[English] ३० साल पहले १९८५ में भारत में जब पहले एचआईवी पोसिटिव व्यक्ति की जांच पक्की हुई, तब चंद चिकित्सकों में जो सर्वप्रथम आगे आये और एचआईवी पोसिटिव लोगों की देखभाल आरंभ की, वो थे डॉ इश्वर गिलाडा, अध्यक्ष, एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया (एएसआई).डॉ गिलाडा लखनऊ में १५ दिसम्बर को संजय गाँधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) में हुए सेमिनार 'भारत में एड्स को हुए ३० साल: सफलताएँ पर चुनौतियाँ बरकरार' में मुख्य वक्ता थे. यह सेमिनार, एसजीपीजीआई के माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट, एएसआई, पीपल्स हेल्थ आर्गेनाइजेशन और सीएनएस द्वारा एसजीपीजीआई में आयोजित किया गया था.
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के लिए वैश्विक सतत विकास लक्ष्य २०३० के क्या मायने हैं?
बाबी रमाकांत, सिटीजन न्यूज़ सर्विस (सीएनएस)
भारत सरकार ने २ माह पहले दुनिया की अन्य सरकारों के साथ, संयुक्त राष्ट्र की ७०वीं महासभा में वैश्विक सतत विकास लक्ष्य २०३० को पारित तो कर दिया, पर क्या हम इन लक्ष्यों की ओर तेज़ी से प्रगति कर रहे हैं या पीछे जा रहे हैं? उदहारण के तौर पर, आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना में मातृत्व मृत्यु दर ९२ प्रति १००,००० जीवित-शिशु जन्म है. वैश्विक सतत विकास लक्ष्य ३.१ के अनुसार २०३० तक मातृत्व मृत्यु दर ७० प्रति १००,००० जीवित शिशु जन्म से कम होना है।
भारत सरकार ने २ माह पहले दुनिया की अन्य सरकारों के साथ, संयुक्त राष्ट्र की ७०वीं महासभा में वैश्विक सतत विकास लक्ष्य २०३० को पारित तो कर दिया, पर क्या हम इन लक्ष्यों की ओर तेज़ी से प्रगति कर रहे हैं या पीछे जा रहे हैं? उदहारण के तौर पर, आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना में मातृत्व मृत्यु दर ९२ प्रति १००,००० जीवित-शिशु जन्म है. वैश्विक सतत विकास लक्ष्य ३.१ के अनुसार २०३० तक मातृत्व मृत्यु दर ७० प्रति १००,००० जीवित शिशु जन्म से कम होना है।
विश्व एड्स दिवस पर विशेष: आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में एड्स नियंत्रण में प्रगति, पर चुनौतियाँ बरकरार
बाबी रमाकांत, सिटीजन न्यूज सर्विस (सीएनएस)
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना प्रदेशों में देश केअन्य सभी प्रदेशों की तुलना में, सबसे अधिक एचआईवीके साथ जीवित लोग हैं, १.७ लाख. भारत में कुल नए एचआईवी संक्रमण में से आधे ४ प्रदेशों में होते हैं: आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, तामिल नाडू और कर्नाटक।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना प्रदेशों में देश केअन्य सभी प्रदेशों की तुलना में, सबसे अधिक एचआईवीके साथ जीवित लोग हैं, १.७ लाख. भारत में कुल नए एचआईवी संक्रमण में से आधे ४ प्रदेशों में होते हैं: आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, तामिल नाडू और कर्नाटक।
विश्व पाइल्स (बवासीर) दिवस: बवासीर की जल्दी जांच और सही इलाज होना जन स्वास्थ्य प्राथमिकता है
विश्व
पाइल्स (बवासीर) दिवस २० नवम्बर २०१५ के उपलक्ष्य में, इंदिरा नगर के सी-ब्लाक चौराहा स्थित पाईल्स तो स्माइल्स केंद्र में प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने नि:शुल्क कैंप लगाया जहाँ अनेक मरीजों को चिकित्सकीय परामर्श
मिला, और कुछ दवाएं भी वितरित की गयीं. किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय
के सर्जरी विभाग के पुर्व प्रमुख प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने कहा कि
“पाइल्स/ बवासीर और अन्य ऐसे रोग जैसे कि फिस्टुला आदि लोग शर्म के कारण
सही इलाज देरी से कराते हैं जब तक समस्या गंभीर रूप ले लेती है और अन्य
सम्बंधित-रोग भी हो सकते हैं. इसीलिए जरुरी है कि जागरूकता बढ़े और लोग पहले
लक्षण में ही सही जांच और सही इलाज करवाएं.”
