तपेदिक या टीबी समाचार: ३० अप्रैल २००८
३० अप्रैल २००८
टीबी या तपेदिक की जांच के लिये जो माइक्रोस्कोप इस्तिमाल किया जाता है वो १०० साल पुराना है! अब फाउंडेशन फॉर इन्नोवातिव दैग्नोस्टिक (FIND) और दुनिया के प्रसिद्ध कैमरा के लेंस बनाने वालीकंपनी कार्ल जीस (Carl Zeiss) ने टीबी या तपेदिक की जांच के लिये नया माइक्रोस्कोप बनाया है।
यह नया माइक्रोस्कोप ४ गुना तेज़ी से कार्य करता है, और १० प्रतिशत अधिक सेंसिटिव है, यानी कि टीबी या तपेदिक की जांच की रपट पुराने माइक्रोस्कोप के मुकाबले १० प्रतिशत अधिक सही होने की सम्भावना है।
यह नया माइक्रोस्कोप अक्टूबर २००८ में बाज़ार में उपलब्ध कराया जाएगा।
यह भी रोचक बात है कि रॉबर्ट कोच ने १८८२ में टीबी या तपेदिक के बक्टेरियम को चिन्हित किया था, तब उन्होंने भी कार्ल जीस के ही माइक्रोस्कोप का इस्तिमाल किया था। आज भी वही १०० साल से अधिक पुराने माइक्रोस्कोप का इस्तिमाल होता है, एंड इस बात में कोई संदेह नही है कि टीबी या तपेदिक नियंत्रण के लिये नए जांच के यंत्रों की आवश्यकता है जो गावं शहर हर माहौल में सक्रियेता से कार्य कर सकें।
दिल्ली के इकनॉमिक सर्वे (Economic Survey of Delhi) में २००७-२००८ में होने वाली कुल मौतों के कारणों में ह्रदय रोग सबसे बड़ा निकल के आया है, और तपेदिक या टीबी भी कुछ प्रमुख कारणों में से एक है। दिल्ली में २००७-२००८ में होने वाली १० प्रतिशत मृत्यु के लिये ह्रदय रोग जिम्मेदार था, डायबिटीज़ या मधुमेह एक और प्रमुख कारण था और तपेदिक या टीबी भी प्रमुख कारणों में से एक था।
२००५ में दिल्ली में २ प्रतिशत मृत्यु टीबी या तपेदिक से हुई थीं और २००७-२००८ में ये दर बढ़ के ४ प्रतिशत के करीब आ गया है।
बलरामपुर अस्पताल में भरती मरीज का मेडिकल सर्टिफिकेट बनाने के लिए घूस मांगी गई
यह एक आम बात है कि सरकारी अस्पतालों में मेडिकल सर्टिफिकेट बनाने के लिए घूस मांगी जाती है, खास कर कि ऐसे सर्टिफिकेट जो पोलिस स्टेशन में कितनी चोट लगी है इसके लिए अफ.ई.आर लिखाने के लिए जरुरी हैं, घूस माँगना एक आम बात हो गई है। यहाँ तक कि यदि घूस पर्याप्त दी जाए तो सर्टिफिकेट में अधिक गंभीर चोट दिखा के कोर्ट में केस को अधिक मजबूत किया जा सकता है।
इसके विपरीत यदि घूस नही दी गई हो तो सर्टिफिकेट में चोट की गंभीरता को कम दिखाते हुए कोर्ट में केस को कमजोर भी किया जा सकता है, कोर्ट के केस की बात दूर है, घूस न मिलने पर इतना कमजोर सर्टिफिकेट बनाया जाता है कि एफ.ई.आर तक नही लिखी जायेगी।
२५ अप्रैल २००८ को राम नरेश नामक व्यक्ति जो श्री जगन्नाथ का पुत्र है और गावं अमृत खेदा, पोलिस स्टेशन माल, तहसील मलिहाबाद, जिला लखनऊ का रहने वाला है, उसको एक उसके ही गावं के निवासी से मुत्भेड में गंभीर रूप से चोट आने के बाद बलरामपुर अस्पताल में भरती कराया गया।
