तम्बाकू और शराब नियंत्रित करना यदि स्वास्थ्य मंत्री के काम नही हैं, तो किसका है? - अंबुमणि रामादोस

तम्बाकू और शराब नियंत्रित करना यदि स्वास्थ्य मंत्री के काम नही हैं, तो किसका है? - अंबुमणि रामादोस

[यह लेख मौलिक रूप से ' हिंदू' समाचार पत्र में रविवार, ११ मई २००८ को छपा है। इसका सारांश प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है, मौलिक लेख अंग्रेज़ी में पढने के लिए यहाँ क्लिक्क कीजिये अनुवाद में त्रुटियों के लिए छमा कीजियेगा]
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मैं हैरान हूँ कि मेरे तम्बाकू, शराब और जंक फ़ूड या स्वास्थ्य-के-लिए-हानिकारक-खाने-पीने के
उत्पादन के ख़िलाफ़ अभियान को भारत में इतना प्रतिरोध झेलना पड़ रहा है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तो स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को पुरुस्कार और प्रशंसा मिल रही है पर भारत के भीतर लोग इसका भीषण विरोध कर रहे हैं।

मैंने कई बार कहा है कि भारत में ४०% स्वास्थ्य-समस्याओं की जड़ तम्बाकू है। जल्दी मृत्यु के लिए शराब और तम्बाकू का सेवन लगभग शर्तिया रास्ता है। एक अरब लोगों के देश भारत का स्वास्थ्य मंत्री होने के नाते मेरा कर्तव्य है कि मैं देश के निवासियों
स्वास्थ्य के लिए समर्पित रहूँ और कर्ताव्यबध भी। जब तम्बाकू और शराब के प्रचार पर बंदी लग गई थी तब फिल्मों में तम्बाकू सेवन को प्रदर्शित करने पर रोक लगने पर भीषण वाद-विवाद होने लगा था। मैं यह जानना चाहता हूँ कि फिल्मों में तम्बाकू और शराब को प्रदर्शित करने पर रोक लगाना क्या इतना आपत्तिजनक कार्य है? क्या मेरी यह मांग इतनी नाजायज़ है?

१० लाख से अधिक लोग तम्बाकू सेवन से प्रति वर्ष भारत में मृत्यु को प्राप्त होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रपट के अनुसार भारत में १५ प्रतिशत स्कूली बच्चे तम्बाकू का सेवन करते हैं। सर्वे के आधार पर यह स्थापित हो चुका है कि युवाओं को तम्बाकू सेवन शुरू करने के लिए उकसाने में सीधे प्रत्यक्ष विज्ञापन से भी अधिक कारगर है फिल्मों में तम्बाकू सेवन को प्रदर्शित करना। ५२% बच्चे-युवा फिल्मों में तम्बाकू सेवन को देख के ही शुरू करते हैं।


इसीलिए यह अनुमान लगाना कठिन नही है कि फिल्मों में तम्बाकू सेवन को प्रदर्शित करने से और तम्बाकू के ब्रांड को दिखाने से हमारे देश के बच्चों-युवाओं पर इसका क्या असर होता है।

१९५० में ३० प्रतिशत फिल्मों में धूम्रपान को प्रदर्शित किया गया था और २००४ में ८९% फिल्मों में धूम्रपान को प्रदर्शित किया गया था। पहले फिल्मों में सिर्फ़ वह पात्र जो खलनायक हैं वही तम्बाकू का सेवन करते थे, पर आजकल ७६% फिल्मों में फिल्मों के प्रमुख नायक तम्बाकू का सेवन करते हैं।

गोद्फ्रे फिलिप्स रेड एंड व्हाइट पुरुस्कार उन दस लोगों को दिए जाते हैं जो दस जिंदगियों को बचाते हैं, पर हम यह भूल जाते हैं कि तम्बाकू कंपनी हर साल पचास लाख से भी अधिक लोगों की मृत्यु के लिए
जिम्मेदार है।

भारत में शराब का सेवन भी ९० करोड़ लीटर प्रति वर्ष से बढ़ कर . अरब लीटर प्रति वर्ष हो चुका है। भारत आज दक्षिण-पूर्वी एशिया में शराब का सबसे बड़ा बाज़ार हैं, जहाँ इस छेत्र की ६५% शराब की खपत होती है। १५ साल पहले औसतन लोग २८ साल पर शराब पीना आरंभ करते थे, आज कल १९ साल पर ही शराब सेवन आरंभ हो जाता है।


भारत में ६० करोड़ युवा हैं (जिनकी आयु ३० वर्ष से कम है) यह वह लोग हैं जो भारत के उत्पादन और विकास के आधार-स्तम्भ हैं। परन्तु यह वह लोग भी है जो तम्बाकू-शराब और जंक फ़ूड आदि से भी ग्रसित हो रहे हैं। यदि भारत के भविष्य को संग्रक्षित रखना है और भारत के अधर स्तम्भ को डगमगाने से बचाना है तो लाज़मी है कि युवाओं को जागरूक करना अतिआवश्यक है कि वह अपनी जिम्मेदारी पर खरे उतरे और व्यसनों को त्यागें।


/ सड़क दुर्घटनाएं शराब पी कर होती हैं। यह विवेक की बात नही है कि हम शुतुरमुर्ग की तरह हकीकत से नज़र बचाएं, जरुरत है इस हकीकत का सामना करने की और स्वास्थ्य की ओर कदम बढ़ाने की।

यदि इन मुद्दों को स्वास्थ्य मंत्री उठाये तो कौन उठाएगा?

- डॉ अंबुमणि रामादोस

(लेखक भारत के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री हैं)
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[यह लेख मौलिक रूप से 'द हिंदू' समाचार पत्र में रविवार, ११ मई २००८ को छपा है। इसका सारांश प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है, मौलिक लेख अंग्रेज़ी में पढने के लिए यहाँ क्लिक्क कीजिये अनुवाद में त्रुटियों के लिए छमा कीजियेगा]