तपेदिक या टीबी समाचार सारांश
११ मई २००८
सात महीने जबरदस्ती जेल में कैद रखने के बाद, ५० वर्षीया अमरीकी नागरिक को एरिजोना जेल से रिहा किया गया - इनका जुर्म था कि इन्होने टीबी या तपेदिक की दवा लेने में आनाकानी की थी।
क्या जबरन जेल में कैद कर के दवा देना ही 'रोगों के नियंत्रण' की निति प्रभावकारी रह गई है? आखिर वह कौन से कारण थे जिनकी वजह से यह सज्जन दवा नही ले रहे थे? अमरीका जैसे देश में जहाँ टीबी या तपेदिक के मरीजों की संख्या कम है, वहाँ तो यह मुमकिन भी है कि टीबी या तपेदिक के रोगियों को जबरन जेल में महीनों रख के दवा दी जाए, परन्तु विकासशील देशों में जैसे कि भारत, जहाँ लगभग १/३ जनता को लेतेंट टीबी या तपेदिक है (यानि कि टीबी या तपेदिक का बक्टेरिया तो है परन्तु सक्रिय रोग नही है) यह मुमकिन है ही नही कि १/३ जनता को जेल में रख के दवा दी जाए या ऐसे टीबी या तपेदिक नियंत्रण कार्यक्रम चलाये जायें।
हकीकत यह है कि विकासशील देशों के जेल में ऐसे मौहौल हैं जहाँ टीबी या तपेदिक और अन्य संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है। जेल में टीबी ही नही, हेपेटाइटिस सी, एच.आई.वी आदि का भी खतरा रहता है।
बजाय इसके कि उन कारणों को संवेदनशीलता से समझा जाए कि टीबी या तपेदिक के रोगी क्यो दवा नही ले पा रहे हैं, उनको जेल में कैद करके टीबी या तपेदिक नियंत्रण को हम कही और जटिल तो नही बना रहे हैं? ऐसा न हो कि जिन लोगों को टीबी या तपेदिक होने का संशय हो वह अस्पताल के आसपास जाने से भी कतराएँ।
न्यू जर्सी मेडिकल स्कूल अमरीका की प्रोफेसर पद्मिनी सल्गाने का कहना है कि अभी चिकित्सा विज्ञान ने यह ठीक से नही समझा है कि वह कौन से कारण हैं जिनकी वजह से टीबी का बक्टेरिया लेतेंट रहता है और वह कौन से कारण है जिनकी वजह से वह सक्रिय हो जाता है। यदि हम यह समझ लें कि मानव शरीर कैसे टीबी बक्टेरिया को लेतेंट या निष्क्रिय रखता है, और सक्रिय होने से रोकता है, तो टीबी नियंत्रण और अधिक मजबूत हो सकता है। चंद कारण तो अब पता हैं जैसे कि जिनसे मनुष्य की प्रतिरोधक छमता छीन होती है, उनसे टीबी सक्रिय हो सकती है, जैसे कि एच.आई.वी होने पर, या भोजन पौष्टिक न होने पर। इस दिशा में अभी अधिक शोध होने की आवश्यकता है कहना है डॉ पद्मिनी का।