तपेदिक या टीबी समाचार सारांश: २१ मई २००८: अंक ४९

तपेदिक या टीबी समाचार सारांश
अंक ४९

बुधवार, २१ मई २००८


विश्व स्वास्थ्य संगठन की नई रपट (वर्ल्ड हैल्थ स्तातिस्टिक २००८ या विश्व के स्वास्थ्य आकडें २००८) १९ मई २००८ को विमोचित हुई है.

इस रपट से साफ जाहिर है कि विश्व में आने वाले सालों में संक्रामक रोगों से मृत्यु दर कम होता जाएगा और क्रोनिक या लंबे-देखभाल वाले गैर-संक्रामक रोगों का अनुपात बढ़ता जाएगा.

उदाहरण के तौर पर टीबी या तपेदिक, एच.आई.वी, मलेरिया, दस्त आदि की तुलना में ह्रदय रोगों, मधुमेह, तम्बाकू जनित कु-प्रभावों आदि का कही ज्यादा अनुपात होगा.

जिस प्रकार की जीवनशैली लोग अपना रहे हैं, वह इन गैर संक्रामक रोगों की जनक है. उदाहरण के तौर पर शराब और तम्बाकू के सेवन को सामाजिक स्वीकृति मिलने से, विशेषकर कि महिलाओं के शराब या तम्बाकू सेवन करने को सामाजिक स्वीकृति मिलने से, और बच्चों/ युवाओं का फास्ट-फ़ूड आदि के सेवन से जो बीमारियाँ हो रही हैं, उनमें से अधिकांश से पूर्णत: बचाव मुमकिन है.

इस रपट को डाउनलोड करने के लिये यहाँ क्लिक्क कीजिये:

लेटेंट टीबी या तपेदिक, यानी कि जब टीबी या तपेदिक का बक्टेरिया शरीर में हो पर सक्रिय रोग न पैदा करे, ऐसी स्थिति में १/३ दुनिया के लोग हैं.

यदि ९ महीने तक इसोनिअजिद दवा पूरी अवधि तक सही समय पर ली जाए तो लेटेंट टीबी या तपेदिक से ग्रसित ९०% लोगों में बचाव मुमकिन है. परन्तु ५० प्रतिशत से अधिक लोग यह दवा नियमित रूप से, या पूरी अवधि तक या समय से नही लेते.

अब नए शोध के अनुसार लेटेंट टीबी या तपेदिक के लिये नई दवा (रिफम्पिन) अधिक कारगर है क्योकि इसको इसोनिअजिद की तुलना में ९ महीने की अपेक्षा सिर्फ़ ४ महीने तक ही लेना होता है. यह इसोनिअजिद की तुलना में सस्ती भी है और हर लेटेंट टीबी या तपेदिक के रोगी पर अमरीकी डालर १०,००० की बचत होती है.

खासकर की एच.आई.वी से ग्रसित लोगों में चूँकि टीबी या तपेदिक मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है, यदि इसोनिअजिद या रिफम्पिन दवा को सही समय से और पूरी अवधि में दिया जाए तो ९०% लोगों के लिये टीबी या तपेदिक का खतरा लगभग हमेशा के लिये ख़त्म हो जाता है.

लेटेंट टीबी या तपेदिक की दवा देने से पहले यह अतिआवश्यक है कि इस बात की अच्छी तरह से पुष्टि कर ली जाए कि व्यक्ति को 'लेटेंट' टीबी या तपेदिक ही है. क्योकि यदि इस व्यक्ति को सक्रिय टीबी या तपेदिक का रोग हुआ, तो इसोनिअजिद या रिफम्पिन दवा देने से ड्रग रेसिस्तंस विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है.