तंबाकू नियंत्रण, चुनौती - दैनिक भास्कर

तंबाकू नियंत्रण, चुनौती

दैनिक भास्कर


toन केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में तंबाकू नियंत्रण एक गंभीर चुनौती है। तंबाकू के सेवन को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष विज्ञापनों के जरिये ग्लैमर, जीवन शैली और ‘प्रगतिशील’ छवि से जोड़ते हुए इसके बाजार को बढ़ाया जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट ‘वल्र्ड हैल्थ स्टेटिस्टिक 2008’ ने भी तंबाकू से होने वाली बीमारियों को एक गंभीर चुनौती माना है। इस रपट के अनुसार 60 लाख से भी अधिक लोग तंबाकू जनित कारणों से प्रतिवर्ष मृत्यु को प्राप्त होते हैं। भारत में यह दर प्रतिवर्ष 10 लाख लोगों की है।

गौरतलब है कि भारत में तंबाकू उत्पाद अधिनियम 2003 में प्रभावकारी तंबाकू नियंत्रण के लिए सभी नीतियां हैं परंतु इसको लागू करने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. अंबुमणि रामदास सालों से जूझ रहे हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि तंबाकू नियंत्रण नीतियों को आखिर हम कैसे लागू करेंगे?

जरूरत है आम लोगों को जागरूक करने की और इन नीतियों को लागू करने में शामिल करने की। आम जनता में न केवल तंबाकू के स्वास्थ्य पर पड़ रहे कुप्रभावों के बारे में, बल्कि तंबाकू नियंत्रण नीतियों के बारे में भी सूचना या जानकारी काफी कम है। इस अधिनियम के तहत फिल्मों में भी तंबाकू सेवन को प्रदर्शित करने पर प्रतिबंध है। हालांकि तंबाकू उद्योग फिल्मों में तंबाकू सेवन को प्रदर्शित करने को अत्यंत गंभीरता से लेता है क्योंकि उद्योग यह जानता है कि बच्चे और युवाओं के रूप में नए ग्राहक बनाने का यह सबसे प्रभावकारी जरिया है।

पिछले ही दिनों डॉ. रामदास ने घोषणा की कि अक्टूबर 2008 से कार्यस्थल पर तंबाकू सेवन प्रतिबंधित हो जाएगा। सार्वजनिक स्थानों पर पहले से ही धूम्रपान प्रतिबंधित है, परंतु ये नीतियां कितनी गंभीरता से लागू की जा रही हैं, यह चिंता का विषय है। सफलतापूर्वक तंबाकू नशा त्यागना असंभव तो नहीं परंतु इतना सरल भी नहीं। करोड़ों लोग जो भारत में तंबाकू का सेवन कर रहे हैं, जिनमें कई प्रशासनिक अधिकारी, नेतागण और चिकित्सक तक शामिल हैं, कैसे कार्यस्थल पर और सार्वजनिक स्थानों पर तंबाकू से दूर रहेंगे?

इस नीति को लागू करने के लिए सबसे अधिक आवश्यकता है कि लोग तंबाकू के स्वास्थ्य पर कुप्रभावों के प्रति जागरूक हों और उन्हें तंबाकू नशा उन्मूलन के लिए सहायता एवं परामर्श आसानी से उपलब्ध हो।

पूरे भारत में करोड़ों की संख्या में किसी न किसी रूप में तंबाकू का सेवन करने वालों के लिए 100 से अधिक तंबाकू नशा उन्मूलन क्लीनिक भी उपलब्ध नहीं हैं। बिना किसी आर्थिक खर्च के हर स्वास्थ्य केंद्र पर मौजूदा स्वास्थ्य कर्मियों के प्रशिक्षण द्वारा तंबाकू नशा उन्मूलन की सेवाएं प्रदान की जा सकती हैं। जब ऐसा हो तो संभवतया कार्यस्थल और सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान पर प्रतिबंध को अधिक प्रभावकारी ढंग से लागू किया जा सकेगा।

तंबाकू नियंत्रण नीतियों को एकाकी ढंग से नहीं देखना चाहिए क्योंकि सामाजिक न्याय, विकास और जन स्वास्थ्य नीतियों का यह एक महत्वपूर्ण भाग है। तंबाकू नियंत्रण अन्य रोगों से भिन्न है क्योंकि यह सिर्फ स्वास्थ्य का मसला नहीं है, बल्कि सामाजिक न्याय का मसला है जहां तंबाकू उद्योग इस ‘धीमे जहर’ के बाजार को बचाने और बढ़ाने के लिए पूरी तरह समर्पित है।-

लेखक नेशनल एलांयस ऑफ पीपुल्स मूवमेंट और तंबाकू विरोधी अभियान से जुड़े हैं।

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तपेदिक या टीबी समाचार सारांश: ३१ मई २००८: अंक ५५

तपेदिक या टीबी समाचार सारांश
अंक ५५
शनिवार, ३१ मई २००८

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा विश्व तम्बाकू निषेध दिवस (३१ मई २००८) को हर साल मनाया जाता है. डॉ निल्स बिल्लो, जो तपेदिक या तप नियंत्रण के लिये अंतर्राष्ट्रीय संगठन के अध्यक्ष हैं (IUATLD), उनके अनुसार "लोगों को तम्बाकू के जान लेवा प्रकोप के बारे में जागरूक करना अति आवश्यक है. तम्बाकू से इस शताब्दी में लगभग १ अरब लोगों की मरने की सम्भावना है. हर तम्बाकू जनित मृत्यु को रोका जा सकता है, इससे बचाव मुमकिन है".

इसी संस्थान ने भारत के ५ शहरों को धूम्रपान रहित बनाने के लिये 'निकोटीन मोनिटर' आयत किए हैं. विश्व की प्रसिद्ध जॉन होप्किंस विश्वविद्यालय ने १६० निकोटीन मोनिटर भारत को नि:शुल्क दिए हैं जिससे कि यह ५ शहर २०१० से पहले धूम्रपान रहित बन सके. इन शहरों में, दिल्ली, अहमदाबाद, चंडीगढ़, मुम्बई और चेन्नई शामिल हैं. चंडीगढ़ भारत का पहला शहर है जो सफतापूर्वक धूम्रपान रहित बन सका है. यह १६० निकोटीन मोनिटर अब इस संगठन के दिल्ली कार्यालय में पहुँच गए हैं.

अमरीका के सैनिकों को अब तपेदिक या टीबी की 'झूठी' महामारी झेलनी पड़ रही है. अमरीकी सैनिक जो अफगानिस्तान और इराक जैसे देशों में तैनात हैं, जहाँ पर अमरीका की तुलना में टीबी या तपेदिक का दर कहीं अधिक है, उनकी टीबी या तपेदिक के परीक्षण की जांच अक्सर झूठे ही पोसिटिव आ जाती है. टीबी या तपेदिक की प्रारंभिक जांच की कुशलता इस बात पर निर्भर करती है कि समुदाय में टीबी या तपेदिक का अनुपात कितना है. इसीलिए यह झूठे टीबी या तपेदिक के नतीजे आ रहे हैं, जिसका आर्थिक भर सरकार को झेलना पड़ रहा है.

दक्षिण अफ्रीका में बोवैन टीबी या तपेदिक, या ऐसी टीबी या तपेदिक जो गाय-भैंसों में होती है, की रोकधाम के लिये २००४ में ७,००० गाय-भैंसों को मार दिया गया था. अब सुप्रीम कोर्ट ने आदेश किया है की कृषि मंत्रालय को उन किसानों को हर्जाना देना चाहिए जिनकी गाय-भैंसों को टीबी या तपेदिक की रोकधाम के लिये मार दिया गया था.

ग्रेनाडा में स्वास्थ्यकर्मी इसलिए चिंतित हैं क्योकि अब अस्पताल में टीबी या तपेदिक के रोगियों के लिये कोई अलग से वार्ड नही है. यानि कि जो पहले टीबी या तपेदिक के विशेष अस्पताल थे, अब उनको खत्म कर के इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि सामान्य अस्पताल में ही इन रोगियों का इलाज किया जाए. स्वास्थ्यकर्मी इसलिए चिंतित हैं क्योकि अस्पताल में संक्रमण के रोकधाम के लिये पर्याप्त इंतजाम नही हैं.

तम्बकूकिल्स समाचार बुलेटिन: विश्व तम्बाकू निषेध दिवस: ३१ मई २००८: अंक ३९१

तम्बकूकिल्स समाचार बुलेटिन
विश्व तम्बाकू निषेध दिवस
३१ मई २००८
अंक ३९१


बच्चे और युवा तम्बाकू विज्ञापनों से प्रभावित हो कर सेवन आरंभ करते हैं

तम्बाकू उत्पादनों के अप्रत्यक्ष - प्रत्यक्ष विज्ञापनों से
सबसे अधिक प्रभावित हो के - १० से १४ साल के बच्चे - तम्बाकू सेवन आरंभ करने के लिए प्रेरित होते हैं.

