप्रथम आबादी-आधारित शोध के नतीजे प्रस्तुत किये गए.
सरकार के एड्स-मुक्त भारत का वादा सराहनीय, पर कैसे होगा यह सपना साकार?
(बाएं से दायें) डॉ फ्रांको बी, डॉ ईश्वर गिलाडा, डॉ शेरोन लेविन, डॉ नवल चन्द्र (एसीकॉन 2017) |
कमज़ोर संक्रमण नियंत्रण के कारण बढ़ी बच्चों में दवाप्रतिरोधक टीबी
अधिकांश बच्चों में, विशेषकर छोटे बच्चों में, टीबी उनके निकटजनों से ही संक्रमित होती है। अविश्वसनीय तो लगेगा ही कि सरकार ने अनेक साल तक बच्चों में टीबी के आँकड़े ही एकाक्रित नहीं किए पर 2010 के बाद के दशक में अब बच्चों में टीबी नियंत्रण पर सराहनीय काम हुआ है - देश में और विश्व में भी। पर यह पर्याप्त नहीं है क्योंकि संक्रमण नियंत्रण कुशलतापूर्वक किए बैग़ैर हम टीबी उन्मूलन का सपना पूरा नहीं कर सकते।
तम्बाकू के 'सादे पैकेट' पर चित्रमय चेतावनी क्यों है अधिक प्रभावकारी?
सिगरेट एवं अन्य तम्बाकू उत्पाद अधिनियम 2003 के तहत तम्बाकू उत्पाद के पैकेट पर, चित्रमय चेतावनी 1 जून 2009 से भारत में लागू हो पायी. पर इतना पर्याप्त नहीं है क्योंकि तम्बाकू महामारी पर अंकुश लगाये बिना असामयिक मृत्यु दर कम हो नहीं सकता. अब भारत को जन स्वास्थ्य के लिए, एक बड़ा कदम लेने की जरुरत है जो अनेक देशों में लागू है और तम्बाकू नियंत्रण में कारगर सिद्ध हुआ है: 'प्लेन पैकेजिंग' या सादे तम्बाकू पैकेट पर अधिक प्रभावकारी और बड़ी चित्रमय चेतावनी की नीति अब भारत में भी पारित होनी चाहिए.
बिना स्वस्थ पर्यावरण के स्वस्थ इंसान कहाँ?
स्वास्थ्य से जुड़े लोग अक्सर पर्यावरण को महत्व नहीं देते और पर्यावरण से जुड़े लोग स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर कम बात करते हैं। ज़मीनी हक़ीक़त तो यह है कि बिना स्वस्थ पर्यावरण के, इंसान समेत जीवन के सभी रूप, स्वस्थ रह ही नहीं सकते। जीवन से जीवन पोषित होता है. सरकारों ने सतत विकास लक्ष्यों का वादा तो किया है जिनमें स्वास्थ्य, पर्यावरण, लिंग जनित समानता, शहरी ग्रामीण सतत विकास, आदि सभी मुद्दों को एक दूजे पर अंतरंग रूप से निर्भर माना गया है पर सही मायनों में जिस विकास मॉडल के पीछे हम भाग रहे हैं वो हमारे पर्यावरण का विध्वंस कर रहा है और जीवन को अस्वस्थ।
तम्बाकू महामारी पर अंकुश लगाये बिना सतत विकास मुमकिन नहीं
[विश्व तम्बाकू निषेध दिवस 2017 वेबिनार रिकॉर्डिंग | पॉडकास्ट] हालाँकि सरकार ने 2030 तक हर इंसान के लिए सतत विकास का सपना पूरा करने का वादा तो किया है पर तम्बाकू महामारी के कारणवश, अनेक विकास मानकों पर प्रगति उल्टी दिशा में जा रही है. जानलेवा गैर-संक्रामक रोग (ह्रदय रोग, पक्षाघात, कैंसर, दीर्घकालिक श्वास रोग, आदि) से मृत्यु का एक बड़ा कारण है: तम्बाकू. तम्बाकू के कारण गरीबी, भूख, पर्यावरण को नुक्सान, अर्थ-व्यवस्था को क्षति, आदि भी हमको झेलने पड़ते हैं.