राम नरेश से तुरंत रुपया ३०० जमा करने को बोला गया। जब उसने घटना का विवरण किया तब उससे रुपया ५०० अधिक मांगे गए जिससे उपरांत उसको वाजिब मेडिकल सर्टिफिकेट जारी किया जा सके। राम नरेश ने रुपया १०० जख्म पर टांके लगाने के लिए और रुपया २० दवाओं के लिए दे दिए, जबकि उसको दवाएं नि:शुल्क मिलनी चाहिए थी क्योकि वो गरीब है और सरकारी अस्पतालों में गरीब लोगों को नि:शुक्ल दवाएं मिलती हैं। यह एक शरम की बात है कि एक गरीब व्यक्ति से अस्पताल के कर्मचारी वाजिब और सही काम करने के लिए भी पैसे मांगे।
राम नरेश ने अस्पताल के अधिकारियों के कार्यालय में इसकी शिकायत दर्ज कर दी है। यह शिकायत दर्ज करने के उपरांत इस अस्पताल का एक वार्ड बॉय राम नरेश के पास आया और बोला कि 'चौरसिया' नाम के व्यक्ति से जो 'इमर्जेंसी' वार्ड में कार्यरत है, अपना पैसा वापस ले ले। पैसा अभी तक वापस नही किया गया है।
राम नरेश, बलरामपुर अस्पताल के वार्ड नम्बर २१ में बेद संख्या ६ पर भरती है। उससे सम्पर्क करने के लिए आशा परिवार और आशा स्वास्थ्य सेवा के कार्यकर्ता मनीष या चुन्नी लाल से सम्पर्क किया जा सकता है:
चुन्नी लाल: ९८३९४२२५२१
मनीष: ९८३९९११६४८
डॉ संदीप पाण्डेय
फ़ोन: 0522 2347365, 9415022772
ईमेल: ashaashram@yahoo.com
(लेखक डॉ संदीप पाण्डेय, जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय के राष्ट्रीय संयोजक हैं और रमोन मैग्सय्सय पुरुस्कार से सम्मानित कार्यकर्ता भी)
तम्बाकू पर कर बढाने से राजस्व में कोई नुकसान नही होगा - नया शोध
१००० बीडियों पर यदि मौजूदा रुपया १४ से कर को बढ़ा कर रुपया १०० कर दिया जाए तब भी राजस्व की कोई हानी नही होगी, कहना है शोधकर्ताओं का। उसी तरह सिगरेट पर रुपया ३.५ प्रति सिगरेट यदि कर लिया जाए तब भी राजस्व की कोई हानी नही होगी, दावा है शोधकर्ताओं का.
परन्तु भारत के बजट २००८-२००९ में सिर्फ़ बिना फिल्टर वाली सिगरेट के कर को फिल्टर वाली सिगरेट के बराबर ही किया गया था। इतने शोध और आकड़ों के बाद भी भारत के बजट २००८-२००९ ने तम्बाकू पर कर को अपेक्षा के अनुरूप नही बढाया। भारत के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ अंबुमणि रामादोस ने बजट २००८-२००९ केपेश होने से पहले यह कहा था: "हमने विनती की है कि तम्बाकू पर कर को बढाया जाए जिससे कि तम्बाकू सेवन के दर में कमी हो"। हालांकि डॉ रामादोस की ये बात सिर्फ़ अखबारों की सुर्खियों में ही रह गई।
वर्त्तमान में सिगरेट पर कर इस बात से निर्धारित होता है कि उसमें फिल्टर है कि नही, और सिगरेट लम्बी कितनी है। सिगरेट में फिल्टर है या नही और वह कितनी लम्बी सिगरेट है, इन दोनों बातों का कर से कोई सीधा लेना-देना नही है यदि तम्बाकू सेवन को कम करना और तम्बाकू से होने वाले तमाम जान-लेवा बीमारियों को कम करना हमारा मकसद है. इस शोध में यह बात भी स्पष्ट रखी गई है कि यदि बिना तम्बाकू पर कर को बढाये ही तम्बाकू नियंत्रण करने का प्रयास किया जाएगा, तो वह प्रभावकारी नही रहेगा.