विश्व मधुमेह दिवस पर भारत टीबी-मधुमेह सम्बंधित बाली-घोषणापत्र को समर्थन दे: अपील
स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने भारत सरकार से अपील की है कि आगामी विश्व मधुमेह दिवस १४ नवम्बर को बाली-घोषणापत्र को अपना समर्थन दे कर, टीबी और मधुमेह के सह-महामारी को रोकने के प्रयासों में तेज़ी लाये. इंडोनेशिया के स्वास्थ्य मंत्रालय ने बाली-घोषणापत्र को समर्थन दे कर दोनों महामारियों के नियंत्रण के प्रति अपना मत दिया है. सीएनएस स्वास्थ्य को वोट अभियान की वरिष्ठ सलाहकार शोभा शुक्ला ने कहा कि "भारत समेत सभी देश जहां टीबी और मधुमेह दोनों एक महामारी का प्रकोप लिए हुए हैं, उनको चाहिए कि बाली घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करें और टीबी और मधुमेह कार्यक्रमों में सक्रीय तालमेल बिठाएं. भारत में विश्व में सबसे अधिक टीबी के रोगी हैं और मधुमेह भी महामारी के रूप में स्थापित है, इसीलिए दोनों कार्यक्रमों में भी समन्वय होना आवश्यक है."
टीबी, मलेरिया, डेंगू और काला अजार के नियंत्रण के लिए शोध में निवेश
डॉ बीटी स्लिंग्सबी जीएचआईटी-फण्ड |
पाईल्स (बवासीर) चिकित्सकीय मानक दिशानिर्देशों को सभी स्वास्थ्यकर्मी अपनाएं
प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त आपरेशन-कक्ष में |
एसीकान-२०१५ प्रारंभ: एचआईवी सम्बंधित सेवाओं के एकीकरण पर जोर
३० अक्टूबर २०१५: (सीएनएस) आज
एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के आठवें राष्ट्रीय अधिवेशन (एसीकान-२०१५) को,
मुख्य अतिथि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद् की महानिदेशक डॉ सौम्या
स्वामीनाथन ने आरंभ किया. एसीकान-२०१५ ३० अक्टूबर से १ नवम्बर तक आयोजित हो
रही है और देश भर के एचआईवी चिकित्सक और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ इसमें
भाग ले रहे हैं.
३० साल से भारत को एड्स नियंत्रण में सफलताएँ तो मिलीं, पर चुनौतियाँ बरक़रार
हर एचआईवी के साथ जीवित व्यक्ति को मिले दवा
इस साल २०१५ में भारत को एड्स से जूझते हुए ३० साल हो गए. इसी वर्ष, एचआईवी उपचार से सम्बंधित सबसे मजबूत और महत्वपूर्ण शोध के नतीजे सामने आये, और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल ही में दिशानिर्देश देते हुए वैज्ञानिक सुझाव दिया कि हर एचआईवी के साथ जीवित व्यक्ति को बिना विलम्ब और बिना सीडी४ जांच किये एंटी-रेट्रो-वायरल दवा प्राप्त होनी चाहिए.
इस साल २०१५ में भारत को एड्स से जूझते हुए ३० साल हो गए. इसी वर्ष, एचआईवी उपचार से सम्बंधित सबसे मजबूत और महत्वपूर्ण शोध के नतीजे सामने आये, और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल ही में दिशानिर्देश देते हुए वैज्ञानिक सुझाव दिया कि हर एचआईवी के साथ जीवित व्यक्ति को बिना विलम्ब और बिना सीडी४ जांच किये एंटी-रेट्रो-वायरल दवा प्राप्त होनी चाहिए.
महंगाई की मार, कैसे मनाएं त्योहार - क्या यही हैं अच्छे दिन?
मेगसेसे पुरुस्कार से सम्मानित वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता डॉ संदीप पाण्डेय जो उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में, महंगाई के विरोध में एक धरने का नेत्रित्व कर रहे थे, ने कहा कि "नरेन्द्र मोदी का एक चुनावी वायदा था कि महंगाई कम करेंगे। किंतु हो उल्टा रहा है। अरहर दाल का दाम चार माह में ही रु. 100 प्रति किलोग्राम से बढ़कर रु. 200 हो गया है, यानी दो गुना बढ़ोतरी। भला भारत का गरीब इंसान जिसका भोजन उसकी दिहाड़ी पर निर्भर है कैसे अपने बच्चों को दाल खिला पाएगा जो प्रोटीन का एक महत्वपूर्ण स्रोत होती हैं। याद रखें कि भारत में आधे बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। यानी जो कुपोषण का शिकार है वह अब भुखमरी का भी शिकार हो सकता है।"
प्रदूषकों को जलवायु परिवर्तन वार्ता से बाहर रखा जाए
[English] भारत
सरकार से अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपील की है कि वे बिना विलम्ब
महत्वपूर्ण कदम उठाये जिससे कि अगले सप्ताह जर्मनी में होने वाली जलवायु
नियंत्रण वार्ता में जन हितैषी निर्णय हों. मेगसेसे पुरुस्कार से
सम्मानित वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता और सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि "भारत को नाभिकीय ऊर्जा का