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तम्बाकू छोड़ने के लिए चैम्प क्लब नामक वेबसाइट और टोल-फ्री हेल्पलाइन


चैम्प क्लब नामक वेबसाइट और टोल-फ्री हेल्पलाइन अब उन लोगों को परामर्श और सहायता प्रदान करेगी जो तम्बाकू सेवन को छोड़ना चाहते हैं. यह वेबसाइट देखने के लिए, इस लिंक पर जाएं: www.champsclub.in या फ़ोन करें: टोल-फ्री हेल्पलाइन (१८०० ४ १९०१९०)

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जो एक उत्सुकता की तरह शुरू होता है, वह एक नशे में जा के खत्म होता है

लुधिआना में युवाओं, खासकर कि लड़कियों की संख्या में वृद्धि हो रही है जो अस्पताल में तम्बाकू जनित बीमारियों के इलाज के लिए आते हैं. युवा वर्ग तम्बाकू सेवन को उत्सकता के लिए शुरू तो करता है, पर एक बार आरंभ करने के बाद नशे के कु-परिणाम भुगतने पड़ते हैं.

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बॉलीवुड अभी भी फिल्मों में तम्बाकू सेवन को प्रदर्शित कर रहा है

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ अंबुमणि रामादोस के कई कोशिशों के बावजूद बॉलीवुड फिल्मों में तम्बाकू सेवन को प्रदर्शित करने को रोकने के पक्ष में नही है.

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अब दिल्ली में धूम्रपान करने पर १००० रुपया का जुर्माना

दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री डॉ योगानंद शास्त्री ने कहा है कि दिल्ली में सार्वजनिक स्थान पर धूम्रपान करने पर पकड़े जाने पर २०० रुपया नही अब १००० रुपया का जुर्माना पड़ेगा.

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२०१० तक शहर धूम्रपान रहित हो जायेंगे

चंडीगढ़, दिल्ली, अहमदाबाद, मुम्बई और चेन्नई - भारत के यह पाँच महानगर २०१० तक तम्बाकू धुआ रहित या धूम्रपान रहित हो जायेंगे.

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तपेदिक या टीबी समाचार सारांश: २९ मई २००८: अंक ५४

तपेदिक या टीबी समाचार सारांश
अंक ५४
गुरुवार, २९ मई २००८


एक्स्तेंसिवेली ड्रग रेसिस्तंत टीबी या तपेदिक (XDR-टीबी) यानि कि ऐसी तपेदिक जिसपर अधिकांश टीबी या तपेदिक की दवाएं कारगर न रहें, ऐसी टीबी या तपेदिक होने की वजह से मृत्युदर भी काफी अधिक है, लगभग ढाई साल से विश्व में जन-स्वास्थ्य को चुनौती दे रही है.

पिछले हफ्तों में नामिबिया नामक अफ्रीकी देश में कई XDR-टीबी के रोगी अस्पताल में चिन्हित हुए, और दवा कंपनी से नामिबिया सरकार के कई निवेदन के बावजूद भी अभी तक जरुरी दवाएं नामिबिया देश में नही उपलब्ध हुई हैं.

दक्षिण अफ्रीका में जब मार्च २००६ में XDR-टीबी के रोगी चिन्हित हुए थे, तो परीक्षण का नतीजा आने से पहले ही ५३ में से ५२ मरीज मर गये थे. इसमें कोई संदेह नही कि टीबी या तपेदिक की जाँच जल्द-से-जल्द होनी चाहिए, इलाज पूरी अवधि तक लेना चाहिए और संक्रमण को फैलने से रोकने के लिये हर संभव प्रयास करना चाहिए.

G-8 या विश्व में ८ आर्थिक रूप से मजबूत देशों का समूह ने कई साल पहले ग्लोबल फंड टू फाइट एड्स, टीबी और मलेरिया को अनुदान देने का वादा किया था, जो कुछ सीमित दायरे तक निभाया भी है. अब इसके वरिष्ठ अधिकारीगण परेशान है कि विश्व में आर्थिक और भोजन को ले के जो संकट मंडरा रहा है, उसकी वजह से कही यह देश आर्थिक सहायता ग्लोबल फंड की बजाय अन्य विकास से जुड़े हुए कार्यों में निवेश न कर दें।

जो लोग विदेशों में भ्रमण/ कार्य हेतु आते जाते हैं, उनके लिये अमरीका के सी.डी.
सी. ने सलाह जारी की है. उसके अनुसार इन यात्रियों को 'सावधानी' बरतनी चाहिए और सरल उपाए जैसे कि साफ सफ़ाई रखना, साफ पानी पीना, खासते समय मुहँ पर हाथ रखना, कच्चे या खुले हुए खाने के समान का सेवन न करना, खाने से पहले हाथ धोना, मच्छर से बचना, आदि रोगों से बचने में काफी सहायक होंगे.

अफ्रीका के किनया देश में टीबी और एच.आई.वी दोनों ने जन-स्वास्थ्य को गंभीर चुनौती दे रखी है. जिन लोगों को एच.आई.वी संक्रमण है, उनमें टीबी या तपेदिक होने की सम्भावना काफी अधिक रहती है. इसलिए आवश्यक है कि एच.आई.वी क्लीनिक पर टीबी या तपेदिक के परीक्षण और इलाज की पूरी व्यवस्था होनी चाहिये. उसी तरह टीबी या तपेदिक की क्लीनिक में एच.आई.वी की जांच आदि की भी व्यवस्था होनी चाहिये.

तम्बाकू किल्स समाचार बुलेटिन: २८ मई २००८: अंक ३८८

तम्बाकू किल्स समाचार बुलेटिन
२८ मई २००८
अंक ३८८

प्रभावकारी तम्बाकू नियंत्रण के लिए एम पॉवर नीति को बढ़ाना आवश्यक है

तम्बाकू नियंत्रण के लिए विश्व के समस्त देशों को अपने यहाँ विश्व स्वास्थ संगठन द्वारा तैयार की गई नीति का पालन करना चाहिए । हाल ही में विश्व स्वास्थ संगठन द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में इस बात का पता चलता है कि तम्बाकू नियंत्रण के लिए विश्व को प्रभावकारी कदम उठाने होंगे।

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धुएँ का छल्ला

हेलिस सेख्सरिया संस्थान ने विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर बीड़ी के मोनोग्राफ को विमोचित करते हुए यह बताया है कि बीड़ी स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होने के साथ -साथ इसके सामाजिक और आर्थिक परिणाम भी हैं।

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विवेक ओबेरॉय सिगरेट क्यों नही पीते

हाल ही में आयोजित एक संगीत संध्या कार्यक्रम के दौरान विवेक ओबेरॉय ने यह माना कि सिगरेट 'किसी भी तरह कूल' नही है और यह स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त हानिकारक भी है।

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चीन के तम्बाकू उद्योग ने भारत के तम्बाकू उद्योग को अपने यहाँ आमंत्रित किया

चीन के तम्बाकू उद्योग ने भारत के तम्बाकू उद्योग को अपने यहाँ आमंत्रित किया है कि वह सब वहाँ आकर यह देखें के उनके देश में तम्बाकू निर्यात के कितने अवसर हैं।

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२ अक्टूबर को अब विश्व मद्य निषेध दिवस मनाया जाएगा

२ अक्टूबर महात्मा गाँधी के जन्म दिवस पर अब विश्व मद्य निषेध दिवस मनाया जाएगा यह बात भारत ने विश्व के देशों के समक्ष रख दी है। जिसकी औपचारिक घोषणा जिनीवा में हो रही विश्व स्वास्थ्य बैठक के दौरान की गई।

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मध्य गुजरात के किसान अब तम्बाकू की खेती के बजाये अंगूर की खेती करेंगे

मध्य गुजरात के किसान अब तम्बाकू की खेती के बजाये अंगूर की खेती करेगे। अहमदाबाद और वरोदरा जैसे शहरों में अब अंगूर की फसल के लिए अब काफी मात्रा में बाज़ार उपलब्ध है।

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तपेदिक या टीबी समाचार सारांश: २७ मई २००८: अंक ५३

तपेदिक या टीबी समाचार सारांश
अंक ५३
मंगलवार, २७ मई २००८


दक्षिण अफ्रीका में हुए इस शोध से यह साबित होता है कि मरीज के अस्पताल देर से आने से उतनी टीबी या तपेदिक संबंधित मौत नही होती हैं जितनी स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा सही परीक्षण और इलाज करने में हुई देरी से मौत होती हैं.

अक्सर टीबी या तपेदिक नियंतरण में और अन्य रोग नियंतरण में इस बात को सुनने को मिलता है कि दोषी मरीज है. उदाहरण के तौर पर कई देशों में यदि मरीज दवा समय से न ले तो उसको जेल तक होने का खतरा रहता है, जिससे की जबरन उसका इलाज पूरी अवधि तक और उचित दवाओं के साथ कराया जा सके.