ये रोचक बात है कि हालांकि भारत में १५% तम्बाकू सेवन सिगरेट के रूप में होता है, फिर भी ८५% तम्बाकू-कर सिगरेट से आता है, और अन्य ८५% तम्बाकू सेवन भारत में गैर-सिगरेट तम्बाकू उत्पादन जैसे कि बीडी, गुटखा आदि के रूप में होता है, जिससे सिर्फ़ १५% तम्बाकू-कर प्राप्त होता है!
भारत नें विश्व तम्बाकू नियंत्रण संधि या फ्रेमवर्क कन्वेंशन ओं तोबक्को कंट्रोल [FCTC (Framework Convention on Tobacco Control)] पर न केवल हस्ताक्षर किया है बल्कि उसको पारित भी किया है। इस संधि के आर्टिकल ६ के अनुसार, भारत बाध्य है तम्बाकू के कर और कीमत को बढाने के लिए जिससे कि प्रभावकारी तम्बाकू नियंत्रण का स्वप्न पूरा हो सके.
फोटो-वाली चेतावनी असरकारी नही है: ऑस्कर फेर्नान्देस ने लोक सभा में कहा
भारत के श्रम और रोज़गार मंत्री ऑस्कर फेर्नान्देस ने २१ अप्रैल २००८ को लोक सभा में कहा कि तम्बाकू उत्पादनों पर फोटो-वाली चेतावनी प्रभावकारी नही हैं।
"जन स्वास्थ्य के लिए जो कदम उठाये जा रहे हैं जैसे कि तम्बाकू उत्पादनों पर फोटोवाली चेतावनी लगाना, यह तम्बाकू उद्योग पर कोई तुरंत आर्थिक प्रभाव नही करेंगे क्योकि तम्बाकू एक नशीला उत्पादन है और तमाम शोधों के अनुसार तम्बाकू की मांग को कम करने में काफ़ी समय लगता है "।
ऑस्कर फेर्नान्देस ने लोक सभा में यह भी कहा कि उनके मंत्रालय में कई संस्थाओं के प्रतिनाधि आए हैं और उन्होंने तम्बाकू की खेती करने वाले किसानों को जो रोज़गार में नुकसान होगा, उसके लिए चिंता जाहिर की है। जब तक तम्बाकू की खेती करने वाले किसानों के लिए वैकल्पिक रोज़गार की व्यवस्था नही हो जाती, तब तक कोई ऐसा कदम नही उठाना चाहिए जिससे कि भारी संख्या में किसानों का जीवन और स्वास्थ्य खतरे में पड़ जाए. जो संस्थाएं ऑस्कर फेर्नान्देस से मिलने आई थी, उनके नाम फेर्नान्देस ने लोक सभा में बताये: तोबक्को इन्स्तितुते ऑफ़ इंडिया (Tobacco Institute of India / भारतीय तम्बाकू संस्थान), फेडरेशन ऑफ़ फर्मेर्स असोसिएशन (Federation of Farmers असोसिएशन) आदि।
यह रोचक बात है क्योकि तोबक्को इन्स्तितुते ऑफ़ इंडिया तो तम्बाकू व्यापार के हितों के लिए ही कार्य करता है। इस इन्स्तितुते या संस्थान ने भारतीय तम्बाकू एवं अन्य उत्पादन अधिनियम २००३ को कमजोर करने में, और जितना विलम्ब हो सकता है, उतना विलम्ब करने में कोई कसार नही छोडी थी। यकीन न आए, तो १९९३ में छपा ये समाचार स्वयं पढ़ ले: क्लिक्क करें
फर्मेर्स फेडरेशन ऑफ़ इंडिया, की कहानी भी ऐसे ही धूमिल है: ये कोका कोला जैसी कंपनियों से पैसा ले के कार्य करती है। देश भर में किसान कोका-कोला कंपनी का विरोध कर रहे हैं, क्योकि कोका कोला ने भू-जल का दोहन करके पानी को गावं के लोगों की पहुच से बाहर कर दिया है, किसानों के खेतों में जहरीले कचरे को छोड़ कर खेतों को बंज़र कर दिया है, और अन्य ऐसा मानवाधिकार शोषण के मुद्दे हैं जिसके तहत किसानों के संगठन कोका-कोला संस्था का जबरदस्त विरोध कर रहे हैं। यह किस प्रकार का फर्मेर्स फेडरेशन ऑफ़ इंडिया है जो कोका कोला से पैसा ले के चलता है और तम्बाकू कंपनियों के हित की बात करता है?
