भारत में फेफड़े सम्बंधित रोगों के बढ़ते हुए दर ने जन-स्वास्थ्य के समक्ष एक गंभीर चुनौती उत्पन्न कर दी है. यदि मजबूत, पर्याप्त और समोचित कदम नहीं उठाये गए तो स्वच्छ हवा और स्वस्थ फेफड़े हम लोगों के लिए दुर्लभ हो जायेंगे. 18वें फेफड़े रोगों पर राष्ट्रीय अधिवेशन (नेपकॉन 2016) के आयोजक अध्यक्ष, डायरेक्टर प्रोफेसर (डॉ) केसी मोहंती ने बताया, कि “हाल ही में उत्तर-केन्द्रीय भारत में, ‘स्मोग’ ने आम जन-जीवन कुंठित कर दिया था और उसका अत्याधिक आर्थिक व्यय भी सबको उठाना पड़ा था. यह जन स्वास्थ्य के लिए अत्यंत जरुरी है कि आकस्मिक ठोस कदम लिए जाएँ जिससे कि सभी जन मानस स्वच्छ हवा में स्वस्थ फेफड़े से सांस ले और पूर्ण रूप से देश निर्माण में सहयोग कर सके.”
गंभीर जन स्वास्थ्य चुनौती हैं फेफड़े सम्बंधित रोग
भारत में फेफड़े सम्बंधित रोगों के बढ़ते हुए दर ने जन-स्वास्थ्य के समक्ष एक गंभीर चुनौती उत्पन्न कर दी है. यदि मजबूत, पर्याप्त और समोचित कदम नहीं उठाये गए तो स्वच्छ हवा और स्वस्थ फेफड़े हम लोगों के लिए दुर्लभ हो जायेंगे. 18वें फेफड़े रोगों पर राष्ट्रीय अधिवेशन (नेपकॉन 2016) के आयोजक अध्यक्ष, डायरेक्टर प्रोफेसर (डॉ) केसी मोहंती ने बताया, कि “हाल ही में उत्तर-केन्द्रीय भारत में, ‘स्मोग’ ने आम जन-जीवन कुंठित कर दिया था और उसका अत्याधिक आर्थिक व्यय भी सबको उठाना पड़ा था. यह जन स्वास्थ्य के लिए अत्यंत जरुरी है कि आकस्मिक ठोस कदम लिए जाएँ जिससे कि सभी जन मानस स्वच्छ हवा में स्वस्थ फेफड़े से सांस ले और पूर्ण रूप से देश निर्माण में सहयोग कर सके.”
संधि-वार्ता में तम्बाकू उद्योग हस्तक्षेप को रोकने के लिए सरकारें प्रतिबद्ध
विश्व स्वास्थ्य संगठन तम्बाकू संधि वार्ता के उद्घाटन सत्र में सरकारों ने उद्योग के हस्तक्षेप को रोकने की मांग की: आज 18 देशों की सरकारों ने, जो 5.7 करोड़ लोगों का प्रतिनिधित्व कर रही हैं, जन स्वास्थ्य निति में तम्बाकू उद्योग के हस्तक्षेप को मजबूती से रोकने की मांग की. इन देशों की अपील एक खुले पत्र के रूप में आज विश्व स्वास्थ्य संगठन की अंतर्राष्ट्रीय तम्बाकू नियंत्रण संधि वार्ता के पहले दिन जारी की गयी. 18 देशों की सरकारों के इस पत्र के साथ ही 115 गैर-सरकारी संगठनों ने भी विश्व स्वास्थ्य संगठन अंतर्राष्ट्रीय तम्बाकू नियंत्रण संधि से तम्बाकू उद्योग के हस्तक्षेप पर पूर्ण: रोक लगाने की मांग करते हुए पत्र को पिछले सप्ताह जारी किया था.
ASICON 2016 का आहवान: वास्तविकता में एचआईवी को मात्र एक स्थाई-प्रबंधनीय रोग बनायें
शोभा शुक्ला, सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस)
एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया और 9वें एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के राष्ट्रीय अधिवेशन (ASICON 2016) ने भारत सरकार द्वारा एचआईवी/एड्स बिल को संस्तुति देने की सराहना की क्योंकि इस अधिनियम के बनने से एचआईवी के साथ जीवित लोगों के साथ भेदभाव और उनके शोषण पर अंकुश लगेगा. ASICON 2016 मुंबई में 7-9 अक्टूबर २०१६ के दौरान आयोजित हो रही है.
एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया और 9वें एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के राष्ट्रीय अधिवेशन (ASICON 2016) ने भारत सरकार द्वारा एचआईवी/एड्स बिल को संस्तुति देने की सराहना की क्योंकि इस अधिनियम के बनने से एचआईवी के साथ जीवित लोगों के साथ भेदभाव और उनके शोषण पर अंकुश लगेगा. ASICON 2016 मुंबई में 7-9 अक्टूबर २०१६ के दौरान आयोजित हो रही है.
श्री लंका मलेरिया मुक्त घोषित हुआ: पर चौकन्ना रहे!
श्री लंका के मलेरिया-उन्मूलन कार्यक्रम की निरंतरता और दृढ़ता को आज वैश्विक प्रशंसा प्राप्त हो रही है क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ६ सितम्बर २०16 को श्री लंका को मलेरिया मुक्त देश का दर्जा दिया है. श्री लंका को मलेरिया मुक्त होने की सफलता दशकों चली मलेरिया नियंत्रण की एक लम्बी लड़ाई के बाद मिली है.
