संदीप दासवर्मा और डॉ सनत मोहंती
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जिस कीमत पर उड़ीसा सरकार पोस्को को लोहे का ओर दे रही है, वो अन्तर-राष्ट्रीय बाज़ार में लोहे के ओर की कीमत की ५ प्रतिशत है. जो सरकार, अपने प्रदेश के हित के लिए संग्रक्षक होनी चाहिए, वो पोस्को के लिए क्यो अपने ही हितों को तिलांजलि देने पे उतारू है?
जैसा कि हर आर्थिक योजना में होना चाहिए, उड़ीसा सरकार को न केवल पोस्को से सौदा करते वक्त लोहे के ओर की कीमत देखनी चाहिए (जो काफ़ी कम है), बल्कि और भी लाभ जो उड़ीसा प्रदेश के निवासियों को मिलेंगे, उनपर भी गहन विचार होना चाहिए.
पोस्को डील से उड़ीसा सरकार को सीधी तरह से नुकसान हो रहा है क्योकि जिस कीमत पर लोहे के ओर वो पोस्को को दे रही है, वो बाज़ार में लोहे की ओर की कीमत से बहुत कम है. अब ये देखा जाए कि इस प्रोजेक्ट से उड़ीसा में क्या अन्य अप्रत्यक्ष लाभ होंगे? जैसे कि लोगों को रोज़गार मिलना, प्रदेश में व्यवस्था आदि का बनना, इतियादि।
पोस्को ने उड़ीसा प्रदेश में स्टील प्लांट को स्थापित करने के लिए रुपया ४८,००० करोड़ का निवेश करने का वादा किया है. उड़ीसा प्रदेश का सालाना बजट रुपया ४,५०० करोड़ का है. ये मान भी लिया जाए कि इस प्रोजेक्ट में १०,००० उड़ीसा के लोगों को रोजगार मिलेगा (हालांकि आजकल मशीन के युग में ये संख्या बहुत अधिक है) और हर व्यक्ति को महीने का रुपया १०,००० मिलेगा (ये रकम भी अधिक है), तो भी आने वाले ३० साल तक लगभग रुपया ३,५०० करोड़ ही होता है. इसके अलावा स्कूल, अन्य लघु-व्यापर आदि भी पनपेंगे जब इतना बड़ा स्टील प्लांट बनेगा. रोड, स्कूल, बिजली आदि की व्यवस्था बढ़िया होनी चाहिए यदि ये प्लांट बनता है तो, जिसका लाभ उड़ीसा प्रदेश के निवासियों को भी मिलेगा. इन सब पर लगभग ५ प्रतिशत ही खर्च होगा, बाकि का ९५ प्रतिशत निवेश मशीन आदि में होगा जिसका सीधा लाभ लोगों तक नही पहुचेगा.
और इन अप्रत्यक्ष लाभ के अलावा उड़ीसा सरकार को लोहे के ओर के लिए बाज़ार के मुल्ये की तुलना में मात्र ५ प्रतिशत ही रकम मिलेगी.
इस प्रोजेक्ट के लिए ५००० एकड़ जमीन उपलब्ध कराने में हजारों लोग विस्थापित होंगे, जैसा कि अनेकों सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है. चूँकि पिछले ऐसे प्रोजेक्ट से जो लोग विस्थापित हुए हैं, वो आज तक पुनर्स्थापित नही हो पाये हैं, इस बात की सम्भावना कम है कि पोस्को प्रोजेक्ट से विस्थापित होने वाले लोगों को ठीक तरीके से पुनर्स्थापित किया जाएगा.
इसके अलावा ये हजारों लोग जो विस्थापित होंगे, वें अपनी जमीनों पर रह के खेती-बाडी कर के जीवन-यापन कर रहे थे. जब ये लोग विस्थापित होंगे तो इनके लिए वैकल्पिक रोज़गार की व्यवस्था करने में और शहरों में पुनर्स्थापित करने में जो खर्चा आएगा वो उड़ीसा सरकार ने पोस्को प्रोजेक्ट की रपट में नही जोडा है.
२००७ में उड़ीसा सरकार ने निजी कंपनियों को ४.७६ करोड़ टन लोहे का ओर रुपया २७ प्रति टन के दाम पर बेचा था, जिससे बाज़ार के मूल्य की तुलना करने पर रुपया १०,००० करोड़ का नुकसान सामने आता है.
ये बड़े आर्थिक घोटाले को ढंकने के लिए लगता है कि उड़ीसा सरकार और पोस्को कंपनी विस्थापित लोगों को मुआवजा दे देगी.
दो महत्वपूर्ण सवाल ये भी है कि जो लोग पोस्को प्रोजेक्ट से विस्थापित हो रहे हैं उनको जमीन का बाज़ार वाला मूल्य मिलना चाहिए, और ये भी विचार होना चाहिए कि जो लोग इस प्रोजेक्ट से विस्थापित हो रहे हैं, क्या ये प्रोजेक्ट उनको भी लाभान्वित करता है?
हिमांशु ठाकर ने इस पोस्को प्रोजेक्ट से जल-स्तर पर पड़ने वाले असर पर एक मूल्यांकन किया है. पोस्को की वेबसाइट पर लिखा है कि वो इस प्रोजेक्ट में जमीन के भीतर से प्रति दिन २५ करोड़ लीटर पानी निकालेगी. इतनी बड़ी संख्या में पानी निकालने पर नि:संदेह जल-स्तर नीचे चला जाएगा और स्थानिये लोगों को पानी नही मिल पायेगा. इस पानी से पोस्को लोहे के ओर को साफ करने में और स्टील प्रोसेस करने में इस्तिमाल करेगी. इसके बाद ये पानी कैसे साफ किया जाएगा जिससे कि जब ये प्लांट से बाहर निकले तो नुकसानदायक न हो, इस बात पर कोई विचार नही किया
उड़ीसा सरकार ने बहुत ही कम दाम पर पोस्को को कोयला देने का भी वादा किया है.
भारत की केंद्रीय और प्रदेश सरकारों ने पोस्को के स्टील प्लांट को और पोस्को के निजी पोर्ट को S.E.Z. याspecial economic Zone या विशेष आर्थिक ज़ोन का दर्जा भी प्रदान कर दिया है, जिससे कि पोस्को को बिक्री-कर और आयात कर नही देना पड़े! इससे भारत की केंद्रीय सरकार को रुपया ८९,००० करोड़ का नुकसान और उड़ीसा प्रदेश सरकार को रुपया २२,५०० करोड़ का नुकसान होगा, क्योकि यदि पोस्को को SEZ का दर्जा नही मिला होता तो उसने ६ अरब डालर की मशीन को आयात करने में रुपया २,४०० से ३,६०० करोड़ टैक्स सरकार को दिया होता, जैसे कि अन्य कम्पनियाँ देती हैं (टाटा, मित्तल आदि).
अब से साफ ज़ाहिर है कि इस प्रोजेक्ट का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाभ उतना नही है जितना कि बताया जा रहा है:
उड़ीसा सरकार अपने ही प्रदेश निवासियों के हितों को नज़रंदाज़ कर रही है. यदि उड़ीसा सरकार अपने लोहे के ओर को पोस्को को इतने नुकसान पर देने की बजाय बाज़ार में बेचे तो कहीं अधिक लाभ मिलेगा.
संदीप दासवर्मा और डॉ सनत मोहंती