विकल्प ढूँढना चाहिए जो इतने खर्चीले व खतरनाक न हों। पुनर्प्राप्य ऊर्जा
के संसाधन, जैसे सौर, पवन, बायोमास, बायोगैस, आदि, ही समाधान प्रदान कर
सकते हैं यह मान कर यूरोप व जापान तो इस क्षेत्र में गम्भीर शोध कर रहे
हैं। भारत को भी चाहिए कि इन विकसित देशों के अनुभव से सीखते हुए नाभिकीय
ऊर्जा के क्षेत्र में अमरीका व यूरोप की कम्पनियों का बाजार बनने के बजाए
हम भी पुनर्प्राप्य ऊर्जा संसाधनों पर ही अपना ध्यान केन्द्रित करें। भारत
को ऐसी ऊर्जा नीति अपनानी चाहिए जिसमें कार्बन उत्सर्जन न हो और परमाणु
विकिरण के खतरे भी न हो।"
बिहपुर विधान सभा छेत्र (बिहार) में सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के गौतम कुमार प्रीतम हैं उम्मीदवार
बिहार के बिहपुर विधान सभा छेत्र से सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के गौतम कुमार प्रीतम चुनाव उम्मीदवार हैं (चुनाव चिन्ह: बैटरी टार्च). ३२ वर्षीय गौतम कुमार प्रीतम जो भागलपुर के रहने वाले हैं, सोशलिस्ट युवजन सभा के राष्ट्रीय सचिव हैं. उनका आह्वान है कि धर्मवाद, जातिवाद के खिलाफ हैं. उनका मानना है कि जनता को अपना वोट धर्मं, जाति पर या पैसे के लोभ में बर्बाद नहीं करना चाहिए. "धन, धर्म या जाति के बल पर चुनाव लड़ा और जीता जाए, इसका कोई मतलब नहीं है. मैं जगाने आया हूँ. राजनीति में धर्मवाद, भ्रष्टाचार या शराब का बोलबाला रहा है, हम उसके खिलाफ हैं."
यूपी में जन स्वास्थ्य के लिए मजबूत कदम: खुली सिगरेट स्टिक बेचने पर लगा प्रतिबन्ध, उल्लंघन करने पर जेल तक!
[English] उत्तर प्रदेश राज्य में सख्त तम्बाकू नियंत्रण नीति इसलिए भी अति आवश्यक है क्योंकि अधिकांश मौखिक तम्बाकू जनित कैंसर रोगी भी यहीं से आते हैं. हर तम्बाकू जनित असमय मृत्यु से बचाव मुमकिन है, हर तम्बाकू जनित रोग से बचा जा सकता है यदि तम्बाकू उद्योग का खेल समाप्त हो. "उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा खुली सिगरेट स्टिक बिकने पर प्रतिबन्ध लगाना और उसको दंडनीय अपराध बनाने का हम स्वागत करते हैं क्योंकि यह जन स्वास्थ्य की ओर एक मजबूत कदम है. एक समाचार के अनुसार, खुली सिगरेट स्टिक बनाना और बेचना दोनों ही प्रदेश में दंडनीय अपराध है और जुर्माने के साथ साथ जेल तक की सजा तय की गयी है. उत्तर प्रदेश सरकार ने यह निरनेय पिछले माह ही ले लिया था और राज्यपाल द्वारा उसपर हस्ताक्षर करने से यह लागू हो गया है" कहा राहुल द्विवेदी ने, जो स्वास्थ्य को वोट अभियान का नेत्रित्र्व कर रहे हैं.
सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के गणेश पासवान, औरंगाबाद (बिहार) में कुटुम्बा (२२२) विधान सभा क्षेत्र से उम्मीदवार हैं
सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के ३० वर्षीय गणेश पासवान, बिहार के औरंगाबाद जिले में कुटुम्बा (२२२) विधान सभा क्षेत्र से चुनाव उम्मीदवार हैं (चुनाव चिन्ह: बैटरी टार्च). गणेश पासवान, पानी के मुद्दे से जुड़े रहे हैं. कुटुम्बा के किसानों को सिचाई और खेती के लिए पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता है. बिजली भी नियमित नहीं आती है - दिन में २ घंटे औसतन बिजली आती है. बिना बिजली के 'बोरिंग' पम्प भी नहीं चल सकता है. किसानों को पानी न मिल पाने के मुद्दे पर गणेश पासवान समेत सभी किसान ६ माह पहले धरने पर बैठे थे और अनशन भी किया जो ३ दिन तक चला. जब अधिकारियों ने कुटुम्बा तक नहर पहुँचाने का आश्वासन दिया, तब ही अनशन ख़त्म हुआ. परन्तु अब तक नहर पर कोई करवाई नहीं हुई है.
सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के नीरज कुमार हैं ओबरा विधान सभा क्षेत्र (220) बिहार से उम्मीदवार
बिहार के ओबरा विधान सभा क्षेत्र (220), जिला औरंगाबाद, से सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के चुनाव प्रत्याशी हैं नीरज कुमार (चुनाव चिन्ह: बैटरी टार्च). नीरज केमिस्ट्री से स्नातकोत्तर होने के साथ-साथ सामाजिक रूप से लम्बे अरसे से सक्रीय रहे हैं. 'वसुधैव कुटुम्बकम' में उनकी पूर्ण आस्था है और इसीलिए उनका मानना है कि समाज में सभी लोगों को परिवार की तरह मिलजुल पर सौहार्द के साथ रहना चाहिए. परिवार में जब हम एक दुसरे के दर्द के प्रति संवेदनशील होते हैं तो समाज में ऐसे क्यों नहीं रह सकते?