माहवारी से किशोरी मन क्यों घबराये
[सर्व-प्रथम मुक्ता पत्रिका में प्रकाशित]
किशोरावस्था यानी बचपन से बडे होने की अवस्था। यह अवस्था लडकियों के जीवन का ऐसा समय होता है जिसमें उन्हें तमाम तरह के शारीरिक बदलाव से गुजरना पडता है। इस दौरान किशोरियां अपने शरीर में होने वाले परिवर्तनों के बारे में अंजान होती है। जिसकी वजह से उन्हें तमाम तरह की समस्याओ से गुजरना पडता है जिसमें उलझन, चिन्ता, और बेचैनी के साथ-साथ हर चीज के बारे में जान लेने की उत्सुंकता जन्म लेती है। किशोरियों को उनके परिवार के सदस्यों द्वारा न ही उन्हें बच्चा समझा जाता है और न ही बडा। ऐसे में उनके प्रति केाई भी लापरवाही किशोरियों के लिए घातक हो सकती है।
एचआईवी नियंत्रण के लिए आया पैसा बैंक में बंद है या प्रभावी ढंग से व्यय हो रहा है?
जिन लोगों को एचआईवी से संक्रमित होने का खतरा अधिक है, उनकी गिनती क्यों सही नहीं? जिन देशों में एड्स सबसे अधिक चुनौती बना हुआ है उन्ही देशों में जिन लोगों को एचआईवी से संक्रमित होने का खतरा अधिक है उनकी गिनती सही नहीं होती है और सरकारी अनुमान काफी कम होते हैं. दूसरी चौकाने वाली बात यह है कि इन देशों में जहाँ एड्स चुनौती बना हुआ है और जहाँ एचआईवी संक्रमण होने वाले समुदाओं का अनुमान काफी कम किया जाता है ऐसे देशों में अक्सर कितने लोगों को एचआईवी सम्बंधित सेवा मिल रही है इसका प्रतिशत काफी बढ़चढ़ कर रिपोर्ट किया जाता है.
दक्षिण अफ्रीका और भारतीय संगठनों ने पत्रकार अशोक रामस्वरूप को सम्मानित किया
डॉ गिलाडा, अशोक रामस्वरूप जी, इला गाँधी जी, शोभा शुक्ला जी |
भेदभाव से जूझ रहे एचआईवी/एड्स के साथ जीवित लोग
वृहस्पति कुमार पाण्डेय, सिटीजन न्यूज सर्विस - सी एन एस
[सर्व-प्रथम सरस-सलिल में प्रकाशित]
देश में बढ रहे एचआईवी/एड्स के साथ जीवित लोगों की संख्या को देखते हुए सरकार द्वारा व्यापक स्तर पर न केवल प्रचार प्रसार किया जा रहा है बल्कि सरकारी व गैर सरकारी स्तर पर सघन रूप से ऐसी गतिविधियां भी संचालित की जा रही हैं जिससे एचआईवी/एड्स को फैलने से रोका जा सके। सरकार द्वारा चलाये जा रहे जागरूकता गतिविधियों का एक उद्देश्य एड्स को फैलने से रोकने के अलावा इसको लेकर समाज में फैली भ्रान्तियों व भेदभाव को खत्म करना भी है, लेकिन सरकार का यह प्रयास आज भी इस मामले में नाकाफी साबित हो रहा है।
[सर्व-प्रथम सरस-सलिल में प्रकाशित]
देश में बढ रहे एचआईवी/एड्स के साथ जीवित लोगों की संख्या को देखते हुए सरकार द्वारा व्यापक स्तर पर न केवल प्रचार प्रसार किया जा रहा है बल्कि सरकारी व गैर सरकारी स्तर पर सघन रूप से ऐसी गतिविधियां भी संचालित की जा रही हैं जिससे एचआईवी/एड्स को फैलने से रोका जा सके। सरकार द्वारा चलाये जा रहे जागरूकता गतिविधियों का एक उद्देश्य एड्स को फैलने से रोकने के अलावा इसको लेकर समाज में फैली भ्रान्तियों व भेदभाव को खत्म करना भी है, लेकिन सरकार का यह प्रयास आज भी इस मामले में नाकाफी साबित हो रहा है।
अंदरूनी बीमारियां और अंधविश्वास
बृहस्पति कुमार पांडेय, सिटीजन न्यूज सर्विस-सीएनएस
[सर्व प्रथम सरस सलिल में प्रकाशित]
मर्दों के बजाय औरतों के नाजुक अंगों की बनावट इस तरह की होती है, जिनमें बीमारियों वाले कीटाणु आसानी से दाखिल हो सकते हैं। इस की वजह से उन में तमाम तरह की बीमारियां देखने को मिलती हैं। ये बीमारियां मर्द व् औरत के असुरक्षित सैक्स संबंध बनाने, असुरक्षित बच्चा जनने, माहवारी के दौरान गंदे कपड़े का इस्तेमाल करने व अंगों की साफसफाई न रखने की वजह से होती हैं। इससे औरतों के अंगों पर घाव होना, सैक्स संबंध बनाते समय खून का बहना व तेज दर्द, पेशाब में जलन व दर्द, अंग के आसपास खुजली होना, जांघों में गांठें होना व अंग से बदबूदार तरल जैसी चीज निकलने व मर्दों के अंग पर दाने, खुजली, घाव जैसी समस्याओं से दोचार होना पड़ता है.