ऑस्कर फेर्नान्देस जन-स्वास्थ्य पर कार्य कर रहे लोगों की बात को नकार के ऐसे संगठनों की बात को मान्यता दे रहे हैं जो तम्बाकू कंपनी या तम्बाकू कंपनियों के हितों की बात कर रहे हो!
सर्कस के टीबी-ग्रसित हाथियों से दर्शक खतरे में
सर्कस के टीबी-ग्रसित हाथियों से दर्शकों को भी टीबी होने का बहुत अधिक खतरा रहता है। १९९३-२००५तक दुनिया के कई प्रमुख सर्कस के हाथियों की रपट देखने के बाद और अन्य शोध के आधार पर ये तथ्यसामने आए हैं।
लगभग सभी प्रमुख सिर्चुसों में हाथियों को वही टीबी या तपेदिक जो मनुष्य को होती है, पायी गई है।जब सर्कस में खेल प्रदर्शन के दौरान हाथी मंच पर आते हैं, और चिंघाड़ते हैं तो सूँड से अपने गले के भीतरसे थूक की बौछार दर्शकों पर करते हैं, जिससे बच्चे विशेषकर प्रभावित होते हैं। ये सभी दर्शकों को, विशेषकर कि बच्चों को और उन लोगों को जिनके शरीर की प्रतिरोधक छमता कम है (जैसे कि जो लोगएच.आई.वी से ग्रसित हैं, या बुजुर्ग हैं, या बच्चे है, या अन्य रोग से ग्रसित हैं जिससे कि उनकी अपनेशरीर की प्रतिरोधक छमता पहले से ही कम है, ऐसे लोगों में टीबी संक्रमण फैलना का खतरा बहुतअधिक रहता है।
सर्कस के हाथियों में जब टीबी या तपेदिक पायी गई और वही टीबी या तपेदिक का कीटाणु जो मनुष्य कोहोता है, तब सर्कस के मालिकों ने मनुष्य वाली ही टीबी या तपेदिक की दवाएं हाथियों को भी दे दी।क्योकि हाथियों को कितनी मात्रा में टीबी या तपेदिक की दवा दी जाए ये ज्ञात नही था, तो अक्सरहाथियों पर इन दवायों ने असर करना बंद कर दिया। दवा देने में लापरवाही से भी ऐसा हो सकता है किटीबी या तपेदिक की दवाएं असर्दायक नही रहे। ऐसी स्थिति में ड्रग-रेसिस्तांस उत्पन्न हो जाती है, औरयदि ये हाथी किसी को टीबी या तपेदिक से संक्रमित करेंगे तो उसको भी ड्रग रेसिस्तंत वाली टीबी होजायेगी - यानि कि टीबी की दवा कारगर नही रहेगी।
न केवल दर्शक बल्कि सर्कस के अन्य कर्मचारी और जो लोग हाथियों के सम्पर्क में आते हैं, उनको भीटीबी या तपेदिक होने का खतरा है। ये भी चिंता का विषय है कि सर्कस एक जगह से दूसरी जगह घूमतेरहते है, और किसी भी एक शहर या कसबे में लंबे समय तक नही रहते। टीबी या तपेदिक का इलाज एकलंबे समय तक चलने वाला इलाज है और दवायों को नियमित रूप से लेना अति आवश्यक है। यह अपनेआप में एक चुनौती है कि कैसे इन तपेदिक या टीबी से ग्रसित हाथियों को सफलतापूर्वक टीबी का इलाजकरवाया जाए। यह व्यावहारिक है ही नही कि टीबी या तपेदिक से ग्रसित हाथियों को महीनों के लियेअस्पताल में भरती करवा दिया जाए, इसके लिये सर्कस के मालिक भी तैयार नही होंगे।
अमरीका के USDA को १५ साल से अधिक लग गए हैं, यदपि सबूत और शोध आदि १९९३ से थे किसर्कस के हाथियों को टीबी या तपेदिक हो तो मनुष्य को भी हो सकती है। सर्कस के हाथियों में टीबी यातपेदिक होने पर मनुष्य में संक्रमण के बारे में अधिक जानकारी के लिये, पढ़ें: दा एलेफंत इन दा रूम (The Elephant in the room).
