तम्बाकू पर कर बढाने से राजस्व में कोई नुकसान नही होगा - नया शोध
१००० बीडियों पर यदि मौजूदा रुपया १४ से कर को बढ़ा कर रुपया १०० कर दिया जाए तब भी राजस्व की कोई हानी नही होगी, कहना है शोधकर्ताओं का। उसी तरह सिगरेट पर रुपया ३.५ प्रति सिगरेट यदि कर लिया जाए तब भी राजस्व की कोई हानी नही होगी, दावा है शोधकर्ताओं का.
परन्तु भारत के बजट २००८-२००९ में सिर्फ़ बिना फिल्टर वाली सिगरेट के कर को फिल्टर वाली सिगरेट के बराबर ही किया गया था। इतने शोध और आकड़ों के बाद भी भारत के बजट २००८-२००९ ने तम्बाकू पर कर को अपेक्षा के अनुरूप नही बढाया। भारत के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ अंबुमणि रामादोस ने बजट २००८-२००९ केपेश होने से पहले यह कहा था: "हमने विनती की है कि तम्बाकू पर कर को बढाया जाए जिससे कि तम्बाकू सेवन के दर में कमी हो"। हालांकि डॉ रामादोस की ये बात सिर्फ़ अखबारों की सुर्खियों में ही रह गई।
वर्त्तमान में सिगरेट पर कर इस बात से निर्धारित होता है कि उसमें फिल्टर है कि नही, और सिगरेट लम्बी कितनी है। सिगरेट में फिल्टर है या नही और वह कितनी लम्बी सिगरेट है, इन दोनों बातों का कर से कोई सीधा लेना-देना नही है यदि तम्बाकू सेवन को कम करना और तम्बाकू से होने वाले तमाम जान-लेवा बीमारियों को कम करना हमारा मकसद है. इस शोध में यह बात भी स्पष्ट रखी गई है कि यदि बिना तम्बाकू पर कर को बढाये ही तम्बाकू नियंत्रण करने का प्रयास किया जाएगा, तो वह प्रभावकारी नही रहेगा.
ये रोचक बात है कि हालांकि भारत में १५% तम्बाकू सेवन सिगरेट के रूप में होता है, फिर भी ८५% तम्बाकू-कर सिगरेट से आता है, और अन्य ८५% तम्बाकू सेवन भारत में गैर-सिगरेट तम्बाकू उत्पादन जैसे कि बीडी, गुटखा आदि के रूप में होता है, जिससे सिर्फ़ १५% तम्बाकू-कर प्राप्त होता है!
भारत नें विश्व तम्बाकू नियंत्रण संधि या फ्रेमवर्क कन्वेंशन ओं तोबक्को कंट्रोल [FCTC (Framework Convention on Tobacco Control)] पर न केवल हस्ताक्षर किया है बल्कि उसको पारित भी किया है। इस संधि के आर्टिकल ६ के अनुसार, भारत बाध्य है तम्बाकू के कर और कीमत को बढाने के लिए जिससे कि प्रभावकारी तम्बाकू नियंत्रण का स्वप्न पूरा हो सके.