'दो कदम पीछे फिर एक आगे' जैसा हाल है यूपी में तम्बाकू पर वैट का
[English] जुलाई २०१२ में उत्तर प्रदेश सरकार ने तम्बाकू उत्पादनों पर वैट को बढ़ा कर ५०% किया था पर फिर वापस २५% कर दिया था. हाल ही में सरकार ने फिर से वैट बढ़ाया है जो सराहनीय कदम है और बढ़ा कर ४०% कर दिया है.स्वास्थ्य को वोट अभियान के राहुल द्विवेदी कहते हैं कि "वैट की इस बढ़ोतरी को देख कर लगता है कि हम लोग 'दो कदम पीछे और एक कदम आगे' जैसे कार्य कर रहे हैं जब कि टाटा कैंसर अस्पताल में तम्बाकू जनित कैंसर के अधिकाँश रोगी उत्तर प्रदेश से ही हैं."
यौनिक एवं प्रजनन स्वास्थ्य: युवा आगे आये तो बात बन जाये
बृहस्पति कुमार पाण्डेय , सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
कुछ समय पहले तक लोग यौनिक और प्रजनन स्वास्थ्य से जुडी समस्याओं पर कुछ भी बोलने से हिचकते थे। मामला चाहे स्त्री पुरूष के बीच बनने वाले शारीरिक सम्बन्धों का रहा हो या प्रजनन स्वास्थ्य से जुडा मुद्दा हो, इस पर हर वर्ग खुलकर बात करने से हिचकता रहा है। लेकिन अब हालात पहले जैसे नही रहे। जहां लोग सुरक्षित सेक्स, गर्भ निरोधक साधन इत्यादि को लेकर असमंजस में हुआ करते थे, वहीं युवाओं के मन में यौनिक और प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी जिज्ञासा और प्रश्नों ने इस विषय पर उन्हें संवेदनशील भी बनाया है। भारत में अभी तक सेक्स और प्रजनन स्वास्थ्य को एक विषय के रूप में स्कूलों में पढाने का मुद्दा विवादो में रहा है।
फोटो क्रेडिट: सीएनएस |
जनता उम्मीदवारों से पूछे उनके बच्चे सरकारी विद्यालय में पढ़ते हैं या नहीं?
सरकारी चिकित्सालय में इलाज कराना भी अनिवार्य हो
उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव होने जा रहे हैं। कुछ दिनों पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले कि सरकारी तनख्वाह पाने वालों व जन प्रतिनिधियों के बच्चों को अनिवार्य रूप से सरकारी विद्यालय में पढ़ना होगा के आलोक में सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) जनता का आह्वान करती है कि वे इन चुनावों में खड़े होने वालों उम्मीदवार से पूछना शुरू करें के उनके बच्चे सरकारी विद्यालय में पढ़ते हैं अथवा नहीं? उच्च न्यायालय के आदेशानुसार यह व्यवस्था अगले शैक्षणिक सत्र से लागू होनी चाहिए।
उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव होने जा रहे हैं। कुछ दिनों पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले कि सरकारी तनख्वाह पाने वालों व जन प्रतिनिधियों के बच्चों को अनिवार्य रूप से सरकारी विद्यालय में पढ़ना होगा के आलोक में सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) जनता का आह्वान करती है कि वे इन चुनावों में खड़े होने वालों उम्मीदवार से पूछना शुरू करें के उनके बच्चे सरकारी विद्यालय में पढ़ते हैं अथवा नहीं? उच्च न्यायालय के आदेशानुसार यह व्यवस्था अगले शैक्षणिक सत्र से लागू होनी चाहिए।
भारतीय आधुनिक समाज में यौनिक एवं प्रजनन स्वास्थ्य की स्थिति
रितेश त्रिपाठी, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
वर्तमान भारतीय आधुनिक समाज विकासशील समाज वाले देशों की श्रेणी में है। भारत तकनीकि रूप से व अन्य विभिन्न क्षेत्रों में बहुत अच्छा विकास कर रहा है। लेकिन जब हम बात करते हैं यौनिक व प्रजनन स्वास्थ्य की तो स्थिति कुछ अच्छी नहीं दिखाई देती क्योंकि जनसँख्या के लिहाज से भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा शिशु व प्रसूति मृत्यु दर है जो बहुत दुखदाई है। इसका कारण हमारा पारंपरिक समाज है जिससे स्वतंत्रता प्राप्ति के इतने वर्ष बाद भी हम इस समस्या से निकल नहीं पा रहे हैं । देश में कितनी मौतें केवल इन्हीं कारणों से हो रही हैं । जागरूकता की कमी के कारण लोग इस समस्या का सामना नहीं कर पा रहे हैं ।
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किशोर एवं किशोरियों में यौन शिक्षा का महत्त्व
विकास द्विवेदी, सिटीजन न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