स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा हुई देरी में एक सबसे बड़ा कारण है कि टीबी या तपेदिक का रोगी सही विशेषज्ञ तक समय से नही पहुँच पाता.

पश्चिमी एशिया के देश ओमान में हुए शोध के अनुसार जब चिकित्सकों को ५ टीबी या तपेदिक के रोगी दिखाए गए तो ६४% ने टीबी या तपेदिक होने का शक उनपर नही किया. ओमान के चिकित्सकों में टीबी या तपेदिक के प्रारंभिक लक्षणों के बारे में अपेक्षा से कम ज्ञान और मरीज देखते वक्त टीबी या तपेदिक के लक्षण देखने के बाद भी टीबी या तपेदिक होने की शंका न करना, टीबी नियंतरण के लिये एक बड़ी चुनौती है.

अमरीका में मेक्सिको से आने वाले दूध-उत्पादन जैसे की ताजे पनीर आदि पर रोक लग रही है क्योकि अमरीकी-मेक्सिको सरहद के पास रहने वाले लोगों में बोवईन टीबी या तपेदिक (ऐसी टीबी जो गाय-भैसों में होती है, और कच्चे दूध से मनुष्य में भी फ़ैल सकती है) पाई गई है.

बोवईन टीबी या तपेदिक को नियंत्रित करने के लिये अमरीका में काफी प्रयास हो रहे हैं. मिन्नेसोता प्रदेश में तो यदि गाय-भैंस को टीबी या तपेदिक हो तो उसको मार दिया जाता है और किसान को अमरीकी डालर ५०० मुआवजा दिया जाता है.

न्यू जीलैंड में एक किसान पर १५,००० डालर जुर्माना डाला गया जब उसने
बोवईन टीबी या तपेदिक से ग्रसित भैंस को एक खेत से दूसरे खेत में घुमा दिया.

फिलिप्पिन के आर्थिक और विकास मंत्रालय का कहना है कि
फिलिप्पिन देश सभी (आठों) मिलिनिम देवेलोप्मेंट गोल (MDG) को २०१५ तक पूरा करेगा. उसके अनुसार फिलिप्पिन २०१५ से पहले ही ८ में से कुछ MDG लक्ष्य पूरा कर लेगा.

परन्तु
फिलिप्पिन में टीबी या तपेदिक, विशेषकर कि ड्रग रेसिस्तंत टीबी या तपेदिक का दर बढ़ता ही जा रहा है. अभी हाल ही में जापान सरकार ने, इटली सरकार ने फिलिप्पिन को आर्थिक मदद दे कर टीबी या तपेदिक नियंतरण के कार्यक्रमों को सशक्त करने का प्रयास किया है.

टीबी या तपेदिक जैसे रोग को, खासकर कि ड्रग रेसिस्तंत टीबी या तपेदिक को नियंत्रित करने के लिये यह निश्चित तौर पर नही कहा जा सकता कि कोई भी देश इन लक्ष्यों को पूरा कर पायेगा - यह सिर्फ़ एक देश पर ही निर्भर नही है, यह निर्भर करेगा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हो रहे टीबी या तपेदिक नियंतरण के प्रयासों पर भी।

उम्मीद है कि
फिलिप्पिन ही नही बल्कि अन्य देश भी एन लक्ष्यों को पूरा कर पाएंगे.

बीड़ी - एक परिचय (Bidi factsheet)

बीड़ी - एक परिचय

[यह मौलिक रपट या फैक्टशीट अंग्रेज़ी में है जिसका नीचे हिन्दी में अनुवाद करने का प्रयास किया गया हैमौलिक रपट अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए या डाऊनलोड करने के लिए यहाँ पर क्लिक्क कीजिये]
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बीड़ी के रूप में सबसे अधिक धूम्रपान भारत में होता है। बीड़ी जिसको कि तेंदू के पत्ते में लपेटकर बनाया जाता है पूरी तरह से तम्बाकू से भरी हुई होती है।

बीड़ी का प्रयोग वैसे तो मुख्यतः आदमियों के द्वारा किया जाता है लेकिन इसको बनाने में महिलाओं और बच्चों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है जो बीड़ी को अपने घरों में बनाते हैं। सिगरेट के मुकाबले बीड़ी की बिक्री करीब ८:१ की है । यानि कि प्रत्येक ८ बीड़ी पर १ सिगरेट की बिक्री होती है।


अत्यन्त घातक है बीड़ी का पीना : -

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- बीड़ी पीने से लोगों में तपेदिक या टी०बी०, साँस की बीमारी इत्यादि में बढ़ोतरी देखी गई है।

- बंगलोर में किए गए एक शोध के द्वारा पता चलता है कि प्रतिदिन १० बीड़ी पीने वाले व्यक्ति को करीब चार गुणा ह्रदय के रोग का खतरा ज्यादा रहता है सामान्यत: ऐसे लोगों को जो कि बीड़ी का उपयोग नही करते हैं।

- भारत में किए गए शोध के द्वारा भी इस बात का पता चलता है कि बीड़ी पीने वाले लोगों में फेफड़े के कैंसर के होने का खतरा करीब ६ गुणा ज्यादा रहता है उन लोगों की तुलना में जो कि बीड़ी का उपयोग नही करते हैं।

- तमिलनाडु में किए गए शोध के द्वारा यह बात निकल कर आई कि ग्रामीण छेत्रों में रहने वाले ४७% पुरुषों की मौत जो कि तपेदिक की बीमारी से भी ग्रसित थे , बीड़ी पीने की वजह से हुई।- मुम्बई में किए गए शोध के द्वारा भी इस बात का पता चलता है कि ऐसे लोग जो कि बीड़ी का सेवन करतें हैं उनमें मौत की सम्भावना करीब ६४ % अधिक रहती है उन लोगों की तुलना में जो कि इसका उपयोग नही करते हैं। यहाँ तक कि ऐसे लोगों में भी जो कि अनुमानतः करीब ५ बीड़ी का सेवन प्रतिदिन करतें हैं उनमे इसके द्वारा होने वाली मौत की सम्भावना करीब ४२ प्रतिशत अधिक होती है।

- बीड़ी का सेवन करने वाले लोग कार्बन मोनोआक्साइड और निकोटीन आदि को ज्यादा ग्रसित करते हैं उन लोगों की तुलना में जो सिगरेट का सेवन करते हैं। इसलिये बीड़ी या तो ज्यादा या कम-से-कम सिगरेट के बराबर तो खतरनाक है ही।

- तम्बाकू की खेती और इसके पत्ते से बीड़ी बनाने के व्यवसाय में लगे हुए लोगों और उनके परिवारों को इससे काफी खतरा है ।

- शोधों से पता चलता है कि जो लोग बीड़ी के पत्ते की कटाई के काम में लगे हुए हैं उनके पेशाब में निकोटीन की मात्र पायी गई है। लगातार इस काम में बने रहने से बीड़ी मजदूरों में इस बात की भी सम्भावना बढ़ जाती है कि वह इस नशे के आदि हो जायें।

- ऐसे लोग जो बीड़ी के पत्तों को लपेटने का काम करतें हैं उनमें तपेदिक, अस्थमा, एनीमिया, आंखों की समस्याएँ तथा महिलाओं में स्त्री रोग से संबंधित समस्याएँ आ सकती हैं।

- बीड़ी को घरों में रखने से उनमे रहने वाले लोगों में खाँसने और सरदर्द की बीमारी शुरू हो जाती है।

- बीड़ी के पत्तों को लपेटने के काम में लगे हुए लोग गरीबी की तरफ़ और बढ़ते जाते हैं।

- राज्य सरकारों द्वारा बीड़ी के लपेटने के काम में लगे हुए लोगों के लिए जो कीमतें निर्धारित की गई है वह प्रति १००० बीड़ी लपेटने पर उत्तर प्रदेश में २९ रूपये और गुजरात में ६६.८ रूपये निर्धारित है।

- लगातार बीड़ी के काम में लगे हुए लोगों में करीब ४५ साल की उम्र तक उनके हाथों के उँगलियों की ऊपरी सतह की खाल मर जाती हैं और वह काम करना बंद कर देती हैं। इस परिस्थिति में वह लोग जो बीड़ी बनाने का काम नही कर पाते भीख मांगने का काम तक शुरू करne के लिए विवश हो जाते हैं।

- बीड़ी उत्पादन का सबसे मुख्य भार महिलायें और बच्चे उठाते हैं।- करीब २२५,००० बच्चे बीड़ी बनाने के काम में लगे हुए हैं ।

- करीब ७६ से ९५ % महिलाओं को बीड़ी बनाने से रोजगार प्रदान होता है।

- वह महिलाएं जो कि बीड़ी के पत्ते बनाने के काम में लगी हैं वह शारीरिक और अभद्र बातों से भी ज्यादा प्रताड़ित होती हैं।