सर्कस में हाथियों में टीबी या तपेदिक का दर ५०% से अधिक पाया गया है क्योकि हाथियों में आपस मेंही टीबी या तपेदिक बहुत आसानी से फैलती है, संभवत: इसलिए कि जिन हालातों में वो रहते हैं, वोटीबी या तपेदिक के संक्रमण को फैलने में और मददगार साबित होते हैं।
निमंतरण: ७वां जन-आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (NAPM) का राष्ट्रीय अधिवेशन
७वां जन-आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (NAPM) का राष्ट्रीय अधिवेशन
National Alliance of People's Movements (NAPM)
या जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय
7वां जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय का द्वि-वार्षिक अधिवेशन
स्थान: कुशीनगर, उत्तर प्रदेश (उप)
तिथि: ७ - ८ जून २००८
प्रिये साथियों,
जिन्दाबाद.
जैसा कि आपको ज्ञात होगा कि जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (napm या ‘समन्वय’) भारत के विभिन्न प्रदेशों में चल रहे जीवन और रोज़गार के अधिकार के लिए जन-आन्दोलनों को जोड़ता हुआ और वैकल्पिक उर्जा, पानी और कृषि के तरीकों को बढावा देने वालों को एक जुट करता हुआ स्थापित हुआ है.
‘समन्वय’ ने पिछले सालों में देश-भर में चल रहे अनेकों संघर्षों को मजबूत किया है, जोडा है और लोगों को जागरूक करने का सतत प्रयास किया है कि अधिकांश लोगों के हितों को नज़रंदाज़ करके चंद धनाढ्य और शक्तिशाली लोगों के मुनाफे के लिए किस तरह देश का ‘विकास’ किया जा रहा है.
सर. सलिया, डी. गब्रिएला, प. चेंनिः
आनंद मज्गओंकर, थॉमस कोचेर्री, अरुण रोय
संजय मग, उल्का महाजन, मुक्त श्रीवास्तव
गीता रामकृष्णन, पीटी हुसैन, उमा शंकरी
सुभाष वारे, नब कोहली, अमरनाथ भाई
केशव: ०९८३९८८३५१८, ईमेल: napmup@gmail.com
नन्दलाल मास्टर: ०९४१५३००५२०
उधय बहन: ०९९३५४४५४८९
मुक्त: ०९९६९५३००६०
सिम्प्रीत: ०९९६९३६३०६५
तपेदिक या टीबी समाचार: शनिवार, २६ अप्रैल २००८
शनिवार, २६ अप्रैल २००८
अफ्रीका के युगांडा देश के एक समाचार पत्र में छपे लेख में पत्रकार ने संगीन सवाल उठाया है: कि सदियों बाद भी क्यों संक्रामक रोग नियंत्रण नही हो पा रहा है जब कि इन संक्रामक रोगों का इलाज सैकडों सालों से सस्ता और उपलब्ध है।
उदाहरण के तौर पर मलेरिया, कुष्ठ रोग या लेप्रोसी, तुबेर्चुलोसिस या तपेदिक या टीबी, येलो फीवर, आदि।
इन सब बीमारियों से न केवल बचाव के प्रभावकारी तरीके आज हम सबको मालूम हैं, बल्कि इनके इलाज के लिये भी पुष्ट दवायों का इजात हुए सैकडों साल बीत चुके हैं। इसके बावजूद भी इन बीमारियों से आज भी युगांडा के लोगों को जूझना पड़ रहा है, और मलेरिया कई सालों से युगांडा में मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है। मलेरिया से युगांडा में ७०,००० - १,१०,००० लोगों की मृत्यु प्रति वर्ष होती है। युगांडा के स्वास्थ्य विभाग के अनुसार ९५% मलेरिया देश में पेरेनिअल है, यानी कि मच्छर का मौसम हो न हो, मलेरिया रोग का संक्रमण फ़ैल रहा है और लोग मर रहे हैं, और मात्र ५% मलेरिया ऐसा है जो मौसमी है!