हर एचआईवी पॉज़िटिव व्यक्ति को एआरटी इलाज देने की नयी सरकारी नीति सराहनीय
हर एचआईवी पॉज़िटिव व्यक्ति को (बिना सीडी4 जांच के) अब सरकारी एड्स स्वास्थ्य सेवा केंद्रों से नि:शुल्क एंटिरेटरोवाइरल (एआरटी) दवा मिलेगी। अभी तक सिर्फ़ उन एचआईवी पॉज़िटिव लोगों को नि:शुल्क दवा मिलती थी जिनका सीडी4 जाँच 500 से कम होती थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तो 2015 में ही वैज्ञानिक प्रमाण को देखते हुए यह निर्णय ले लिया था कि हर एचआईवी पॉज़िटिव व्यक्ति को एंटिरेटरोवाइरल दवा मिलनी चाहिए और एआरटी दवा मिलना सीडी4 जाँच पर निर्भर नहीं होना चाहिए।
[पॉडकास्ट] जन-स्वास्थ्य इस सप्ताह: टीबी और हार्ट अटैक पर नयी मार्गदर्शिकाएं, अस्थमा और तम्बाकू निषेध दिवस, और मेक्सिको में ट्रेकोमा उन्मूलन
[पॉडकास्ट सुने या डाउनलोड करें] जन स्वास्थ्य इस सप्ताह, सीएनएस की साप्ताहिक पॉडकास्ट सीरीज है जो पिछले सप्ताह से 5 मुख्य जन स्वास्थ्य सम्बन्धी न्यूज़ प्रस्तुत करती है. इस सप्ताह 5 मुख्य जन-स्वास्थ्य सम्बन्धी समाचार इस प्रकार हैं: मेक्सिको में trachoma उन्मूलन का सपना पूरा; हार्ट अटैक पर भारत की पहली राष्ट्रीय मार्गदर्शिका जारी; विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीबी मार्गदर्शिका जारी; विश्व अस्थमा दिवस 2017; विश्व तम्बाकू निषेध दिवस 2017. [पॉडकास्ट सुने या डाउनलोड करें]
हर जरूरतमंद को जब तक दमा (अस्थमा) इलाज नहीं मिलेगा, तब तक कैसे पूरे होंगे राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के लक्ष्य?
[वर्ल्ड अस्थमा डे वेबिनार रिकॉर्डिंग] [सुने और डाउनलोड करें पॉडकास्ट] [English] भारत सरकार एवं अन्य 194 देशों की सरकारों ने 2030 तक, गैर-संक्रामक रोगों (जैसे कि दमा/ अस्थमा) से होने वाली असामयिक मृत्यु को एक-तिहाई कम करने का वादा किया है (सतत विकास लक्ष्य/ SDGs). भारत सरकार की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 (National Health Policy 2017) का भी एक लक्ष्य यह है कि भारत में दीर्घकालिक श्वास रोगों (जैसे कि दमा/ अस्थमा) से होने वाली असामयिक मृत्यु 2025 तक, 25% कम हों. पर बिना पक्की चिकित्सकीय जांच और सर्वगत प्रभावकारी इलाज के यह लक्ष्य कैसे पूरे होंगे?
अखिलेश शुक्ला जी की आकास्मक मृत्यु पर शोक
हम सभी के प्यारे मित्र अखिलेश शुक्ला जी का यूँ अचानक से चले जाना बहुत ही पीड़ादायक तथा विश्वास न कर पाने वाली घटना है. आप निश्चित तौर पर एक जीवन्त, खुशनुमा, सज्जन तथा प्रेरक व्यक्तित्व वाले इंसान थे.
आपकी अपूरणीय कमी हम लोगों को सैदाव याद दिलाएगी कि कैसे ह्रदय और रक्त-कोष्ठक रोग हमारी ज़िन्दगी को प्रभावित कर रहे हैं. अखिलेश, आपकी कर्तव्यनिष्ठा, कर्मठता और मूल्यवान जीवन हमें हमेशा प्रेरित करेगा.
आपकी अपूरणीय कमी हम लोगों को सैदाव याद दिलाएगी कि कैसे ह्रदय और रक्त-कोष्ठक रोग हमारी ज़िन्दगी को प्रभावित कर रहे हैं. अखिलेश, आपकी कर्तव्यनिष्ठा, कर्मठता और मूल्यवान जीवन हमें हमेशा प्रेरित करेगा.
सड़क-दुर्घटना-मृत्यु दर 2020 तक आधा करने के वादे के बावजूद थाईलैंड में 'सोंगक्रान' त्यौहार में दर बढ़ा!
2025 तक टीबी मुक्त भारत के लिए जरुरी है स्वास्थ्य एवं गैर-स्वास्थ्य वर्गों में साझेदारी
अब इसमें कोई संदेह नहीं कि टीबी मुक्त भारत का सपना सिर्फ स्वास्थ्य कार्यक्रम के ज़रिए नहीं पूरा किया जा सकता है. टीबी होने का खतरा अनेक कारणों से बढ़ता है जिनमें से कुछ स्वास्थ्य विभाग की परिधि से बाहर हैं. उसी तरह टीबी के इलाज पूरा करने में जो बाधाएं हैं वे अक्सर सिर्फ स्वास्थ्य कार्यक्रमों से पूरी तरह दूर हो ही नहीं सकतीं - उदहारण के तौर पर - गरीबी, कुपोषण, आदि. इसीलिए टीबी मुक्त भारत का सपना, सभी स्वास्थ्य और ग़ैर-स्वास्थ्य वर्गों के एकजुट होने पर ही पूरा हो सकता है. इसी केंद्रीय विचार से प्रेरित हो कर, विश्व स्वास्थ्य दिवस 2017 के उपलक्ष्य में, हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला स्थित, हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (एचपीसीए) के परिसर में, टीबी मुक्त भारत सम्मेलन का आयोजन हुआ.