भारत में बीड़ी पर उत्पाद कर की व्यवस्था, सार और कुछ सुझाव :
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सुझाव देने से पहले हम बीड़ी और सिगरेट इत्यादि पर लागू उसके ऊपर उत्पाद कर और उसके प्रावधानों के बारे में तथ्य जान लें।

- बीड़ी के लिए उत्पाद शुल्क का निर्धारण प्रत्येक १००० बीड़ी के ऊपर किया जाता है। इसमे भी इस बात को ध्यान में रखा जाता है कि वह बीड़ी हाथ द्वारा बनी हुई है या फिर मशीन के द्वारा। ज्ञात हो कि करीब ९८ % बीड़ी हाथ द्वारा ही बनी होती है।

- यदि एक साल में बीड़ी उत्पादनकर्ता २० लाख से कम बीड़ी का उत्पादन बिना मशीन की सहायता से करता है तो ऐसे में वह कर से मुक्त होता है।

- २० लाख से अधिक बीड़ी बनाने की लिए हर साल सिर्फ़ ६ मजदूरों की जरुरत होती है। औसतन १००० बीड़ी प्रतिदिन इन मजदूरों द्वारा बनाई जाती है।


- हाथ द्वारा निर्मित बीड़ी पर आबकारी शुल्क वर्ष २००६/०७ में करीबन ३३ प्रतिशत बढ़ा और वर्ष २००७/ ०६ में यह शुल्क १६ % और बढ़ा दिया गया।


- वर्ष १९९३ / ९४ और २००६/०७ के मध्य सिगरेट की तुलना में बीड़ी के उत्पाद से प्राप्त आबकारी राजस्व में गिरावट आई है।

- आबकारी शुल्क प्रत्येक १००० बीड़ी पर १८ रूपये है। वहीं बिना फिल्टर वाली छोटी सिगरेट पर आबकारी शुल्क प्रति १००० सिगरेट पर १६८ रूपये है।

- आम फिल्टर युक्त सिगरेट की तुलना में बिना फिल्टर वाली छोटी सिगरेट पर आबकारी शुल्क २१ प्रतिशत है।

- यदि हम खुदरा मूल्य के तहत आबकारी शुल्क को देखें तो पातें हैं कि यह शुल्क हाथ द्वारा निर्मित बीड़ी पर ८.८% है। जबकि सिगरेट पर यह बोझ ३३ % से भी अधिक है।

- यद्यपि इस बात का कोई पर्याप्त आंकड़ा मौजूद नही है कि कितनी बीड़ी का उत्पादन हर साल किया जाता है, किंतु एक अनुमान के मुताबिक प्रत्येक वर्ष करीब ७५० अरब से १.२ खरब तक की बीड़ी का उत्पादन प्रत्येक वर्ष भारत में होता है। जिसमें से वर्ष २००६ / ०७ में लगभग ३६० अरब बीड़ी के उत्पादन पर ही आबकारी शुल्क वसूल किया गया था। इससे स्पस्ट है कि लगभग आधे बीडी के उत्पाद पूर्णतः आबकारी कर से मुक्त थे।

- बीड़ी पर लागू आबकारी शुल्क को किसी सिगरेट के आबकारी शुल्क से अलग नही किया जा सकता खास कर उन सिगरेटों पर जो कि फिल्टर रहित होती हैं और बीड़ी के मुकाबले ही बिकती हैं।

वर्ष १९९४/९५ में बिना फिल्टर वाली सिगरेटों पर आबकारी शुल्क कम कर दिया गया और बीड़ी के कर में वृद्धि कर दी गई थी इससे पाया गया कि आचानक बिना फिल्टर वाली सिगरेटों में गिरावट आई थी। जब बिना फिल्टर वाली छोटी सिगरेटों पर उत्पाद शुल्क बढ़ा तो पाया गया कि इसकी बिक्री में गिरावट दर्ज हुई है। जबकि बीडी की बिक्री में बढोतरी दर्ज हुई है।


सुझाव
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हाथ द्वारा बनाई हुई बीड़ी और मशीन द्वारा बनाई गई बीड़ी के अन्तर को ख़त्म करना चाहिए ।

- बीड़ी पर भी गैर फिल्टर आधारित सिगरेटों की तरह ही उत्पाद कर लगाना चाहिए जो कम से कम १६८ रूपये प्रति १००० बीड़ी होना चाहिए। यदि ऐसा किया गया तो बीड़ी की कीमत प्रति पैकट जिसमे कि करीब २५ बीड़ी होती है, ४ से ८ रूपये बढ़ जायेगी ।

- इस बात की गारंटी प्रदान करना कि भले ही बीड़ी का उत्पादन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हो रहा हो, उन सभी पर बराबर उत्पाद कर लगेगा तथा समुचित प्राधिकारी द्वारा बीड़ी उद्योंगों की पर्याप्त मानकों के आधार पर नियमित जाँच भी होगी।

- बिना ब्राण्ड के किसी भी बीड़ी उत्पाद की बिक्री बाज़ार में नही होनी चाहिए और ब्राण्ड का नाम बिक्री के पैकेट के ऊपर लिखा होना चाहिए।

- उत्पादनकर्ताओं और उनके एजेंटों द्वारा जितनी भी बीड़ी की बिक्री की गई है उसकी पर्याप्त जानकारी सरकार को मिलनी चाहिए।


राष्ट्रीय स्तर पर लागू जि० एस० टी ० तम्बाकू उत्पाद के करों को आसानी से प्रोत्साहन निम्न माध्यमो द्वारा करेगा:-

- राष्ट्रीय स्तर पर लागू जि० एस० टी० मानकों के अनुसार उत्पाद कर भी उसी तरह से लिया जाना चाहिए जिस तरह से अन्य सामानों का लिया जाता है ।

- प्रत्येक सिगरेट के उत्पाद पर बराबर उत्पाद शुल्क होना चाहिए।


भारत में बीड़ी उद्योग की स्तिथि :--

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भारत सरकार ने बीड़ी उद्योगों में काम कर रहे मजदूरों के कल्याण और उनको सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए कुछ अधिनियम और नीतियाँ बनाई हैं । किंतु सच्चाई तो यह है कि वास्तव में इन नीतियों से अभी तक किसी भी तरह का लाभ इन मजदूरों को नही मिला है।

भारत में बीड़ी उद्योग का स्वरूप :-

- भारत में करीब ३०० बड़े उद्योग बीड़ी बनाने के काम में लगे हैं और कई हज़ार अन्य छोटे उद्योग भी इसके काम में लगे हुए हैं।

- बीड़ी उद्योग करीब ४४ लाख लोगों को सीधे तौर पर पूर्णकालिक रोजगार प्रदान करता है और करीब ४० लाख बीड़ी बनाने के अन्य कामों में लगे हुए हैं।

- भारत के बीड़ी उद्योग से वर्ष १९९९ में करीब १६५ अरब उत्पाद कर और २० अरब विदेशी बिनिमय भारत सरकार को प्राप्त हुआ है।


- मुख्य अधिनियम जो बीड़ी मजदूरों के लिए बनाये गए हैं:

१ - बंधुआ मजदूर मुक्ति करण अधिनियम , १९७६, यह अधिनियम बंधुआ मजदूरी को रोकता है।
२- बाल मजदूर रोक्धाम अधिनियम १९८६, इस अधिनियम के तहत अव्यसक बच्चों को बीड़ी के बनाने के किसी भी काम में लगाना जुर्म है।


बीड़ी मजदूरों के लिए कल्याणकारी योजनाएं :-

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बीड़ी मजदूर कल्याणकारी फण्ड १९७६, इस फण्ड के तहत बीड़ी उद्योगों में काम कर रहे मजदूरों को शिक्षा, चिकित्सा, बीमा योजना , घर का किराया इत्यादि प्रदान किया जाएगा।

- काम के दौरान बीमा योजना :- इस योजना के तहत काम के दौरान बीड़ी मजदूर को यदि किसी प्रकार की समस्या आती है तो उसको आर्थिक सहायता प्रदान की जायेगी।

इन कल्याणकारी योजनायें और अधिनियमों के बावजूद सच तो यह है कि कुल बीड़ी मजदूरों में से १५ से २० % बच्चे शामिल हैं। बीड़ी मजदूरों के पास किसी भी प्रकार का कोई पहचान पत्र नही है। कई शोधों द्वारा यह बात पता चलती है कि बीड़ी बनाने के काम में लगी करीब ५० % महिलाएं कई तरह की सामाजिक दिक्कतों का सामना करती हैं।