मर्दों के बजाय औरतों के नाजुक अंगों की बनावट इस तरह की होती है, जिनमें बीमारियों वाले कीटाणु आसानी से दाखिल हो सकते हैं। इस की वजह से उन में तमाम तरह की बीमारियां देखने को मिलती हैं। ये बीमारियां मर्द व् औरत के असुरक्षित सैक्स संबंध बनाने, असुरक्षित बच्चा जनने, माहवारी के दौरान गंदे कपड़े का इस्तेमाल करने व अंगों की साफसफाई न रखने की वजह से होती हैं। इससे औरतों के अंगों पर घाव होना, सैक्स संबंध बनाते समय खून का बहना व तेज दर्द, पेशाब में जलन व दर्द, अंग के आसपास खुजली होना, जांघों में गांठें होना व अंग से बदबूदार तरल जैसी चीज निकलने व मर्दों के अंग पर दाने, खुजली, घाव जैसी समस्याओं से दोचार होना पड़ता है.
शिक्षा में जागरूकता
संदीप पाण्डेय, सिटिज़न न्यूज सर्विस - सीएनएस
रीता कनौजिया, एक घरेलू कामगार जो चेम्बूर, मुम्बई की एक झुग्गी बस्ती में रहती है अपने बेटे कार्तिक का दाखिला तिलक नगर के लोकमान्य तिलक हाई स्कूल के जूनियर के.जी. कक्षा में चाहती है। उसकी दो बेटियां पहले से ही इस विद्यालय की कक्षा 3 व 4 की छात्राएं हैं। विद्यालय लड़के के दाखिले के लिए रु. 19,500 मांग रहा था जो 2014 में अपने पति की मृत्यु के बाद अब रीता के लिए दे पाना सम्भव नहीं। वह न्यायालय की शरण में गई। न्यायालय के हस्तक्षेप से शुल्क कुछ कम हुआ किंतु रु. 10,500 की राशि भी उसके लिए एक मुश्त दे पाना आसान नहीं था।
रीता कनौजिया, एक घरेलू कामगार जो चेम्बूर, मुम्बई की एक झुग्गी बस्ती में रहती है अपने बेटे कार्तिक का दाखिला तिलक नगर के लोकमान्य तिलक हाई स्कूल के जूनियर के.जी. कक्षा में चाहती है। उसकी दो बेटियां पहले से ही इस विद्यालय की कक्षा 3 व 4 की छात्राएं हैं। विद्यालय लड़के के दाखिले के लिए रु. 19,500 मांग रहा था जो 2014 में अपने पति की मृत्यु के बाद अब रीता के लिए दे पाना सम्भव नहीं। वह न्यायालय की शरण में गई। न्यायालय के हस्तक्षेप से शुल्क कुछ कम हुआ किंतु रु. 10,500 की राशि भी उसके लिए एक मुश्त दे पाना आसान नहीं था।
सड़क अधिकार सबसे पहले पैदल चलने वालों और गैर-मोटर वाहनों को मिले
हेलमेट वितरण पश्चात् २ बच्चियां साइकिल पर हेलमेट पहने हुए सकारात्मक बदलाव की उम्मीद देती हैं ये बच्चियां |
किशोरी सुरक्षा योजना: माहवारी स्वच्छता के लिए एक प्रयास
जितेन्द्र कौशल सिंह, सिटिज़न न्यूज सर्विस - सीएनएस
लडकियों में किशोरावस्था की शुरूआत एक ऐसा समय होता है जब वे विभिन्न शारीरिक एवं मानसिक परिवर्तन की परिस्थितियों से गुजरती हैं । इस दौरान किशोरियों में हर परिवर्तन के बारे में जानने की उत्सुकता जन्म लेती है। किशोरावस्था ही ऐसा समय है जिस समय प्रजनन अंगो का विकास एवं परिवर्तन तेजी से होता है। इस दौरान किशोरियों में माहवारी की शुरूआत होती है।
लडकियों में किशोरावस्था की शुरूआत एक ऐसा समय होता है जब वे विभिन्न शारीरिक एवं मानसिक परिवर्तन की परिस्थितियों से गुजरती हैं । इस दौरान किशोरियों में हर परिवर्तन के बारे में जानने की उत्सुकता जन्म लेती है। किशोरावस्था ही ऐसा समय है जिस समय प्रजनन अंगो का विकास एवं परिवर्तन तेजी से होता है। इस दौरान किशोरियों में माहवारी की शुरूआत होती है।
उप्र मुख्यमंत्री के साथ वार्ता विफल: समान शिक्षा प्रणाली के लिए अनिश्चितकालीन अनशन जारी
डॉ संदीप पाण्डेय अनशन पर: सरकारी वेतन पाने वाले और जन प्रतिनिधि के बच्चे सरकारी स्कूल में अनिवार्य रूप से पढ़ें - यह हाई कोर्ट आदेश क्यों नहीं लागू कर रही सरकार?
(हस्ताक्षर अभियान पर समर्थन देने के लिए यहाँ क्लिक करें) इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले कि सरकारी वेतन पाने वालों, जन प्रतिनिधियों व न्यायाधीशों के बच्चे सरकारी विद्यालयों में पढ़ें को लागू कराने हेतु 6 जून, 2016 से लखनऊ में अनिश्चितकालीन अनशन आरंभ हुआ. मग्सेसे पुरुस्कार से सम्मानित वरिष्ठ कार्यकर्ता और सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ संदीप पाण्डेय लखनऊ के हजरतगंज स्थित गांधीजी की प्रतिमा पर अनशन पर हैं.
स्वास्थ्य व्यवस्था पर तम्बाकू जनित जानलेवा बीमारियों के भार से बच सकता है भारत
प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त |
विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस २०१६: मासिक धर्म पर चप्पी तोड़ो !