"टीबी हारेगा, देश जीतेगा" जब हम सब एकजुट होकर टीबी उन्मूलन के लिए कार्य करेंगे!
[English] टीबी (ट्यूबरक्लोसिस या तपेदिक) रोग से बचाव मुमकिन है, दशकों से देश भर में पक्की जांच और पक्का इलाज सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में नि:शुल्क उपलब्ध है, पर इसके बावजूद टीबी जन स्वास्थ्य के लिए एक विकराल चुनौती बना हुआ है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की नवीनतम रिपोर्ट देखें तो भारत में 2015 में, 28 लाख नए टीबी रोगी रिपोर्ट हुए (2014 में 22 लाख थे), 4.8 लाख टीबी मृत्यु हुईं (2014 में 2.2 लाख मृत्यु हुईं थीं), और 79,000 दवा प्रतिरोधक टीबी (मल्टी-ड्रग रेसिस्टेंट टीबी या MDR-TB) के रोगी रिपोर्ट हुए (2015 में 11% वृद्धि). "टीबी उन्मूलन संभव है पर अभी 'लड़ाई' जटिल और लम्बी प्रतीत होती है" कहना है शोभा शुक्ला का जो सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस) का संपादन कर रही हैं और टीबी उन्मूलन आन्दोलन से दशकों से जुड़ीं हुई हैं.
सबके सतत विकास का सपना आखिर कब पूरा होगा?
संयुक्त राष्ट्र में, 190 से अधिक देशों की सरकारों ने 2030 तक सतत विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goals/ SDGs) पूरे करने का वादा तो किया है पर विभिन्न देशों की आन्तरिक वास्तविकता देखें तो अक्सर सरकारें इन सतत विकास लक्ष्य के विपरीत निर्णय लेती हैं. उदहारण के तौर पर, कुछ देशों में आंतरिक संकट मंडरा रहा है तो कुछ देशों में शक्तिशाली देशों के हमले से प्रशासन-व्यवस्था तार-तार है. भारत समेत अनेक देशों की आर्थिक नीति ऐसी है कि गरीब अधिक गरीबी में धस रहा है और अमीर अधिक अमीर हो रहा है.
टीबी से बचाव और टीबी के इलाज में है सीधा नाता
टीबी फैलने से रोकना एक बड़ी चुनौती बना हुआ है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2015 में 28 लाख टीबी के नए रोगी चिन्हित हुए, जो 2014 की तुलना में 6 लाख अधिक है. भारत में 2015 में 480000 टीबी मृत्यु हुईं जो 2014 की तुलना में लगभग दोगुनी हैं. टीबी का इलाज भी सभी जरुरतमंदों को नहीं मिल पा रहा है. एक ओर भारत सरकार का दावा है कि टीबी 2025 तक समाप्त हो जाएगी और दूसरी तरफ यह आकड़ें जो अत्यंत संगीन स्थिति का संकेत दे रहे हैं. हर टीबी रोगी को पक्की जांच और असरकारी दवा नहीं मिलेगी तो टीबी फैलने से कैसे रुकेगी?