युगांडा के स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि २०-२५% जो लोग अस्पताल में जाते हैं, उसका कारण मलेरिया है! और २०% अस्पताल में भरती होने वाले लोग भी मलेरिया के कारणवश भरती होते हैं। इनमे से ९-१४% मरीजों की मृत्यु जो अस्पताल में होती है, उसका कारण भी मलेरिया है।
मलेरिया से मृत्यु होने वालों में से अधिकांश बच्चे हैं। बच्चों में मौत का सबसे बड़ा कारण आज भी मलेरिया के साथ साथ कु-पोषण, बच्चों में होने वाली अनीमिया या खून में लौह की कमी, है जिससे बच्चे मानसिक रूप से कुंठित रह सकते हैं।
मलेरिया और तपेदिक या टीबी के लिए प्रभावकारी दवाओं से लोगों को रेसिस्तंस हो रही है यानि कि ये दवाएं उनपर कारगर नही रहती।
पौष्टिक अहार लेने से जो लोग एच.आई.वी से संक्रमित हैं या जिनको टीबी या तपेदिक है, वो कई बीमारियों से बचते हैं जिनमे पेरिफेरल नयूरोपैथी विशेष है।
अमरीका के ओहियो छेत्र में लोगों को ये लगने लगा है कि तपेदिक या टीबी टू १९वी सदी में खत्म हो चुकी है! जबकि ओहियो में ही लोग टीबी या तपेदिक से ग्रसित हैं और जूझ रहे हैं। अब ओहियो के स्वास्थ्य अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि लोग टीबी या तपेदिक की रोकधाम के लिए चौकन्ना रहे और हर सम्भव प्रयास करें कि टीबी या तपेदिक ओहियो में फैले नही और जो लोग इससे संक्रमित हैं, उनका पर्याप्त इलाज हो।
NREGS या राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना की उन्नाव में जनता जांच
वीरेंदर सिंह, ९९३५७८८४२०
अरुंधती धुरु, ९४१५०२२७७२, ईमेल: arundhatidhuru@yahoo.co.uk
संदीप, ईमेल: ashaashram@yahoo.com
National Alliance of People’s Movements, UP
(जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समंवाए, उत्तर प्रदेश)
विश्व मलेरिया दिवस (२५ अप्रैल २००८): मलेरिया से निबटने के लिए अधिक संसाधनों की और राजनीतिक समर्थन की आवश्यकता है
मलेरिया से निबटने के लिए अधिक संसाधनों की और राजनीतिक समर्थन की आवश्यकता है
विश्व मलेरिया दिवस, २५ अप्रैल २००८ के उपलक्ष्य में, विश्व स्वास्थ्य संगठन के दक्षिण-पूर्वी एशिया कार्यालय की विज्ञप्ति के अनुसार, मलेरिया एक ऐसा रोग है जिससे बचाव मुमकिन है और उपचार भी, परन्तु ठोस राजनीतिक समर्थन के और संसाधनों के अभाव में मलेरिया रोकधाम कार्यक्रम सफल नही रहे हैं.
दक्षिण पूर्वी एशिया में मलेरिया का दर एक जबरदस्त चुनौती दे रहा है जहाँ ८३ प्रतिशत जनसंख्या को मलेरिया रोग होने का खतरा रहता है. लगभग २० मिलियुन लोगों को प्रति वर्ष मलेरिया रोग होता है और इनमे से १००,००० लोग मलेरिया के कारणवश मृत्यु के शिकार हो जाते हैं.