यौन शिक्षा का तात्पर्य युवक-युवतियों में अपने शरीर के प्रति ज्ञान का नया आयाम विकसित करने से है। यौन शिक्षा का अर्थ केवल शारीरिक संसर्ग से ही सम्बंधित नहीं है बल्कि यौन शिक्षा के माध्यम से हम यौन जनित विभिन्न जिज्ञासाओं, विभिन्न यौन जनक बीमारियों की जानकारी और उससे बचने के उपायों के प्रति जागरूक होते हैं। अगर सही तरीके से किशोर एवं किशोरियों को सेक्स से सम्बंधित सलाह दी जाय तो यौन रोगों में तथा यौन अपराधों में में भी कमी आ सकती है। यौन सम्बन्धी जिज्ञासाओं के सही समाधान न होने से युवा कहीं न कहीं गलत दिशा में भटक जाते हैं। यौन शिक्षा उन्हें अपने शरीर के प्रति, यौन संबंधों के प्रति, यौन जनित बीमारियों के प्रति, सुरक्षित यौन संबंधों के प्रति, रिश्तों की गरिमा के प्रति सचेत करती है।
यौन शिक्षा का तात्पर्य युवक-युवतियों में अपने शरीर के प्रति ज्ञान का नया आयाम विकसित करने से है। यौन शिक्षा का अर्थ केवल शारीरिक संसर्ग से ही सम्बंधित नहीं है बल्कि यौन शिक्षा के माध्यम से हम यौन जनित विभिन्न जिज्ञासाओं, विभिन्न यौन जनक बीमारियों की जानकारी और उससे बचने के उपायों के प्रति जागरूक होते हैं। अगर सही तरीके से किशोर एवं किशोरियों को सेक्स से सम्बंधित सलाह दी जाय तो यौन रोगों में तथा यौन अपराधों में में भी कमी आ सकती है। यौन सम्बन्धी जिज्ञासाओं के सही समाधान न होने से युवा कहीं न कहीं गलत दिशा में भटक जाते हैं। यौन शिक्षा उन्हें अपने शरीर के प्रति, यौन संबंधों के प्रति, यौन जनित बीमारियों के प्रति, सुरक्षित यौन संबंधों के प्रति, रिश्तों की गरिमा के प्रति सचेत करती है।
युवाओं द्वारा प्रजनन और स्वास्थ्य संबंधी जानकारी प्राप्त करने में शर्म और झिझक क्यों?
मधुमिता वर्मा, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
आज के समय में जब लगभग ज्यादातर लोग जागरूक हैं फिर भी वे कुछ विषयों को लेकर अनजान बनने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसा ही एक बहुत महत्वपूर्ण बिंदु ‘प्रजनन और स्वास्थ्य में सम्बन्ध’ का भी है। ज्यादातर युवा इससे अच्छी तरह वाकिफ हैं, लेकिन फिर भी लोग इस सन्दर्भ पर बात करना पसंद नहीं करते हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि यह जानना उनके लिए आवश्यक नहीं है। शर्म और हिचकिचाहट महसूस करते हैं। यही हिचकिचाहट कभी-कभी उनके स्वास्थ्य पर भारी पड़ जाती है। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि लोगों के बीच एक दोस्ताना व्यवहार रखकर हमारे युवाओं की शर्म और हिचकिचाहट को दूर किया जाय।
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सही जानकारी ही उचित उपचार है
नीतू यादव, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
हमारे देश में सेक्स से सम्बंधित कई प्रकार की भ्रांतियां व्याप्त हैं। जिनका मुख्य कारण यह है कि हम सेक्स के विषय में खुलकर बात नहीं करना चाहते हैं, जबकि सभी आयु वर्ग के व्यक्तियों में सेक्स सदा एक रोमांचक विषय रहता है। किन्तु कोई भी व्यक्ति इस विषय पर बात करने को तैयार नहीं होता, क्योंकि सेक्स से सम्बंधित प्रत्येक बात से हमारे समाज में अपराधबोध होता है। अपने यौन ज्ञान की संतुष्टि के लिए प्रायः लोग चित्रों, फिल्मों, एवं इन्टरनेट का प्रयोग करते हैं, जिसमें उपलब्ध कराई गयी जानकारी अधिकतर ग़लत ही नहीं वरन भ्रामक भी होती है जिससे दर्शकों को गलत सन्देश प्राप्त होता है और समाज में भिन्न-भिन्न प्रकार की भ्रांतियां उत्पन्न होती हैं।
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हिन्दी की दयनीय स्थिति
डॉ संदीप पाण्डेय, मेगसेसे पुरुस्कार से सम्मानित कार्यकर्ता और वरिष्ठ सीएनएस स्तंभकार
14 सितम्बर हिन्दी दिवस होता है क्योंकि इसी दिन 1949 में संविधान सभा ने देवनागरी लिपि के साथ हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया। अब भारत में 22 आधिकारिक भाषाएं हैं। इसके पहले भोपाल में 10वां विश्व हिन्दी सम्मेलन आयोजित हुआ। प्रधान मंत्री ने यहां तक कह डाला कि आने वाले दिनों में कम्प्यूटर की दुनिया में हिन्दी, अंग्रेजी व चीनी का ही वर्चस्व होगा।
