तपेदिक या टीबी समाचार सारांश
अंक ४२
१३ मई २००८
भारत के पश्चिम बंगाल प्रदेश में पताम्दा छेत्र में टीबी या तपेदिक नियंतरण सफल माना जा रहा है.
पिछले एक साल से इस छेत्र में मासिक स्वास्थ्य शिविर, जागरूकता शिविर, टीबी या तपेदिक के लक्षणों के बारे में जानकारी, टीबी या तपेदिक के उपचार को सही तरीके से पूरा करने का आह्वान और पौष्टिक भोजन और साफ-सफ़ाई पर ध्यान देने से इस छेत्र में टीबी या तपेदिक नियंतरण अधिक प्रभावकारी हो पाया है.
पिछले साल ८० नए टीबी या तपेदिक के रोगी थे और इस वर्ष सिर्फ़ १५ ही हैं.
सवाल यह उठता है कि यदि लोग जागरूक हों और टीबी या तपेदिक के प्रारंभिक लक्षणों के प्रति सचेत हों, और परीक्षण करवाएंगे तो शुरुआत में तो अधिक नए टीबी या तपेदिक के रोगी निकलने चाहिए न कि कम.
एक साल की अवधि में इस छेत्र में कोई ऐसा सामाजिक बदलाव नही आया है कि लोगों को टीबी या तपेदिक का जो खतरा था वह कम हुआ हो, उदाहरण के लिए न उनकी आर्थिक अवस्था में कोई विशेष बदलाव आया है, न ही भोजन पर. मासिक स्वास्थ्य शिविर लगाने से इतना प्रभाव कि नए टीबी या तपेदिक के मरीजों की संख्या ८० से घट कर १५ ही रह जाए? समझ नही आता है यह करिश्मा, पर समाचार पत्र में छपा है, तो 'सत्य ही होगा' :)
कनाडा के अल्बेर्ता में लगभग ९० साल पहले (१९२० में) आज के दिन जंग से वापस लौट रहे फौजियों में ६० लोगों को टीबी या तपेदिक निकल के आई थी. इन फौजियों के लिए सनातोरियम खुलवाया गया था जिससे कि इनकी उचित देखभाल हो सके. १९२० में तो टीबी या तपेदिक की दवाएं भी इजात नही हुई थी, सोचने का विषय है कि इतने कम संसाधन में किस तरह से ९० साल पहले टीबी या तपेदिक नियंतरण होता होगा!