पोस्को दरियादिली से नही, धूर्त योजना-तहत विस्थापित लोगों को मुआवजा दे रहा है
- एक और पनपता हुआ आर्थिक घोटाला - संदीप दासवर्मा और डॉ सनत मोहंती
संदीप दासवर्मा और सनत मोहंती ने इसके पहले भी तीन गहन अध्यन के बाद उड़ीसा में पोस्को के स्टील से संबंधित लेख लिखे हैं। उनके पढने के लिए यहाँ क्लिक्क करें:
Orissa: An Economic Scam Coming?
POSCO Project is not an unquestionable boon for OrissaWho will gain from the POSCO Project in Orissa?
रीडिफ़ न्यूज़ ने हाल ही में रिपोर्ट किया कि पोस्को (POSCO) कंपनी, जो उड़ीसा प्रदेश में १२ बिलियुन अमरीकी डालर का स्टील प्लांट लगा रही है, वो इस प्लांट से विस्थापित होने वाले लोगों को बढ़ा के मुआवजा देने को राज़ी है.
ये निर्णय पोस्को का किसी दरियादिली से नही प्रेरित है और न ही किसी सामाजिक न्याय की भावना से, बल्कि ये एक सोची-समझी धूर्त योजना-तहत किया जा रहा है जिससे लोगों का ध्यान इस प्रोजेक्ट से संबंधित आर्थिक, मानवाधिकार से संबंधित घोटाले पर न जाए. पहले प्रकाशित रपट से ये स्थापित हो चुका है कि पोस्को को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार के मूल्य की तुलना में ०.५ प्रतिशत से भी कम दम में लोहे के ओर मिल रहे हैं!
पहले जो डील हुई थी उसके अनुसार पोस्को उड़ीसा सरकार को लोहे के ओर के लिए आधा (०.५) अमरीकी डालर प्रति टन का मूल्य दे रही थी. जब कि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में लोहे के ओर का मूल्य १०० अमरीकी डालर प्रति टन है! इससे उड़ीसा सरकार को प्रोजेक्ट की अवधि में कुल मिलकर रुपया १,६२० करोड़ प्राप्त हुआ होता. यदि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार के मूल्य पर पोस्को उड़ीसा सरकार से लोहे के ओर ख़रीदे, तो उड़ीसा सरकार को प्रोजेक्ट की अवधि में रुपया १,६२० करोड़ के बजे रुपया २८८,००० करोड़ प्राप्त होगा!!!
पोस्को का जो समझौता (मेमोरंदुम ओएफ उन्देर्स्तान्डिंग) उड़ीसा सरकार के साथ २००५ में हुआ था, तब से अब तक लोहे के और का मूल्य ७० प्रतिशत तक बढ़ चुका है!!!
इस प्रोजेक्ट की अप्रत्यक्ष कीमत उड़ीसा सरकार को देनी पड़ेगी, वो अलग! हजारों एकड़ जमीन, करोड़ों लीटर पानी जो लगभग मुफ्त में कंपनी जमीन के भीतर से दोहन करेगी, कोयला जो बेहद कम मूल्य पर दिया जा रहा है और जो कर में नुकसान होगा क्योकि पोस्को को स्पेशल इकनॉमिक ज़ोन (sez) का दर्जा प्राप्त है, इससे उड़ीसा सरकार का नुकसान और अधिक होने को है, और जिसका कु-परिणाम उड़ीसा के लोग भी झेलेंगे.
ताज्जुब की बात ये है कि उड़ीसा सरकार अब भी ये जिरह करती है कि पोस्को प्रोजेक्ट उसके लिए लाभदायक है!!! हालांकि जो लोग अच्छी तरह से समझ गए हैं कि पोस्को प्रोजेक्ट से उनको नुकसान होने वाला है, वो तमाम धमकियों के या पैसे/ नौकरी के लोभ को ठुकरा कर इसका भरसक विरोध कर रहे है.