वर्ष २०१४ से २८ मई को विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस मनाया जाता है जिसका मुख्य उद्देश्य समाज में फली मासिक धर्म सम्बन्धी गलत अवधारना को दूर करना और महिलाओं तथा किशोरियों को महावारी प्रबंधन सम्बन्धी सही जानकारी देना है। यूपी स्वास्थ्य विभाग के अनुसार प्रदेश में २८ लाख किशोरियां मासिक धर्म के कारण स्कूल जाने में नागा करती हैं। मासिक धर्म सम्बन्धी अस्वच्छता से अनेक संक्रमण, सूजन, मासिक धर्म सम्बन्धी ऐठन, और योनिक रिसाव आदि स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ भी आती हैं। मासिक धर्म, एक किशोरी या महिला के लिए प्राकृतिक रूप से स्वस्थ होने का संकेत है, न कि शर्मसार या डरने या घबड़ाने वाली कोई घटना। एक सर्वे के अनुसार ८५% किशोरियां पुराने कपड़ों को ही मासिक धर्म के दौरान इस्तेमाल करती हैं।
किशोरियों में माहवारी संबन्धित स्वच्छता व् प्रबन्धन
विश्वपति वर्मा , सिटीज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
उत्तर प्रदेश में माहवारी संबन्धित समस्याओं से किशोरियों को निजात दिलाने के लिये चलाई जा रही तमाम प्रकार की योजनाएँ सिर्फ कागजों तक सीमित होती दिखाई दे रही हैं। शासन द्वारा सरकारी एवं परिषदीय विद्यालयों में पढ़ने वाली किशोरियों को माहवारी के विषय से जुडी गलत धारणाओं व मिथकों को दूर करने एवं उन्हें व्यक्तिगत स्वच्छता के प्रति जागरूक किये जाने के उद्देश्य से चलाई जा रही किशोरी सुरक्षा योजना के सम्बन्ध में जब खंड शिक्षाधिकारी सल्टौआ अखिलेश सिंह से बातचीत हुई तो उन्होंने बताया कि इस तरह की योजनायें शिक्षा विभाग के सहयोग से चलायी जा रही हैं।
उत्तर प्रदेश में माहवारी संबन्धित समस्याओं से किशोरियों को निजात दिलाने के लिये चलाई जा रही तमाम प्रकार की योजनाएँ सिर्फ कागजों तक सीमित होती दिखाई दे रही हैं। शासन द्वारा सरकारी एवं परिषदीय विद्यालयों में पढ़ने वाली किशोरियों को माहवारी के विषय से जुडी गलत धारणाओं व मिथकों को दूर करने एवं उन्हें व्यक्तिगत स्वच्छता के प्रति जागरूक किये जाने के उद्देश्य से चलाई जा रही किशोरी सुरक्षा योजना के सम्बन्ध में जब खंड शिक्षाधिकारी सल्टौआ अखिलेश सिंह से बातचीत हुई तो उन्होंने बताया कि इस तरह की योजनायें शिक्षा विभाग के सहयोग से चलायी जा रही हैं।
किशोरी सुरक्षा योजना
सुभाषिनी चौरसिया, सिटीजन न्यूज सर्विस - सीएनएस
किशोरावस्था बाल्यावस्था और प्रौढ़ावस्था के बीच की अवस्था है| इस अवस्था के दौरान किशोरों और किशोरियों (10-19) में बहुत से शारीरिक और मानसिक बदलाव होते हैं| जिसके बाद वे प्रौढ़ावस्था में प्रवेश करते हैं| खासकर किशोरियों में इस अवस्था के दौरान मासिक धर्म की शुरुआत हो जाती है| लेकिन समाज में इस विषय से जुड़ी गलत अवधारणाओं और मिथकों के कारण किशोरियों को इस विषय में सही जानकारी नहीं दी जाती है| जिससे उन्हें बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है और कभी-कभी तो किशोरियां गलत साधनों से इस विषय में जानकारी प्राप्त कर लेती हैं जो उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है और उनमें प्रजनन सम्बन्धी बीमारियाँ एवं संक्रमण हो सकता है |
किशोरावस्था बाल्यावस्था और प्रौढ़ावस्था के बीच की अवस्था है| इस अवस्था के दौरान किशोरों और किशोरियों (10-19) में बहुत से शारीरिक और मानसिक बदलाव होते हैं| जिसके बाद वे प्रौढ़ावस्था में प्रवेश करते हैं| खासकर किशोरियों में इस अवस्था के दौरान मासिक धर्म की शुरुआत हो जाती है| लेकिन समाज में इस विषय से जुड़ी गलत अवधारणाओं और मिथकों के कारण किशोरियों को इस विषय में सही जानकारी नहीं दी जाती है| जिससे उन्हें बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है और कभी-कभी तो किशोरियां गलत साधनों से इस विषय में जानकारी प्राप्त कर लेती हैं जो उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है और उनमें प्रजनन सम्बन्धी बीमारियाँ एवं संक्रमण हो सकता है |
किशोरी सुरक्षा योजना के उचित अनुपालन से आएगा बदलाव
