चंडीगढ़ में ११% तपेदिक या टी।बी से ठीक हुए लोगों को दुबारा हो गई टी.बी
चंडीगढ़ में तपेदिक या टी.बी नियंत्रण कार्यक्रम काफ़ी ठीक-ठाक माना जाता है और भारत में संभवत: सबसे कुशल कार्यक्रमों में से एक है। परन्तु वहाँ पर भी जिन लोगों में तपेदिक या टी.बी पायी गई थी और जिन्होंने अपना पूरा इलाज भी करवाया था, उनमे से ११% लोगों को दुबारा टी.बी या तपेदिक हो गई है!
इसका कारण डॉक्टर लोग बताते है कि जिन हालातों में ये लोग रहते हैं, वहाँ पर दुबारा टी.बी होने का खतरा अत्याधिक होता है। उदाहरण के तौर पर झोपडियों में, झुग्गियों में, बस्तियों में रहने वाले लोगों को खतरा अधिक इसलिए होता है क्योकि जिन हालातों में वो रहते हैं वह संक्रामक रोग अधिक तेज़ी से फैलते हैं। उसी तरह शराब आदि पीने से भी या धूम्रपान से भी टी.बी या तपेदिक होने का खतरा बढ़ जाता है। आइच.आई.वी होने से भी टी.बी या तपेदिक होने का खतरा बढ़ जाता है। उसी तरह नशीले मादक पदार्थों का सेवन करने से भी टी.बी, आइच.आई.वी और हेपेटाइटिस सी होने का खतरा बढ़ जाता है। चंडीगढ़ में अब टी.बी या तपेदिक के मरीजों को आइच.आई.वी की जांच और आइच.आई.वी से ग्रसित लोगों को टी.बी या तपेदिक की जांच करायी जाती है, जिससे समय रहते उचित इलाज आदि हो सके.
पिछले कुछ सालों तक विश्व के १/३ टी.बी या तपेदिक से ग्रसित लोग भारत में ही हुआ करते थे। हाल ही में प्रकाशित हुई विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट 'एंटी-तुबेर्चुलोसिस दृग रेसिस्तांस इन थे वर्ल्ड' (Anti-Tuberculosis drug-resistance in the world) (२००८) या 'टी.बी या तपेदिक की दवाओं सेरेसिस्तंत होने की रिपोर्ट' के अनुसार विश्व के वो लोग जो टी.बी से ग्रसित हैं और उनपर टी.बी की दावा कारगर नही रही है, उनकी संख्या २०% से अधिक है!