विश्व मलेरिया दिवस (२५ अप्रैल २००८)
मलेरिया से निबटने के लिए अधिक संसाधनों की और राजनीतिक समर्थन की आवश्यकता है
विश्व मलेरिया दिवस, २५ अप्रैल २००८ के उपलक्ष्य में, विश्व स्वास्थ्य संगठन के दक्षिण-पूर्वी एशिया कार्यालय की विज्ञप्ति के अनुसार, मलेरिया एक ऐसा रोग है जिससे बचाव मुमकिन है और उपचार भी, परन्तु ठोस राजनीतिक समर्थन के और संसाधनों के अभाव में मलेरिया रोकधाम कार्यक्रम सफल नही रहे हैं.
दक्षिण पूर्वी एशिया में मलेरिया का दर एक जबरदस्त चुनौती दे रहा है जहाँ ८३ प्रतिशत जनसंख्या को मलेरिया रोग होने का खतरा रहता है. लगभग २० मिलियुन लोगों को प्रति वर्ष मलेरिया रोग होता है और इनमे से १००,००० लोग मलेरिया के कारणवश मृत्यु के शिकार हो जाते हैं.
आज हमारे पास मलेरिया की रोकधाम के लिए प्रभावकारी नए तरीके हैं और कार्यक्रम भी. परन्तु आर्थिक अभाव के कारणवश और पर्याप्त राजनीतिक समर्थन न होने के कारण मलेरिया कार्यक्रम प्रभावकारी ढंग से लागु नही किए जा रहे हैं. आवश्यकता है कि आर्थिक संसाधनों को मलेरिया कार्यक्रमों में निवेश के लिए एकजुट किया जाए और राजनीतिक समर्थन भी इन कार्यक्रमों को प्रदान किया जाए. ढीले-ढाले रवैये से मलेरिया कार्यक्रम लाभकारी नही सिद्ध होंगे, कहना है डॉ सम्ली प्लिंबंग्चंग का, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के दक्षिण-पूर्वी एशिया के कार्यालय के छेत्रिये निदेशक हैं.
जिन लोगों को मलेरिया का विशेष खतरा रहता है उनमें शामिल हैं: शहरों के स्लम में रहने वाले लोग, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग, जन-जाति, जो लोग काम के लिए एक जगह से दूसरी जगह पलायन करते हैं, कम आयु के लोग और जो लोग बॉर्डर पर रहते हैं.
दक्षिण-पूर्वी एशिया में अनेकों बार मलेरिया महामारी की तरह फैला है, जो जन-स्वास्थ्य को एक भायावाही चुनौती प्रस्तुत करता रहा है. इसमें से एक बड़ी मात्र में ऐसा मलेरिया है जो जंगल में रहने वाले मच्छरों से फैलता है और संक्रमित लोग जन-स्वास्थ्य कार्यक्रमों के लाभ से अक्सर वंचित रह जाते हैं.
दक्षिण-पूर्वी एशिया के सारे देशों में, सिवाय माल्दीव्स के, मलेरिया महामारी के रूप में फैला हुआ है और मलेरिया की रोकधाम अत्याधिक मुश्किल होती जा रही है.
इस छेत्र में ऐसे दो प्रकार के प्रमुख मलेरिया पाये जाते हैं - घातक मलेरिया प्लास्मोदियम फल्सिपरुम और ऐसा मलेरिया जिससे दुबारा मलेरिया होने का खतरा रहता है: प्लास्मोदियम विवक्स. इनसे न केवल स्वास्थ्य को नुकसान होता है बल्कि मलेरिया से लोगों के रोज़गार पर प्रभाव पड़ता है और आर्थिक रूप से भी लोग इस रोग का कु-प्रभाव झेलते हैं.
ऐसा मलेरिया जो मलेरिया की दवा से रेसिस्तंत हो जाता है, यानि कि मलेरिया की दवा - क्लोरो-कुयिन - उसपर असरदायक नही रहती, इस पूरे दक्षिण पूर्वी एशिया में फ़ैल चुका है. क्लोरो-कुयिन सबसे प्रचलित और सस्ती मलेरिया की दवा है.
मुलती - ड्रग रेसिस्तंत मलेरिया से खतरा कई गुणा बढ़ता जा रहा है. जरुरत है कि हर सम्भव प्रयास किया जाए जिससे मलेरिया रोकधाम के कार्यक्रम अधिक-से-अधिक प्रभावकारी बन सके.