बृहस्पति कुमार पाण्डेय, सिटीज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
प्रदेश में 10-19 वर्ष की किशोरियों की संख्या कुल जनंसख्या का लगभग 11 प्रतिशत है, एन.एफ.एच.एस.-3 के सर्वे के अनुसार इन में 40 प्रतिशत स्कूल जाने वाली किशोरियां सातवीं के बाद माहवारी की वजह से स्कूल जाना छोड़ देती हैं। इसका एक कारण किशोरियों में अपनी माहवारी को लेकर एक विशेष तरह की भ्रान्ति या भय का होना भी है। जो किशोरियां स्कूल जाती भी हैं वे माहवारी के दौरान एक ही कपड़े को बार-बार धोकर अपने इस्तेमाल में लाती हैं जिसके चलते उन्हें स्वास्थ्य समस्याओं के साथ प्रजनन तंत्र के संक्रमण से भी जूझना पड़ता है। ऐसे में इन किशोरियों के परिवार के सदस्यों व अध्यापकों द्वारा इन्हें सही मार्गदर्शन व देखभाल न मिलने से इनका स्वास्थ्य का स्तर दिनों दिन गिरता जाता है।
प्रदेश में 10-19 वर्ष की किशोरियों की संख्या कुल जनंसख्या का लगभग 11 प्रतिशत है, एन.एफ.एच.एस.-3 के सर्वे के अनुसार इन में 40 प्रतिशत स्कूल जाने वाली किशोरियां सातवीं के बाद माहवारी की वजह से स्कूल जाना छोड़ देती हैं। इसका एक कारण किशोरियों में अपनी माहवारी को लेकर एक विशेष तरह की भ्रान्ति या भय का होना भी है। जो किशोरियां स्कूल जाती भी हैं वे माहवारी के दौरान एक ही कपड़े को बार-बार धोकर अपने इस्तेमाल में लाती हैं जिसके चलते उन्हें स्वास्थ्य समस्याओं के साथ प्रजनन तंत्र के संक्रमण से भी जूझना पड़ता है। ऐसे में इन किशोरियों के परिवार के सदस्यों व अध्यापकों द्वारा इन्हें सही मार्गदर्शन व देखभाल न मिलने से इनका स्वास्थ्य का स्तर दिनों दिन गिरता जाता है।
मासिक धर्म के प्रति समाज का नजरिया
सुभाषिनी चौरसिया, सिटीजन न्यूज सर्विस - सीएनएस
मासिक धर्म की प्रक्रिया हमारे भारतीय समाज का एक ऐसा संवेदनशील मुद्दा है जिसके साथ बहुत सी गलत धारणाएं जुड़ी हुई हैं. मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को अशुद्ध माना जाता है. उनका स्नान करना, मंदिर जाना और किसी भी धार्मिक कार्य में भाग लेना वर्जित हो जाता है. इन सब कारणों से मासिक धर्म के दिनों में उनकी साधारण दिनचर्या भी बाधित हो जाती है. इसके चलते लडकियों की पढाई में भी विघ्न पड़ता है. कक्षा में उनकी उपस्थिति कम हो जाती है|
मासिक धर्म की प्रक्रिया हमारे भारतीय समाज का एक ऐसा संवेदनशील मुद्दा है जिसके साथ बहुत सी गलत धारणाएं जुड़ी हुई हैं. मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को अशुद्ध माना जाता है. उनका स्नान करना, मंदिर जाना और किसी भी धार्मिक कार्य में भाग लेना वर्जित हो जाता है. इन सब कारणों से मासिक धर्म के दिनों में उनकी साधारण दिनचर्या भी बाधित हो जाती है. इसके चलते लडकियों की पढाई में भी विघ्न पड़ता है. कक्षा में उनकी उपस्थिति कम हो जाती है|
पानी के संकट के गहराने से बचने के लिए पेप्सी व कोका कोला के कारखाने बंद करो
पानी की निजीकरण बंद करो: पानी के संकट को लेकर त्राहि त्राहि मची हुई है। संकट सिर्फ महाराष्ट्र, जहां उच्च न्यायालय के फैसले से आई.पी.एल. क्रिकेट के खेल बाहर किए गए, या बंदेलखण्ड में ही नहीं बल्कि सभी जगह मुंह बाए खड़ा है। पेप्सी व कोका कोला के कारखाने बड़ी मात्रा में भू-गर्भ जल का अनियंत्रित दोहन करते हैं। एक लीटर शीतल पेय बनाने में नौ लीटर पानी खर्च होता है।
८५% चित्रमय चेतावनी और छोटे तम्बाकू पैक पर रोक दोनों जन-स्वास्थ्य के लिए लाभकारी कदम
यह जन स्वास्थ्य के लिए हितकारी कदम है कि भारत सरकार ने तम्बाकू उत्पादनों पर चित्रमय चेतावनी को ८५% लागू न करने की संसदीय समिति की सलाह को दरकिनार कर, १ अप्रैल २०१६ से हर तम्बाकू उत्पाद पर ८५% चेतावनी लागू करने का निर्णय लिया है. सिगरेट एवं अन्य तम्बाकू उत्पाद अधिनियम २००३ के सेक्शन ७ को लागू करने के लिए "ह्रदय-शान" की मार्गनिर्देशिका के अनुसार, हर तम्बाकू उत्पाद पर न केवल चित्रमय चेतावनी का आकार ८५% होगा बल्कि चित्रमय चेतावनी ३.५सेमी चौड़ाई और ४सेमी लम्बाई से छोटी भी नहीं हो सकती - जिसका तात्पर्य यह है कि तम्बाकू छोटे पैक में नहीं बिक सकेगी.
