मौसम में बदलाव से जन-स्वास्थ्य प्रभावित होगा इस साल विश्व स्वास्थ्य दिवस (७ अप्रैल २००८) पर केंद्रीय विचार है:
कैसे मौसम में बदलाव से जन-स्वास्थ्य को सुरक्षित रखा जाए.
विश्व में जन स्वास्थ्य पर मौसम में बदलाव से खतरा मंडरा रहा है.
दंगे-फसादों में, और प्राकृतिक विपदाओं में जैसे कि बाढ़ आदि में न केवल स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा जाती है बल्कि संक्रामक रोगों के फैलने का खतरा भी बढ़ जाता है, विशेषकर कि वो बीमारियाँ जो पानी से फलती हैं.
जिन लोगों को लंबे समय तक नियमित रूप से उपचार या देखभाल की आवश्यकता हो, या जो दवा में नागा नही कर सकते हों, उन लोगों के लिए दंगे-फसादों में या प्राकृतिक विपदा में (बाढ़, भूकंप, सुनामी आदि) के दौरान स्वास्थ्य केन्द्र तक पहुचना ही दुर्लभ हो जाता है.
उदाहरण के तौर पर जो लोग तपेदिक या छय रोग या टी.बी. से संक्रमित हैं, वो अपनी दवा समय से नही ले पाते जिसकी वजह से टी.बी. दवाओं के विरुद्ध उनकी रेसिस्टांस बन सकती है जिसके बाद ये दवा उनपर कारगर नही रहती. उसी तरह जो लोग एच.आई.वी. से संक्रमित हैं, उन लोगों के लिए भी नियमित उपचार करना, अवसरवादी संक्रमणों की जांच कराना, आदि दुर्लभ हो जाता है, खासकर कि वो लोग जो एच.आई.वी. के साथ जीवित हैं और एंटी-रेतरो-वाइरल दवा पर हैं उनके लिए दवा में नागा बहुत संगीन बात है.
प्राकृतिक विपदाएं न केवल संक्रामक रोगों के फैलने का खतरा बढ़ा देती हैं बल्कि ऐसे हालात पैदा कर देती हैं कि हाशिये पर रह रहे लोगों की इन बीमारियों से शिकार हो जाने की सम्भावना बढ़ जाती है.
अक्सर प्राकृतिक विपदाओं में स्वास्थ्य व्यवस्था स्वयं ही कुंठित हो जाती है या स्वास्थ्य-कर्मियों के लिए भी खतरा बन जाता है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि संक्रामक रोगों की प्रभावकारी रोकधाम से और जमीन और पानी के पर्याप्त और उचित इस्तेमाल से प्राकृतिक विपदाओं से निबटने में मदद हो सकती है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की महा-निदेशक डॉ मार्गरेट चान का कहना है कि बिगड़ते मौसमी बदलाव से स्वस्थ्य जीवन के लिए बेहद-आवश्यक - भोजन, वायु और पानी - कु-प्रभावित होगा.
जिन देशों में, जैसे कि भारत, जहाँ स्वास्थ्य प्रणाली कमजोर है, वहाँ इसका कु-प्रभाव सबसे अधिक गंभीर होगा.
ऐसे बिगड़ते मौसमी बदलाव से अस्थमा जैसी बीमारियाँ रफ़्तार पकड़ सकती हैं. ३० करोर लोगों से अधिक में अस्थमा पाया जाता है और लगभग २.५ लाख लोगों की मृत्यु अस्थमा से २००५ में हुई थी. ये मृत्यु डर २० प्रतिशत बढ़ सकता है यदि पर्याप्त प्रबंध नही किए गए तो.
भले ही मनुष्य हर सम्भव प्रयास कर ले, मौसमी बदलाव को पलटने में वर्षों लग सकते हैं जिनमे पानी और जमीन के बेहतर और पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल इस्तिमाल शामिल है.
परन्तु भारत में गाड़ियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है, जिससे प्रदूषण बढ़ रहा है, जमीन खासकर कि कृषि योग्य जमीन को स्पेशल इकनॉमिक ज़ोन या SEZ के तहत उद्योगीकरण के लिए दे दिया जा रहा है और पानी के निजीकरण से खासकर कि गरीब किसान पानी को मोहताज हो गए हैं.
आशा है कि विश्व स्वास्थ्य दिवस पर भारत सरकार इसको गंभीरता से लेगी और जन-हित में जन-हितैषी नीतियों पर अमल करेगी.