तपेदिक या टीबी समाचार
२४ अप्रैल २००८
अमरीका के मिनेसोटा प्रदेश में गाय-भैसों-हिरणों में तपेदिक या टीबी से निबटने के लिए १०२८ हिरणों को मारदिया गया है। गाय-भैसों-हिरणों को जो तपेदिक या टीबी होती है, उसको बोवैन टीबी कहते हैं। इन पशुओं से टीबीमनुष्य को भी हो सकती है यदि मनुष्य या तो इन पशुओं के सम्पर्क में आ जाए या कच्चा दूध पी ले। पस्तुएरिज़ेद्मिल्क या दूध पीने से बोवैन टीबी फैलने का खतरा नही होता है।
अमरीका के दूसरे प्रदेश फ्लोरिडा में एकलौता टीबी या तपेदिक का अस्पताल बंद होने का कगार पर है। इसअस्पताल को प्रदेश का प्रशासन बंद करने पर उतारू है क्योकि प्रसाशन का कहना है कि जब अमरीका का अन्यप्रदेशों में तपेदिक या टीबी का अस्पताल नही है तो फ्लोरिडा में ही क्यो टीबी या तपेदिक के लिए विशेष तौर परअस्पताल हो।
फ्लोरिडा में और अमरीका के अन्य प्रदेशों में टीबी या तपेदिक के इलाज को अन्य अस्पतालों में शामिल कर लियागया था जिसके कारणवश अलग से टीबी या तपेदिक के अस्पताल की आवश्यकता नही रही। ऐसा करना कईसालों पहले इसलिए स्वाभाविक लग रहा था क्योकि तपेदिक या टीबी का दर अमरीका में काफी नगण्य हो रहा था, और अमरीकी जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों को लगने लगा था कि टीबी या तपेदिक का खतरा अमरीका में नही है।उदाहरण के तौर पर १९५० में बोवैन टीबी अमरीका में ये मान ली गई थी कि वो खत्म हो चुकी है, और १९७० केदशक में जब बोवैन टीबी का दर बढ़ने लगा तो अमरीका चेता कि टीबी वापस आ रही है। एच.आई.वी ने नि:संदेहटीबी दर को बढ़ने में आग में घी का काम किया है।
परन्तु अब ऐसा नही है क्योकि टीबी या तपेदिक विसेश्कर कि ऐसी टीबी या तपेदिक जिसका इलाज मुमकिन नहीहै, वो अब वापस आ गई है। कोई देश दुनिया में ऐसा नही है जो ये कह सके कि टीबी या तपेदिक का खतरा उस देशमें नही है।
अफ्रीका के रवांडा देश में सरह्निये टीबी या तपेदिक नियंत्रण कार्यक्रम चल रहा है। २००६ में ही रवांडा ने तपेदिक याटीबी के मरीजों को सफलता पूर्वक ठीक करने के लक्ष्य को पूरा कर लिया था। विश्व स्तर पर सब देशों ने ये वादाकिया है कि ७०% टीबी या तपेदिक के मरीजों की सफलता पूर्वक जांच की जायेगी और ८५% टीबी के मरीजों कोसफलता पूर्वक इलाज कराया जाएगा। रवांडा ने ८५% से बढ़ के ८६% टीबी या तपेदिक के चिन्हित हुए मरीजों कीजांच की है जो नि:संदेह सरह्निये कार्य है।
परन्तु बढ़ते हुए ड्रग रेसिस्तंत तपेदिक या टीबी और एच.आई.वी संक्रमण से ये सफलता बरक़रार रखना एकचुनौती पूर्ण कार्य है।
अब रवांडा में वन-स्टॉप सर्विस कार्यक्रम लागु किया जा रहा है जिसके तहत टीबी की जांच करने वाली नर्स इतनीकुशल होगी कि एच.आई.वी की जांच ही नही कर सके बल्कि गुणात्मक दृष्टि से परामर्श भी दे सके।