[विश्व टीबी दिवस 2017] प्रभावकारी ढंग से टीबी कार्यक्रम क्रियान्वित करना ही सबसे श्रेष्ठ 'वैक्सीन' है
[वेबिनार रिकॉर्डिंग देखें] [वेबिनार ऑडियो पॉडकास्ट सुनें] 2017 विश्व टीबी दिवस से पूर्व यह मूल्यांकन करना लाज़मी है कि दशकों से राष्ट्रीय टीबी कार्यक्रम के सक्रिय होने के बावजूद क्यों भारत में अन्य देशों की तुलना में सबसे अधिक टीबी (तपेदिक) है? वर्तमान में भारत के लगभग हर जिले में अति-आधुनिक जीन-एक्स्पर्ट (Gene Xpert) 'मोलिक्योलर' जाँच विधि उपलब्ध है जो टीबी की पक्की जाँच और दवा प्रतिरोधक टीबी की ठोस जानकारी 2 घंटे के भीतर देती है। 5 लाख से अधिक डॉट्स सेवा केंद्र हैं और डॉट्स स्वास्थ्यकर्मी हैं जो रोगी की मदद करते हैं जिससे इलाज पक्का हो और सफलतापूर्वक पूरा हो सके. सभी जाँच और इलाज सरकारी केंद्रों में नि:शुल्क उपलब्ध है।
लोकतंत्र व गरीब के लिए उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार बनना कोई अच्छी खबर नहीं
डॉ संदीप पाण्डेय, सीएनएस वरिष्ठ स्तंभकार और मग्सेसे पुरुस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता
उत्तर प्रदेश के 2017 के विधान सभा चुनावों में चौंकाने वाले परिणाम लाते हुए भारतीय जनता पार्टी ने 403 में से 325 सीटें हासिल कर ली हैं। भाजपा का नारा है ‘सबका साथ, सबका विकास,' किंतु न तो 2014 के संसद चुनाव में और न ही ताजा विधान सभा चुनाव में भाजपा ने किसी मुस्लिम को अपना उम्मीदवार बनाया। उत्तर प्रदेश में मुस्लिम आबादी 19.3 प्रतिशत है। भाजपा ने मुस्लिम मतों को भी हासिल करने का कोई प्रयास नहीं किया। भाजपा और उसकी वैचारिक प्रेरणा स्रोत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि उनकी राजनीति में मुसलमानों का कोई स्थान नहीं है।
उत्तर प्रदेश के 2017 के विधान सभा चुनावों में चौंकाने वाले परिणाम लाते हुए भारतीय जनता पार्टी ने 403 में से 325 सीटें हासिल कर ली हैं। भाजपा का नारा है ‘सबका साथ, सबका विकास,' किंतु न तो 2014 के संसद चुनाव में और न ही ताजा विधान सभा चुनाव में भाजपा ने किसी मुस्लिम को अपना उम्मीदवार बनाया। उत्तर प्रदेश में मुस्लिम आबादी 19.3 प्रतिशत है। भाजपा ने मुस्लिम मतों को भी हासिल करने का कोई प्रयास नहीं किया। भाजपा और उसकी वैचारिक प्रेरणा स्रोत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि उनकी राजनीति में मुसलमानों का कोई स्थान नहीं है।
[विश्व टीबी दिवस 2017] टीबी के पक्के इलाज के लिए जरुरी हैं असरकारी दवाएं
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़ों के अनुसार दुनिया में सबसे अधिक टीबी भारत में है और दवा प्रतिरोधक टीबी का दर भी सर्वाधिक है। हालाँकि पिछले सालों में निरंतर टीबी दर में 1% से अधिक गिरावट आ रही थी पर 2015 में भारत में न केवल टीबी दर बढ़ गया बल्कि टीबी मृत्यु दर में भी बढ़ोतरी हो गयी. एक जरुरी सवाल यह भी है कि क्या टीबी का इलाज असरकारी दवाओं से हो रहा है?
साफ़ राजनीति की आशा न छोड़ें: उत्तर प्रदेश में 7.57 लाख लोगों ने 'इनमें से कोई नहीं' (नोटा) वोट दिया
हिंदुस्तान टाइम्स, 12 मार्च 2017 |
[विश्व टीबी दिवस 2017] टीबी उन्मूलन मुश्किल है पर असंभव नहीं!
[English] [विडियो साक्षात्कार देखें] [पॉडकास्ट सुनने या डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें]
टीबी नियंत्रण कार्यक्रम अनेक दशकों से चल रहे हैं पर जिस अति-धीमी गति से टीबी दरों में गिरावट साल-दर-साल आ रही है उस गति से 2184 साल तक टीबी उन्मूलन हो सकेगा. विश्व स्वास्थ्य संगठन की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, 2015 में तो भारत में टीबी दर में गिरावट के बजाय बढ़ोतरी हो गयी और टीबी मृत्यु दर में भी इजाफा हुआ. भारत सरकार समेत 190 देशों से अधिक की सरकारों ने 2030 तक टीबी उन्मूलन का वादा किया है. पर यह सपना कैसा पूरा हो? यह जानने के लिए सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस) ने डॉ केके चोपड़ा, निदेशक, नई दिल्ली टीबी सेंटर से मुलाकात की. डॉ केके चोपड़ा, पिछले 33 सालों से टीबी नियंत्रण कार्यों के लिए समर्पित रहे हैं.
डॉ केके चोपड़ा, निदेशक, नयी दिल्ली टीबी सेंटर |
[अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2017] गैर-बराबरी और महिला हिंसा पर पर्दा न डालें, उसको समाप्त करें!