आज हमारे पास मलेरिया की रोकधाम के लिए प्रभावकारी नए तरीके हैं और कार्यक्रम भी. परन्तु आर्थिक अभाव के कारणवश और पर्याप्त राजनीतिक समर्थन न होने के कारण मलेरिया कार्यक्रम प्रभावकारी ढंग से लागु नही किए जा रहे हैं. आवश्यकता है कि आर्थिक संसाधनों को मलेरिया कार्यक्रमों में निवेश के लिए एकजुट किया जाए और राजनीतिक समर्थन भी इन कार्यक्रमों को प्रदान किया जाए. ढीले-ढाले रवैये से मलेरिया कार्यक्रम लाभकारी नही सिद्ध होंगे, कहना है डॉ सम्ली प्लिंबंग्चंग का, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के दक्षिण-पूर्वी एशिया के कार्यालय के छेत्रिये निदेशक हैं.
जिन लोगों को मलेरिया का विशेष खतरा रहता है उनमें शामिल हैं: शहरों के स्लम में रहने वाले लोग, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग, जन-जाति, जो लोग काम के लिए एक जगह से दूसरी जगह पलायन करते हैं, कम आयु के लोग और जो लोग बॉर्डर पर रहते हैं.
दक्षिण-पूर्वी एशिया में अनेकों बार मलेरिया महामारी की तरह फैला है, जो जन-स्वास्थ्य को एक भायावाही चुनौती प्रस्तुत करता रहा है. इसमें से एक बड़ी मात्र में ऐसा मलेरिया है जो जंगल में रहने वाले मच्छरों से फैलता है और संक्रमित लोग जन-स्वास्थ्य कार्यक्रमों के लाभ से अक्सर वंचित रह जाते हैं.
दक्षिण-पूर्वी एशिया के सारे देशों में, सिवाय माल्दीव्स के, मलेरिया महामारी के रूप में फैला हुआ है और मलेरिया की रोकधाम अत्याधिक मुश्किल होती जा रही है.
इस छेत्र में ऐसे दो प्रकार के प्रमुख मलेरिया पाये जाते हैं - घातक मलेरिया प्लास्मोदियम फल्सिपरुम और ऐसा मलेरिया जिससे दुबारा मलेरिया होने का खतरा रहता है: प्लास्मोदियम विवक्स. इनसे न केवल स्वास्थ्य को नुकसान होता है बल्कि मलेरिया से लोगों के रोज़गार पर प्रभाव पड़ता है और आर्थिक रूप से भी लोग इस रोग का कु-प्रभाव झेलते हैं.
ऐसा मलेरिया जो मलेरिया की दवा से रेसिस्तंत हो जाता है, यानि कि मलेरिया की दवा - क्लोरो-कुयिन - उसपर असरदायक नही रहती, इस पूरे दक्षिण पूर्वी एशिया में फ़ैल चुका है. क्लोरो-कुयिन सबसे प्रचलित और सस्ती मलेरिया की दवा है.
मुलती - ड्रग रेसिस्तंत मलेरिया से खतरा कई गुणा बढ़ता जा रहा है. जरुरत है कि हर सम्भव प्रयास किया जाए जिससे मलेरिया रोकधाम के कार्यक्रम अधिक-से-अधिक प्रभावकारी बन सके.