पिछले कुछ सालों में बीड़ी व्यवसाय का काम कर रहे लोगों ने बीड़ी उत्पाद का काम बीड़ी कारखानों के बजाये लोगों के घरो में स्थानांतरित कर दिया है। क्योंकि इन बीड़ी उद्योग के मालिकों को इस बात का डर है की कहीं यह बीड़ी मजदूर कोई संगठन न बना लें। दक्षिण भारतीय राज्यों में कराये गए एक शोध में पाया गया कि केवल ४४% बीड़ी मजदूर पंजीकृत थे , ५०% बीड़ी मजदूरों के पास पहचान पत्र था और मात्र ९% बीड़ी मजदूर व्यापार संघ के सदस्य थे। कई ऐसे मजदूर थे जिनके पूरे परिवार बीड़ी बनाने में लगे हुए थे परन्तु सिर्फ़ एक के पास ही पहचान पत्र था।


बीड़ी मजदूर और उनकी आजीविका :-

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बीड़ी लपेटने का सारा काम मुख्यतः आदमिओं द्वारा संचालित किया जाता है , और इस काम में ज्यादातर महिलाएं और बच्चे शामिल होते हैं जो कई तरह की स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियों का सामना करतें हैं।

- बीड़ी उद्योग में काम कर रहे कुल मजदूरों में से करीब ७५% हिस्सा महिलाओं का होता है। किंतु बीड़ी उद्योग मुख्यतः पुरुषों द्वारा संचालित किया जाता है। अखिल भारतीय बीड़ी, सिगार, तथा तम्बाकू मजदूर संघ के अनुमान के मुताबिक ९५% महिलाएं बीड़ी उद्योग में काम कर रहीं हैं।

- प्राथमिक स्तर पर बीड़ी लपेटने का काम महिलाओ द्वारा किया जाता है और यह काम मुख्यतः वह अपने घरों द्वारा संचालित करती हैं जिससे उनका पूरा परिवार ही इस काम में शामिल हो सके।

- एक अनुमान के मुताबिक बीड़ी उद्योग के काम में लगे करीब १६ % बच्चे ऐसे होते हैं जिनकी उम्र १४ साल से कम की होती हैमुख्यतः यह बच्चे सप्ताह के दिन और करीब १४ घंटे प्रतिदिन काम करते हैं। किंतु गैर सरकारी संगठनों का यह मानना है कि यह आंकड़ा बिल्कुल ग़लत है।

- बीड़ी लपेटने के काम में यह बच्चे किसी भी तरह के दास्ताने और मास्क आदि का प्रयोग नही करते हैं जिसके कारणवश काम के वक्त उनके शरीर में तम्बाकू आदि के कण प्रवेश कर जाते हैं।

एक खतरनाक व्यवसाय :-

बीड़ी उद्योग में काम कर रहे मजदूरों को कई तरह की खतरनाक बीमारियाँ होने का डर रहता है जैसे साँस की बीमारी आदि।

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भारत तथा विश्व स्तर पर तम्बाकू की जानकारी प्राप्त करने के लिए डाऊनलोड करें:-

- हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रकाशित वैश्विक तम्बाकू महामारी की रिपोर्ट और एम् - पॉवर पैकेज को डाऊनलोड करने के लिए यहाँ पर क्लिक्क कीजिये:

बीड़ी उत्पाद पर कर से संबंधित रपट को डाऊनलोड करने के लिए यहाँ पर क्लिक्क कीजिये

भारत में तम्बाकू नियंत्रण जो की भारत के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट को डाऊनलोड करने के लिए यहाँ पर क्लिक्क कीजिये

जनता जाँच के अंत में जन सुनवाई

प्रिया मित्रों,

जैसा कि आप सबको पता है कि नागरिक समूह द्वारा उन्नाव जिले के मियागंज ब्लाक में राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना के तहत जो कार्य हुआ है, उसकी जनता जाँच चल रही है.

इस जनता जाँच की पूरी रपट एक जन सुनवाई में सबके समक्ष रखी जायेगी. इस जन सुनवाई में आप सब सादर आमंत्रित हैं.

जन सुनवाई

बुधवार, २८ मई २००८
समय: ११ बजे सुबह से ४ बजे शाम
स्थान: ब्लाक ऑफिस, मियागंज, उन्नाव जिला

पहुचने के लिए निर्देश: मियागंज ब्लाक, उन्नाव जिले में आता है, जो लखनऊ से ५५ किलोमीटर दूर है.

इस जन सुनवाई में, ग्रामीण विकास के आयुक्त - श्री मनोज कुमार सिंह उपस्थित रहेंगे. अन्य अधिकारीगण जिनमें जिलाध्यक्ष, जिला विकास अधिकारी शामिल हैं, भी उपस्थित रहेंगे.

कृपया कर के इस जन सुनवाई में अवश्य शामिल हों,

साधुवाद,


अनुराग तिवारी - ९९३६११६९०७/ ९४५४८७१०३२;
महेश - ९८३८५४६९००;
यशवंत रो - ९९३५४५१८७६;
राम बाबु - ९४५२१४४४५४

आशा परिवार और
National Alliance for People's Movements (NAPM)
जान आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय

तपेदिक या टीबी समाचार सारांश: २५ मई २००८: अंक ५२

तपेदिक या टीबी समाचार सारांश
अंक ५२
रविवार, २५ मई २००८


जापान सरकार ने ग्लोबल फंड टू फाइट एड्स, टीबी और मलेरिया (GFATM) को अमरीकी डालर ५६० मिलियन का अनुदान देने का वादा किया है. मगर सामाजिक कार्यकर्ता और जन प्रतिनिधि इस बात से प्रसन्न नही हैं क्योकि २००५ में जो G8 या आठ विकसित देशों के समूह ने अफ्रीका में एड्स अनुदान को दुगना करने का वादा किया था, वह आज तक पूरा नही हुआ है (पुराने समाचार को पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक्क कीजिये ).

इस बार भी G8 की बैठक में आठों देशों ने ८० बिलियन अमरीकी डालर का अनुदान देने की बात मंजूर की है परन्तु 'समय अवधि' नही स्पष्ट की है. इन देशों ने कहा है कि आने वाले सालों में वें यह धनराशी एड्स, टीबी और मलेरिया को नियंत्रित करने के लिये व्यय करेंगे।

'international standards for tb care' या तपेदिक से ग्रसित रोगियों की देखभाल के लिये अंतर्राष्ट्रीय मापक के प्रमुख लेखक डॉ फिलिप होपेवेल्ल को सन फ्रांसिस्को स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय का विशिष्ठ पुरुस्कार मिला है. डॉ होपेवेल्ल अमरीका में ही नही बल्कि विश्व में टीबी या तपेदिक नियंतरण को सुधारने के लिये समर्पित रहे हैं, और उनके द्वारा लिखित यह मापक सभी देशों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं.

International Standards for TB Care को डाऊनलोड करने के लिये यहाँ क्लिक्क कीजिये

कुछ ही दिन पहले चेन्नई में हो रही कार्यशाला में डॉ पाल सोमेर्फेल्ड ने कहा था कि टीबी या तपेदिक से ग्रसित लोगों को और जिनको इससे संक्रमित होने का खतरा है, टीबी कार्यक्रमों में शामिल करना जरुरी है. डॉ होपेवेल्ल के मापक भी इस बात पर जोर देते हैं कि समुदाय की भागीदारी प्रभावकारी टीबी या तपेदिक नियंतरण के लिये अतिआवश्यक है.

जिम्बाब्वे में एच.आई.वी संक्रमण का दर नीचे आ रहा है परन्तु टीबी या तपेदिक से संक्रमित लोगों का दर बढ़ता जा रहा है, विशेषकर कि ड्रग रेसिस्तंत टीबी या तपेदिक का दर.

एच.आई.वी से ग्रसित लोगों के संगठन ने और जिम्बाब्वे के सरकारी विभागों ने भी इस बात पर जोर दिया है कि एच.आई.वी क्लीनिक में टीबी या तपेदिक की जांच होनी चाहिए और उचित उपचार की भी सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए.

आज भी, न केवल जिम्बाब्वे में, बल्कि विश्व में एच.आई.वी से ग्रसित लोगों में टीबी या तपेदिक ही सबसे बड़ा मृत्यु का कारण है. टीबी या तपेदिक ही एच.आई.वी से ग्रसित लोगों में सबसे प्रमुख अवसरवादी संक्रमण है.

तम्बाकू किल्स समाचार बुलेटिन: २३ मई २००८: अंक ३८४

तम्बाकू किल्स समाचार बुलेटिन
शुक्रवार, २३ मई २००८
अंक ३८४

क्रिकेट खिलाड़ी शेन वारने ने फिर सार्वजनिक रूप से सिगरेट पी
इंडियन प्रेमिएर लीग क्रिकेट मैच में शेन वारने ने, जो ऑस्ट्रेलिया के क्रिकेट खिलाड़ी हैं, उन्होंने मैदान में एक बार फिर सिगरेट पी। हिंदुस्तान टाइम्स समाचार पत्र के छायाकार ने तस्वीर ली और वह मुख्य पृष्ठ पर छपी.