डॉ संदीप पाण्डेय, सीएनएस वरिष्ठ स्तंभकार और मग्सेसे पुरुस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता
महिला दिवस के पहले भारत ने एक उपलब्धि हासिल की। पहली बार सिर्फ महिला कर्मियों द्वारा संचालित एक एअर-इण्डिया वायुयान यात्रियों को दिल्ली से अमरीका के सैन-फ्रांसिसको तक ले गया और फिर वापस लाया। इसमें वायुयान के अंदर ही नहीं बाहर भी अभियंता आदि कर्मी सभी महिलाएं थीं। क्या ये भारत में महिला सशक्तिकरण का प्रतीक है?
एअर-इण्डिया खुद ही अब कुछ सीटें महिलाओं के लिए अलग से रखता है क्यों कि वर्ष के शुरू में महिलाओं के साथ हवाई यात्रा के दौरान छेड़-छाड़ की घटनाएं सामने आईं थीं। देखा जाए तो महिलाओं के खिलाफ हिंसा की जो घटनाएं देश में घटती हैं उसके आधार पर हम नहीं कह सकते कि देश में महिलाएं सुरक्षित हैं।
भारत में हरेक 3 मिनट में किसी महिला के साथ हिंसा की घटना होती है औा हरेक 9 मिनट में हिंसा करने वाला पति या पति के परिवार का ही कोई व्यक्ति होता है। दहेज के कारण मारी जाने वाली महिलाओं की संख्या प्रति वर्ष आठ हजार से ऊपर होती है। प्रति वर्ष करीब पच्चीस हजार बलात्कार की घटनाएं होती हैं जबकि बलात्कार की सारी घटनाएं दर्ज नहीं की जाती हैं। बलात्कार के इरादे से किए गए हमले तो इसके करीब दोगुने होते हैं। बलात्कार के जो मामले पुलिस दर्ज करती भी है तो उनमें से आरोपियों को सजा बहुत कम मामलों में मिल पाती है। पति या पति के परिवार द्वारा महिला के खिलाफ हिंसा के एक लाख से ज्यादा मामले होते हैं। चालीस हजार के करीब महिलाओं का प्रति वर्ष अपहरण हो जाता है।
महिला दिवस के पहले भारत ने एक उपलब्धि हासिल की। पहली बार सिर्फ महिला कर्मियों द्वारा संचालित एक एअर-इण्डिया वायुयान यात्रियों को दिल्ली से अमरीका के सैन-फ्रांसिसको तक ले गया और फिर वापस लाया। इसमें वायुयान के अंदर ही नहीं बाहर भी अभियंता आदि कर्मी सभी महिलाएं थीं। क्या ये भारत में महिला सशक्तिकरण का प्रतीक है?
एअर-इण्डिया खुद ही अब कुछ सीटें महिलाओं के लिए अलग से रखता है क्यों कि वर्ष के शुरू में महिलाओं के साथ हवाई यात्रा के दौरान छेड़-छाड़ की घटनाएं सामने आईं थीं। देखा जाए तो महिलाओं के खिलाफ हिंसा की जो घटनाएं देश में घटती हैं उसके आधार पर हम नहीं कह सकते कि देश में महिलाएं सुरक्षित हैं।
भारत में हरेक 3 मिनट में किसी महिला के साथ हिंसा की घटना होती है औा हरेक 9 मिनट में हिंसा करने वाला पति या पति के परिवार का ही कोई व्यक्ति होता है। दहेज के कारण मारी जाने वाली महिलाओं की संख्या प्रति वर्ष आठ हजार से ऊपर होती है। प्रति वर्ष करीब पच्चीस हजार बलात्कार की घटनाएं होती हैं जबकि बलात्कार की सारी घटनाएं दर्ज नहीं की जाती हैं। बलात्कार के इरादे से किए गए हमले तो इसके करीब दोगुने होते हैं। बलात्कार के जो मामले पुलिस दर्ज करती भी है तो उनमें से आरोपियों को सजा बहुत कम मामलों में मिल पाती है। पति या पति के परिवार द्वारा महिला के खिलाफ हिंसा के एक लाख से ज्यादा मामले होते हैं। चालीस हजार के करीब महिलाओं का प्रति वर्ष अपहरण हो जाता है।
"नोटा" का चुनाव-नतीजे पर सीधा असर क्यों नहीं?
[English] सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब "नोटा" (None Of The Above/ 'नन ऑफ द एबव', यानि 'इनमें से कोई नहीं') का बटन इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पर होता है पर चाहे "नोटा" वोटों की संख्या कितनी भी अधिक हो इसका चुनाव नतीजे पर कोई सीधा प्रभाव नहीं पड़ता. एक तरफ चुनाव आयोग का कार्य प्रशंसनीय है कि चुनाव प्रणाली पिछले सालों में निरंतर दुरुस्त हो रही है, अलबत्ता धीरे धीरे. दूसरी ओर लोकतंत्र में "नोटा" अभी भी मात्र 'कागज़ी शेर' जैसा ही है जो चिंताजनक है.