14 सितम्बर हिन्दी दिवस होता है क्योंकि इसी दिन 1949 में संविधान सभा ने देवनागरी लिपि के साथ हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया। अब भारत में 22 आधिकारिक भाषाएं हैं। इसके पहले भोपाल में 10वां विश्व हिन्दी सम्मेलन आयोजित हुआ। प्रधान मंत्री ने यहां तक कह डाला कि आने वाले दिनों में कम्प्यूटर की दुनिया में हिन्दी, अंग्रेजी व चीनी का ही वर्चस्व होगा।
कैसे पूरा होगा सौ प्रतिशत माहवारी स्वच्छता का लक्ष्य
बृहस्पति कुमार पाण्डेय, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ा माहवारी स्वच्छता का अहम् मुद्दा इस समय चर्चा का विषय बना हुआ है । जिस विषय पर लोग बात करने से हिचकते थे उस पर हो रही सुगबुगाहट ने माहवारी से जुड़ी सदियों से चली आ रही चुप्पी को तोडने की आस जगा दी है । अगर माहवारी स्वच्छता के मुद्दे को देखा जाये तो यह उत्तर प्रदेश सरकार के लिए चुनौती बना हुआ है। ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार ने सेनेटरी पैड को बेहद सस्ते में तैयार करने की तकनीकी को ईजाद करने वाले श्री अरुणाचलम मुरुगनाथन का सहयोग लेते हुए वर्ष 2017 तक पूरे प्रदेश में १००% माहवारी स्वच्छता लाने का लक्ष्य रखा है।
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माहवारी सम्बन्धी स्वछता के विषय पर खुलकर संवाद ज़रूरी है
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एक कथन है कि यदि गर्भाशय नहीं होता तो इस पृथ्वी पर संवेदनाएं भी नहीं होतीं और न ही सृष्टि का विकास हो पाता। गर्भाशय का विकास स्त्री के पहले मासिक धर्म से प्रारंभ होने लगता है और समूची मानवजाति का विकास भी। मगर आजादी के लगभग सात दशक बीत जाने के बावजूद भारत में माहवारी स्वच्छता आज भी समाज के हाशिये पर है।
यह स्वच्छ्ता का मामला है, केवल आराम का नहीं
रितेश कुमार त्रिपाठी, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस – सीएनएस
यह देश के लिए बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि आज़ादी के लगभग ७ दशक बीत जाने के बाद भी हम माहवारी स्वच्छ्ता के मुद्दे पर खुल कर बात नहीं कर सकते, जिससे महिलाएं और किशोरियां विभिन्न प्रकार के संक्रमण का शिकार हो रही हैं. इसके बारे में जानना चाहिए और इस समस्या के समाधान में आ रही दिक्कतों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए. उत्तर प्रदेश में वर्त्तमान समय में लगभग २८ लाख किशोरियां केवल इस समस्या के कारण ही स्कूल छोड़ रही हैं. उत्तर प्रदेश जनसंख्या के लिहाज से बड़ा राज्य है। यहाँ पर मासिक स्राव से संबन्धित स्वच्छता के बारे में जागरूकता का नितांत अभाव है।
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मासिक धर्म: स्वच्छता बनाम स्वस्थता
विकास द्विवेदी, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
यूनीसेफ का आंकड़ा है कि उत्तर प्रदेश में ८५% महिलाएं मासिक चक्र के समय पुराना अथवा गंदा कपड़ा इस्तेमाल करती हैं जिसके कारण उन्हें विभिन्न प्रकार की बीमारियों/संक्रमण का सामना करना पड़ता है। टाइम्स ऑफ इंडिया समाचार पत्र की एक खबर के अनुसार उत्तर-प्रदेश सरकार २०१७ तक १००% माहवारी स्वच्छता को हासिल करेगी।
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मासिक धर्म स्वच्छता का लड़कियों के स्वास्थ्य एवं शिक्षा पर प्रभाव
मधुमिता वर्मा, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस – सीएनएस
आँकड़े बताते हैं कि मासिक धर्म स्वच्छता का सीधा सम्बन्ध न केवल किशोरियों के स्वास्थ्य वरन उनकी शिक्षा से भी है। इस प्रक्रिया के दौरान साफ़ सफाई न रखने के कारण अनेक प्रकार के संक्रमण बीमारियाँ होने का खतरा बना रहता है, जो कभी कभी जानलेवा भी हो सकता है। यूनीसेफ के एक सर्वे के अनुसार उत्तर प्रदेश में ८५% किशोरियां माहवारी के दौरान फटे पुराने कपड़ों का प्रयोग कर अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करती हैं। और उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य विभाग की माने तो प्रदेश में हर साल २८ लाख।
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स्वास्थ्य सेवाओं में एचआईवी के साथ जी रहे लोगों के साथ भेदभाव क्यों?