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बीड़ी से होने वाले स्वास्थ्य पर कुप्रभाव अप्रत्यक्ष रहते हैं

दुनिया की पहली बीड़ी से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले कु-प्रभावों के ऊपर व्यापक रपट जो भारत के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने जारी की है, उसके अनुसार भारत में लगभग १० करोड़ बीड़ी सेवन करने वाले लोग हैं - इनमें से २.३ प्रतिशत बच्चे हैं.


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उत्तर-पूर्वी भारत में बीड़ी से होने वाले कैंसर का अनुपात सबसे अधिक

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा विमोचित रपट 'बीड़ी मोनोग्राफ' के अनुसार उत्तर पूर्वी भारत के प्रदेशों में तम्बाकू जनित कैंसर का अनुपात सबसे अधिक है.

उदाहरण के तौर पर भारत के सभी प्रदेशों की तुलना में मिजोरम में सबसे अधिक कैंसर का अनुपात है.

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अंबुमणि रामादोस पहले सरकारी कर्मचारियों को तम्बाकू सेवन करने से रोकें: अमिताभ बच्चन

भारत के केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ अंबुमणि रामादोस ने बॉलीवुड के सुपरस्टार अमिताभ बच्चन को और अन्य फिल्मी कलाकारों को तम्बाकू सेवन, शराब और जंक फ़ूड का सेवन करने से रोकने का आह्वान किया है, क्योकि यह स्थापित हो चुका है कि बच्चों और युवाओं में तम्बाकू सेवन शुरू करने का सबसे बड़ा कारण है - फिल्मों में इसको प्रदर्शित करना.

अमिताभ बच्चन ने डॉ रामादोस को चुनौती देते हुए कहा है कि सर्वप्रथम डॉ रामादोस अपने ही सरकार में कार्यरत लोगों को तम्बाकू सेवन करने से रोकें.

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इस टीम को भारतीय तम्बाकू नियंत्रण संगठन (इंडियन सोसिएटी अगेन्स्ट स्मोकिंग), आशा परिवार, अभिनव भारत फाउंडेशन, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस और छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय की तम्बाकू नशा उन्मूलन क्लीनिक का सहयोग प्राप्त है।

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तपेदिक या टीबी समाचार सारांश: २३ मई २००८: अंक ५१

तपेदिक या टीबी समाचार सारांश
अंक
५१
शुक्रवार, २३ मई २००८


भारत में टीबी या तपेदिक नियंतरण को सफल बनाने के लिये आवश्यक है कि टीबी या तपेदिक नियंतरण के कार्यक्रमों में स्थानीय लोगों की प्रतिभागिता होनी चाहिए.

विशेषकर कि वह लोग जो टीबी या तपेदिक से ग्रसित हैं, या जिनको टीबी या तपेदिक संक्रमण होने की संभावना अधिक है, उनकी प्रतिभागिता अतिआवश्यक है.


ऐसा अनुमान है कि लगभग १/३ लोगों को जिनको टीबी या तपेदिक का सक्रिय रोग है, उन तक सेवाएं नहीं पहुच रही हैं. भारत में और देशों की तुलना में सराहनीय टीबी या तपेदिक नियंतरण कार्यक्रम चल रहे हैं, परन्तु टीबी या तपेदिक के रोगियों की संख्या विश्व में सबसे अधिक है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की रपट (एंटी-टीबी ड्रग-रेसिस्तंस इन द वर्ल्ड, फरवरी २००८) के मुताबिक भारत में २७ प्रतिशत टीबी या तपेदिक के रोगी ड्रग-रेसिस्तंत हैं.

टीबी विशेषज्ञ पाल सोमेर्फेल्ड ने चेन्नई में कहा कि टीबी या तपेदिक के परीक्षण के लिये नई जांच आ गई हैं, टीबी या तपेदिक के इलाज के लिये कम-से-कम एक नई दवा आने वाले ४-५ सालों में तो आ ही
जायेगी.

गैर-फेफड़ों की टीबी या तपेदिक कम पायी जाती है, और मास-पेशियों की टीबी और भी कम (१-५%). भारत में एक ६८ वर्षीय किसान के पैर की मास-पेशियों में टीबी या तपेदिक निकली. शुक्र है कि चिकित्सकों ने उसको समय से जांच कर के चिन्हित कर लिया और उपयुक्त इलाज किया. इस रोग के बारे में शोध इस महीने के जर्नल में छपा है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन की नई रपट (वर्ल्ड हैल्थ स्तातिस्टिक २००८ या विश्व के स्वास्थ्य आकडें २००८) १९ मई २००८ को विमोचित हुई है.

इस रपट से साफ जाहिर है कि विश्व में आने वाले सालों में संक्रामक रोगों से मृत्यु दर कम और क्रोनिक या लंबे-देखभाल वाले गैर-संक्रामक रोगों का अनुपात बढ़ता जाएगा.

उदाहरण के तौर पर टीबी या तपेदिक, एच.आई.वी, मलेरिया, दस्त आदि की तुलना में ह्रदय रोगों, मधुमेह, तम्बाकू जनित कु-प्रभावों आदि का कही ज्यादा अनुपात होगा.

जिस प्रकार की जीवनशैली लोग अपना रहे हैं, वह इन गैर संक्रामक रोगों की जनक है. उदाहरण के तौर पर शराब और तम्बाकू के सेवन को सामाजिक स्वीकृति मिलने से, विशेषकर कि महिलाओं का शराब या तम्बाकू सेवन करने को सामाजिक स्वीकृति मिलने से, और बच्चों/ युवाओं का फास्ट-फ़ूड आदि के सेवन से जो बीमारियाँ हो रही हैं, उनमें से अधिकांश से पूर्णत: बचाव मुमकिन है.

इस रपट को डाऊनलोड करने के लिये यहाँ क्लिक्क कीजिये

तपेदिक या टीबी समाचार सारांश: २२ मई २००८: अंक ५०

तपेदिक या टीबी समाचार २२
अंक ५०
गुरूवार, २२ मई २००८


'स्केलिंग अप, सेविंग लाइव्स' या Scaling up, Saving lives नामक रपट कल २१ मई २००८ को विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व स्वास्थ्यकर्मियों के संगठन के संयुक्त तत्वावधान में विश्व स्वास्थ्य असेम्बली के दौरान विमोचित हुई है.

इस रपट को डाऊनलोड करने के लिये, यहाँ क्लिक्क कीजिये

इस रपट से यह स्पष्ट है कि दुनिया में स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या में कमी बढ़ती ही जा रही है. पर्याप्त मात्रा में स्वास्थ्यकर्मी प्रशिक्षित भी नही हो रहे हैं. विश्व स्तर पर, खासकर कि विकासशील देशों में रोग नियंतरण पर इसके भीषण परिणाम होने की सम्भावना है.

एड्स जर्नल के ११ मई २००८ के अंक में प्रकाशित इस शोध के अनुसार यदि टीबी या तपेदिक के उपचार की अवधी कम कर दी जाए तो जिन छेत्रों में एच.आई.वी का अनुपात अधिक है, वहाँ पर न केवल टीबी या तपेदिक जनित मृत्यु दर में गिरावट आती है बल्कि नए टीबी या तपेदिक से संक्रमित लोगों की संख्या भी कम हो जाती है. यह लाभ और अधिक बढ़ जायेंगे यदि टीबी या तपेदिक की जाँच अधिक की जाए और लोग इलाज पूरी तरह से और पूरी अवधि तक लें. इस शोध में गणित पर आधारित मॉडल के द्वारा यह निष्कर्ष निकाला गया था. एड्स जर्नल, अंतर्राष्ट्रीय एड्स सोसिएटी द्वारा प्रकाशित की जाती है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन की नई रपट (वर्ल्ड हैल्थ स्तातिस्टिक २००८ या विश्व के स्वास्थ्य आकडें २००८) १९ मई २००८ को विमोचित हुई है.

इस रपट से साफ जाहिर है कि विश्व में आने वाले सालों में संक्रामक रोगों से मृत्यु दर कम और क्रोनिक या लंबे-देखभाल वाले गैर-संक्रामक रोगों का अनुपात बढ़ता जाएगा.

उदाहरण के तौर पर टीबी या तपेदिक, एच.आई.वी, मलेरिया, दस्त आदि की तुलना में ह्रदय रोगों, मधुमेह, तम्बाकू जनित कु-प्रभावों आदि का कही ज्यादा अनुपात होगा.