वादा है सड़क दुर्घटनाएं 2020 तक आधी करने का पर उत्तर प्रदेश में 27% वृद्धि!
हिंदुस्तान टाइम्स, 14 फरवरी 2017 |
साइकल ट्रैक बड़ी उपलब्धि है या फिर सुपर-ऐक्स्प्रेसवे?
एक्सप्रेसवे से नज़ारा कुछ और पर नाले पर रहने वालों की हकीकत कुछ और (सीएनएस फोटो) |
पुरुष की गैरजिम्मेदारी और असंवेदनशीलता का नतीजा है अनचाहा गर्भ और असुरक्षित गर्भपात
गर्भपात और अनचाहे गर्भ पर नेपाल के पहले राष्ट्रीय शोध ने गंभीर सवाल उठाये हैं. नेपाल में गर्भपात पर 2002 से कोई कानूनी रोक नहीं है और पिछले सालों में प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता भी बहुत बढ़ी है. पर इसके बावजूद अनेक महिलाएं (58%) असुरक्षित गर्भपात करवा रही हैं. नेपाल और अन्य 190 देशों ने संयुक्त राष्ट्र 2015 महासभा में सतत विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goals/ SDGs) हासिल करने का वादा किया है जिनमें लिंग-जनित असमानता समाप्त करने और सभी लड़कियों/ महिलाओं तक प्रजनन स्वास्थ्य सेवाएँ पहुचाने के लक्ष्य शामिल हैं.
क्या इन्टरनेट पर उपलब्ध 'पोर्न' (अश्लील विडियो, फोटो) हमारी मानसिकता विकृत कर रहा है?
नव भारत टाइम्स, 9 फरवरी 2017 |
"कोई नवजात शिशु एचआईवी पोसिटिव न हो" इस सपने को एड्स कार्यक्रम साकार करे
थाइलैंड और श्री लंका जैसे कुछ देशों ने एचआईवी पॉज़िटिव मातापिता से बच्चे को होने वाले एचआईवी संक्रमण को पूर्ण रूप से समाप्त कर दिया है। सभी गर्भवती महिलाओं को एचआईवी जाँच प्रदान करना, जो एचआईवी के साथ जीवित हों उन्हें नेविरापीन-वाली दवा का इलाज आदि नि:शुल्क प्रदान करवाना और बच्चे के जन्मोपरांत पहले 6 माह सिर्फ़ माँ का स्तनपान करवाना (और कोई आहार नहीं) जैसे प्रमाणित कार्यक्रमों के ज़रिए इन देशों ने यह जन स्वास्थ्य के लिए बड़ी उपलब्धि हासिल की है. इसके साथ ही इन देशों में जो महिलाएँ गर्भावस्था के दौरान एचआईवी पॉज़िटिव पायी गयीं थीं उनको पूरी उम्र नि:शुल्क अंतिरेट्रोविरल दवा मिलती है जिससे कि वे सामान्य ज़िंदगी जी सकें।
कैंसर मृत्यु दर में तेज़ी से गिरावट के बगैर 2030 के वायदे पूरे करना संभव नहीं
(वेबिनार रिकॉर्डिंग, पॉडकास्ट) विश्व कैंसर दिवस 2017 पर सरकार को यह मूल्यांकन करना जरुरी है कि विभिन्न प्रकार के कैंसर की दर कितनी तेज़ी से कम हो रही है ताकि भारत सरकार अपने वायदे अनुसार, 2030 तक कैंसर मृत्यु दर में एक-तिहाई गिरावट ला सके (सतत विकास लक्ष्य या एस.डी.जी.).