प्रभजोत कौर, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस – सीएनएस
डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मियों को तो भगवान का स्वरुप माना जाता है परन्तु जब ये भगवान के स्वरूप एच आई वी मरीज़ों को हीनभावना से देखते हैं तो मनुष्यता पर से विश्वास ही उठने लगता है यह तो हम सभी जानते हैं कि एच आई वी से ग्रसित होने पर भी दवाओं की मदद से एक सामान्य ज़िन्दगी जी जा सकती है परन्तु समाज एवं डॉक्टर की प्रताड़ना को झेलना बहुत ही कठिन है. यह बात मैं अपने निजी जीवन के अनुभवों के आधार पर कह रही हूँ।
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सरकारी अधिकारियों/ जन-प्रतिनिधियों के बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़े
[English] इलाहबाद हाई कोर्ट ने १८ अगस्त २०१५ को सरकारी स्कूल की खस्ता हालत पर ध्यान देते हुए उत्तर प्रदेश मुख्य सचिव को आदेश दिया कि वे यह सुनिश्चित करें कि सरकारी अधिकारियों/ सरकार से वेतन प्राप्त करने वाले लोग और जो जन प्रतिनिधि हैं या न्यायलय से जुड़े हैं उनके बच्चों को अनिवार्य रूप से सरकारी स्कूल ही जाना पड़े. तब ही वे सरकारी स्कूल की गुणात्मकता बढ़ाने के बारे में संगीन होंगे.
मासिक धर्म शर्मसार होने की घटना नहीं, बल्कि स्वस्थ होने का प्राकृतिक संकेत है
शोभा शुक्ला, सिटीजन न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
[English] यूपी स्वास्थ्य विभाग के अनुसार प्रदेश में २८ लाख किशोरियां मासिक धर्म के कारण स्कूल जाने में नागा करती हैं. मासिक धर्म सम्बन्धी अस्वच्छता से अनेक संक्रमण, सूजन, मासिक धर्म सम्बन्धी ऐठन, और योनिक रिसाव आदि स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ भी आती हैं. मासिक धर्म एक किशोरी या महिला के लिए प्राकृतिक स्वस्थ होने का संकेत है, न कि शर्मसार या डरने या घबड़ाने वाली कोई 'घटना'. सर्वे के अनुसार ८५% किशोरियां पुराने कपड़ों को ही मासिक धर्म के दौरान इस्तेमाल करती हैं.
फोटो साभार: सीएनएस |
मासिक धर्म के प्रति अपराधबोध क्यों?
नीतू यादव, सिटीजन न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
मासिक धर्म महिलाओं की प्रजनन क्षमता से सम्बंधित एक प्राक्रतिक प्रक्रिया है तथा उनके शारीरिक स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है. प्रत्येक किशोरी को इस नियमित प्रक्रिया के विषय में पूर्ण जानकारी प्राप्त करने का न केवल अधिकार वरन आवश्यकता भी है। परन्तु यह खेद का विषय है कि आज के आधुनिक युग में भी भारत वर्ष, विशेषकर उत्तर प्रदेश जैसे पिछड़े प्रांत, में इस महत्त्व पूर्ण विषय पर कोई भी बातचीत करना बहुत ही शर्मनाक माना जाता है।
मासिक धर्म महिलाओं की प्रजनन क्षमता से सम्बंधित एक प्राक्रतिक प्रक्रिया है तथा उनके शारीरिक स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है. प्रत्येक किशोरी को इस नियमित प्रक्रिया के विषय में पूर्ण जानकारी प्राप्त करने का न केवल अधिकार वरन आवश्यकता भी है। परन्तु यह खेद का विषय है कि आज के आधुनिक युग में भी भारत वर्ष, विशेषकर उत्तर प्रदेश जैसे पिछड़े प्रांत, में इस महत्त्व पूर्ण विषय पर कोई भी बातचीत करना बहुत ही शर्मनाक माना जाता है।
स्वास्थ्य नीति में उद्योग के हस्तक्षेप को रोकें केंद्रीय मंत्रालय
Photo credit: CNS Image Library/2013 |
दमा नियंत्रित रख कर सामान्य जीवन जिया जा सकता है
यदि अस्थमा या दमा के साथ जीवित लोग सफलतापूर्वक दमा नियंत्रित रखें तो सामान्य ज़िंदगी जी सकते हैं। इस साल की विश्व दमा दिवस की थीम है: आप दमा नियंत्रित कर सकते हैं। हालांकि दमा का कोई उपचार नहीं है पर सफलतापूर्वक नियंत्रण संभव है। इंटरनेशनल यूनियन अगेन्स्ट टूबेर्कुलोसिस एंड लंग डीजीस (द यूनियन) के विशेषज्ञों ने बताया कि अस्थमा नियंत्रण का सबसे बड़ा बाधक यह है कि अस्थमा संबन्धित दवाएं कम कीमित पर व्यापक रूप से हर देश में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं। अस्थमा ड्रग फैसिलिटी ने यह प्रमाणित कर दिया है कि अस्थमा संबन्धित गुणात्मक दवाएं कम कीमत पर देशों में उपलब्ध कराई जा सकती हैं।
मलेरिया उन्मूलन क्षेत्रीय एशिया-पैसिफिक नेटवर्क से अब भारत भी जुड़ा
भारत अब क्षेत्रीय एशिया पैसिफिक मलेरिया उन्मूलन नेटवर्क से जुड़ गया है जिसमें अभी तक 16 देश प्रतिभागी थे। भारत ने भी मलेरिया उन्मूलन के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया है। क्षेत्रीय मलेरिया उन्मूलन नेटवर्क के सदस्य के रूप में भारत पहली बार 24 मार्च को वियतनाम में होने वाली 7वीं सालाना बैठक में भाग लेगा। एशिया पैसिफिक क्षेत्र में मलेरिया पीड़ित लोगों के आंकड़े देखते हुए भारत दूसरे नंबर पर है जो अत्यंत चिंताजनक है। क्षेत्रीय नेटवर्क से जुडने से भारत ने भी 2030 तक मलेरिया समाप्त करने के लिए समर्पित है।
मदर टेरेसा जैसा काम क्यों नहीं करता संघ?