जिस प्रकार की जीवनशैली लोग अपना रहे हैं, वह इन गैर संक्रामक रोगों की जनक है. उदाहरण के तौर पर शराब और तम्बाकू के सेवन को सामाजिक स्वीकृति मिलने से, विशेषकर कि महिलाओं द्वारा शराब या तम्बाकू सेवन करने को सामाजिक स्वीकृति मिलने से, और बच्चों/ युवाओं का फास्ट-फ़ूड आदि के सेवन से जो बीमारियाँ हो रही हैं, उनमें से अधिकांश से पूर्णत: बचाव मुमकिन है.

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तम्बाकू किल्स समाचार बुलेटिन: २१ मई २००८: अंक ३८३

तम्बाकू किल्स समाचार बुलेटिन
बुधवार, २१ मई २००८
अंक ३८३


विश्व में ह्रदय रोग से सबसे अधिक मृत्यु: विश्व स्वास्थ्य आकडें रपट २००८

पूरी रपट को डाऊनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक्क कीजिये

विश्व स्वास्थ्य संगठन की नई रपट, विश्व स्वास्थ्य आकडें २००८ रपट या World Health Statistics२००८ रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में अब संक्रामक रोगों का दर कम हो रहा है, और गैर-संक्रामक रोगों का दर, खासकर कि क्रोनिक बीमारियाँ जिनको उपचार या देखभाल की आवश्यकता लंबे-समय तक पड़ती है, उनका दर बढ़ता जा रहा है.

ह्रदय रोगों से सबसे अधिक मृत्यु होती है.

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बीड़ी से स्वास्थ्य पर गंभीर जानलेवा कु-प्रभाव

दुनिया की पहली बीड़ी से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले कु-प्रभावों के ऊपर व्यापक रपट जो भारत के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने जारी की है, उसके अनुसार भारत में लगभग १० करोड़ बीड़ी सेवन करने वाले लोग हैं - इनमें से २.३ प्रतिशत बच्चे हैं.

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क्यूबा से भारत स्वास्थ्य उत्पादन और तम्बाकू का आयात कर सकता है

क्यूबा के डेपुटी मंत्री जो इस समय दिल्ली में है, श्री अमदोर के अनुसार क्यूबा से भारत स्वास्थ्य उत्पादन और 'तम्बाकू' शराब (रम) आदि का आयात कर सकता है.

सोचने पर लोग मजबूर हैं कि लोग स्वास्थ्य उत्पादनों के साथ ही तम्बाकू और शराब का नाम भी लेते हैं!

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तम्बाकू की खेती करने वाले किसानों का पाकिस्तानी तम्बाकू बहु-राष्ट्रीय कम्पनियाँ शोषण करती हैं

सरहद कृषि चैंबर के अध्यक्ष मुहम्मद अली के अनुसार पाकिस्तान में १०० अरब रुपया का तम्बाकू बाज़ार है. लगभग ९० अरब की तम्बाकू तो देश के भीतर से आती है और बाकि कि चीन, भारत और जापान से तस्करी हो के आती है.

उनके अनुसार पाकिस्तानी सरकार और तम्बाकू बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ एक तरफ़ तो जबरदस्त मुनाफा कमा रही हैं, और दूसरी ओर तम्बाकू की खेती करने वाले किसानों का भीषण शोषण कर रही हैं.

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तपेदिक या टीबी समाचार सारांश: २१ मई २००८: अंक ४९

तपेदिक या टीबी समाचार सारांश
अंक ४९

बुधवार, २१ मई २००८


विश्व स्वास्थ्य संगठन की नई रपट (वर्ल्ड हैल्थ स्तातिस्टिक २००८ या विश्व के स्वास्थ्य आकडें २००८) १९ मई २००८ को विमोचित हुई है.

इस रपट से साफ जाहिर है कि विश्व में आने वाले सालों में संक्रामक रोगों से मृत्यु दर कम होता जाएगा और क्रोनिक या लंबे-देखभाल वाले गैर-संक्रामक रोगों का अनुपात बढ़ता जाएगा.

उदाहरण के तौर पर टीबी या तपेदिक, एच.आई.वी, मलेरिया, दस्त आदि की तुलना में ह्रदय रोगों, मधुमेह, तम्बाकू जनित कु-प्रभावों आदि का कही ज्यादा अनुपात होगा.

जिस प्रकार की जीवनशैली लोग अपना रहे हैं, वह इन गैर संक्रामक रोगों की जनक है. उदाहरण के तौर पर शराब और तम्बाकू के सेवन को सामाजिक स्वीकृति मिलने से, विशेषकर कि महिलाओं के शराब या तम्बाकू सेवन करने को सामाजिक स्वीकृति मिलने से, और बच्चों/ युवाओं का फास्ट-फ़ूड आदि के सेवन से जो बीमारियाँ हो रही हैं, उनमें से अधिकांश से पूर्णत: बचाव मुमकिन है.

इस रपट को डाउनलोड करने के लिये यहाँ क्लिक्क कीजिये:

लेटेंट टीबी या तपेदिक, यानी कि जब टीबी या तपेदिक का बक्टेरिया शरीर में हो पर सक्रिय रोग न पैदा करे, ऐसी स्थिति में १/३ दुनिया के लोग हैं.

यदि ९ महीने तक इसोनिअजिद दवा पूरी अवधि तक सही समय पर ली जाए तो लेटेंट टीबी या तपेदिक से ग्रसित ९०% लोगों में बचाव मुमकिन है. परन्तु ५० प्रतिशत से अधिक लोग यह दवा नियमित रूप से, या पूरी अवधि तक या समय से नही लेते.

अब नए शोध के अनुसार लेटेंट टीबी या तपेदिक के लिये नई दवा (रिफम्पिन) अधिक कारगर है क्योकि इसको इसोनिअजिद की तुलना में ९ महीने की अपेक्षा सिर्फ़ ४ महीने तक ही लेना होता है. यह इसोनिअजिद की तुलना में सस्ती भी है और हर लेटेंट टीबी या तपेदिक के रोगी पर अमरीकी डालर १०,००० की बचत होती है.

खासकर की एच.आई.वी से ग्रसित लोगों में चूँकि टीबी या तपेदिक मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है, यदि इसोनिअजिद या रिफम्पिन दवा को सही समय से और पूरी अवधि में दिया जाए तो ९०% लोगों के लिये टीबी या तपेदिक का खतरा लगभग हमेशा के लिये ख़त्म हो जाता है.

लेटेंट टीबी या तपेदिक की दवा देने से पहले यह अतिआवश्यक है कि इस बात की अच्छी तरह से पुष्टि कर ली जाए कि व्यक्ति को 'लेटेंट' टीबी या तपेदिक ही है. क्योकि यदि इस व्यक्ति को सक्रिय टीबी या तपेदिक का रोग हुआ, तो इसोनिअजिद या रिफम्पिन दवा देने से ड्रग रेसिस्तंस विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है.

तपेदिक या टीबी समाचार सारांश: २० मई २००८: अंक ४८

तपेदिक या टीबी समाचार सारांश
अंक ४८
मंगलवार, २० मई २००८


विश्व स्वास्थ्य संगठन की नई रपट (वर्ल्ड हैल्थ स्तातिस्टिक २००८ या विश्व के स्वास्थ्य आकडें २००८) १९ मई २००८ को विमोचित हुई है.

इस रपट से साफ जाहिर है कि विश्व में आने वाले सालों में संक्रामक रोगों से खतरा कम और क्रोनिक या लंबे-देखभाल वाले गैर-संक्रामक रोगों का अनुपात सबसे अधिक होगा. उदाहरण के तौर पर टीबी या तपेदिक, एच.आई.वी, मलेरिया आदि से कही ज्यादा अनुपात होगा ह्रदय रोगों का, मधुमेह का, तम्बाकू जनित कु-प्रभावों का...


अभी तक 'बम' का आतंक तो सुना होगा, पर अमरीका में टीबी या तपेदिक के आतंक की ख़बर अनोखी है. अमरीका में एक व्यक्ति जिसने किराये पर ली कार को वापस नही किया था, उसको पुलिस ने थाने में सुबह सुनवाई तक बंद करने का प्रयास किया, तो उसने 'मुझे टीबी है' का शोर मचा दिया. हकीकत में यह व्यक्ति थाने के अन्य कैदियों के साथ रात नही गुज़ारना चाहता था, इसलिए उसने ऐसा झूठ बोला.

पुलिस थाने में खलबली मच गई, स्वास्थ्य विभाग ने थाना सील कर दिया, सभी कैदियों और करमचारियों की टीबी या तपेदिक की जांच हुई और अंत में यह पता चला कि न उस व्यक्ति को टीबी या तपेदिक है और न ही किसी भी कैदी या कर्मचारी को.

अमरीकी कोर्ट ने इस व्यक्ति को 'संगीन जुर्म और बदमाशी' के लिये सजा सुनाई है.

एच.आई.वी की तुलना में हेपेटाइटिस से दस गुणा अधिक लोग संक्रमित होते हैं. ऐसा वर्ल्ड हेपेटाइटिस काउंसिल या विश्व हेपेटाइटिस संगठन ने आकडें प्रस्तुत करते हुए कहा.