सरकारी तनख्वाह लेने वाले व जन प्रतिनिधियों के बच्चों के लिए सरकारी विद्यालय में पढ़ना अनिवार्य हो
मेगसेसे पुरुस्कार से सम्मानित सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि 18 अगस्त, 2015 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2013 की रिट याचिका संख्या 57476 व अन्य के संदर्भ में न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल का आदेश आया जिसके तहत छह माह की अवधि में ऐसी व्यवस्था बनानी थी कि सभी सरकारी तनख्वाह पाने वाले लोगों व जन प्रतिनिधियों के बच्चों को सरकारी विद्यालयों में दाखिला लेना था।
सतत विकास लक्ष्य एवं मासिक धर्म स्वच्छता
विश्वपति वर्मा, सिटीजन न्यूज सर्विस - सीएनएस
भारत को सतत विकास लक्ष्य 2030 पूरा करने के लिये आम जनता, विशेषकर महिलाओं, के प्रजनन स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है. इसकी एक महत्त्व पूर्ण कड़ी है मासिक धर्म स्वच्छता। आज के परिवेश मे लड़कियों मे लगभग 12 वर्ष की आयु से माहवारी का सिलसिला शुरू हो जाता है. माहवारी के दौरान सही जानकारी और उचित परामर्श ना मिलने से लड़कियों को अक्सर अनेक प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
भारत को सतत विकास लक्ष्य 2030 पूरा करने के लिये आम जनता, विशेषकर महिलाओं, के प्रजनन स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है. इसकी एक महत्त्व पूर्ण कड़ी है मासिक धर्म स्वच्छता। आज के परिवेश मे लड़कियों मे लगभग 12 वर्ष की आयु से माहवारी का सिलसिला शुरू हो जाता है. माहवारी के दौरान सही जानकारी और उचित परामर्श ना मिलने से लड़कियों को अक्सर अनेक प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
कम उम्र में शादी जीवन की बरबादी
जितेंद्र कौशल सिंह, सिटिज़न न्यूज सर्विस - सीएनएस
भारत में स्वास्थ्य सेवाओं में उत्तरोत्तर प्रगति हुई है। जहां आजादी से पूर्व जीवन रक्षक दवाओं का मिलना मुश्किल रहता था वहीं आज ग्रामीण क्षेत्रों में भी ब्लाक स्तर पर अच्छे स्वास्थ्य केन्द्र व मुफ्त एम्बुलेंस सुविधा भी उपलब्ध है। देश की स्वास्थ्य सेवाओं में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुआ है। किन्तु महिला स्वास्थ्य सम्बन्धी कई आँकड़े अब भी चौंकाने वाले हैं. जहां एक ओर हम आर्थिक उन्नति का दावा भरते हैं, वहीँ दूसरी ओर बाल-विवाह के मामले में शीर्ष 10 देशों में भारत भी शामिल है जोकि वैश्विक सतत विकास लक्ष्य को पूरा करने में मूल बाधा नजर आती है।
भारत में स्वास्थ्य सेवाओं में उत्तरोत्तर प्रगति हुई है। जहां आजादी से पूर्व जीवन रक्षक दवाओं का मिलना मुश्किल रहता था वहीं आज ग्रामीण क्षेत्रों में भी ब्लाक स्तर पर अच्छे स्वास्थ्य केन्द्र व मुफ्त एम्बुलेंस सुविधा भी उपलब्ध है। देश की स्वास्थ्य सेवाओं में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुआ है। किन्तु महिला स्वास्थ्य सम्बन्धी कई आँकड़े अब भी चौंकाने वाले हैं. जहां एक ओर हम आर्थिक उन्नति का दावा भरते हैं, वहीँ दूसरी ओर बाल-विवाह के मामले में शीर्ष 10 देशों में भारत भी शामिल है जोकि वैश्विक सतत विकास लक्ष्य को पूरा करने में मूल बाधा नजर आती है।
७०वें नैटकान में टीबी और श्वास रोगों के नियंत्रण का आह्वान
सिटीजन न्यूज सर्विस - सीएनएस [English]
२१ फरवरी २०१६ को ७०वें टीबी और अन्य श्वास सम्बन्धी रोगों के राष्ट्रीय अधिवेशन का समापन दिवस था.
किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग, राष्ट्रीय टीबी संगठन, और उत्तर प्रदेश टीबी संगठन के संयुक्त तत्वाधान में लखनऊ में २०-२१ फरवरी २०१६ के दौरान आयोजित हो रहा है ७०वां टीबी और अन्य श्वास सम्बन्धी रोगों पर राष्ट्रीय अधिवेशन (नैटकान).
२१ फरवरी २०१६ को ७०वें टीबी और अन्य श्वास सम्बन्धी रोगों के राष्ट्रीय अधिवेशन का समापन दिवस था.
किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग, राष्ट्रीय टीबी संगठन, और उत्तर प्रदेश टीबी संगठन के संयुक्त तत्वाधान में लखनऊ में २०-२१ फरवरी २०१६ के दौरान आयोजित हो रहा है ७०वां टीबी और अन्य श्वास सम्बन्धी रोगों पर राष्ट्रीय अधिवेशन (नैटकान).
सरकार ने २०३० तक टीबी समाप्त करने का वादा किया है: ७०वें नैटकान ने अपील की कि टीबी दर में गिरावट अधिक हो जिससे कि २०३० का लक्ष्य पूरा हो सके
सिटीजन न्यूज सर्विस [English]
भारत सरकार एवं दुनिया की अन्य सरकारों ने संयुक्त राष्ट्र की महासभा में पिछले वर्ष सतत विकास लक्ष्य २०३० को पारित किया है, जिनका लक्ष्य ३.३ है २०३० तक टीबी समाप्त करना. टीबी और अन्य श्वास सम्बन्धी रोगों के विशेषज्ञों ने ७०वें टीबी और श्वास रोगों पर राष्ट्रीय अधिवेशन (नैटकान), जिसका उद्घाटन उत्तर प्रदेश के राज्यपाल श्री राम नाएक ने किया, यह अपील की कि टीबी दरों में गिरावट तेज़ी से आये जिससे कि २०३० के लक्ष्य समय से या समय से पूर्व ही पूरे हो सकें. किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग, राष्ट्रीय टीबी संगठन, और उत्तर प्रदेश टीबी टीबी के रोगियों की जांच जितनी शीघ्र हो सके उतनी जल्दी होनी चाहिए, समुदाय से जुड़ कर साथ में कार्यरत रहना चाहिए जिससे कि रोगी को अपना उपचार सफलतापूर्वक समाप्त करने में मदद मिले.