तपेदिक या टीबी समाचार: २४ अप्रैल २००८
२४ अप्रैल २००८
अमरीका के मिनेसोटा प्रदेश में गाय-भैसों-हिरणों में तपेदिक या टीबी से निबटने के लिए १०२८ हिरणों को मारदिया गया है। गाय-भैसों-हिरणों को जो तपेदिक या टीबी होती है, उसको बोवैन टीबी कहते हैं। इन पशुओं से टीबीमनुष्य को भी हो सकती है यदि मनुष्य या तो इन पशुओं के सम्पर्क में आ जाए या कच्चा दूध पी ले। पस्तुएरिज़ेद्मिल्क या दूध पीने से बोवैन टीबी फैलने का खतरा नही होता है।
अमरीका के दूसरे प्रदेश फ्लोरिडा में एकलौता टीबी या तपेदिक का अस्पताल बंद होने का कगार पर है। इसअस्पताल को प्रदेश का प्रशासन बंद करने पर उतारू है क्योकि प्रसाशन का कहना है कि जब अमरीका का अन्यप्रदेशों में तपेदिक या टीबी का अस्पताल नही है तो फ्लोरिडा में ही क्यो टीबी या तपेदिक के लिए विशेष तौर परअस्पताल हो।
फ्लोरिडा में और अमरीका के अन्य प्रदेशों में टीबी या तपेदिक के इलाज को अन्य अस्पतालों में शामिल कर लियागया था जिसके कारणवश अलग से टीबी या तपेदिक के अस्पताल की आवश्यकता नही रही। ऐसा करना कईसालों पहले इसलिए स्वाभाविक लग रहा था क्योकि तपेदिक या टीबी का दर अमरीका में काफी नगण्य हो रहा था, और अमरीकी जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों को लगने लगा था कि टीबी या तपेदिक का खतरा अमरीका में नही है।उदाहरण के तौर पर १९५० में बोवैन टीबी अमरीका में ये मान ली गई थी कि वो खत्म हो चुकी है, और १९७० केदशक में जब बोवैन टीबी का दर बढ़ने लगा तो अमरीका चेता कि टीबी वापस आ रही है। एच.आई.वी ने नि:संदेहटीबी दर को बढ़ने में आग में घी का काम किया है।
परन्तु अब ऐसा नही है क्योकि टीबी या तपेदिक विसेश्कर कि ऐसी टीबी या तपेदिक जिसका इलाज मुमकिन नहीहै, वो अब वापस आ गई है। कोई देश दुनिया में ऐसा नही है जो ये कह सके कि टीबी या तपेदिक का खतरा उस देशमें नही है।
अफ्रीका के रवांडा देश में सरह्निये टीबी या तपेदिक नियंत्रण कार्यक्रम चल रहा है। २००६ में ही रवांडा ने तपेदिक याटीबी के मरीजों को सफलता पूर्वक ठीक करने के लक्ष्य को पूरा कर लिया था। विश्व स्तर पर सब देशों ने ये वादाकिया है कि ७०% टीबी या तपेदिक के मरीजों की सफलता पूर्वक जांच की जायेगी और ८५% टीबी के मरीजों कोसफलता पूर्वक इलाज कराया जाएगा। रवांडा ने ८५% से बढ़ के ८६% टीबी या तपेदिक के चिन्हित हुए मरीजों कीजांच की है जो नि:संदेह सरह्निये कार्य है।
परन्तु बढ़ते हुए ड्रग रेसिस्तंत तपेदिक या टीबी और एच.आई.वी संक्रमण से ये सफलता बरक़रार रखना एकचुनौती पूर्ण कार्य है।
अब रवांडा में वन-स्टॉप सर्विस कार्यक्रम लागु किया जा रहा है जिसके तहत टीबी की जांच करने वाली नर्स इतनीकुशल होगी कि एच.आई.वी की जांच ही नही कर सके बल्कि गुणात्मक दृष्टि से परामर्श भी दे सके।
जेलों में प्रभावकारी तम्बाकू नियंत्रण के लिए कुछ सुझाव
११ फरवरी २००८ को मैंने ६३ ऐसे कार्यक्रमों को पूरा संपन्न कर लिया है जिनमें अमरीका के दक्षिण कैरोलाइना के २८ प्रादेशिक जेलों में जो लोग तम्बाकू नशे से ग्रस्त हैं, उनको नशे-से-छुटकारा प्राप्त करने में हर संभव मदद मिलती हैं. तम्बाकू-किल्ल्स पर भारत के जेलों में प्रभावकारी तम्बाकू नियांतरण के लिए जो चर्चा हो रही है, उसमे में मैं भी भाग लेना चाहूँगा.
(Nicotine cessation educator)
संपादक: www.WhyQuit.com
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