पिछले तीन सालों से पोस्को उड़ीसा प्रदेश सरकार और भारत की केंद्रीय सरकार की मदद से ये कृषि योग्य जमीन को कब्जियाने का पूरा मगर अभी-तक-असफल प्रयास कर रही है. इसके विरोध में जब जन-आन्दोलन खड़ा होने लगा तो प्रदेश सरकार ने बर्बरता से इसको दबाने का प्रयास किया. पिछले ४ महीनों से १८ पोलीस के बतालियून इन गावं को घेरे बैठे है, और सरकारी स्कूल की इमारतों को कब्जा रखा है. एन गावं में प्रसाशन ने जरुरत के समान आदि का जाना भी बंद कर रखा है जिससे कि लोग विवश हों और गावं छोड़ने को राज़ी हों! ये प्रमाण काफ़ी ठोस है कि लोगों को इस प्रोजेक्ट से होने वाले कु-प्रभाव का अधिक ज्ञान है कि तमाम जोर, जबरदस्ती, कष्ट, लोभ और प्रलोभन के बावजूद भी जन-आन्दोलन मजबूती से पोस्को और सरकार को चुनौती दे रहा है. १३,००० नौकरी के प्रलोभन को भी अधिकांश लोगों ने दुत्कार दिया है. लोगों का ये विश्वास कि जितने रोज़गार के माध्यम खत्म हो जायेंगे, उसकी तुलना में बहुत कम रोज़गार के माध्यम उत्पन्न होंगे, लोगों की समझदारी की मिसाल है.
१ अप्रैल २००८ को पोस्को ने एक बड़े स्तर पर भूमि-पूजन कार्यक्रम का आयोजन करने का प्रयास किया था. हजारों की तादाद में लोगों ने जबरदस्त पोलीस की उपस्थिति के बावजूद भी रैली निकली. पोस्को ने भूमिपूजन के कार्यक्रम को रद्द कर दिया ये कहते हुए कि सरकारी मंजूरी नही आ पायी है.
ये इस सन्दर्भ में समझना जरूरी है कि पोस्को को कई कई गुणा अधिक मुनाफा इस डील से होने को है और इसीलिए वो आसानी से विस्थापित लोगों को बढ़ा चढा के मुआवजा देने को राज़ी है जिससे लोगों का ध्यान इस पनपते हुए आर्थिक घोटाले पर न जाए. ये भी स्पष्ट है कि उड़ीसा सरकार और पोस्को कंपनी दोनों इस डील में भीतर से मिले हुए हैं, क्योकि ये सम्भव है ही नही कि उड़ीसा सरकार को इस डील से होने वाले नुकसान का ज्ञान न हो. जो विस्थापन का मुआवजा आदि है, उसकी कीमत बहुत कम है यदि इस डील से होने वाले मुनाफे पर ध्यान दिया जाए और ये भी रोशन किया जाए कि किन औने-पौने दाम में पोस्को को और और अन्य संसाधन और व्यवस्था आदि उपलब्ध करायी जा रही है.
अब बहुत सीमित विकल्प हैं यदि सूरत-इ-हाल में कोई बदलाव लाना है तो. दुर्भाग्य से मीडिया ने इस पोस्को प्रोजेक्ट के विरोध में हो रहे प्रदर्शन को ‘विकास-में-अवरोध’ की तरह रिपोर्ट किया है और पोस्को प्रोजेक्ट की आर्थिक मूल्यांकन का खुलासा नही किया है. उड़ीसा प्रदेश में जो लोग पढे-लिखे हैं उनको ये लग रहा है कि ‘कम-से-कम कुछ करोड़ पैसा तो प्रदेश में आएगा’. यदि कोई उम्मीद है तो उड़ीसा के लोगों में यदि वो पोस्को को अहिंसक ढंग से ललकारें और सरकार को विवश करें कि वो प्रदेश के और लोगों के हित में निर्णय ले और इस तरह के घोटाले को होने से रोके.