नैटकान से पूर्व ४ चिकित्सकीय कार्यशालाओं में १०० से अधिक विशेषज्ञों ने भाग लिया
सिटीजन न्यूज सर्विस, सीएनएस [English]
लखनऊ में होने वाले ७०वें टीबी और अन्य श्वास सम्बन्धी रोगों पर राष्ट्रीय अधिवेशन (नैटकान) से पूर्व, १०० से अधिक टीबी और अन्य श्वास सम्बन्धी विशेषज्ञों ने ४ चिकित्सकीय कार्यशालाओं में भाग लिया. यह ४ विशेष कार्यशालाएं इन मुद्दों पर केन्द्रित रहीं: टीबी (आधुनिक जांच, पुनरीक्षित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम, दवा प्रतिरोधक टीबी, नॉन-इनवेसिव वेंटिलेशन, स्लीप स्टडी, और पीऍफ़टी.
लखनऊ में होने वाले ७०वें टीबी और अन्य श्वास सम्बन्धी रोगों पर राष्ट्रीय अधिवेशन (नैटकान) से पूर्व, १०० से अधिक टीबी और अन्य श्वास सम्बन्धी विशेषज्ञों ने ४ चिकित्सकीय कार्यशालाओं में भाग लिया. यह ४ विशेष कार्यशालाएं इन मुद्दों पर केन्द्रित रहीं: टीबी (आधुनिक जांच, पुनरीक्षित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम, दवा प्रतिरोधक टीबी, नॉन-इनवेसिव वेंटिलेशन, स्लीप स्टडी, और पीऍफ़टी.
भारत में कैंसर दर (और मृत्युदर) १०% बढ़ा (२०११-२०१४): तंबाकू नियंत्रण एक बड़ी प्राथमिकता
[English] [Webinar recording] भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद् के आंकड़ों के अनुसार, भारत में कैंसर के रोगियों की संख्या में और मृत्यु दर में लगभग १०% की बढ़ोतरी हुई है (२०११ और २०१४ के बीच). २०१४ में भारत में कैंसर के लगभग 44% रोगी मृत हुए. सीएनएस की निदेशक शोभा शुक्ला ने बताया कि "भारत में कैंसर रोगियों की संख्या २०११ में १०२८५०३ से बढ़कर 201४ में १११७२६९ हो गयी है. भारत में कैंसर द्वारा मृत्यु की संख्या भी २०११ में ४५२५४१ से बढ़कर २०१४ तक ४९१५९७ हो गयी है. कैंसर दर बढ़ने के अनेक कारण हैं जिनमें प्रमुख है तम्बाकू सेवन, असंतुलित आहार, जनसँख्या की आयुवृद्धि, और हानिकारक जीवनशैली."
यूपी में गैर-संक्रामक रोग कम होने के बजाय बढ़ोतरी पर
शोभा शुक्ला, सीएनएस निदेशक |
लखनऊ में होगा ७०वां टीबी और अन्य श्वास सम्बन्धी रोगों पर राष्ट्रीय अधिवेशन
सिटीजन न्यूज सर्विस, सीएनएस [English]
किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग, राष्ट्रीय टीबी संगठन, और उत्तर प्रदेश टीबी संगठन के संयुक्त तत्वाधान में लखनऊ में २०-२१ फरवरी २०१६ के दौरान आयोजित हो रहा है ७०वां टीबी और अन्य श्वास सम्बन्धी रोगों पर राष्ट्रीय अधिवेशन (नैटकान). १९ फरवरी २०१६ को एक-दिवसीय अधिवेशन से पूर्व ४ विशेष कार्यशालाएं आयोजित होंगी. १० साल के पश्चात् नैटकान लखनऊ में आयोजित हो रही है (६० वां नैटकान अधिवेशन २००६ में संपन्न हुआ था).
किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग, राष्ट्रीय टीबी संगठन, और उत्तर प्रदेश टीबी संगठन के संयुक्त तत्वाधान में लखनऊ में २०-२१ फरवरी २०१६ के दौरान आयोजित हो रहा है ७०वां टीबी और अन्य श्वास सम्बन्धी रोगों पर राष्ट्रीय अधिवेशन (नैटकान). १९ फरवरी २०१६ को एक-दिवसीय अधिवेशन से पूर्व ४ विशेष कार्यशालाएं आयोजित होंगी. १० साल के पश्चात् नैटकान लखनऊ में आयोजित हो रही है (६० वां नैटकान अधिवेशन २००६ में संपन्न हुआ था).