संविधान की मौलिक भावना व उसके मूल्यों को खतरा
डॉ संदीप पाण्डेय, सीएनएस स्तंभकार और मग्सेसे पुरुस्कार से सम्मानित कार्यकर्ता
वैसे तो हमारा लोकतंत्र धीरे-धीरे संविधान की भावना और उसमें निहित मूल्यों से दूर जा ही रहा था, नरेन्द्र मोदी की सरकार ने उस गति को और तेज कर दिया है। संविधान के पहले वाक्य में ही भारतीय गणराज्य के जो चार आधार स्तंम्भ बताए गए हैं - सम्प्रभुता, समाजवाद, धर्मनिर्पेक्षता व लोकतंत्र - वे ही डगमगाने लगे हैं। सम्प्रभुता का अर्थ है हम अपने निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं या हम स्वायत्त हैं। लेकिन कितने ऐसे आर्थिक नीतियों से सम्बंधित निर्णय हैं जो हम अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों अथवा अमीर देशों जैसे अमरीका के दबाव में लेते हैं। इतना ही नहीं कई बार तो देशी-विदेशी बड़ी कम्पनियां ही निर्णयों को प्रभावित करती हैं।
वैसे तो हमारा लोकतंत्र धीरे-धीरे संविधान की भावना और उसमें निहित मूल्यों से दूर जा ही रहा था, नरेन्द्र मोदी की सरकार ने उस गति को और तेज कर दिया है। संविधान के पहले वाक्य में ही भारतीय गणराज्य के जो चार आधार स्तंम्भ बताए गए हैं - सम्प्रभुता, समाजवाद, धर्मनिर्पेक्षता व लोकतंत्र - वे ही डगमगाने लगे हैं। सम्प्रभुता का अर्थ है हम अपने निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं या हम स्वायत्त हैं। लेकिन कितने ऐसे आर्थिक नीतियों से सम्बंधित निर्णय हैं जो हम अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों अथवा अमीर देशों जैसे अमरीका के दबाव में लेते हैं। इतना ही नहीं कई बार तो देशी-विदेशी बड़ी कम्पनियां ही निर्णयों को प्रभावित करती हैं।
गांधी होने का मतलब
डॉ संदीप पाण्डेय, सीएनएस स्तंभकार और मग्सेसे पुरुस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता
इधर खादी व ग्रामोद्योग आयोग के कैलेण्डर पर चरखे के साथ महात्मा गांधी की जगह नरेन्द्र मोदी की तस्वीर छपने से कुछ विवाद खड़ा हुआ है। मोदी समर्थक पूछ रहे हैं कि जब नरेन्द्र मोदी की तस्वीर झाड़ू के साथ छप रही थी तब इतना बवाल क्यों नहीं मचा क्यों कि झाड़ू का प्रतीक भी मोदी ने गांधी से ही लिया है? गांधी का चश्मा स्वच्छ भारत अभियान के प्रतीक चिन्ह के रूप में जगह जगह छप रहा है।
गाँधी प्रिंटिंग प्रेस,दक्षिणअफ्रीका:गांधीजी यहाँ से अखबार निकलते थे |
नए टीबी शोध ने जन-स्वास्थ्य जगत को चेताया: बुनियादी संक्रमण नियंत्रण अत्यंत आवश्यक!
टीबी से बचाव मुमकिन है और यदि टीबी रोग हो जाए तो सफल इलाज भी सरकारी स्वास्थ्य सेवा में नि:शुल्क उपलब्ध है. परन्तु यदि टीबी की दवाओं से प्रतिरोधकता उत्पन्न हो जाए, यानि कि, दवाएं टीबी बैक्टीरिया पर बेअसर हो जाए, तो इलाज कठिन होता जाता है. जैसे-जैसे टीबी दवाओं से प्रतिरोधकता बढ़ती जाती है वैसे वैसे इलाज भी कठिन होता जाता है और गंभीर प्रतिरोधकता के कारण मृत्यु तक हो सकती है.
क्या सरकारें 2020 तक सड़क दुर्घटनाओं और सम्बंधित मृत्यु दर को 50% कम कर पाएंगी?
हिंदुस्तान टाइम्स (20 जनवरी 2017) में प्रकाशित समाचार के अनुसार सड़क दुर्घटनाएं और इनमें मृत लोगों विशेषकर कि बच्चों की संख्या बढ़ती जा रही है. ये एक और उदहारण हैं जब सरकारें वादें कुछ और करती हैं और जमीनी हकीकत ठीक विपरीत होती है. भारत सरकार एवं अन्य १९२ देशों की सरकारों ने वादा किया है कि 2020 तक सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मृत्युदर आधा हो जायेगा परन्तु मृत्यु दर तो बढ़ता जा रहा है!
हॉर्न ध्वनि-तीव्रता कम करना ठीक है पर सोचने की बात है कि हमें हॉर्न बजाने की जरुरत क्यों है?
हिंदुस्तान टाइम्स (अंग्रेजी दैनिक) |
हाईटि देश में 2010 तक हैजा था ही नहीं: विश्व शांति, सैन्य और स्वास्थ्य नीतियों में तालमेल जरुरी
विभिन्न सरकारी संस्थाएं और वर्ग एकजुट हो समन्वयन करें कि हर प्रकार की लिंग जनित हिंसा समाप्त हो
सिटीजन न्यूज सर्विस - सीएनएस
अनेक सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के लखनऊ कार्यालय में युवाओं के लिए स्वास्थ्य सेवाएँ बेहतर करने के आशय से कैसे अंतर-विभागीय और अंतर-वर्गीय समन्वयन में सुधार हो इस पर चर्चा की. हर प्रकार की लिंग जनित हिंसा को समाप्त करने के लिए फॅमिली प्लानिंग एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया ने राष्ट्रीय स्तर पर पहल ली हुई है. स्वास्थ्य को वोट अभियान और अन्य संस्थाओं ने इस पहल को समर्थन दिया है और सरकार से अपील की कि बिना अंतर-विभागीय समन्वयन में सुधार हुए लिंग जनित हिंसा पर विराम लगाना मुश्किल होगा.