डॉ संदीप पाण्डेय, सीएनएस स्तंभकार
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिन्दुत्व की विचारधारा से जुड़े तमाम लोगों को नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने के बाद ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अब उन्हें वे बातें खुल कर कहने की छूट मिल गई है जो वे पहले नहीं कह पाते थे। इनमें से कई बातें विवादास्पद हैं। इधर अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थानों पर हमले भी बढ़ गए हैं। हमला करने वाले भी निडर हो गए हैं। स्थिति इतनी चिंताजनक है कि बराक ओबामा, जिन्हें नरेन्द्र मोदी अपना दोस्त बता कर लाए थे, ने भारत को धार्मिक सहिष्णुता की नसीहत दे डाली। वह भी एक बार नई दिल्ली में तो अमरीका वापस पहुंचने पर वाशिंग्टन डी.सी. में दूसरी बार।
सीएनएस फोटो लाइब्ररी/2013 |
किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलने पर सोशलिस्ट पार्टी का अनशन समाप्त हुआ
सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के उन्नाव जिलाध्यक्ष अनिल मिश्रा के नेतृत्व में 8 जनवरी 2015 से हो रहे अनिश्चितकालीन अनशन 9 जनवरी 2015 को समाप्त हुआ जब उन्नाव के कुछ अन्न-क्रय केन्द्रों से खरीद आरंभ हो गयी। सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के कार्यकर्ताओं ने किसान-विरोधी भू-अधिग्रहण अध्यादेश की प्रतियाँ गांधी प्रतिमा, हजरतगंज, लखनऊ पर 9 जनवरी को जलाईं।
सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के उन्नाव जिलाध्यक्ष अनिल मिश्रा के नेतृत्व में 8 जनवरी 2015 से हो रहे अनिश्चितकालीन अनशन 9 जनवरी 2015 को समाप्त हुआ जब उन्नाव के कुछ अन्न-क्रय केन्द्रों से खरीद आरंभ हो गयी। सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के कार्यकर्ताओं ने किसान-विरोधी भू-अधिग्रहण अध्यादेश की प्रतियाँ गांधी प्रतिमा, हजरतगंज, लखनऊ पर 9 जनवरी को जलाईं।
गोष्ठी: "बापू हम शर्मिंदा हैं, आपके कातिल जिन्दा हैं"
फोटो साभार:रिहाई मंच |
भू-अधिग्रहण कानून में अध्यादेश से लाए परिवर्तन की प्रति को जलाया
अनिल मिश्र के अनशन से प्रदेश में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान खरीद चालूसोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) के उन्नाव जिलाध्यक्ष अनिल मिश्रा के 8 जनवरी, 2015 से गांधी प्रतिमा, हजरतगंज, लखनऊ में अनशन पर बैठने से प्रदेश सरकार ने अंततः धान खरीद के जो केन्द्र बंद कर रखे थे उन्हें खोलने का निर्णय लिया है। अनिल मिश्रा ने सीएनएस को बताया कि: "किंतु हमें इस बात पर रोष है कि पूर्व में घोषित समर्थन मूल्य रु. 1360 (ए ग्रेड धान के लिए रु. 1400) प्रति कुंतल में 2 प्रतिशत, यानी रु. 27.20 की कमी कर दी गई है चूंकि फसल के खेत में खड़े रहने के दौरान वर्षा के कारण उसकी गुणवत्ता प्रभावित हुई है।"
किसान-विरोधी नीति के खिलाफ अनिल मिश्रा अनशन पर
सीएनएस फोटो लाइब्ररी/2015 |
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