काउंसिल ने मांग की कि हेपेटाइटिस नियंतरण कार्यक्रमों को कम-से-कम उतना ध्यान तो मिलना चाहिए जितना एच.आई.वी, टीबी या तपेदिक और मलेरिया को मिलता है.

लगभग १५ लाख लोगों की मृत्यु प्रति वर्ष हेपेटाइटिस से होती है.

तम्बाकू किल्स समाचार बुलेटिन (२० मई २००८): अंक ३८२

तम्बाकू किल्स समाचार बुलेटिन

२० मई २००८

अंक ३८२


विज्ञापन उद्योग के वरिष्ठ विशेषज्ञ का मत है कि
तम्बाकू या शराब का सेवन फिल्मों विज्ञापनों की वजह से नही होता है!

संतोष देसाई, जो कि एक वरिष्ठ विज्ञापन विशेषज्ञ हैं, उनका कहना है कि जो लोग तम्बाकू या शराब का सेवन करते हैं, वह फिल्मों को देख कर नही प्रभावित होते हैं. उनके अनुसार जो लोग जानते हुए भी कि तम्बाकू और शराब कितना हानिकारक हो सकता है, यदि सेवन करना चुनते हैं, तो यह उनका चुनाव है और उसके लिए वह स्वयं जिम्मेदार हैं.

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स्वास्थ्य मंत्रालय की बीड़ी रपट ने बीड़ी उद्योग को खतरे में डाल दिया है

लगभग ३० प्रतिशत जो तम्बाकू की खेती भारत में होती है, वह बीड़ी के लिए इस्तेमाल होती है. लगभग २,९०,००० तम्बाकू खेती में लगे हुए किसान इससे रोज़गार पाते हैं.

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तम्बाकू की खेती करने वाले किसान प्रसन्न हैं कि तम्बाकू महंगी हो रही है

सिवाजी, जो भूतपूर्व सांसद रह चुके हैं और वर्त्तमान में वर्जीनिया टोबक्को ग्रोवेर्स असोसिएशन के अध्यक्ष हैं, उनका कहना है कि भारत में तम्बाकू का दाम बढ़ना और मुनाफे में इजाफा होने के पीछे है जिम्बाब्वे में तम्बाकू की खेती में गिरावट - २५० मिलियुन किलो प्रति वर्ष से ६० मिलियुन किलो.

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भूटान में लोग भारत से तस्करी से आई सिगरेट पीते हैं, 'विल्स नेवी कट' खास मशहूर है

२००४ में भूटान दुनिया का पहला देश था जहाँ तम्बाकू की बिक्री पर पाबन्दी और सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करने पर रोक लग गई थी. जो लोग तम्बाकू का सेवन करते थे, वह भारत - भूटान की सरहद से तस्करी से आई सिगरेट ला के घर के भीतर ही धूम्रपान कर पाते थे.

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तम्बाकू नियंत्रण के लिए पुरूस्कार दिए जायेंगे

बर्निंग ब्रेन सोसिएटी (bbs), जो चंडीगढ़ में स्थापित है, उसने तम्बाकू नियंत्रण के लिए जो लोग समर्पित हैं, उनके योगदान की सराहना करते हुए कई विशेष पुरूस्कार का ऐलान किया है.

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यह तम्बाकू किल्स समाचार बुलेटिन तम्बाकू किल्स युवा टीम द्वारा आपको प्राप्त हो रही है।

इस टीम को भारतीय तम्बाकू नियंत्रण संगठन (इंडियन सोसिएटी अगेन्स्ट स्मोकिंग), आशा परिवार, अभिनव भारत फाउंडेशन, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस और छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय की तम्बाकू नशा उन्मूलन क्लीनिक का सहयोग प्राप्त है।

ईमेल :
Tambakoo.Kills@gmail.com

तपेदिक या टीबी समाचार सारांश: १९ मई २००८: अंक ४७

तपेदिक या टीबी समाचार सारांश
अंक ४७
सोमवार, १९ मई २००८


तम्बाकू से निकलते धुएँ में, मोटर-गाड़ियों से निकलते हुए धुएँ में, आदि में एक बेरंग बेमहक जहरीली गैस होती है जो टीबी या तपेदिक को लेटेंट ड्रग-रेसिस्तंत टीबी में परिवर्तित कर सकती है. ऐसा अलाबामा विश्वविद्यालय के शोध से प्रमाणित हुआ है.

अनेकों शोध से यह पहले ही ज्ञात है कि तम्बाकू सेवन से तपेदिक या टीबी होने का खतरा अत्याधिक बढ़ जाता है. भारत में तम्बाकू-जनित मृत्यु का सबसे बड़ा कारण तपेदिक या टीबी है (न कि कैंसर) हालांकि तम्बाकू जनित कैंसर का दर भी काफ़ी अधिक और चिंताजनक है.

पाकिस्तान इनस्तित्युत ऑफ़ मेडिकल साइंसेस से डॉ अब्दुल मजीद राजपूत ने चिकित्सकों से अनुरोध किया है कि वह स्वयं तम्बाकू का सेवन न करें और अपने हर मरीज को तम्बाकू त्यागने के लिए प्रेरित करें. तम्बाकू नशा उन्मूलन के लिए प्रभावकारी विधियाँ स्थापित हैं, और उनको मौजूदा स्वास्थ्य व्यवस्था में व्यापक ढंग से शामिल करने की आवश्यकता है.

पाकिस्तान में भी आक्डें यह बताते हैं कि तम्बाकू सेवन करने से टीबी या तपेदिक का खतरा अत्याधिक बढ़ जाता है. चिकित्सकीय परामर्श में तम्बाकू नशा उन्मूलन को शामिल करना एक सार्थक पहल होगी.

डॉ अब्दुल मजीद ने चिकित्सकों से यह भी आह्वान किया है कि हर रोगी और उसके अभिभावकों को तम्बाकू के जानलेवा कु-प्रभावों के बारे में जानकारी देना और तम्बाकू नशा त्यागने के लिए प्रेरित करना, चिकित्सकों का परम धर्म है.

डॉ थॉमस एलेन, जो अमरीका के प्रसिद्ध टीबी या तपेदिक विशेषज्ञ हैं, उनका स्वयं लिखा गया यह लेख पढ़ने योग्य है. १९७० के दशक में डॉ एलेन ने स्वयं अमरीकी सरकार पर दबाव बनाया था कि टीबी या तपेदिक के लिए विशेष अस्पताल (सनोतोरियम) को बंद कर देना चाहिए, और टीबी या तपेदिक के इलाज की व्यवस्था आम-जन-अस्पतालों में ही शामिल करनी चाहिए. उनका कहना था कि टीबी या तपेदिक का दर अमरीका में कम हो रहा है, और प्रभावकारी दवाइयों के रहते यदि रोगी दवाएं समय से और अपने इलाज की पूरी अवधि में ले, तो टीबी या तपेदिक से निजात पायी जा सकती है.

१९७० के दशक में टीबी या तपेदिक के लिए विशेष अस्पताल अमरीका में बंद होने लगे, सिर्फ़ एक को छोड़ कर - a.g.holley अस्पताल जो फ्लोरिडा में आज भी सक्रिय है. इस फ्लोरिडा स्थित अस्पताल को भी २००९ में बंद करने का निर्णय ले लिया गया है.

डॉ एलेन का कहना है कि १९७० में जो टीबी या तपेदिक नियंतरण की हकीक़त थी, उसको देखते हुए वह निर्णय सही था, परन्तु एच.आई.वी और अन्य कारणों से टीबी या तपेदिक नियंतरण की वास्तविकता आज बिल्कुल बदल चुकी है - ड्रग रेसिस्तंत टीबी या तपेदिक के बढ़ते हुए दर से यह सब देशों के लिए खतरे की घंटी है कि बिना विलम्ब सक्रियता से टीबी नियंतरण कार्यक्रमों को मजबूत करें. अब यह सोचना चाहिए कि ड्रग रेसिस्तंत टीबी या तपेदिक का इलाज कहाँ पर सही तरीके से हो सकता है - घर पर, टीबी के विशेष अस्पतालों में, या जेल में?

भारत के कोर्ट के जज ने पिछले हफ्ते ही एक कैदी को सिर्फ़ इसलिए जमानत पर रिहा कर दिया कि वह स्वच्छ और साफ मौहौल में घर पर टीबी या तपेदिक का इलाज सही ढंग से कर सके - परन्तु अमरीका में, अफ्रीका में कई ऐसे हादसे हुए हैं जहाँ लोगों को जबरन जेल में कैद कर के टीबी या तपेदिक का इलाज कराया जा रहा है.

डॉ एलेन का यह लेख नि:संदेह सोचने पर मजबूर कर देता है - उम्मीद है कि जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों तक भी यह लेख पहुचेगा.