२०३० सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में बाल विवाह एक बड़ी बाधा
बृहस्पति कुमार पाण्डेय, सिटीज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
वर्ष २००० में भारत समेत विश्व के 192 देशों ने सहस्त्रादि विकास लक्ष्य के अंतर्गत २०१५ तक कुछ बडे लक्ष्यों को प्राप्त करने का वायदा किया था। इन लक्ष्यों में एक प्रमुख लक्ष्य था मातृ एवं नवजात शिशु मृत्यु दर में कमी लाना। लेकिन उसको प्राप्त करने के लिए जो मानक तय किये गये थे उन्हें प्राप्त करने में भारत समेत कई देश विफल रहे। सितम्बर २०१५ में संयुक्त राष्ट्र संघ के १९३ सदस्य देशों ने १७ सतत विकास लक्ष्यों को पारित किया है जिन्हें वर्ष २०३० तक पूरा करने का समय निर्धारित किया गया है। तय किये गये १७ लक्ष्यों के १६९ टार्गेट्स हैं जो इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करेगें।
वर्ष २००० में भारत समेत विश्व के 192 देशों ने सहस्त्रादि विकास लक्ष्य के अंतर्गत २०१५ तक कुछ बडे लक्ष्यों को प्राप्त करने का वायदा किया था। इन लक्ष्यों में एक प्रमुख लक्ष्य था मातृ एवं नवजात शिशु मृत्यु दर में कमी लाना। लेकिन उसको प्राप्त करने के लिए जो मानक तय किये गये थे उन्हें प्राप्त करने में भारत समेत कई देश विफल रहे। सितम्बर २०१५ में संयुक्त राष्ट्र संघ के १९३ सदस्य देशों ने १७ सतत विकास लक्ष्यों को पारित किया है जिन्हें वर्ष २०३० तक पूरा करने का समय निर्धारित किया गया है। तय किये गये १७ लक्ष्यों के १६९ टार्गेट्स हैं जो इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करेगें।
ग्रामीण परिपेक्ष्य में महिला और बाल स्वास्थ्य
मधुमिता वर्मा, सिटीजन न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
यदि हम उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों की बात करें तो कुपोषण, साफ़-सफाई का न होना, अस्वच्छता, वायु एवं धुएं का प्रदूषण, खुले में शौच, अज्ञानता, उचित स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव, आदि अनेक ऐसे कारण हैं जिनके चलते ग्रामीण वासियों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों को अनेक प्रकार की बीमारियों को झेलना पड़ता है।
यदि हम उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों की बात करें तो कुपोषण, साफ़-सफाई का न होना, अस्वच्छता, वायु एवं धुएं का प्रदूषण, खुले में शौच, अज्ञानता, उचित स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव, आदि अनेक ऐसे कारण हैं जिनके चलते ग्रामीण वासियों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों को अनेक प्रकार की बीमारियों को झेलना पड़ता है।
यौनिक शोषण- चुप्पी तोडनी ही होगी...
बृहस्पति कुमार पाण्डेय, सिटीजन न्यूज सर्विस - सीएनएस
देश में यौनिक एवं प्रजनन स्वास्थ्य से जुडी सामाजिक चुप्पी, भ्रम व मिथक की वजह से हर रोज किशोर व युवा महिलाओं से जुडे यौन उत्पीडन के कई मामले सामने आते है। यह वह मामले होते है जिसमें यौन उत्पीडन की शिकार महिला या तो पुलिस के पास शिकायत के रूप में लेकर जाती है, या अत्यन्त जघन्य होने की दशा में ही सामने आ पाते है। लेकिन ज्यादातर मामलों में यह देखा गया है कि यौनिक हिंसा की शिकार होने वाली महिला अपने ऊपर होने वाले यौनिक अत्याचार को या तो चुपचाप सहती रहती है या परिवार के लोगों द्वारा ऐसे मामलो को दबा दिया जाता है।
फोटो क्रेडिट: सीएनएस |
वास्तविकता से इंकार क्यों ?
नीतू यादव, सिटीजन न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
जब हमारे भारतीय समाज में मानव शरीर से जुड़ी प्राथमिक आवश्यकताओं की बात की जाती है तो प्रत्येक व्यक्ति सिर्फ रोटी, कपड़ा, और मकान का जिक्र करता है किन्तु शरीर के यौन और प्रजनन स्वास्थ्य के विषय पर कोई भी चर्चा नहीं करना चाहता, क्योंकि हमारे समाज में प्रारंभ से ही किशोर-किशोरियों को यह समझाया जाता है कि इस विषय पर चर्चा करना भी पाप है। लैंगिक व प्रजनन स्वास्थ्य युवा पीढी से जुड़ा हुआ बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है. अच्छे स्वास्थ्य के अभाव में जीवन का आनंद कदापि नहीं उठाया जा सकता है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि हमारे समाज में इस विषय पर बात करना भी वर्जित है।
जब हमारे भारतीय समाज में मानव शरीर से जुड़ी प्राथमिक आवश्यकताओं की बात की जाती है तो प्रत्येक व्यक्ति सिर्फ रोटी, कपड़ा, और मकान का जिक्र करता है किन्तु शरीर के यौन और प्रजनन स्वास्थ्य के विषय पर कोई भी चर्चा नहीं करना चाहता, क्योंकि हमारे समाज में प्रारंभ से ही किशोर-किशोरियों को यह समझाया जाता है कि इस विषय पर चर्चा करना भी पाप है। लैंगिक व प्रजनन स्वास्थ्य युवा पीढी से जुड़ा हुआ बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है. अच्छे स्वास्थ्य के अभाव में जीवन का आनंद कदापि नहीं उठाया जा सकता है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि हमारे समाज में इस विषय पर बात करना भी वर्जित है।
लैंगिक व प्रजनन स्वास्थ्य संबंधी जानकारियों की सार्थकता
मधुमिता वर्मा, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
प्रजनन सृष्टि का मूल है, लैंगिक परिपक्वता के बिना प्रजनन की कल्पना नहीं की जा सकती है। परन्तु फिर भी हमारे देश में आज भी इस विचारधारा के लोगों की कमी नहीं जो लैंगिक व प्रजनन सम्बन्धी विषयों पर बात करना अपराध मानते हैं। यह संकीर्ण मानसिकता, लैंगिक व प्रजनन स्वास्थ्य संबंधी जानकारियों के प्रचार-प्रसार में बाधक है। नवयुवक-नवयुवतियों में इसको लेकर एक प्रकार का भय व शर्म व्याप्त है जो उन्हें परेशानी होने पर भी छिपाए रहने के लिए बाध्य कर रहा है। यह स्थिति विकास के मार्ग में निश्चित रूप से एक बहुत बड़ी बाधा है।
फोटो क्रेडिट: सीएनएस |
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