अनेक सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के लखनऊ कार्यालय में युवाओं के लिए स्वास्थ्य सेवाएँ बेहतर करने के आशय से कैसे अंतर-विभागीय और अंतर-वर्गीय समन्वयन में सुधार हो इस पर चर्चा की. हर प्रकार की लिंग जनित हिंसा को समाप्त करने के लिए फॅमिली प्लानिंग एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया ने राष्ट्रीय स्तर पर पहल ली हुई है. स्वास्थ्य को वोट अभियान और अन्य संस्थाओं ने इस पहल को समर्थन दिया है और सरकार से अपील की कि बिना अंतर-विभागीय समन्वयन में सुधार हुए लिंग जनित हिंसा पर विराम लगाना मुश्किल होगा.
पांच साल से कम उम्र के बच्चों को निमोनिया-मृत्यु से बचाने के लिए बेहतर स्वास्थ्य सेवाएँ आवश्यक
सिटीजन न्यूज सर्विस - सी एन एस
निमोनिया से बचाव मुमकिन है और इलाज भी संभव है. इसके बावजूद भी निमोनिया 5 साल से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है. लखनऊ के नेल्सन अस्पताल के निदेशक और बाल-रोग विशेषज्ञ डॉ अजय मिश्र ने वेबिनार में बताया कि "निमोनिया से बचाव और इलाज दोनों संभव है पर इसके बावजूद निमोनिया 5 साल से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है. 2015 में 760000 बच्चों की मृत्यु निमोनिया से हुई.
निमोनिया से बचाव मुमकिन है और इलाज भी संभव है. इसके बावजूद भी निमोनिया 5 साल से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है. लखनऊ के नेल्सन अस्पताल के निदेशक और बाल-रोग विशेषज्ञ डॉ अजय मिश्र ने वेबिनार में बताया कि "निमोनिया से बचाव और इलाज दोनों संभव है पर इसके बावजूद निमोनिया 5 साल से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है. 2015 में 760000 बच्चों की मृत्यु निमोनिया से हुई.
दीपा कर्माकर का सराहनीय फैसला
रियो ओलम्पिक में जिम्नास्टिक में शानदार प्रदर्शन करने के लिए दीपा कर्माकर को भी पी.वी. सिन्धू व साक्षी मलिक, जिन दोनों ने पदक जीते थे, के साथ हैदराबाद बैडमिंटन एसोशिएसन ने सचिन तेन्दुलकर के हाथों दुनिया की मंहगीं कारों में से एक बी.एम.डब्लू. का उपहार देने के लिए चुना। बी.एम.डब्लू. गाड़ी की कीमत पचास लाख से लेकर एक करोड़ तक हो सकती है। दीपा ने खुद कहा है कि बी.एम.डब्लू. जैसी गाड़ियों के लिए त्रिपुरा, जहां वह रहती हैं, की सड़कें उपयुक्त नहीं हैं और न ही वहां इस गाड़ी की मरम्मत करने वाला कोई मिस्त्री। इसलिए उसने कम कीमत की एक गाड़ी खरीदने का फैसला लिया है। बी.एम.डब्लू. लौटाने का फैसला लेते हुए दीपा ने हैदराबाद बैडमिंटन एसोशिएसन के अध्यक्ष वी. चामुण्डेश्वरनाथ, जिन्होंने असल में गाड़ी दी थी, से कहा कि यदि वे बी.एम.डब्लू. के बदले उसकी कीमत दे सकें तो दे दें अथवा जो भी वह देना चाहें दे दें।
बढ़ती सड़क दुर्घटनाएं और मृत्युदर ने सरकारी वादे पर उठाये सवाल
भारत सरकार समेत दुनिया के अन्य 192 देशों की सरकारों ने संयुक्त राष्ट्र महासभा 2015 में सतत विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goals या SDGs) को 2030 तक पूरा करने का वादा किया है. इन सतत विकास लक्ष्यों में से एक है (SDG 3.6) कि 2020 तक, सड़क दुर्घटनाओं और मृत्युदर को आधा करना. पर आंकड़ों को देखें तो ये चिंता की बात है कि सड़क दुर्घटनाओं और मृत्युदर में गिरावट नहीं बढ़ोतरी हो रही है.
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